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रेलवे स्टेशन पर: बारिश की एक शाम - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
आशुतोष माधव भीग-भीग कर सड़ता एक पीला उदास स्टेशन. जर्जर सराय सा, हाँफ-हाँफकर पहुँचते जाने कितने कलावंत गर्जन तर्जन लोहित देह; कुछ श्रीमंत केवल छूकर कर जाते छि:, चलन ऐसा मानो मैनाक को धन्य कर रहे हों हनुमान. यह प्रौढ़ा चिर-सधवा पीली देह उदास तार तार उतारती रहती पार-पार नाविक…