रमन और छत्तीसगढ़ एक-दूसरे के पर्याय बने

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raman-singhछत्तीसगढ़ स्थापना दिवस 1 नवम्बर पर विशेष

मनोज कुमार
बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. 16 साल पहले आज के ही दिन 1 नवम्बर को छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र होने का अवसर मिला था. मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य विविध चुनौतियों और संभावनाओं के मध्य कुछ करगुजरने के लिए बेताब था. आरंभ के तीन वर्ष कांग्रेस के पास रहा लेकिन उसके बाद राज्य की जनता ने बागडोर भाजपा के हाथों सौंप दी. 2003, 2008 और 2013 के राज्य विधानसभा के चुनाव में बार बार, हर बार भाजपा का नारा लगता रहा और भाजपा ही सत्तासीन होती रही. सबसे खास बात यह रही कि इन सालों में लोगों ने मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. रमनसिंह को ही पसंद किया. कभी बीमार लोगों की नब्ज पकड़ कर उनकी बीमारी दूर करने वाले डाक्टर रमनसिंह के हाथों में आज छत्तीसगढ़ की नब्ज है. वे राज्य की बीमारी को भी जानते हैं और उसमें छिपी संभावनाओं को भी और बीमारी का इलाज भी उनके पास है इसलिये छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमनसिंह एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जो मुखिया बनकर छत्तीसगढ़ राज्य को विकास की तरफ ले जाने की दिशा में अग्रसर हैं. कभी पिछड़े राज्य के रूप में पहचाना जाने वाला छत्तीसगढ़ आज विकसित राज्यों की पंक्ति में शुमार हो चुका है तो इसके सम्मान के हकदार हैं तो डॉक्टर रमनसिंह. सन् दो हजार में जब छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य की हैसियत से भारत के नक्शे पर आया तब किसी ने यकिन नहीं किया था कि राज्य की चमक इस तरह बिखरेगी लेकिन ऐसा हुआ. आरंभ के तीन वर्ष जरूर छत्तीसगढ़ के लिये गुमनामी के रहे लेकिन बाद के वर्षों में विकास की जो गूंज हुई, उसे पूरी दुनिया देख रही है.
डाक्टर रमनसिंह ने जब छत्तीसगढ़ राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली, तब शायद किसी को यह विश्वास ही नहीं था कि एक ऐसा शांत व्यक्तित्व का धनी राज्य को विकास की चहुमुंखी आभा से आलोकित कर देगा. लोगों का यह सोचना अकारण नहीं था. दूसरे राजनेताओं की तरह डाक्टर रमनसिंह की खनक नहीं थी बल्कि आम आदमी के लिये तो लगभग नया चेहरा था लेकिन दुर्ग संभाग के लोगों का पुराना परिचय उनसे था. मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपना संकल्प दोहराया कि राज्य में कोई भूखा नहीं सोयेगा. अपने इस संकल्प की पूर्ति के लिये समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति तक सस्ते में अनाज पहुंचने लगा. इसी के साथ पहुंचने लगी मुख्यमंत्री की ख्याति. आरंभिक दिनों में विपक्षियों के लिये सस्ता चावल महज शिगूफा था लेकिन आहिस्ता आहिस्ता इस संकल्प का प्रभाव सामने आने लगा और सरकार तथा आम आदमी के बीच विश्वास का रिश्ता बनता चला गया.
मुख्यमंत्री के रूप में डाक्टर रमनसिंह ने छत्तीसगढ़ राज्य की नब्ज अपने हाथों में ले ली थी. बीमार और पिछड़े राज्य को उन्होंने आहिस्ता आहिस्ता ठीक करना शुरू किया. अपने आठ वर्ष के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ को पिछड़े और बीमार राज्य से बाहर ला निकाला. आज छत्तीसगढ़ देश दुनिया के साथ दौडऩे के लिये तैयार है. लोकहितैषी मुख्यमंत्री के रूप में डॉक्टर रमनसिंह का जोर था वनवासी परिवारों की तरफ जिनके हिस्से में उपेक्षा और गुमनामी था. ये लोग छत्तीसगढ़ की पहचान है किन्तु स्वयं अपनी पहचान के लिये दशकों से तरसते रहे हैं. रमनसिंह ने इन्हें इनकी पहचान दिलायी और राज्य को गर्व. अलग अलग योजनाओं के माध्यम से इन्हें नये सिरे से जीने का अवसर मिला तो इनके बच्चों को ऊंची शिक्षा का. हर किस्म की परीक्षाओं में बच्चों ने ऐसी काबिलियत दिखायी कि छत्तीसगढ़ तो क्या पूरा देश अंचभित रह गया. यह सूरत बदलने की जो सर्जरी डाक्टर साहब ने वनवासी समाज के लिये की, वैसा ही कुछ कुछ समाज के किसानों, महिलाओं, मजदूरों और अन्य वर्गों के लिये किया. मुख्यमंत्री और सरकार के बीच आम आदमी की दूरी को पाट दिया गया. जनदर्शन के बहाने सरकार और मुख्यमंत्री गांव गांव जाने लगे, लोगों से बातें करते और उनकी सुनते. समस्याओंं का निपटारा स्थान पर ही कर देते और जो नहीं हो पाता।
राज्य की दो करोड़ 55 लाख जनता अब भीख और भूख से लगभग पूरी तरह मुक्त हो चुकी है. छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली देश के लिये नजीर बन चुकी है. सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार से यह पूछा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए गए कम्प्यूटरीकरण को पूरे देश में एक मॉडल के रूप में क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दूसरे राज्यों ने भी अपने यहांं अमल में लाया है. हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर किसान को न्यूनतम ब्याज पर खेती के लिए ऋण सुविधा और उसकी मेहनत का पूरा दाम, हर घर को बिजली, हर परिवार को अनाज, हर बच्चे को स्कूल के साथ नि:शुल्क पाठयपुस्तक, हर मरीज को इलाज की अच्छी से अच्छी सुविधा देकर दशकों से उपेक्षित राज्य के नागरिकों को अपने राज्य होने का गौरव दिलाया. महिला शक्ति को एक नयी पहचान मिली और टोनही के नाम पर महिलाओं की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने वालों को दंड देने की नीयत से कानून पारित किया गया लिहाजा राज्य में अब ऐसे मामलों में कमी देखी गयी है.
महिलाओं के प्रति रमन सरकार का रूख हमेशा से सकरात्मक रहा है और यही कारण है कि उन्हें आर्थिक रूप से संबल प्रदान करने के लिए अनेक योजनाओं का संचालन किया जा रहा है. उनके जीवन में खुशियां आए, इस बात की लगातार कोशिश हो रही है. छत्तीसगढ़ में टोनही (और स्थानों पर डायन या जादूगरनी का संबोधन) के नाम पर महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ होता था. इसके खिलाफ मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने कड़े कदम उठाते हुए देश में पहली बार टोनही के खिलाफ कानून अमल में लाने की पहल की। कानून के डर से अब महिलाओं के साथ कथित टोनही के नाम पर ना तो दुराचार होता है और न ही उनके साथ अत्याचार।
स्पष्ट नीति, साफ नीयत, संवेदनशील दृष्टिकोण और गतिशील नेतृत्व से ही किसी भी राज्य अथवा देश को विकास की राह पर कदम दर कदम कामयाबी मिलती है। मुख्यमंत्री डाक्टर रमनसिंह ने राज्य में सर्वधर्म समभााव का पूरा पूरा खयाल रखा. यही नहीं, राज्य के इतिहास पुरूषों को भी पूरा सम्मान दिया. इसकी मिसाल महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्मस्थली और तपोभूमि गिरौदपुरी में ऐतिहासिक कुतुबमीनार से भी ऊंचा जैतखाम का निर्माण कराया गया है. कुतुबमीनार से भी ऊंचा यह जैतखाम गुरू बाबा घासीदास के सत्य और अहिंसा के संदेश को दूर-दूर तक पहुंचाएगा।

केन्द्र सरकार की विविध योजनाओं को लागू करने में भी मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने छत्तीसगढ़ को अगुवा बना दिया है। रमनसिंह की पहल का इतना असर हुआ कि स्वच्छ भारत अभियान में गांव गांव में लहर चल पड़ी। राजनांदगांव जिले छुरिया विकास खंड की एक गरीब महिला ने अपनी बकरियां बेचकर शौचालयों का निर्माण कराया। छत्तीसगढ़ की दान परम्परा की यह एक और कड़ी थीं। इसी तरह स्वच्छ भारत अभियान तेज गति से अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ रहा है। इसी तरह प्रधानमंत्री उज्जवला योजना को भी मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह ने जमीनी हकीकत में बदल दिया है. अब एक दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में महिलाओं की जिंदगी धुंआ धुंआ होने से बच रही है.
प्रदेश के पूर्वोत्तर इलाके में रेल कॉरिडोर निर्माण के उनके प्रस्ताव को रेल मंत्रालय ने हाथों-हाथ लेकर अपनी हरी झंडी दे दी है। यह रेल कॉरिडोर छत्तीसगढ़ में यात्री सेवाओं के विस्तार के साथ-साथ माल-परिवहन की दृष्टि से भी काफी उपयोगी होगा। छत्तीसगढ़ में उद्योग-धंधों को विस्तार मिले, इस दृष्टि से संसार भर के निवेशकों को राज्य में नये उद्योग लगाने के लिये आमंत्रित किया. निवेशकों ने छत्तीसगढ़ सरकार की कोशिशों की तारीफ की और निवेश को उत्सुक दिखे. राज्य सरकार चाहती है कि प्रदेश में नये उद्योग आयें लेकिन वे यह भी नहीं चाहती कि कोई भी निवेशक राज्य की प्राकृतिक संपदा को क्षति पहुंचाये. पर्यावरण की सुरक्षा के वादे के साथ निवेश की संभावना टटोलने वाला संभवत: छत्तीसगढ़ पहला राज्य होगा. एक स्वप्रदृष्टा मुख्यमंत्री के हाथों छत्तीसगढ़ सुघर आकार ले रहा है.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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