राम मंदिर निर्माण : आखिर कब तक देश का जनमानस करे इंतजार

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मृत्युंजय दीक्षित

भारत के इतिहास में 6 दिसम्बर की तारीख का बड़ा ही ऐतिहासिक महत्व है। इस दिन भारत के संविधान निर्माता डा. अम्बेडकर का निधन हुआ था और इसी दिन 6 दिसम्बर 1992 को  विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर के निर्माण के उददेश्य हेतु अयोध्या में कारसेवा का आयोजन किया गया था। लेकिन दुर्भाग्यवश विवादित स्थल पर स्थिल बाबरी ढांचे को उग्र भीड़ के कहर से बचाया नहीं जा सका। इस दिन को हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग अपने तरीकों से याद करते हैं और अपने सपनों को पूरा करने की कसमें खाते हैं। अयोध्या विवाद बरसों पुराना है।

हिंदुओं का मत है कि अयोध्या का विवादित स्थल भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है तथा वह यहीं पर भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनवायेंगे। विश्व हिंदू परिषद व संघपरिवार के तमाम आनुषांगिक संगठन राम मंदिर आंदोलन में शामिल होते रहे हैं तथा इस आंदोलन को केवल राजनैतिक नजरिये से पर्दे के पीछे से भाजपा का ही समर्थन मिला है जबकि अधिकांश सेकुलर दल मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के कारण मंदिर विरोधी बयान देते हैं।

राजनीति व समय के बहाव में अब इस आंदोलन में भी बहुत बदलाव आया है। विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक व राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े अगुवा अशोक सिंधल अब नहीं रहे। अशोक जी का एक बडा सपना फिलहाल सपना ही रह गया है। इसके अतिरिक्त इस आंदोलन से जुडें कई संत और

नेता पहले भी दिवंगत हो चुके है। इस समय मंदिर आंदोलन एक प्रकार से सशक्त नेतृत्व से विहिन हो चुका है। यह अलग बात है कि आज की तारीख में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की बहुमत की सरकार है और जिसका नेतृत्व मजबूत व ईमानदार सोच केे धनी नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। यह बात सही है कि आज पीएम मोदी का मूलमंत्र सबका साथ और सबका विकास हैं लेकिन अभी फिलहाल उनका यह नारा भी पटरी पर वास्तविकता के धरातल पर खरा नहीं उतर पा रहा है। उत्तर प्रदेश के बहुसंख्यक समाज ने प्रदेश से भाजपा के   71 सांसदों को संसद में भेजा है। प्रदेश का बहुसंख्यक समाज व भाजपा, संघ के कार्यकर्ता बड़ी आशाये लगाये बैठे हैं। लेकिन यह बडे दुर्भाग्य व निराशा की बात हो रही है कि अब  सर्वसम्मति से मंदिर निर्मण  का सपना पूरा करने का रास्ता मिलना भी कठिन हो गया है क्योंकि कहा जा रहा है कि राज्यसभा में बहुमत नही हैं। वहीं यदि राममंदिर पर कांेई बयान दिया भी जाता है तो अब सेकुलर दल पहले से भी अधिक मुखर हो गये हैं । वहीं दूसरी ओर यह प्रकरण हाईकोर्ट की दहलीज को पार करके सुप्रीम कोर्ट में आकर लटक गया हैं। वहां पर अभी तक सुनवाई की तारीख तो दूर बेंच तक बनाने का समय अदालत व सरकार के पास नही हैं। अभी हाल ही में भाजपा के नेता डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में पूरे मामले के त्वरित नितस्तारण के लि एक याचिका डाली है। पता नहीं गवान श्रीरम की जन्मस्थली के दिन कब अच्छे हांेगे।

यही कारण है कि आज देश का ही नहीं अपितु विशेषकर उप्र का बहुसंख्यक समाज इस प्रकरण पर भारी निराशा का अनुभव कर रहा है। यह एक ऐसी परिस्थिति है कि इस समय  आक्रामक दबाव भी नहीं डाला जा सकता यदि डाला भी गया तो इसके  राजनैतिक परिणाम भविष्य की राजनीति के लिए बेहद खराब भी हो सकते हैं आज प्रदेश की जनता भाजपा नेताओं से पूछ रही है कि आखिर कब बनेगा राममंदिर। स्व. अशेाक सिंघल एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे जो पक्ष व  विपक्ष  सभी को साधने में सक्षम थे। उनमें अपार संगठन  व नेतृत्व क्ष्मता थी। यह अशोक जी ही थे जिन्होनें अपने जीवनकाल में राम मंदिर के निर्माण के लिए पूर्ववर्ती सरकारों के समय दबाव बनाने के लिए सभी सांसदों को पत्र लिखकर मांग की थी कि संसद से एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पास करके  सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त किया जाये। यह सब कुछ अब  वर्तमान राजनीति में संभव है लेकिन हाल के दिनों में पहले दिल्ली और अब बिहार की पराजय ने संकट और गहरा दिया हैं। अब अशोक जी इस दुनिया में नहीं हैं। उनके सपने को पूरा करने का बीड़ा इस बार एक बार फिर संघप्रमुख मोहन भगवत ने उठाया है। उनका कहना है कि अयोध्या में राममंदिर निर्माण का सपना उनके  जीवनकाल में पूरा हो सकता है। एक प्रकार से आज अयोध्या विवाद जस का तस है। विवाद को बातचीत के माध्यम से सुलझाने केे बहुत प्रयास किये जाचुके हैं लेकिन सभी विफल साबित हो रहे हैं क्योंकि उसके पीछे निहित राजनैतिक स्वार्थ छिपे हुये हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व.चंद्रशेखर से लेकर अब तक कइ्र्र बार दोनों पक्षों को बातचीत के माध्यम से मामला सुलझाने का रास्ता दिया गया लेकिन हर बार कोई न कोई गतिरोध पैदा हुंआ या  कर दिया गया। अभी भी पर्दे के पीछे के पीछे से कुछ लोग अयोध्या विवाद का हल खेाजने मंे लगे हैं लेकिन फिलहाल विवाद का अंत होता नहीं दिखलायी पड़ रहा है।दूसरी तरफ सबकी नजरें सुप्रीम अदालत व पीएम मोदी की ओर लगी हुयी हैे। फिलहाल अयोध्या कांड की इस तारीख पर समसत हिंदू संगठनों व रामभक्तों को स्व. अशोक सिंघल की याद खूब आयेगी। रामलला ने एक बार फिर भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया है लेकिन उससे भी वह तिरपाल के साये से बाहर नहीं आ पा रहे है। अब इस विवाद का हल भविष्य के गर्त में ही छिपा है।

दूसरी ओर आज ही के दिन भारत के संविधान निर्माता व भारतरत्न बाबा साहेब अम्बेडकर का निधन हुआ थ। इस वर्ष डा.अम्बेडकर को विशेषरूप से याद किया जा रहा है। विगत दिनो उनकी याद मंे संसद में देश के संविधान पर चर्चा हुई्र लेकिन यह दुीााग्य की बात है कि देश के संविधान की सभी दलों ने अपने हिसाब से चर्चा हुई। जीवनभर उपेक्षित रहने वाले बाबा साहेब अम्बेडकर ने देश को एक महान संविधान दिया जिसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं रखा गया। लेकिन देश के सभी राजनैतिक दल आज बाबासाहेब के विचारों को अपने हिसाब से प्रस्तुत कर रहे हंै। जो राजनैतिक दल आजादी के समय नहीं थे और थे वे सभी बाबा साहेब अपना पहला हक जता रहे हैं और जाति के आधार पर विकृृत राजनति कर रहे हैं।  सबसे महत्वपूर्ण आरक्षण का मुददा है और सभी राजनैतिक दल इसको अपने हिसाब से उठाते रहते हेै। जबकि बाबा साहेब के बनाये संविधान में स्पष्ट है कि आरक्षण की व्यवस्था केवल दस वर्षो कतकही रहेगी लंकेन बअब यह तो सुरसा के मुंह की तरह फैलती जा रही है और हर कोई अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहा है। बाबा साहेब के मूल संविधान में समाजवाद शब्द का कोईउल्लेख नहीं था उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरागांधी ने निहित राजनैतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए संशोधन के माध्यम से जुड़वा लिया।आज सभी राजनेतिक दल बाबा साहेब के विचारों को अपने हिसाब से सींच रहे हैं।  जबकि महापुरूष वास्तव में देश के निर्माता होते हैं।

प्रेषक:- मृत्युंजय दीक्षित

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