बाबा रामदेव का आन्दोलन

बाबा रामदेव का आन्दोलन, बाबा के साथ हमारा अनशन, देश के नाम पर मर मिटने को तत्पर हम व अंग्रेजी सरकार के तुल्य कांग्रेस द्वारा हमारा दमन – एक आँखों देखा स

मित्रों कहने को तो बहुत कुछ है, बहुत कुछ कहा जा भी चूका है| मैं बाबा रामदेव के आन्दोलन में शामिल था, अत: आज ६ जून की शाम को ही जयपुर पहुंचा हूँ| इसलिए इस विषय पर अभी तक कुछ लिख न सका| किन्तु अब जब समय मिला है तो कुछ ऐसी बातें, कुछ ऐसी यादें जो आन्दोलन से जुडी हैं उन्हें यहाँ रखना चाहता हूँ|

जो कुछ भी मैंने वहां अपनी आँखों से देखा, केवल वही सब सामग्री यहाँ रखूँगा| शायद लेख कुछ लम्बा खिंच जाए| क्योंकि मेरी स्मृति में केवल एक ही दिन के आन्दोलन से जुडी ऐसी बहुत सी यादें हैं जिन्हें भुला पाना या उनकी अनदेखी करना मेरे लिए संभव नहीं होगा| इस आन्दोलन में ऐसे बहुत से व्यक्तियों से मेरा परिचय हुआ, जिनका जिक्र यहाँ करना मेरे लिए आवश्यक है|

मैं ४ जून, शनिवार की सुबह दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुंचा| अकेला ही गया था| जाने से पहले एक साथी हिंदी ब्लॉगर मित्र व राष्ट्रवादी विचारधारा के धनी व्यक्ति, भाई संजय राणा जी से मेरी बात हुई थी| संजय भाई हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के निवासी हैं व ३ जून की रात्री को ही अपने दो मित्रों के साथ वे दिल्ली पहुँच गए थे| रामलीला मैदान में पहुँचते ही देखा कि हर दिशा से राष्ट्रवादी नारे लगाए  जा रहे हैं| पूरा मैदान लोगों की भीड़ से खचाखच भरा हुआ है| इन लोगों को गिनना तो असंभव सा काम था| जहाँ तक मैंने अनुमान लगाया यह संख्या करीब डेढ़ लाख के आस पास थी| ऐसा नज़ारा देख कर मन प्रसन्न हो गया|

इसके बाद मैंने संजय भाई से संपर्क स्थापित किया| उनसे मिल कर बड़ा अच्छा लगा| शाम तक वे मेरे साथ रहे| शाम को उन्हें पुन: सोलन जाना था| इस अंतराल में हमारे बीच स्वामी रामदेव, अन्ना हजारे व राजिव भाई दीक्षित आदि लोगों पर बातचीत हुई| संजय भाई, राजिव भाई से काफी प्राभावित हैं| उन्होंने मुझे बताया कि वे राजिव भाई से मिलना चाहते थे किन्तु कभी मौका नहीं मिल सका| किन्तु मैं राजिव भाई से कई बार म� �ल चुका हूँ व उनके साथ थोडा समय भी बिताया है| इसी कारण संजय भाई मुझसे उनके विषय में अधिक बातें कर रहे थे|

संजय भाई के जाने से कुछ देर पहले ही करीब पचास वर्ष से अधिक आयु के एक सज्जन मेरे पास आए| वे आकर मुझसे बोले कि ”बेटा मेरे मोबाइल में रीचार्ज ख़त्म हो गया है| मुझे एक जरूरी फोन करना है, क्या मैं तुम्हारे फोन का उपयोग कर सकता हूँ?” मैंने उन्हें अपना फोन दे दिया| फोन करने के बाद वे हमसे बैठ कर कुछ बातचीत करने लगे| बातों बातों में उन्होंने अपना परिचय मुझे दिया| उनका नाम तो मैं भूल गया किंचितु इतना याद है कि वे भारत स्वाभिमान के पानीपत जिला संयोजक हैं| वे भी मुझसे राजिव भाई के विषय में ही चर्चा करने लगे| उन्होंने मुझसे पुछा कि मैं कहां से आया व क्या करता हूँ? जब मैंने उन्हें अपना परिचय दिया तो वे कहने लगे कि बेटा तुम बड़े सौभाग्य शाली हो| मैंने उनसे कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि एक तो तुम राजिव भाई के संपर्क में रह चुके हो और दूसरा तुम एक युवा इंजिनियर हो| जहाँ तक मैं जानता हूँ इंजीनियरों का यह तबका काफी हद तक दिशा भ्रमित हो चुका है| इन्हें देश की कुछ नहीं पड़ी है| यह तुम्हे मिले संस्कार ही हैं जो तुम यहाँ आये व अकेले आये और इस आन्दोलन में बाबा रामदेव के साथ अनशन कर तुम अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हो|

आन्दोलन में एक और ब्लॉगर मित्र, भाई तरुण भारतीय भी उपस्थित थे, किन्तु किसी कारणवश उनसे मिलना न हो पाया| शाम को संजय भाई के जाने के बाद मैं एक जगह जाकर बैठ गया| बाबा रामदेव मंच पर बैठे हुए सभी आन्दोलनकारियों को संबोधित कर रहे थे| हमारे बीच जगह जगह बड़े बड़े स्क्रीन लगे हुए थे| मैं भी एक स्क्रीन के सामने ही बैठा हुआ था| कई सन्यासी, मुस्लिम उलेमा आदि सब एक ही मंच पर उपस्थित थे| फिर भी भ्रष् टाचारी सरकार ने इस आन्दोलन को साम्प्रदायिक करार दिया|

मंच पर भोजपुरी फिल्मों के प्रसिद्द अभिनेता श्री मनोज तिवारी भी उपस्थित थे| कुछ देर बाद बाबा ने उनके साथ मिलकर एक बेहद ही सुन्दर गीत गाया| बाबा रामदेव व मनोज तिवारी की जुगलबंदी में यह गीत ”मेरा रंग दे बसंती चोला” कुछ ज्यादा ही कर्णप्रिय लग रहा था| मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि बाबा रामदेव इतने अच्छे गायक भी हैं| इस गीत ने हम सब में इतना जोश भर दिया कि पूरे दिन के भूखे व थके हुए हम आन् दोलनकारी झूम झूम कर नाचने लगे| सच में कितना मनोहर दृश्य था वह|

कुछ समय बाद पांडाल में मंच के पास कुछ मीडिया कर्मी भी पहुँच गए| पता नहीं वे कौनसी मानसिकता से ग्रसित थे? दो कौड़ी के टुच्चे सवालों के साथ बाबा रामदेव को घेरने का प्रयास उनके द्वारा किया जा रहा था| किन्तु बाबा रामदेव ने सभी की बोलतियाँ भी बंद कर दीं| जनता ने भी इन मीडिया कर्मियों का विरोध किया|

इसके बाद पुन: राष्ट्रवादी गीतों की बहार छा गयी| रात करीब ९ बजे के बाद बाबा रामदेव ने सभी आनोलनकारियों से कहा कि अब वे पानी पीकर सो जाएं क्योंकि मैं सुबह चार बजे सभी को हल्का प्राणायाम करने के लिए उठा दूंगा| सुबह की प्रतीक्षा में हम सब हाथ मूंह धोकर सो गए|

रात करीब ११:१५ बजे मेरे एक छोटे भाई भुवन शर्मा (मेरी बुआ का बेटा) का जयपुर से फोन आया| उसने कहा कि वह भी सुबह दिल्ली पहुँच रहा है| कल से वह भी आन्दोलन में शामिल हो रहा है| उससे बात कर मैं पुन: सो गया|

रात में करीब १२:१५ बजे स्वामी जी की आवाज से मेरी नींद खुल गयी| स्वामी जी लाउड स्पीकर पर कह रहे थे ”मेरे साथियों, रामदेव तुम्हारे बीच था और तुम्हारे बीच ही रहेगा|”

मुझे समझ नहीं आया कि बाबा कहना क्या चाहते हैं?

तभी बाबा रामदेव ने कहा ” मेरे साथियों, यदि मैं गिरफ्तार हो जाऊं तो भी आप सब इस आन्दोलन को चलाए रखना||” मुझे यह आभास हो गया कि शायद कुछ गड़बड़ है| कहीं पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने तो नहीं आ गयी? तभी कुछ लोग मंच की तरफ भागे| भागते हुए वे कह रहे थे कि हम भी अपनी गिरफ्तारी देंगे| उठो साथियों दिल्ली की जेलें भर डालो| स्वामी जी अगर गिरफ्तार हुए तो हम भी अपनी गिरफ्तारी देंगे| तभी बाबा रामदेव  जी की आवाज फिर आई| वे कह रहे थे ”साथियों यदि तुम मुझसे प्यार करते हो तो मुझे वचन दो कि किसी भी परिस्थिति में पुलिस से नहीं भिड़ोगे| साथ ही मैं पुलिस से भी यह विनती करता हूँ कि मेरे साथियों पर किसी प्रकार का कोई हमला न किया जाए| हम पूरी अहिंसा के साथ अपना आन्दोलन कर रहे हैं| अत: किसी प्रकार की हिंसा से इसे कलंकित मत होने देना| साथ ही मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि मेरे गिरफ्तार होने पर भी आप लोगइस आन्दोलन को चलाए रखना|”

अब माजरा समझ आने लगा था| मेरे पास कन्धों पर लटकाने वाला एक छोटा सा बैग था जिसमे मेरे एक जोड़ी कपडे व एक तौलिया रखा था| कन्धों पर अपना बैग लटका मैं भी मंच की तरफ भागा| जब मैं मंच पर पहुंचा तो देखा कि बाबा रामदेव बारह फीट ऊंचे मंच से छलांग लगा रहे हैं| छलांग लगाने के बाद एक कार्यकर्ता ने उन्हें अपने कन्धों पर उठा लिया| वहीँ से वे जनता को संबोधित करने लगे| इधर उधर देखा तो पुलिस के सैंकड़ों  सीपाही मैदान में प्रवेश कर चुके थे| पुलिस स्वामी जी की ओर बढ़ रही थी| मंच पर चढ़कर पुलिस ने सन्यासियों का अपमान किया| उन्हें लाते मार मार कर मंच से नीचे फेंका गया| कुछ महिलाएं भी मंच पर चढ़ गयीं थीं| पुलिस ने उन्हें भी नहीं छोड़ा, महिलाओं को बाल पकड़ कर घसीटते हुए मंच से नीचे फेंक दिया| एक महिला को तो शोचालय से नग्न अवस्था में ही बाहर निकाल दिया| हम सब ने मंच का घेराव करना शुरू कर दिया| कुछ महिलाओं ने स्वामी जी को अपने वस्त्र लाकर दिए, जिन्हें पहन स्वामी जी भीड़ में गुम हो गए| हम लोगों ने पुलिस को स्वामी जी तक नहीं पहुँचने दिया| पुलिस ने हवा में आंसू गैस के गोले छोड़े| जिस कारण हमारी आँखों में जलन के साथ पानी आने लगा| उसकी अजीब सी गंध से नाक में सनसनी सी होने लगी| कुछ बुज़ुर्ग लोग इसकी गन्ध से बेहोश हो गए| तभी मंच पर गोले छोड़ने के कारण आग लग गयी| यह एक बहुत बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती थी| पूरा मैदान तम्बुओं से ढका हुआ था| यदि आग फ़ैल जाती तो पता नहीं कितनी ही जाने चली जातीं|

आंसू गैस के कारन मैं भी अपनी आँखे मसलने लगा| तभी पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरू कर दिया| मेरी तो आँख भी अभी पूरी तरह नहीं खुली थी कि पुलिस की एक लाठी मेरे दाहिने पैर पर पीछे की ओर घुटने से कुछ ऊपर लगी| अचानक लगी इस चोट से मैं अपने ही स्थान पर ज़मीन पर गिर गया| जिस कारण पंजे में मोच भी आ गयी| किसी प्रकार खड़े हो कर मैंने भागते हुए अपनी जेब से रुमाल निकाला व उसे नाक पर बाँधा जिससे कि आंसू गैस से बचा जा सके| मैदान में भीड़ बिखर चुकी थी| पुलिस ने हमें बाहर की ओर खदेड़ना शुरू कर दिया| बाहर निकलने के द्वारा पर हम कुछ लोग खड़े हो गए| हम चिल्ला चिल्ला कर जनता से कह रहे थे कि बाहर ही खड़े रहें, कहीं ओर न जाएं| हम सब अपनी गिरफ्तारियां देंगे|

बाहर आकर देखा तो सडकों पर करीब एक लाख से ज्यादा लोग यहाँ वहां बिखरे हुए थे| इतनी बड़ी संख्या को नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता है| जगह जगह हम लोग जनता से चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि सभी एक जगह इकट्ठे हो जाएं| अभी हम सब एक रैली में जंतर मंतर पर जाकर अपना प्रदर्शन करेंगे व अपनी गिरफ्तारियां भी देंगे| किसी प्रकार सभी को इकठ्ठा कर हम सब जंतर मंतर की ओर नारे लगाते हुए बढ़ने लगे| अभी थोड  ही आगे पहुंचे थे कि देखा पीछे से पुलिस ने आधी से ज्यादा भीड़ को मैदान व मैदान के समीप एक चौराहे के बीच अवरोध लगा कर बंदी बना लिया है ताकि वे रैली में शामिल न हो सकें| इस पर कुछ लोग पुन: पीछे की ओर गए व लोगों से चिल्ला कर कहा कि वे अवरोध को हटाकर या ऊपर से कूद कर आ जाएं| इस पर पुलिस ने हमें पुन: लाठियों का भय दिखाया| तभी कुछ युवकों ने कुछ अवरोध उठाकर सड़क किनारे फेंक दिए| अवरोध हट्टे ही भीड भागती हुई सभी अवरोध गिराती हुई आगे बढ़ने लगी| इस प्रकार हम सब पुन: साथ में हो लिए|

अब हम सब गला फाड़ फाड़ कर नारे लगाते हुए जंतर मंतर की ओर बढ़ने लगे| इस समय बिलकुल ऐसा ही अनुभव हो रहा था जैसा कि आज़ादी से पहले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को होता होगा|

अभी हमें चलते हुए मुश्किल से बीस मिनट ही हुए थे कि कुछ ही दूरी पर एक मोड़ पर अचानक कुछ पुलिस कर्मी भागते हुए हमारी तरफ आए व लाठियां चलाने लगे| अचानक हुए इस हमले से भीड़ फिर से इधर उधर बिखर गयी| रैली में मैं आगे की ओर ही था, अत: फिर से पुलिस की चपेट में आ गया| अचानक मेरे दाएं क्न्धे पर एक जोरदार लाठी पड़ी| मैं अभी संभल भी नहीं पाया था कि तभी मेरी पींठ पर एक और वार हुआ| किसी प्रकार मैं अपनी जान बचाकर वहां से दूर हट गया| भीड़ इधर उधर भागने लगी| भागते हुए हम एक मोड़ पर मुड़ गए व सड़क के दुसरे किनारे तक पहुंचे| किन्तु देखा कि हम केवल पांच सौ-छ: सौ लोग ही रह गए| बाकी जनता भी अपनी जान बचाकर इधर उधर भाग गयी| किसी प्रकार हम एक सुरक्षित स्थान देख कर वहीँ सड़क पर बैठ गए| तभी हम में से किसी ने कहा कि ऐसे कब तक भागेंगे? सभी लोग एक एक पत्थर अपने हाथ में उठा लो पुलिस पर बरसाना शुरू कर दो| हम एक लाख से ज्यादा थे जबकि पुलिस कुछ चार पांच हज़ार|

इस पर साथ ही खड़े एक दुसरे व्यक्ति ने कहा कि हम चाहते तो पुलिस को मज़ा चखा सकते थे किन्तु हमने स्वामी जी को वचन दिया है कि हम पुलिस से नहीं भिड़ेंगे| इस पर वह व्यक्ति बोला कि ऐसे कब तक मार खाते रहेंगे? पुलिस तो हाथ धोकर हमारे पीछे पड़ी है| मैंने उनसे कहा कि यदि हमने पुलिस पर हमला किया तो हो सकता है कि लाठी धारी सिपाहियों के पीछे खड़े बन्दूक धारी सिपाही हम पर गोलियां चला दें| ऐसे में कितनी ही मौतें हो सकती हैं|

इस पर उन व्यक्ति ने मुझसे कहा कि क्या आप मरने से डरते हो? मैंने उसे उत्तर दिया कि यदि मरने से डरते तो यहाँ तक न आते| हम तो बुरे से बुरा सोच कर अपने घरों से निकल कर यहाँ तक पहुंचे हैं| किन्तु इस प्रकार फ़ोकट में मर जाने से क्या फायदा? हम सबका बलिदान व्यर्थ ही जाएगा| इस सरकार व बर्बर पुलिस को हमें मारने में कोई परेशानी नहीं होगी| यह सरकार इसी देश में सिक्खों का संहार कर चुकी है| फिर भी बेशर् मों की तरह हमारे सामने वोट मांगने चली आती है| आज भी कुछ हज़ार लोगों के मरने से इसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा| किन्तु हमारी मौत से स्वामी जी का बहुत दुःख होगा| उनका मनोबल भी टूट सकता है| हम सब तो यहाँ उनकी एक आवाज़ पर मर मिटने को ही आएं हैं, किन्तु यदि हमारी मौत व्यर्थ चली गयी तो इसमें सरकार का क्या नुक्सान?

इस पर वे व्यक्ति मुझसे सहमत हो गए| मेरे साथ में लन्दन (इंग्लैण्ड) निवासी भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक भी थे| उनसे यही मिलना हुआ था| अभी वे मेरे पास ही बैठे थे| बातचीत में उन्होंने बताया कि वे भारत स्वाभिमान के एक कार्यकर्ता हैं व २७ फरवरी को बाबा रामदेव की रैली में भाग लेने भारत आए थे| तब से वापस नहीं गए| अन्ना हजारे के साथ भी वे चार दिन के अनशन पर बैठे थे| आज उन्हें भी चोटें आईं थीं| वे भी रजिव भाई से प्रभावित हो कर इस संगठन से जुड़े थे|

तभी किसी ने कहा कि यहाँ पास ही एक आर्य समाज का मंदिर है, वहीँ चलकर शरण लेते हैं|

हम सब मंदिर की ओर चल दिए| मंदिर पहुँच कर हमने मंदिर में स्थित एक बगीचे में शरण ली| मंदिर के पुजारी हमसे मिले| हमने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई| उन्होंने कहा कि वे भी आज बाबा रामदेव के इस आन्दोलन में शामिल होने वाले थे|

उन्होंने हमसे मंदिर में ही विश्राम करने को कहा व आश्वासन दिया कि यहाँ कोई हमें नुक्सान नहीं पहुंचा सकता|

इसी बीच करीब चार बजे के आस पास संघ के मेरे एक स्वयं सेवक मित्र भाई अभिषेक पुरोहित का फोन आया| उन्होंने इस समय फोन करने के लिए क्षमा मांगी| उन्होंने कहा कि दरअसल वे अभी अभी किसी साईट से लौटे हैं व आते ही इंटरनेट पर यह खबर पढ़ी कि पुलिस ने आन्दोलन बिखेर दिया|

मैंने उन्हें संक्षिप्त में पूरी घटना बताई|

हम सब मंदिर के बगीचे में बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे तभी एक सन्यासी हनुमान का रूप धारण कर हमारे बीच आ बैठे| वे रैली में भी हमारे साथ थे| उनसे बातचीत में पता चला कि वे कन्नोज से आये हैं| उन्होंने बताया कि पुलिस ने उनकी कमर पर जोर से लात मारी जिससे वे सड़क पर गिर गए व उनके पाँव में चोट आई है| अब देखिये इस सरकार की तानाशाही एक सन्यासी का भी इतना अपमान किया वह भी उस सन्यासी का जो हनुमान  रूप धारण किये अनशन पर बैठा था|

मैंने उनसे कहा ”बजरंग बलि, आज पूरा भारत यहाँ मैदान में इकठ्ठा हुआ था| भारत के सभी प्रदेशों से यहाँ लोग आन्दोलन में शामिल होने आए| यहाँ तक कि विदेशों में रहने वाले कई भारतीय भी इसमें शामिल हुए| और तो और सन्यासी, पुजारी, मौलवी आदि भी एक साथ एक ही मंच पर साथ बैठे थे| आज जब सारा भारत एक हो रहा है तब इस सरकार की यह तानाशाही कि औरतों व बच्चों को भी नहीं छोड़ा| यहाँ तक कि आप एक सन्यासी हैं, ऊपर स े हनुमान का रूप ले कर आए हैं| पुलिस वालों ने इंसान का तो दमन किया ही, कम से कम भगवान् को तो बख्श देते|”

इस पर वे बोले ”मैं तो एक मानव ही हूँ| मैंने संन्यास ले लिया है| मैंने जीवन का मोह छोड़ दिया है| मुझे मान अपमान का भी कोई ज्ञान नहीं है| अत: मैंने हनुमान रूप धारण किया है| पुलिस यदि इस हनुमान का अपमान करती है तो यह हनुमान तो इन्हें क्षमा कर देगा किन्तु वह बजरंग बलि रामभक्त वीर हनुमान इन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा|”

लगभग हम सभी पुलिस की लाठियों का शिकार हुए थे| अत: एक दुसरे के घावों को सहलाते हम आपस में बातें करते रहे| बातों बातों में किसी ने राजिव भाई का जिक्र छेड़ दिया| मैं भी उनके विषय में बात करने लगा| बातों में शामिल उन लोगों में से केवल मैं ही ऐसा था जो राजिव भाई से मिल चुका था| सभी मुझसे उनके बारे में पूछने लगे| मैंने उन्हें राजिव भाई से जुडी मेरी यादें बताएँ| इस प्रकार कुछ देर हमारी बातें चलती रहीं| इस बीच कुछ लोगों ने बाहर जाकर हालत देखने का प्रयास किया| उन्होंने आ कर बताया कि पुलिस हर जगह तैनात है व किसी को भी संगठन में चलने की अनुमति नहीं है| अत: हमें अकेले ही यहाँ से निकलना होगा|

मैंने भी अपने कुछ साथियों को फोन किया जिनसे मैं आन्दोलन में ही मिला था| वहीँ उनका फोन नंबर भी लिया| पूछने पर उन्होंने बताया कि वे भी अकेले ही यहाँ वहां भटक रहे हैं| पुलिस ने शहर में शायद धारा १४४ लगा दी है| अत: हम संगठन में साथ नहीं घूम सकते|

पांच बजे के करीब मैंने भुवन (मेरी बुआ का बेटा जो आन्दोलन में शामिल होने जयपुर से दिल्ली आ रहा था) को फोन किया व उसे रामलीला मैदान पहुँचने से मना किया| वह दिल्ली को ठीक से नहीं जानता था| मैं कुछ समय दिल्ली में रह चुका हूँ अत; शहर से कुछ परिचित हूँ|

उसने बताया कि वह कश्मीरी गेट बस अड्डे पर उतरेगा| मैंने उसे कश्मीरी गेट मैट्रो स्टेशन से राजिव चौक पहुँचने के लिए कहा| वहां कनौट प्लेस स्थित सेंट्रल पार्क से वह परिचित है| मैंने उसे वहीँ बुला लिया| अब मैं भी लंगडाता हुआ करीब दो किमी दूर सेन्ट्रल पार्क तक पहुंचा| क्यों कि सुबह के पांच बजे वहां कोई ऑटो भी नहीं मिला अत: मैं पैदल ही निकल पड़ा|

करीब छ: बजे मैं सेन्ट्रल पार्क पहुंचा| वहां हरी घास पर सुबह सुबह पानी का छिडकाव किया हुआ था| एक पेड़ के नीचे मैं गीली घास पर ही लेट गया| शरीर पर पड़ी लाठियों के कारण आई चोटों से अब पीड़ा बढ़ने लगी थी| किन्तु थकान, पिछली दो रातों की बची हुई नींद व पिछले करीब एक दिन से ज्यादा समय तक भूखे रहने से मुझे कमजोरी महसूस होने लगी| इस कारण थोड़ी ही देर में मुझे एक झपकी लग गयी| लगभग ६:४५ पर सूरज की रौशनी चेहरे पर पड़ने के कारण मेरी आँख खुली| आस पास देखा तो मुझसे थोड़ी ही दूरी पर पांच वृद्ध जन बैठे बातें कर रहे थे| मैं लेटा हुआ उनकी बातचीत सुन रहा था| उनकी बातचीत का विषय बाबा रामदेव का यह आन्दोलन ही था| चार लोग बाबा रामदेव के समर्थन में थे जबकि एक व्यक्ति कांग्रेस का समर्थन कर रहा था| उनकी बाते सुनकर मैं भी उठकर उनके बीच जा बैठा| बातचीत में पता चला कि वे यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित एक कॉ� �ोनी के निवासी हैं व रोज़ सुबह यहाँ घूमने आते हैं|

जो व्यक्ति कांग्रेस का समर्थन कर रहे थे मैंने उनसे कहा कि आप जिस कांग्रेस का गुणगान कर रहे हैं, आपको पता है कल इसी सरकार ने आधी रात में क्या किया? इस पर उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ नहीं पता| जाहिर सी बात है, आधी रात में हम पर हुए इस अत्याचार के बारे में दिल्ली वासियों को कहाँ से पता चलता? और ये बुज़ुर्ग लोग तो सुबह सुबह ही यहाँ पार्क में आ गए हैं| तब मैंने उन्हें पिछली रात की पूरी घटना बतई| इस बीच भुवन भी वहां पहुँच गया| मैंने उन सबको अपने शरीर पर पड़ी लाठियों से आई चोटें दिखाईं तो एक सज्जन यह देख क्रोध से भड़क उठे व कांग्रेस के समर्थक व्यक्ति से चिल्ला कर बोले ”देख ले बुड्ढ़े, तेरी कांग्रेस का अत्याचार| इस बेचारे बच्चे की टांग तोड़ दी तेरी इस कांग्रेस ने|” इस पर सामने वाले सज्जन चुप हो गए|

हमारी बातें सुनकर पास ही बैठे एक और सज्जन वहां आ गए व मुझसे बोले कि वे भी इस आन्दोलन में शामिल थे| किसी प्रकार पुलिस के हाथों से बच निकले|

उसी समय वे व्यक्ति जो क्रोध से चिल्ला पड़े थे, मुझसे बोले बेटे तुमने भोजन कब किया था? मैंने उन्हें बताया कि परसों रात को आठ बजे जयपुर में खाना खाया था, तब से अब तक पेट में एक दाना भी नहीं गया है| उन्होंने कहा कि पहले कुछ खा लो फिर सोचना आगे क्या करना है|

मैंने कहा कि हम सब तो अनशन पर हैं| जब तक स्वामी जी की कोई सूचना नहीं मिल जाती कि वे कहाँ हैं, सुरक्षित तो हैं, तब तक हम कुछ नहीं खा सकते| उन्होंने मुझे समझाया किन्तु मैं नहीं माना|

थोड़ी देर बाद मैं और भुवन पार्क से बाहर निकले| सोच ही रहे थे कि अब आगे क्या करना है? सड़क पर अब यातायात बढ़ने लगा था| पुलिस की गश्त अभी भी जारी थी| मैं समझ गया कि यहाँ कुछ न कुछ गड़बड़ जरुर होने वाली है| साथी आन्दोलनकारियों से भी संपर्क नहीं हो पा रहा था| क्यों कि लम्बे समय से रामलीला मैदान में बैठ बैठे सबसे फोन की बैटरी ख़त्म हो चुकी थी| मेरा फोन भी बंद होने वाला था|

अत: हमने निश्चय किया कि यहाँ से गुडगाँव जाते हैं जहाँ मेरा एक और भाई नितिन पांडे (मेरी दूसरी बुआ का बेटा) रहता है| वह गुडगाँव में एक कंपनी में सॉफ्टवेर इंजिनियर है|

वहां जाने से पहले मेरी उससे फोन पर बात हो गयी थी| रविवार होने के कारण वह घर पर ही था| मैंने उसे पूरी कहानी फोन पर बता दी थी| उसने मुझसे कहा कि भैया आप जल्दी ही यहाँ आ जाओ|

वहां पहुँचते ही वह मुझसे मज़ाक में हँसते हुए बोला ”आ गए भईया पिट कर?”

ऐसी परिस्थिति में उसके मूंह से निकले इस व्यंग से मुझे भी हंसी आ गयी| मैंने भी उससे हंसकर कहा कि भाई देश के लिए लाठियां खाई हैं| आज तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही भगत सिंह हूँ|

बाद में उसने मेरी चोटों पर मरहम लगाया| एक दिन वहीँ रुक कर अगले दिन सुबह करीं ११ बजे मैं जयपुर के लिए निकल पड़ा|

अभी रास्ते में ही था कि मोबाईल पर Youth Against Correuption के जयपुर जिला संयोजक श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी जी का सन्देश मिला| उन्होंने बताया कि आज शाम पांच बजे जयपुर के स्टेच्यु सर्किल पर काले दिवस के रूप में आज इकठ्ठा होना है| यहाँ पर आगे की रणनीति तय की जाएगी| अत: मुझे भी वहां उपस्थित होना है|

शाम करीब ४:३० बजे जयपुर पहुँचते ही मैं अपने घर आया व नहा धो कर, कपडे बदल मैं स्टेच्यु सर्किल पर पहुँच गया| यहाँ भी कई संत उपस्थित थे| ७ जून की शाम को जयपुर में एक रैली निकाली जाएगी, जिसमे अपने मूंह व हाथ पर काली पट्टी बांधकर सरकार का विरोध करना है|

यह पूरा घटना क्रम लिखना मेरे लिए आवश्यक था| मीडिया क्या दिखा रहा है, उससे मुझे कोई मतलब नहीं है| मैंने जो देखा वो यहाँ लिख दिया|

इस घटना के बाद आज मैंने एक प्रण लिया है| जब तक यह देश कांग्रेस नामक बिमारी से निजात नहीं पा लेता, जब तक इस देश के अंतिम व्यक्ति के मन मस्तिष्क से कांग्रेस का नाम लुप्त नहीं हो जाता, जब तक इस देश का अंतिम व्यक्ति ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, संस्कारी व भारत भक्त नहीं हो जाता तब तक मेरे दाहिने हाथ के बाजू पर एक काली पट्टी बंधी रहेगी| अभी के हालात देख कर लगता है की यह काली पट्टी अधिक दिनों तक मे हाथ पर नहीं बंधी रहेगी| किन्तु यदि किसी कारणवश इससे पहले मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरी इच्छा है यह पट्टी चिता पर मेरे साथ जले ताकि अगला जन्म इसी पट्टी को बाँध कर ले सकूं व इसी संकल्प के साथ अपना जीवन बिता दूं|

12 COMMENTS

  1. दिवस भाई आप सही में भाग्य शाली है जो इस अनशन के गवाह बने, एक हमारे मध्य-प्रदेश का नेता है जो कह रहा है की पहले अनशन किया क्यों (अभी जिसमे उनकी स्थिती बिगड़ गयी) किया तो तोड़ा क्यों अब घनचक्कर की इच्छा तो यही है और इसके साथ वाले नीच राष्ट्र-द्रोहियों की की बाबा रामदेव भगवान् को प्यारे हो जाएँ और इनका गोरख धंधा चलता रहे, कल ही एक जानकारी मिली है की सोनिया आंटी अपने नन्हे मुन्नों सहित बारह और लोगों को लेकर स्वित्ज़रलैंड डेड सप्ताह के किय निकल गयीं है अब ये किस लिए वहाँ गयीं है इसे मै नहीं समझता की स्पष्ट करने की आवयश्यकता है,क्योंकि सबसे ज्यादा काला धन वहां के बैंकों में ही रखा जाता है और अधिकतर कांग्रेसियों को यह समझ में आ चुका है की अब लम्बे समय तक बकरे की अम्मा खेर नहीं मना पायेगी.
    अब ये बेचारे मिश्र जी जैसे टटपूंजिए तिवारी जैसी खिसियानी बिल्लियाँ खम्बा ही नोचेंगे .

  2. श्री दिवस दिनेश जी ने स्वामी रामदेव जी के साथ आन्दोलन में भाग लिया इसके लिए बधाई. मैं भी इस आन्दोलन में आना चाहता था किन्तु छुट्टी नहीं मिल पाने के कारण नहीं आ सका.
    वाकई आजाद भारत में पुलिस की रात की कारवाही आपातकाल की याद दिलाती है.
    अब समय आ गया है की लोग समझे की आजाद भारत की असली समस्या क्या है. हम आपके साथ है. जय हिंद.

  3. आदरणीय गांधी जी…आपका बहुत बहुत धन्यवाद…ख़ुशी होती है जब आप जैसा कोई हम पर पड़ी लाठियों से पीड़ित होता है…हमारे दर्द को अपना बना लेता है…
    योगेश जी …आपका आभार…
    आपने मिश्र जी को उचित प्रतिउत्तर दे दिया है…

    • दिवस जी आपके आन्दोलन में आपके सक्रिय सहयोग के लिए धन्यवाद उम्मीद है लाठियों ने आपके निश्चय को और मजबूत किया होगा

  4. i appriciate दिवस,
    एंड मिश्र साहब chudiya पहनकर डांस करना लडकियों का काम है ,,, बहार निकलिये दो-तीन लाठी खाइए अपने देश लिए उसके बाद ये नपुंसक वाली बात बोलना जो आपने अभी लिखी है ,कुछ किये बिना बोलना मर्दों का काम नही है …..

  5. आप जैसे सच्चे देशभक्त आन्दोलनकारियों पर पड़ी एक एक लाठी इस भ्रष्ट सेकुलर शैतानों की सर्कार के लिए ‘कफ़न की कील’ साबित होगी ….आपके ज़ज्बे को सलाम ….. उतिष्ठकौन्तेय

  6. गरिमा में रह कर भावनाओं की अभिव्यक्ति करने से कोई किसी को रोक नहीं सकता! न जाने क्यूँ ऐसा महसूस होता है की देश की जनता/राजनेता साधुओं का महत्व सिर्फ कर्मकांडों मंत्र-तंत्र तक ही सिमित देखना चाहती है! अगर स्वामी जी की कोई छिपी हुई महत्वकांक्षा भी है तो इसमें बुरा क्या है? वो ऐसे घुन से तो लाख गुना अच्छे हैं जो अन्दर ही अन्दर देश को कमजोर करने में लगे हुए हैं!

  7. निरंजन मिश्र जी आप कृपया भावनाओं में न बहें, कुछ प्रेक्टिकल सोचें…
    किसी भी सेना का सेनापति महत्वपूर्ण होता है…उसे बचाने के लिए सैनिक अपनी जान दे देते है…यदि सेनापति रहा तो युद्ध फिर लड़ा जा सकता है…उसकी अनुपस्थिति में सेना का बिखर जाना संभव है, ऐसा मैं दिल्ली में देख चूका हूँ…
    बाबा रामदेव को हमने वहां से भगाया है, जब हमे ही शिकायत नहीं है तो आप क्यों गरम हो रहे हैं?
    उस समय बाबाजी को वहां से हटाना महत्वपूर्ण था, क्यों की उन्हें जान से भी मारा जा सकता था…ऐसी परिस्थिति में हम उन्हें नहीं खो सकते थे|
    आप क्या चाहते हैं की बाबा रामदेव फ़ोकट में मर जाएं? ऐसे तो उनका बलिदान व्यर्थ चला जाएगा|
    बाबा को मरने का डर नहीं है| इतनी बड़ी सभा का आयोजन वो भी इस अत्याचारी राज के विरोध में कोई डरपोक नहीं कर सकता|
    अत: अपनी भाषा को सुधारें| एक संत के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग आपके लिए ही हानिकारक हो सकता है|
    संत को मान अपमान की चिंता नहीं होती, किन्तु आपके ऐसे आचरण से आपको अपमान झेलना पद सकता है, और आप संत भी नहीं हैं…

  8. अज्ञानी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद…मैं अब कुशल हूँ…
    वहां जो कुछ देखा वह सब बर्दाश्त करने लायक नहीं था…मन में अभी भी पीड़ा है…मैं तो फिर भी बच गया, कुछ अत्याचार तो ऐसे देखे कि सोचना पड़ा कि क्या यही है दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र?

  9. देश का नेतृत्व करने की चाहत रखने वाला बाबा खाकी के रौब से इतना खौफ़ज़दा हो गया कि अपने समर्थकों को मुसीबत में छोड़कर भेस बदलकर दुम दबाकर भाग निकला। ऎसे ही आँदोलनकारी थे, देशभक्त थे, क्राँतिकारी थे, तो मँच से शान से अपनी गिरफ़्तारी देते और भगतसिंग की तरह “रंग दे बसंती” का नारा बुलंद करते।

  10. बाबा का चोरी और सीनाज़ोरी का अँदाज़ भी बड़ा निराला है। अब वे अपने हर कृत्य को कुछ राजनीतिक दलों की शह पर ग्लैमर का जामा पहनाने पर उतारु हैं। एक नेताजी ने किसी चैनल पर बोलते हुए क्ल्यू दे दिया, तो अब बाबाजी ने अपने सुर बदल दिये। कल तक तो जान बचाने के लिये “माताओं-बहनों” के कपड़े मजबूरन इस्तेमाल करने की दुहाई देने वाले बाबाजी अब तेवर दिखा रहे हैं। अब वे पुलिस पर चीर हरण का आरोप लगा रगे हैं। वे इतने पर ही नहीं रुकते। वे सरकार पर पँडाल को लाक्षागृह बनाने, बम फ़ेंकने, उनकी हत्या या एनकाउंटर करने का षडयंत्र रचने का आरोप भी लगा रहे हैं।

  11. आपके होंसले और जज्बे को मैं प्रणाम करता हूँ दिवस जी, आपका कद मेरी नजरों में और ऊँचा हो गया है! आशा करता हूँ की आप जल्दी ही पूर्णरूप से स्वस्थ हो कर दुगने जोश के साथ अपने अभियान में जुट जायेंगे! आप जैसे हजारों लोगों जिनमें काफी संख्या में माँ – बहने भी शामिल हैं मैं उनको नतमस्तक हो कर प्रणाम करता हूँ और ये प्रण करता हूँ की जब जब और जहाँ जहाँ मौका मिला इन जुल्म करने वाले टट्टुओं को सबक जरुर सिखाऊंगा!

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