रामदेव व अन्‍ना के आंदोलन के बाद कांग्रेस

डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल 

बाबा रामदेव व अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के आंदोलनों के बाद कांग्रेस अब रामदेव व अन्ना हजारे व उनके समर्थक प्रमुख लोगों को ही आंतकवादी समझते हुए किसी न किसी बहाने पकड कर जेल में डलवाने को आतुर हो रही है। कांग्रेस अब मुस्लिम आंतकवाद को आंतकवाद नहीं समझ कर रामदेव व अन्ना को ही आंतकवाद शिरोमणि समझ कर काम कर रही है जिससे जनसमान्य में कांग्रेस की रही सही छवि बहुत तेजी से घूमिल होती जा रही है। जितनी तेजी व तत्परता से रामदेव के आंदोलन को आधी रात में पुलिस व सुरक्षा बलों के बुटों के तले रामलीला मैदान में रौंदा गया और अन्ना के आंदोलन को 12 दिन में किसी न किसी बहाने समाप्त करवा कर तत्परता व अपनी कुशलता दिखाई उतनी तत्परता, कुशलता, शक्ति व दृढ इच्छा आंतकवाद से निपटने के लिए नहीं दिखाई जिसका परिणाम दिल्ली में उच्च न्यायालय के समीप 8 सितम्बर, 2011 को प्रातः पौने ग्यारह बजे बम विस्फोट के रुप में देखने को मिली जिसमें 10 लोग मारे गये व सैकडों निर्दोष लोग घायल हो गये।

कांग्रेस व डॉ. मनमोहन सिंह की टीम की दुर्बलता ही है जो 26 नवंबर, 2008 के मुम्बई विस्फोट के अपराधी कसाब को न तो फांसी ही दे पाई और न ही कांग्रेस अफजल गुरु को फांसी दे पाई। कांग्रेस के युवा हृदय सम्राट राजीव गांधी की हत्या के 12 साल बाद भी कांग्रेस उनके हत्यारों को फांसी न दे सकी है। कभी तमिलनाडु व कभी जम्मू व कश्मीर से इन आंतकवादी व अपराधी सिध्द हुए हत्यारों को फांसी न देकर दया की अपील की जा रही है। यह सब राजनीतिक दुर्बलता का प्रतीक है। आंतकवाद से लडने के लिए कांग्रेस में इच्छा शक्ति का अभाव है। मुस्लिम तुष्ब्टीकरण व मुस्लिम वोट बैंक से जोड कर कांग्रेस आतंकवाद को देख रही है। जो कि कदापि ठीक नहीं है। कांग्रेस की दृढ इच्छा शक्ति तो बाबा रामदेव व अन्ना हजारे जैसे भ्रष्टाचार विरोधियों को कुचलने में ही जाया हो रही है। भ्रष्टाचार, महंगाई व आंतकवाद कांग्रेस के पर्यायवाची बन कर रह गये है। क्या भ्रष्टाचार से कमाया हुआ धन विदेशों से वापस लाने की मांग करना देशद्रोह है? क्या जनलोकपाल की नियुक्ति की मांग करना देशद्रोह है? जो कभी रामदेव को विदेशी मुद्रा में तो कभी उनके परम सहयोगी बाल कृष्ण को पासपोर्ट, अरविंद केजरीवाल को दस लाख रुपये की रिकवरी तथा किरण बेदी को संसद की अवमानना इत्यादि जैसे आरोप लगाये जा रहे है जिनसे ये सभी प्रमुख लोग इन फिजूल की बातों में अपना समय जाया करें तथा वे फिर से कांग्रेस के सामने भ्रष्टाचार के विरुध्द आवाज न उठा सके और अगला चुनाव किसी न किसी प्रकार कांग्रेस जीत जायें फिर ये आरोपी लोग बच जाये तो बच जायें। कांग्रेस की तो अपनी राजनीतिक चाल चल ही जायेगी। भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले को कांग्रेस स्वयं अपना विरोध करने वाला मान रही है। रामदेव व अन्ना ने कभी कांग्रेस का विरोध नहीं किया। वे तो भ्रटाचार व देशद्रोहियों का ही विरोध कर रहे है। सरकार के ईशारे पर विभिन्न सरकारी विभाग अन्ना व रामदेव को 10 से 20 वर्षों से भी अधिक पुराने मामलों में भी भ्रष्ट तरीके से उठा कर निरंतर कोशिश कर रही है कि यह दोनों लोग स्वयं में भ्रष्टाचारी साबित हो जायें और आम जनता में इनकी छवि धूमिल हो जायें।

अन्ना हजारे निष्क्रिय व भ्रष्ट जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने की मांग कर रहे है। जनता के पास चुने गये जनप्रतिनिधि को ढंग से काम न करने पर वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। जनता एक कर्तव्यविमुख व्यक्ति को पांच वर्ष तक क्यों झेले?अन्ना ने अपने सभी मुद्दे जनहित में उठाये। संसद में अन्ना की बात मानी गई और अन्ना ने भी संसद के प्रति अपना सम्मान जताया। अभिनेता ओमपुरी व भारत में प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने अन्ना के मंच से सांसदों को वे बाते कही जो आम जनता रास्तों पर चर्चा के दौरान करती रहती है। अभी संसद में ऐसे सैकडों सांसद मौजूद है जिन्होंने संसद में वर्षो तक जनहित में कोई प्रश्न व मामला हीं नहीं उठाया। क्या ऐसे सांसद संसद में केवल वातानुकूलित वातावरण में सोने व उंघने के लिए ही जाते है? या फिर सिर्फ स्वयं के भत्तों को बढ़वाने के लिए ही जाते हैं?

अन्ना व रामदेव अब अपने अपने आंदोलनों के बाद राष्ट्रीय व्यक्तित्व के रुप में उभर चुके है। उनकी विनम्रता, अहिंसक, व निरंहकारिता प्रवृति ही उन्हें यहां तक लाई है। अन्ना को उम्मीद है कि एक महिने में ही सरकार विशेष सत्र बुला कर जनहित में लोकपाल विधेयक को पास अवश्य करवा लेगी परन्तु अन्ना के आंदोलन के बाद कांग्रेस ने अभी कोई तत्परता नहीं दिखाई है। अन्ना जहां किसानों की समस्या और शिक्षा के व्यावसायीकरण के प्रति गम्भीर है वहीं रामदेव जनस्वास्थ्य व स्वदेशीकरण के लिए गम्भीर है। अन्ना का आंदोलन सफल रहा और रामदेव की तुलना में अन्ना को ज्यादा जनसमर्थन मिला। जहां रामदेव को किसी न किसी प्रकार कुचलने की फिराक में कांग्रेस रही वहीं अन्ना को मिले जनसमर्थन से कांग्रेस अचंम्भित है। इसलिए अन्ना के मामले में कांग्रेस फूंक फूंक कर कदम आगे बढा रही है हालाकि कांग्रेस की मंजिल भी अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने की ही है। अन्ना कह रहे है कि परिवर्तन की यह लड़ाई बराबर जारी रखनी होगी।

प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए किसी जादू की छड़ी की तलाश में है। वे अपनी व कांग्रेस की इच्छा शक्ति को दृढ करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी अन्ना के जनसैलाब को व सराकर की पतली हालत को देखते हुए खुल कर अपना समर्थन तब तक न दिखा पायी जब तक कि शत्रुध्न सिन्हा, यशंवत सिन्हा और उदय सिंह ने भ्रष्टाचार के मुददे पर भाजपा की उदासीनता के चलते त्यागपत्र देने तक की बात न कर दी। अन्ना स्वयं पर किसी राजनीतिक पार्टी का ठप्पा न लगवा सके। भाजपा के गडकरी ने अपनी चिट्ठी बहुत बाद में अन्ना को भेजी। गडकरी उस समय सन्न रह गये जब वे चिट्ठी लेकर अन्ना के पास गये तो अन्ना ने उनसे कहा कि चिट्ठी में जो कुछ लिखा है, संसद में तो आपकी ऐसी भुमिका नहीं रही। अर्थात कांग्रेस जहां राजनीति कर रही है वहीं भाजपा भी राजनीति करने में पीछे नहीं रही। गडकरी ने अन्ना के अनशन तोड़ने के बाद कहा कि सम्पूर्ण देश ने राहत की सांस ली है। हम अन्ना के लम्बे व स्वस्थ्य जीवन की कामना करते है, ताकि भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अपने सपने को वे पूरा कर सके। गडकरी ने कहा कि हम अन्ना को आश्वासन देते है कि आपको संसद के अंदर और बाहर पराजित नहीं होने देगें और न ही हम सरकार को आपके साथ छल ही करने देगें। भाजपा पहले अन्ना को हीरों नहीं बनाना चाह रही थी परन्तु जब जनता के द्वारा वे हीरो बन गये तो भाजपा के लिए अन्ना को समर्थन करना मजबूरी बन गई। हो सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा अन्ना को दिये अपने व्यापक समर्थन के बाद भाजपा को अन्ना को समर्थन देने का होश आया हो।

देश में रामदेव व अन्ना हजारे के आंदोलनों के बाद भ्रष्टाचार के विरोध में एक वातावरण तो बन चुका है। इस विधेयक के पास होने के बाद क्या होगा? परिवर्तन तो अवश्य होगा। वह क्या परिवर्तन होगा? रिश्वत लेने वाले भ्रष्टों की शिकायत पर प्रभावी कदम उठाये जायेंगें तो हो सकता है कि भ्रष्ट लोग रिश्वत लेना ही बंद कर दें। क्या भ्रष्टाचार में पगे कर्मचारी व अधिकारी रिश्वत न लेकर काम भी करेगें? अथवा नहीं। जनता में अब यह विश्वास हो चला है कि काम करने की सीमा, लापरवाही का दंड होगा, तथा सभासदों, चेयरमैनों, प्रधानों, पंचायत सदस्यों, विधायकों, सांसदों आदि को वापस बुलाने का अधिकार जनता को मिल सकेगा। यदि यह सब हो गया तो आम जनता देश में बहुत कुछ बदलाव देख सकेगी।

अन्ना हजारे के अनशन के दौरान कांग्रेस के पी चिदम्बरम्, राहुल गांधी, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, वीरप्पा मोइली, मनीष तिवारी इत्यादि प्रसिध्द राजनेता व मंत्री लगभग बेनकाब होकर आम जनता के सामने आये। प्रधानमंत्री ने अन्ना को आश्वासन देकर सरकार के द्वारा उससे पलटना और राहुल गांधी के द्वारा संसद में भाषण के बाद तो लगता है कि सरकार सशक्त लोकपाल बिल के मामले को अभी लटकाये ही रखने की जुगत में है परन्तु जनाक्रोश को देखते हुए सरकार संसद में जनलोकपाल बिल पर चर्चा को तैयार हुई परन्तु संसद में वोट न करवा कर जनता को फिर से धोखा दे दिया। लोकपाल बिल संसद में 42 वर्षों में नौ बार रखा जा चुका है परन्तु इसके प्रति कांग्रेस में दृढ इच्छा शक्ति अभी तक समाहित नहीं हो सकी है।

* लेखक सनातन धर्म महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर के वाणिज्य संकाय में रीडर तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। 

1 COMMENT

  1. भाई मध्य प्रदेश का मुख्या मंत्री भी गाव गाव गली गली कन्या पूजन कर रहा है उसी के सामने एक भ्रष्ट पुलिस सेवा का अधिकारी एक माँ जो अपनी सात माह की बच्ची को दूध पिला रही थी थप्पड़ मर दे रहा है …. तो देश वासियों देश के भ्रष्ट नेताओ,मंत्रियो,संतरियो और अधिकारिओ के लिए गरीब बेटिया अय्यासी का साधन मात्र है ,देश की भ्रष्ट कांग्रेस सरकार तो बेटियों की देह के व्यापार के लिए लाइसेंस तक देने की तैयारी कर रही जिसमे देश और विदेश के बड़े बड़े निवेशक हिस्सा लेंगे और भारत सरकार देश का सारा कर्ज देश की गरीब बेटियों की आबरू का सौदा करके चूका देगी ..आपको सर्कार की योजना २०१४ कैसी लगी..भावी बाजार तैयार करने के किये यौन शिक्षा की तैयारी भी सर्कार कर रही है जिससे बेटियों की मार्केटिंग भी नहीं करनी पड़ेगी…..

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