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राकेश उपाध्‍याय की चार कविताएं - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
छंटे तिमिर, खिले तो उपवन उठे जलजला जले जरा फूटे यौवन छंटे तिमिर तरे जन खिले तो उपवन। मन कानन में बाजे बंशी़, भोरे रे गाय रंभाती,हमें बुलाती, दुह ले रे यह सूर्य किरण, चमके घर~आंगन भाग्य जगा है सुन~सुन तो ले रे। उठे जलजला जले जरा फूटे यौवन छंटे…