फिल्म ‘रंगून” की समीक्षा

रेटिंग: 3/5 स्टार
स्टार कास्ट:— सैफ अली खान, शहीद कपूर, कंगना रनावत
निर्देशक-संगीत:– विशाल भारद्वाज
निर्माता :—- विशाल भारद्वाज, साजिद नाडियाडवाला
बैनर :— वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, विशाल भारद्वाज पिक्चर्स प्रा.लि., नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट
मूवी टाइप: रोमांटिक ड्रामा
अवधि:– 2 घंटा 44 मिनट
सेंसर सर्टिफिकेट : — यूए * 2 घंटे 48 मिनट
विशाल भारद्वाज की पिछली फिल्म ‘हैदर’ में उन्होंने कश्मीर मुद्दे की पृष्ठभूमि पर एक प्रेम कहानी को दिखाया था। अपनी ताजा फिल्म ‘रंगून’ में विशाल ने 1943 का समय चुना है जब ब्रिटिश, हिटलर से मुकाबला कर रहे थे। भारत में आजादी की लड़ाई जोरों पर थी। गांधी आजादी मांग रहे थे तो बोस आजादी छीनना चाहते थे। उस दौर की पृष्ठभूमि पर एक प्रेम त्रिकोण की बुनावट की गई है।
विशाल भारद्वाज की फिल्मों में हर बार कुछ अलग और कुछ नया देखने को मिलता है। लेकिन अगर विशाल भारद्वाज और शाहिद के साथ की बात करें तो ‘हैदर’ में उनके साथ का कमाल देखने को मिला था। यह फिल्म ना सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर हिट रही बल्कि एक क्लासिक फिल्म में भी इसे गिना गया। विशाल और शाहिद के इस फिल्म से भी कुछ ऐसी ही उम्मीद की जा रही है।

कहानी:—-यह कहानी भारत में आजादी से पहले की है, जिसमें युद्ध के साथ-साथ आपको रोमांस भी देखने को मिलेगा। जैसा कि आपको पता ही है, इस आजादी की लड़ाई में देश के अलग-अलग सपूतों का अपना-अपना अलग तरीका था। महात्मा गांधी ने आजादी के लिए अहिंसा को अपनाया, सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों को देश से बाहर करने के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया। …और ऐसे ही संघर्ष के बीच दिलेर जूलिया (कंगना रनौत) 40 के दशक में कई दिलों पर राज कर रही होती हैं। यह कहानी द्वितीय विश्व युद्ध (1939 -1945 ) के दौरान की है. उस समय ब्रिटिश सेना की भारत पर हुकूमत थी और भारत -बर्मा की सरहद के पास के जंगलों में इंग्लिश और भारत की सेना का मनोरंजन मिस जूलिया (कंगना रनोट) करती हैं | जहां एक तरफ उनका शादीशुदा प्रड्यूसर रूसी बिलमोरिया (सैफ अली खान) उनपर फिदा रहता है, वहीं बॉर्डर पर तैनात जमादार नवाब मलिक (शाहिद कपूर) भी उससे बेइंतहां प्यार करता है।जूलिया की जिंदगी की भी एक अलग कहानी है कि वो किस तरह ज्वाला देवी से जूलिया बनी. जूलिया का फिल्म प्रोड्यूसर रुस्तम बिलिमोरिया उर्फ रुसी (सैफ अली खान) से अफयेर होता है, और जूलिया की ख्वाहिश मिसेज बिलिमोरिया बनना है. एक बार मेजर जनरल हार्डिंग (रिचर्ड मैकेबे) के कहने पर जूलिया को बर्मा बॉर्डर पर सैनिकों का मनोरंजन करने के लिए भेजा जाता है |

इसी दौरान उसकी मुलाकात जमादार नवाब मलिक (शाहिद कपूर) के साथ होती है और परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि जूलिया और नवाब में एक अलग तरह का प्यार हो जाता है. कहानी में एक तरफ जहां वर्ल्ड वॉर में भारत की सेना (जो ब्रिटिश के अन्तर्गत आती थी) के नवाब मलिक कुछ अलग करने की चाह रखते हैं वहीँ जूलिया की क्या हिस्सेदारी होती है, उसे दर्शाया गया है |

निर्देशन और म्यूजिक:—- निर्देशक विशाल भारद्वाज जिनकी पिछली फ़िल्में ‘मकबूल‘, ‘ओमकारा‘, ‘कमीने‘ और ‘हैदर‘ सभी बहुत ही शानदार फिल्में थी। उन्होंने इस फिल्म को भी अच्छा बनाया है पर जानदार नही । फिल्म के कुछ सीन जहां बेवजह डाले हुए लगते हैं वहीं कुछ सीन बेहद ऊबाऊ हैं। काफी ज्यादा वॉर सीन, प्यार और धोखे को दिखाने के चक्कर में इसका अंत कुछ बेतरतीब नज़र आ रहा है और दर्शकों के मन में कश्मकश वाली स्थिति रह जाती है।

स्टार परफॉरमेंस:—- कंगना को छोड़ कर सभी स्टार ने ओसत एक्टिंग की। फिल्म में कंगना ने जुली के किरदार को बखूबी निभाया है। शहीद कपूर ने भी इस फिल्म ने अच्छा अभिनय किया है ।जुलिया के रोल में उनका पॉवरफुल परफॉर्मेंस आपको काफी अच्छा लगेगा। उसमे असुरक्षता और कभी कभी असंवेदनशील भी है लेकिन साथ ही इस कैरेक्टर पर आपको प्यार भी आएगा। शाहिद कपूर कंगना रनौत के साथ अपनी केमेस्ट्री से लोगों पर छाप छो़ड़ने में कामयाब रहे। शाहिद कपूर ने भी शानदार एक्टिंग की है भले उनके पास इमोशनली कुछ कर पाने का कोई स्कोप नहीं था। सैफ अली खान एक प्रोड्यूसर के रोल में स्क्रीन पर बिल्कुल फिट बैठते हैं। वो लिमिटेड सीन में भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं।

म्यूजिक— फिल्म ‘रंगून’ के गाने ये इश्क है और टिप्पा हो सकता है आप हॉल से गुनगुनाते हुए निकले। मेरे मिंया गए इंग्लैंड और अलविदा भी सुनने में आपको अच्छा लगेगा हालांकि इसमें कुछ भी नया नहीं है। विशाल भारद्वाज की फिल्मों में गीत-संगीत फिल्म की कहानी का अविभाज्‍य हिस्सा होता है। गुलजार उनकी फिल्मों में भरपूर योगदान करते हैं। दोनों की आपसी समझ और परस्पर सम्मान से फिल्मों का म्यूजिकल असर बढ़ जाता है। इस फिल्म के गानों के फिल्मांकन में विशाल भारद्वाज ने भव्‍यता बरती है। महंगे सेट पर फिल्‍मांकित गीत और नृत्‍य तनाव कम करने के साथ कहानी आगे बढ़ाते हैं।
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विशाल भरद्वाज का नाम आते ही ओंकारा, मकबूल, हैदर, कमीने जैसी उम्दा फिल्में याद आ जाती हैं. विलियम शेक्सपीयर की रचनाओं पर आधारित कई फिल्में विशाल ने डायरेक्ट की हैं.

2006 में ‘ओंकारा’ की रिलीज के ठीक बाद विशाल ने ‘रंगून’ को डायरेक्ट करने का प्लान किया था. लेकिन किन्ही कारणों से वो हो नहीं पाया. अब लगभग 11 साल के बाद ‘रंगून’ सामने आई है. इसका स्क्रीनप्ले मैथ्यू रॉबिन्स ने ही लिखा है जिन्होंने विशाल की फिल्म ‘7 खून माफ’ पर भी काम किया था.
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क्यों देख सकते हैं फिल्म….???

– वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान होने वाली घटनाओं को एक स्टोरी के तहत विशाल भारद्वाज ने बताने की कोशिश की है जो शायद आपको इतिहास के पन्नों की तरफ खींच कर ले जाती है. फिल्म पर अच्छी रिसर्च की गई है.

– फिल्म को 40 के दशक के हिसाब से ही रखा गया है जिसकी वजह से रिसर्च वर्क और एक-एक चीज को उसी लिहाज से परोसने की कोशिश की गई. इससे फिल्म की दर्शनीयता बढ़ी है.

– कंगना रनोट की एक बार फिर से काफी सराहना की जा सकती है, उन्होंने बहुत ही उम्दा अभिनय किया है. मेजर जनरल के किरदार में ब्रिटिश एक्टर रिचर्ड मैकेबे बेहतरीन हैं. सैफ और शाहिद ने भी शानदार अभिनय किया है.

– फिल्म में पंकज कुमार की सिनेमेटोग्राफी और खासतौर पर बॉर्डर के पास का फिल्मांकन गजब का है.

फिल्म “रंगून” की कमजोर कड़ियां —-
– फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी लेंथ है, जो फर्स्ट हाफ में तो बहुत सटीक है, लेकिन इंटरवल के बाद काफी खिंची लगती है. हालांकि एडिटिंग को और भी बेहतर किया जा सकता था.

– फिल्म के गाने और बैकग्राउंड स्कोर, कहानी के साथ-साथ चलते हैं और रफ्तार बनाए रखते हैं. बीच-बीच में आने वाले गानों के टुकड़े भी अच्छे लगते हैं. लेकिन कोई यादगार नहीं है.

– फिल्म में रोमांस है, लेकिन इमोशन नहीं हैं.

– फिल्म का क्लाइमैक्स काफी अलग दर्शाने की कोशिश की गई है. यह आपको विशाल वाला फ्लेवर जरूर महसूस कराती है लेकिन क्लाइमेक्स काफी खिंचा महसूस होता है. इसकी शार्प एडिटिंग बहुत जरूरी थी.

– यह फिल्म वर्ल्ड वॉर, आजाद हिन्द फौज, ब्रिटिश शासन, रोमांस, धोखा, देशभक्ति – सब कुछ एक ही वक्त पर दिखाने की कोशिश में फिल्म भटक गई है.

आखिरी शब्द:—रंगून एक अच्छी फिल्म है पर और बेहतर बन सकती थी । अगर आप शहीद , कंगना के फैन है तो यह फिल्म आपको अच्छी लग सकती है ।फिल्म में पंकज कुमार ने शानदार कैमरा वर्क किया है चाहे वो खूबसूरत पानी की सीन है हो या बढ़िया प्राकृतिक सीन हो। फिल्म में हर चीज को खूबसूरती से शूट किया गया है। फिल्म में एडिटिंग कहीं कहीं कमजोर है लेकिन कंगना रनौत की जाबांज एक्टिंग के लिए आप एक बार ये फिल्म देखने जा सकती हैं।

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