भारतीय मानस में राम

– राजीव मिश्र

भारतीय संस्कृति में समता-समरसता के एक आदर्श आराधक देवता मर्यादा पुरुषोतम राम हैं जो मानव भी है और देवता होने के कारण करोड़ों के आराध्य हैं। सैकड़ों धार्मिक गतिविधियाँ, मान्यताएँ, विश्वास, लोक-कथाएं उनके पावन चरित्र से जुड़ी हैं। जहाँ वह राजा दशरथ और माता कौशल्या के तेजस्वी आज्ञाकारी पुत्र हैं वहीं वह वाल्मीकि के राम हैं। जन-जन के मर्यादा पुरुषोतम, समता-समरसता के प्रतीक, सुशासक राजा राम।

आज के भौतिकवाद की दौड़ में दौड़ते हुए मानव को भक्ति की शरण में ही शीतलता की प्राप्ति होगी। मानव दौड़ के कारण संपूर्ण सुख भोगते हुए भी उसे मानसिक शांति नहीं है। भक्ति वह सुख की सरिता है जो ज्ञान रहित होकर हमें अपूर्व शीतलता एवं शांति, संतोष वृत्ति प्रदान करती है। संतोष भाव प्राप्त होने पर सभी शांति, प्रेम एवं पवित्रता का उदय हमारे हृदय में होता है और भौतिकवाद की ओर दौड़ने वाला मानव अंत में भगवत की शरण में आता है। यही जीवन की सार्थकता है।

संघर्ष की प्रवृत्ति मानव मन में अनादि काल से विद्यमान है। संघर्ष का यह मनोभाव सर्वदा अनपेक्षित भी नहीं है क्याेंकि जिन व्यक्ति या समाज में संघर्ष की क्षमता समाप्त हो जाती है, वह सर्वथा गति शून्य हो जाता है। यह स्थिति उसके नाश का कारण बनती हैं, परंतु संघर्ष की यह प्रवृत्ति तभी तक कल्याणकारी रह पाती है जब तक उसका प्रयोग दीनता, दरिद्रता, अन्याय, अत्याचार मिटाने में किया जाता है। जन-जन में संघर्ष की क्षमता को उत्पन्न करना तथा उसके कल्याणकारी बने रहने की दृष्टि से सत्याग्रही एवं शस्त्राग्रही राम का चरित्र विशेष रूप से माननीय है।

राम अवध के ही नहीं सारे संसार के रग-रग में रचे-बसे हैं। भारत में तो समग्र जन-मानस राम के चरित्र से इतना प्रभावित है कि वे श्वांस से राम नाम की परिकल्पना करते हैं। उठते-बैठते किसी कार्य के लिए चलते और आरंभ करते राम का नाम सहज ही मुख में आ जाता है। प्रातः-सायं हिलते-मिलते अभिवादन एवं नमन के रूप में ‘जय राम’, ‘जय सीता राम’ निकल पड़ता है। लोगों का विश्वास है कि यदि मरते समय राम का नाम आ जाता है, तो उसे लिए सीधे में खुल जाता है। भारतीय लोक गीतों में राम का नाम अवश्य होता है। यदि कथानक राम से इतर भी है तो पंक्ति के अंत में राम, मारे राम, रामा हो रामा, अरे मोरे रामा आदि अवश्य आ जाता है।

भौतिक जीवन में राम सर्वत्र अपने आदर्शों के कारण स्थापित हैं। समाजिक व्यवस्था और पारिवारिक संबंधों में भी राम के जीवनादर्शों को आत्मसात् करके उनका पालन करना भारत की जनता अपने जीवन का लक्ष्य मानती है। उत्तम चरित्र वाले मानवों की तुलना रामचंद्र के परिवार के सदस्यों के साथ की जाती है। राम जैसे पुत्र, भरत-लक्ष्मण जैसे भ्राता, सीता जैसी साध्वी पत्नी, हनुमान जैसे सेवक, सुग्रीव जैसे मित्र, केवट जैसी प्रजा का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। यही कारण है कि रामचरित को कामों, रूपकों, संगीत, शिल्प, स्थापत्य एवं चित्रकला में मूर्तिभूत करके श्रवण, पठन, दर्शन एवं आराधना किया जाता हैं।

रामायण का अध्ययन कर हम मोक्ष का मार्ग ढूंढ़ते हैं। श्रीराम की लीला का हेतु केवल लीला मानकर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं। कभी यह विचार नहीं करते कि उन्होंने मानव का रूप धारण कर हमें शिक्षा देने के लिए ही यह लीला की थी। हम उनके जीवन में घटित घटनाओं का विश्लेषण करें तो पायेंगे कि अपने तप एवं त्याग रूप जीवन से उन्होंने राष्ट्र, धर्म, समाज, राजनीति आदि सभी पक्षों पर बहुत सार गर्भित संदेश दिया है। यह ठीक हैं कि राम नाम का जप करने से कल्याण होगा, किंतु यदि हम उनके संदेश को जीवन में उतार लें तो हमारा परम कल्याण होगा। फिर, भगवान और भक्त का अंतर समाप्त हो जाएगा। शेष रहेंगे केवल राम। हम स्वयं भी राममय हो जायेंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक मा. श्री गोलवलकर जी ने एक स्थान पर लिखा है ‘रामचंद्र के जीवन में मानवता की महानता है, आज देश पर क्षोभ की घटनाएं घिरी है और जनता अनुभव करती है कि वे सब लोग जिनके हाथ में नेतृत्व की बागडोर है वैसे नहीं है, जैसे उन्हें होना चाहिए था। लोगों के मनों में यह सुप्त अभिलाषा है कि उन्हें योग्य मार्गदर्शन तथा ऐसी प्रेरणा प्राप्त हो जिसमें निराशा के घोर अंधकार में भी प्रकाश दिखाई दे। ऐसी परिस्थिति में श्रीरामचंद्र का जीवन हमारे पथ प्रदर्शन के लिए आशा की एक किरण है।’

राम की दृष्टि में सारा विश्व एक कु टुंब है-‘वसुधैव कुटुंकम्’। राम का रामत्व संकीर्णता के जाल से सर्वथा मुक्त रहता है। राम किसी एक जाति, संप्रदाय के नहीं, वह जन-जन के हैं। समस्त मानव जाति के ही नहीं, बानर, भालू, पशु-पक्षी के पक्षी के भी हैं। राम सबके हैं। चाहे वह शबरी हो या अहिल्या, अमीर खुसरो हो या रहीम, कामिल बुल्के हों या रूस के ए. वारंतिकोव अथवा इटली के तैस्सीतेरी। हारे-थके और कुचले हुए लोगों का आह्वान है, राम। वह सुग्रीव जैसे पीड़ित की पुकार भी है और विभीषण जैसे आर्त की गुहार भी। सारा विश्व राम का कुटुंब है और राम उस कुटुंब के मुखिया हैं। भारतीय संस्कृति के सद्गुणों से समलंकृत राम का विश्व प्रेम से संपृक्त उदारमना विराट व्यक्तित्व विश्व कल्याण की सद्भावना से ओत-प्रोत है।

* लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

5 COMMENTS

  1. अच्छा किया. परशु राम कुमार जी ने, इस आलेख को फिरसे उजागर कर दिया. आज यह आलेख विशेष रूप से सामयिक है. वैसे राम कभी भी असामयिक नहीं हो सकते.—-धन्यवाद.

  2. भारतीय संस्कृति में समता-समरसता के एक आदर्श आराधक देवता मर्यादा पुरुषोतम राम हैं जो मानव भी है और देवता होने के कारण करोड़ों के आराध्य हैं। सैकड़ों धार्मिक गतिविधियाँ, मान्यताएँ, विश्वास, लोक-कथाएं उनके पावन चरित्र से जुड़ी हैं। जहाँ वह राजा दशरथ और माता कौशल्या के तेजस्वी आज्ञाकारी पुत्र हैं वहीं वह वाल्मीकि के राम हैं। जन-जन के मर्यादा पुरुषोतम, समता-समरसता के प्रतीक, सुशासक राजा राम।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक मा. श्री गोलवलकर जी ने एक स्थान पर लिखा है ‘रामचंद्र के जीवन में मानवता की महानता है, आज देश पर क्षोभ की घटनाएं घिरी है और जनता अनुभव करती है कि वे सब लोग जिनके हाथ में नेतृत्व की बागडोर है वैसे नहीं है, जैसे उन्हें होना चाहिए था। लोगों के मनों में यह सुप्त अभिलाषा है कि उन्हें योग्य मार्गदर्शन तथा ऐसी प्रेरणा प्राप्त हो जिसमें निराशा के घोर अंधकार में भी प्रकाश दिखाई दे। ऐसी परिस्थिति में श्रीरामचंद्र का जीवन हमारे पथ प्रदर्शन के लिए आशा की एक किरण है।’
    राम की दृष्टि में सारा विश्व एक कु टुंब है-’वसुधैव कुटुंकम्’। राम का रामत्व संकीर्णता के जाल से सर्वथा मुक्त रहता है। राम किसी एक जाति, संप्रदाय के नहीं, वह जन-जन के हैं। समस्त मानव जाति के ही नहीं, बानर, भालू, पशु-पक्षी के पक्षी के भी हैं। राम सबके हैं। चाहे वह शबरी हो या अहिल्या, अमीर खुसरो हो या रहीम, कामिल बुल्के हों या रूस के ए. वारंतिकोव अथवा इटली के तैस्सीतेरी। हारे-थके और कुचले हुए लोगों का आह्वान है, राम। वह सुग्रीव जैसे पीड़ित की पुकार भी है और विभीषण जैसे आर्त की गुहार भी। सारा विश्व राम का कुटुंब है और राम उस कुटुंब के मुखिया हैं। भारतीय संस्कृति के सद्गुणों से समलंकृत राम का विश्व प्रेम से संपृक्त उदारमना विराट व्यक्तित्व विश्व कल्याण की सद्भावना से ओत-प्रोत है।

  3. ब्रहम राम से नाम बढ़ ;वरदायक वरदान .
    रामचरित शतकोटी में; लिय महेश जिय जान .
    .. गोस्वामी तुलसीदास जी कृत -रामचरितमानस से साभार

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