राम जन्म भूमि पर मन्दिर क्यों नहीं?

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ram विनोद बंसल

देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के महा सचिव अयोध्या स्थित भगवान राम की जन्मस्थली के दर्शन करने क्या पहुंच गए देश की राजनीति में मानो भूचाल आ गया। शायद ही देश का कोई बडा राजनेता ऐसा बचा हो जिसने इस पर अपनी टिप्पणी नहीं की हो। भाजपा को छोड लगभग सभी दलों ने इसे सांप्रदायिक राजनीति करार दिया है। यह बात सच है कि किसी भी दल को धर्माधारित राजनीति नहीं करनी चाहिए। किन्तु क्या कोई ऐसा दल है जो तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करता है। बात-बात पर मुसलमानों को लुभाने के लिए सभी राजनैतिक दल नए नए पैंतरे खेल रहे हैं और इसके लिए देश की सुरक्षा व नागरिकों की रक्षा को भी ताक पर रखने में भी कोई गुरेज नहीं करते। फ़िर भगवान राम के मन्दिर की बात करने मे आखिर कैसी राजनीति?

पूरी दुनिया जानती है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी चिर काल से ही हिंदू समाज के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है। यहां की कोई भी गली या मुहल्ला ऐसा नहीं है जहां पर किसी को राम की आराधना के स्वर सुनाई न देते हों। तैतीस कोटि देवी देवताओं को मानने वाले हिन्दू समुदाय को, यहां मात्र श्री राम के, किसी और आराध्य का कीर्तन शायद ही सुनाई देगा। वैदिक काल के मान चित्रों, श्री राम चरित मानस सहित अनेक पुरातन धर्म ग्रंथों, सरकारी अभिलेखों, ढांचे की दीवारों से प्राप्त शिला-लेखों, अनेक हिन्दू, मुस्लिम व ईसाई विद्वानों के लेखों, डाइरियों तथा भिन्न-भिन्न समयों पर जारी सरकारी गज़टों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हां यह वही अयोध्या है जहां श्री राम ने अठ्खेलियां खेली भीं और अपने मोहक रूप से सभी को मोह लिया था। इस सब के अलावा इलाहाबाद उच्च न्यायालय की निगरानी में कनाडा की कंपनी द्वारा कराई गई पेनीट्रेटिंग राडार तकनीकि के माध्यम से लिए गये जमीन के भीतर के चित्र और उसके बाद वहां सभी पक्षकारों की उपस्थिति में वीडियो ग्राफ़ी के साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई खुदाई में मिले साक्ष्यों ने तो पूरी तरह से दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। सन् 1950 से उत्तर प्रदेश की विभिन्न न्यायालयों में ठोकर खाते हुए शान्ति प्रिय हिन्दू समाज को साठ वर्षों के बाद 30 सितम्बर 2010 को माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय से निर्णय मिला कि :

1) विवादित स्थल ही भगवान श्री राम की जन्म स्थली है। और इसका मालिकाना हक राम लला विराजमान में ही रहेगा। अर्थात मन्दिर है और रहेगा।

2) एक विशाल मन्दिर को तोडकर उसके मलबे से ढांचे का निर्माण करवाया था।

3) वह ढांचा इस्लामिक मान्यताओं के विपरीत था अत: इसे न तो मस्जिद ही कहा जा सकता है और न ही उसमें कभी नमाज़ पढी गई।    अर्थात टूटे ढांचे को मस्जिद न कहा जाए।

 

सन् 1994 में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से शपथ पूर्वक कहा था कि यदि “यह सिद्ध हो जाता है कि विवादित स्थल पर 1528 से पूर्व कोई हिन्दू स्थल था तो सरकार हिन्दू भावनाओं के अनुरूप काम करेगी”। तत्कालीन मुस्लिम नेतृत्व ने भी सरकार को वचन दिया था कि हिन्दू भवन सिद्ध होने पर मुस्लिम समाज स्वेच्छा से यह स्थान हिन्दुओं को सौंप देगा।

यदि हम राम जन्म भूमि मुक्ति के लिए हुए संघर्षों की पडताल करें तो पता चलता है कि इसके लिए अब तक हुए 76 युद्धों में लगभग साढे तीन लाख हिन्दुओं ने अपने प्राणों की आहूति लगा दी। 77वां निर्णायक संघर्ष सन् 1984 में प्रारम्भ हुआ जिसके परिणाम स्वरूप फ़रवरी 1986 में जन्म भूमि पर लगा ताला खोला गया। 1989 में देश भर के तीन लाख गांवों व नगरों से पूजित श्रीराम शिलाओं द्वारा 9 नवम्बर को भव्य मन्दिर का शिलान्यास किया गया। 1990 में श्री राम ज्योति यात्राओं के माध्यम से घर-घर दीपावली के दीप जगमगाए। 30 अक्टूबर 1990 को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन निर्दयी सरकार के दमन चक्र के कारण अनेक राम भक्त अपनी ही चुनी सरकार द्वारा चलाई गई गोलियों के शिकार बनकर शहीद हुए। हिन्दू समाज ने सरकारी दमन चक्र का तीखा जवाब लोकतांत्रिक रूप से देते हुए 4 अप्रेल 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर एक अभूतपूर्व रैली की जिसमें 20-25 लाख रामभक्तों ने सरकार की चूलें हिला दीं। और इतने पर भी जब मूक-बधिर सरकार हिन्दू समाज को अपने आराध्य का स्थान वापस नहीं दिला सकी तो छ: दिसंबर 1992 को राम भक्तों ने राम जन्म भूमि पर बने जर-जर ढाचे को स्वयं ही धराशाही कर दिया। और एक अस्थाई कपडे के मंदिर में राम लला पुन: प्रतिष्ठित हुए। ढांचा गिरते समय मन्दिर की दीवारों के शिला लेख व अन्य चिन्ह भी प्राप्त हुए थे जो वहां मन्दिर होने के पुख्ता प्रमाण थे।

एक बात यह भी सर्व विदित है कि बाबर एक कट्टरपंथी विदेशी आक्रांता था जिसने बडे पैमाने पर हिन्दू धर्म स्थलों को तोडा तथा भारत का धन व इज्जत दोंनों को लूटा। क्या भारत का कोई भी नागरिक बाबर जैसे दुष्ट के साथ अपने को जोडना पसंद करेगा? यदि नहीं, तो बाबरी के लिए हाय तोबा क्यों? और यदि हां तो उसे भारत में रहने का अधिकार क्यों? दूसरी बात यह है कि कोई भी व्यक्ति अपना काम बदल सकता है, धाम बदल सकता है, यहां तक कि अपना नाम भी बदल सकता है किन्तु अपना जन्म स्थान नहीं। जब व्यक्ति का जन्म स्थान नहीं बदल सकता तो भगवान श्री राम का कैसे बदला जा सकता है। राम मन्दिर कहीं भी बन सकता है किन्तु जन्म भूमि मन्दिर जन्म स्थली पर नहीं तो और कहां?

भारत सरकार चाहती तो उच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हुए मुस्लिम समाज को उनके वादे पर अमल करने हेतु कह कर जन्म भूमि का सम्पूर्ण क्षेत्र भगवान राम के एक भव्य मन्दिर के लिए सौंप हमेशा के लिए इस विवाद को समाप्त कर सकती थी। किन्तु, ऐसा न कर विवाद को सर्वोच्च न्यायालय में ले गई। इससे तो यही प्रतीत होता है कि सरकार चाहती है कि जन्म भूमि का विवाद अनंत काल तक चले और राज नेताओं की राजनीति चमकती रहे।

मन्दिर और उसमें अर्चना तो अनादिकाल से चलती ही आ रही है और चलती रहेगी। किन्तु यदि आप अयोध्या जाएं तो पता चलेगा कि भगवान के दर्शनार्थ भक्तों को कितने कष्ट उठाने पड रहे हैं। बैठ कर आराधना की बात तो दूर, सुरक्षा कर्मी भक्तों को वहां एक मिनिट के लिए खडे भी नहीं होने देते। और तो और अनेक भक्तों (खास कर बृद्धों व बच्चों) का कष्ट तो तब बढ जाता है कष्ट प्रद सीखचों वाले मार्ग को किसी तरह से पार कर जब दरबार के सम्मुख पहुंचते हैं तो टाट के टेंट में बिराजमान राम लला के दर्शन ही नहीं मिलते क्योंकि भगवान का विग्रह घोर अंधकार में आंखों से इतना दूर होता है कि दर्शन करना सम्भव ही नहीं होता।

इस समय आवश्यकता इस बात की है कि सभी दलों के राजनेता राजनैतिक विद्वेष त्याग कर अयोध्या जाएं, दर्शन करें, भक्तों के कष्ट हरें और मिल कर संसदीय कानून द्वारा संतों के आदेशानुसार एक भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें। कम से कम इस स्थल को बाबरी मस्जिद तो बिल्कुल न कहें। अब तो भगवान के विग्रह को खुले आसमान में बने टाट के टेंट की जगह भव्य मन्दिर का रूप देना है। आखिर एक आम भारतीय कैसे बर्दाश्त करेगा कि हम तो रहें ठाट में और भगवन बैठें टाट में। 

3 COMMENTS

  1. जय श्री राम.
    यह सेकुलरिज्म का कीड़ा कांग्रेस की साजिश है जिसके जरिये यह पॉवर
    में बनी रहना चाहती है. वैसे भारतीय संविधान ही एक बेकार डॉक्यूमेंट
    है. इसमें जबरदस्त संशोधन की आवश्यकता है.

  2. ज्योर्ज वाशिंग्टन और लिंकन ये दोनों इस्लामी तो नहीं थे, पर प्रत्येक नागरिकता चाहनेवाले प्रवासी मुसलमान को भी उन्हें अमरिका के राष्ट्र पुरूष मानना पडता है।
    ठीक उसी प्रकार भारतीय मुसलमान भी राम और कृष्ण को राष्ट्र्पुरूष मान ले।
    मुसलमानों को भारत से बढकर संसार भर में कोई देश नहीं मिलेगा।

    • सही बिलकुल सही बात …कोई और देश ऐसा हो ही नहीं सकता जो मुस्ल्माओं की नागुज़ारियों को सहता रहे और ये देशद्रोही घटनाओ, संविधान, कानून, राष्ट्रगीत आदि में आस्था न होने के बावजूद सीना चौड़ा करते यहाँ रहते रहे… थोड़ी तो शर्म होनी चाहिए…

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