रामजन्मभूमि पर अदालत का निर्णय : एक रास्ता या एक मन्ज़िल

-तरुणराज गोस्वामी

रामजन्मभूमि को लेकर साठ सालों से अदालत में चल रहे विवाद पर निर्णय आने के तुरंत बाद जिलानी साहब आकर कहते हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट जायेंगे, ये वही जिलानी साहब है जो सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की ओर से अदालत मेँ तथ्य प्रस्तुत कर रहे थे और कल तक बड़ा ज़ोर लगाकर अदालत के निर्णय के सम्मान की बात कर रहे थे। क्या सम्मान केवल कल तक मीडिया मेँ बयान देने तक ही था। हालाँकि धर्मनिरपेक्ष भारत का संविधान उनको ऐसा करने के लिये कोई रोक नहीँ लगाता, अदालत ने तो निर्णय में कहा भी है कि जो पक्ष असंतुष्ट हो उसके लिये ऊपरी अदालत के दरवाज़े खुले हैँ लेकिन उससे पहले अदालत ने कहा कि तीनों पक्ष तीन महीने की अवधि में बैठकर विवादित भूमि के तीन हिस्से करलें। प्रश्न यही उठता है कि अदालत के पूरे निर्णय का अध्ययन करे बिना ही जिलानी साहब असंतुष्ट क्योँ हो गये? क्या यही किसी अदालत का वास्तविक सम्मान है कि उसके निर्णय के तुरंत के बाद (बिना पूरी जानकारी के) असंतोष जताया जाये?

बहरहाल अदालत ने सर्वसम्मति से यह निर्णय तो दे ही दिया कि अयोध्या की पावन भूमि (जिसे विवादित माना जाता है) ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मभूमि है और जहां रामलला विराजमान है किसी स्थिति मेँ हटाये नहीं जा सकते। निर्णय के पश्चात कम से कम एक बात तो स्पष्ट हो ही गई कि देश आज बानवे से बहुत आगे निकल आया है। आज भारत का आम आदमी रोज़ गिरती राजनीति के भँवरजाल में उलझा नहीं हाँलाकि राजनेताओं ने तो चैनलोँ पर बार-बार शांति की अपील कर ऐसा जताने की कोशिश की जैसे निर्णय आते ही देश मेँ आग लग जायेगी लेकिन कहीँ कोई अप्रिय घटना नहीँ हुई, यह बार-बार की गई अपीलोँ का परिणाम कतई नहीँ था यह तो बदलती पीढ़ी की बदलती सोच का परिणाम था। ऐसा भी नहीं है कि आज हिन्दू समुदाय भव्य राम मन्दिर का निर्माण नहीं चाहता, बिल्कुल चाहता है लेकिन राजनेताओं द्वारा लाशों पर खड़ा किया मन्दिर नहीं बल्कि वह ऐसा मन्दिर चाहता है जहां पूजा अर्चना करते हुये उसे ऐसा न लगे कि देश का अल्पसंख्यक उसे यह जता रहो कि वह खुद को ठगा हुआ अनुभव करता है।

हाईकोर्ट के निर्णय से एक ओर बात तो स्पष्ट हो ही गई कि– जहाँ रामलला विराजमान, वहाँ रामजन्मभूमि। इससे दशकों से कुछ लोगों के मन मेँ उठ रही इस शंका का तो समाधान हो ही गया कि रामलला यहाँ जन्मे थे? अब तो कम से कम लोगोँ को स्वीकार कर लेना चाहिये कि अयोध्या की यही पावन भूमि श्रीराम की जन्मभूमि है जो सहस्त्रों वर्षों से हिन्दुत्व मेँ विश्वास रखने वाले प्रत्येक हिन्दू के लिये आस्था और विश्वास का मूल रही है, ये वही आस्था है जो तब भी राम के वचन की तरह द्रढ़प्रतिज्ञ थी जब रामसेतु के अस्तित्व को लेकर प्रश्न खड़े किये गये थे और उसी तरह सत्य साबित हुई थी जिस तरह अग्नि परीक्षा में जानकी। आज फ़िर वही आस्था अयोध्या की तरह शाश्वत सिद्ध हुई। (इसी आस्था को लेकर एक नामी चैनल पर चर्चा मेँ भाग लेते हुए एक सज्जन ने फ़िर सवाल किया कि रामजन्मभूमि को लेकर हिन्दुओं की यह आस्था कितने दिन, महीने, वर्ष या दशक पुरानी है? उनको इतिहास फ़िर समझना चाहिये कि यह कम से कम 1400-1500 वर्षों से तो ज्यादा पुरानी है और इस समयावधि का इतिहास का ज्ञान तो उन्हें होना ही चाहिये) अब ये एक बहस का विषय हो सकता है कि इस आस्था का पिछले काफ़ी समय से राजनीतिक दुरुपयोग होता रहा जब कुछ दल इसी आस्था का उपयोग आग की तरह करते रहे तो कुछ दल उस पर अपनी रोटियाँ सेकते रहे, लेकिन यह शाश्वत सत्य है कि आस्था की हमेशा विजय होती है।

यह विडम्बना ही तो थी कि हिन्दुत्व का पुजारी , राम का भक्त न राजनीति का खेल समझता था न कानून के दाँव पेंच, लेकिन सूचना क्रांति के इस युग मेँ सांप्रदायिक तनाव न होना दर्शाता है कि आज आम आदमी काफ़ी समझदार हो गया है बदली हुई परिस्थतियों में विवाद नहीँ चाहता।

फिर भी करोड़ों लोगों के मन में आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि अयोध्या की उस भूमि पर मन्दिर निर्मित होगा कि नहीं जहाँ राम जन्मे थे और होगा तो आखिर कब? जिलानी साहब के तेवरों को देखकर लगता नहीं कि राम भक्त जल्द ही भव्य राम मन्दिर मेँ पुजा कर पायेंगे क्योँकि अभी भी कुछ लोग एक ओर तो अदालत के सम्मान की बात कर रहे हैँ तो दूसरी ओर फ़िर राम को अदालत की तारीख़ों में वनवास देने की कोशिशों में लग गया हैं। ये पूर्वाग्रही और हठी लोग आखिर क्योँ समझना नहीं चाहते कि कुछ सौ वर्षों पूर्व उनके पूर्वज भी राम और रामायण के अनुयायी थे। फिर भी आज जब भारत अधिकांश क्षेत्रों में प्रगति के पथ पर खड़ा है और आशा कर रहा है कि उसका प्रत्येक नागरिक विकास यात्रा मेँ सहभागी बने। तो फ़िर क्यों न सभी मिलकर सांप्रदायिक विद्वेष भुलाते हुए मंदिर निर्माण मेँ बढ़ चढ़कर भाग ले और विश्व के सामने अनेकता मेँ एकता के सूत्र को सिद्ध करे। येन केन प्रकारेण भारत की एकता अखंडता पर चोट पहुँचाने वाले राष्ट्र के शत्रुओं के सामने भी यह एक करारा जवाब होगा और जो आने वाली कई सदियों तक विश्व शांति के लिये एक महान उदाहरण भी। इससे ये लाभ भी होगा कि राजनीति मेँ सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों का शोर तो कम होगा और देशवासी एक दूसरे को अलग नज़र से देख पायेँगे।

कुल मिलाकर कहा जाये तो हिन्दू हो या मुस्लिम सभी को अयोध्या में भव्य राममन्दिर का निर्माण करने की शुरुआत करनी चाहिये और बदलते भारत की बदलती तस्वीर दुनिया के सामने रखनी चाहिये हालांकि फ़िर एक ओर अदालत का दरवाजा देखने की चाह रखने वाले निर्णय से असंतुष्ट रहेंगे ही लेकिन अब महान लोकतन्त्र के बुद्धिजीवियों, कानून के कर्णधारों, समाज के ठेकेदारोँ और राष्ट्रभक्त होने का दावा करने वा लो को ही निर्णय करना है कि अदालत ने अपने आदेश से जिस दिशा में ऊँगली दिखाई है उसे उन्हें रास्ता मानना है या मंज़िल। आखिर रास्ता भी इसी मंज़िल पर पहुँचने वाला होगा क्योँकि रामराज्य में अन्याय नहीं हो सकता।

2 COMMENTS

  1. आदरणीय तिवारी जी ,
    सर्वप्रथम तो विलम्ब के लिये क्षमा करे ।
    आप जैसे बुद्धीजीवि जिनके सर माथे ही भारत के हितोँ के बारे मेँ विचार करने का सारा बोझ है की भाषा आभास कराती है कि मुस्लिम भाईयोँ से मन्दिर निर्माण मेँ सहयोग करने की मेरी अपील आपको सुहायी नहीँ और इसके फलस्वरुप भारत की राजनीति मेँ होने वाले संभावित परिणाम भी आपको भाये नहीँ । अब एसा क्योँ है यह तो आप ही जान सकते हैँ लेकिन फ़िर भी आपको नहीँ लगता कि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के झण्डाबदर एक विशेष प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हैँ । आप की वरिष्ठता को देखते हुये स्वाभाविक रुप से आपके कानूनी ज्ञान के सामने मेरा ज्ञान शून्य ही है फिर भी लगता है कि आप पढ़ना भूल गये कि ” भारत का संविधान उनको ऐसा करने के लिये कोई रोक नहीँ लगाता ” उस पर विडम्बना तो देखिये इसी ” प्रवक्ता ” के मंच पर परिचर्चा मेँ भाग लेते हुए आप भी सभी पक्षोँ से सुप्रीम कोर्ट न जाने और बाहर ही कोई समझोता कर लेने की अपील कर रहे हैँ । आपका यह लेख पढ़ने के उपरांत मैँ भ्रम मेँ हूँ कि आप ऐसे विचारो के माध्यम से दर्शाना क्या चाहते हैँ क्या यही कि भारत , और उसके सामयिक विषयोँ पर विचार का एकाधिकार केवल आप जैसे वरिष्ठ ज्ञाताओँ का ही है जो एसी कमरोँ मेँ बैठकर सोचते है , भारत का आम नागरिक उसके जीवन और आस्था से जुड़े विषयोँ पर विचार भी व्यक्त नहीँ कर सकता क्या ? क्या आपका कानून यही कहता है ? यह तो सौभाग्य की बात है कि आज ” प्रवक्ता ” जैसा सशक्त मंच उपलब्ध है वरना हमेशा की तरह आम नागरिक का विचार प्रकट करने का मौलिक अधिकार आपकी कानून की किताबोँ मेँ धुल खा रहा होता । धन्यवाद ” प्रवक्ता “।
    विचार व्यक्त करने को अपना एकाधिकार मानना ही कारण रहा होगा जो आपने धन ( + ) चिन्होँ के माध्यम से दर्शाये भारत मेँ ” हम जैसे ” शब्द का उपयोग करना तुच्छ समझा । आपने कहा मैँ भी कोर्ट जा सकता हुँ , अवश्य जा सकता हुँ लेकिन शायद आप नहीँ जानते होँगे कि कोर्ट के माध्यम से अपना अधिकार पाना एक आम भारतवासी के लिये कितना महँगा और दुष्कर है एक बात और वैसे मैँ कुछ भी बघारने की चेष्टा नहीँ कर रहा था फिर भी आपको प्रदूषण कैसे अनुभव हुआ मैँ समझ नहीँ पा रहा हुँ ।
    एक आम भारतीय जो आप जैसा कानून का ज्ञाता नहीँ है की हैसियत से यदि कुछ ज्यादा कह दिया हो जिससे आपको ठेस लगे तो क्षमा करेँ ।
    वन्दे भारत ।।

  2. aap kyon halkaan huye ja rahe hain ?sabr karo whi hoga jo desh hit men hoga .desh ka matlab hai -hindu+muslim+isai+jain+sikh+dalit +aap jaise +jeelani jaise =bharat.no problem.jeelani jayen .hindu mahasabh wale bhi ja rahe hain .aap bhi ja sakte ho yh kaanoon ke anusar oonchi adalat men jane ka trimasik samy sabhi ko uplabdh hai .aap abhi se bina kisi kanoono jankari ke nahak hi apna gyan bagharkar pradooshan na failayen

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