वर्षा !
तुमसे करूँ विनती एक,
रुक ना जाना एक जगह पर,
सबको प्यार बराबर देना।
वर्षा !
इतना जल भी ना दे देना जो,
घर घरोंदे,गाँव गली, चौबारे,
खेत किसान , मवेशी सारे,
जल मग्न हो जायें।
नदियाँ उफ़ान लेले
और नाव उसी मे डूबें।
भूखे प्यासे लोग,
पानी मे घिरकर,
पेड़ों पर रात गुज़ारें।
वर्षा !
तुम हर छोर पर जाना,
पूरब, पश्चिम,उत्तर,दक्षिण,
सबकी प्यास बुझाना,
कहीं का रस्ता भूल न जाना,
सब पर प्यार लुटाना,
कहीं भी कुऐं ना सूखें,
नदियाँ झीलें भरी रहें,
चटके नहीं दरार धरती पर,
कहीं न सूखी धूल उड़े।
वर्षा !
तुम आगे बढ़ना,
भूल ना जाना मेरी विनती,
सबको प्यार बराबर देना।
वर्षा !
बरसो छम छम छम,छम।
बादल गरजो, बरसो थम थम।
प्यास बुझाओ धरती की तुम।
दोनों कवितायें मन को प्रभावित करती हैं .
अच्छी भावना है आपकी
लीजिये इसमें मैं भी कुछ जोड़ देता हूँ
वर्षा !
वर्षा !
तुम, रुकते नही हो
एक जगह पर,
देते सबको प्यार बराबर ।
वर्षा !
कभी इतना जल दे देते हो
घर घरोंदे,गाँव गली, चौबारे,
खेत किसान , मवेशी सारे,
हो जाते जल मग्न ।
नदियाँ उफ़ानटी
नाव डूबता
भूखे प्यासे लोग,
पानी मे घिरकर,
पेड़ों पर रात गुज़ारते ।
वर्षा !
तुम हर दिशा में जाते ,
पूरब, पश्चिम,उत्तर,दक्षिण,
सबकी प्यास बुझाते
कहीं का रस्ता भूल नही भूलते
सब पर प्यार लुटाते
कहीं भी कुऐं ना सूखें,
नदियाँ, झीलें भरी रहें,
दरार कंही चटके नहीं धरती पर,
कहीं न सूखी धूल उड़े।
वर्षा !
तुम आगे बढ़ते जाते
सबको जल बराबर देते ।
वर्षा रानी !
बरसे छम छम।
बादल गरजे , बरसे थम थम।
प्यास बुझती धरती की तुम।
वर्षा रानी , वर्षा रानी
तुम समाजवाद की वाहिका ही
हों तुम समन्वयवादी
ऊँचे गढ़े को समतल करती
बढ़ती जाती हो प्रति पल
तुमने बढ़ नहीं लाये एही
लाया है कृत्रिम निर्माण
बड़े बांधों ने बान्धना चाहा
तुम तो हो निर्दोष
बांध टूटे और आयी बाढ़
हुआ विस्थापित मनुज समाज
तुमने तो बाटी थी खुशियाँ
लेकर सारी बूंद अमिय का
दूर देश से ई थी तुम
लेकर मानसून सन्देश
पेड़ कटे पड़े सूखे
कान्हा तुम्हारा दोष
कन्क्ल्तीतों के जंगलों ने
रोका था जलवाष्प निर्माण
निर्माणों की अधकचरी
श्रृंखला ने रोका जल पथ
janpath पर जब भीड़ लगेगी
होगा जब हुंकार
वर्षा रानी भूल जाना
उस दिन अपने भक्तों को
सिक्त कर स्वेदमुक्त कर देना
अपने उन सब पूजक को
वर्षा रानी वर्षा रानी
याद करे सब जीव तुम्हे
जो होते हैं अन्नों से
यज्ञों के अधिष्ठान से
जब बादल बन जाते हैं
उत्पन्न अन्न को करने वे
बादल पूजे जाते हैं
कर्मों से upje बेल से
यज्ञ हो जाते हैं \
वर्षा रानी भूल न जाना
अना मेरे अंगने में
गंगा के उद्गम से
ब्रह्म पुत्र के के मिलने तक
कश्मीर की केशरबाडी से
कावेरी के कंगन तक
फैला मेरे आँगन यह
तेरे आने से ही बनता है
भूल न जाना भूल ना जाना
आने को …
हर सावन में आने को