बलात्कार ने उजागार किया संस्थागत छलावा ?

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प्रमोद भार्गव

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था और विदेशी कंपनियों का संस्थगत ढ़ांचा किस तरह से मनमानी और लूट के कारोबार को चला रहे हैं,यह कैब टैक्सी में हुए बलात्कार की ताजा घटना से उजागार हो गया है। 27 साल की युवती से हुई इस वारदात में जितना दोषी टैक्सी चालक है,उतने ही दोषी, दिल्ली परिवहन विभाग,पुलिस और वेब आधारित टैक्सी प्रदाता कंपनी है। क्योंकि तीनों ही माध्यमों के मार्फत सुविधा और सुरक्षा के बहाने यह कारोबार देश की राजधानी दिल्ली समेत कई महानागरों में धड़ल्ले से फला-फूला है। इस संस्थागत छलावे से पर्दाफाष होने के बाद साफ हो गया है कि महज राजनीतिक सत्ताओं के परिवर्तन से प्रशासनिक व्यवस्था बदलने वाली नहीं है ? लिहाजा नरेंद्र मोदी की उस हुंकार का दम निकल गया है कि केंद्र में भाजपा की सरकार के सिहांसनारूढ़ होते ही महिलाओं के अच्छे दिन आ जाएंगे ? इस मामले ने वेब आधारित तकनीक के सुरक्षा संबंधी दावों को भी खोखला साबित कर दिया है।

सबसे पहले तो उस युवती के साहस और संयम को सलाम करने की जरूरत है,जिसने दुष्कर्म की क्रूरतम घटना से गुजर चुकने के बावजूद अपना विवेक कायम रखा। टैक्सी का मोबाइल से फोटो खींचा और फिर तत्काल पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने तत्परता बरतते हुए फोटो के जरिए टैक्सी का नंबर एवं शेष जानकारियां हासिल कर लीं और आरोपी चालक को जल्द ही धर दबोचा। शिवकुमार यादव नाम के इस चालक के पकड़े जाने के बाद पता चला कि आरोपी बलात्कार का आदतन अपराधी है। 2011 में बार डांसर के साथ बलात्कार के मामले में गिरफ्तार हुआ था और बतौर सजा उसने सात माह तिहाड़ जेल में भी गुजारे थे। 2013 में भी शिवकुमार मैनपुरी में भी दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तर किया गया था और जमानत पर चल रहा था। अवैध हथियार रखने के मामले में उस पर एफआईआर दर्ज है। मसलन वह एक बड़ा आरोपी है और ऐसे में आरोपी को परिवहन संबंधी कानूनी वैधताएं मिलती जाना हमारी प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।

अब चौकाने वाला सवाल यह उठता है कि बलात्कार जैसे संगीन मामले के दोषी और अभियुक्त को चालक का लाइसैंस कैसे मिल गया ? उसकी कार का पंजीयन कैसे हो गया और इन सब से भी महत्वपूर्ण कि,पुलिस ने उसके उत्तम चरित्र का सत्यापन कैसे कर दिया ? हैरानी इस पर भी है कि यह चरित्र प्रमाण-पत्र दिल्ली पुलिस के ही एक आयुक्त कार्यालय से जारी हुआ है। सिलसिलेबार जुड़ी इन कडि़यों के खुलने से दो बातें साफ होती हैं, एक तो दिल्ली पुलिस ने 2 साल पहले दिल्ली में ही चलती बस में हुए निर्भया के साथ दुराचार और फिर जघन्य हत्या से कोई सबक नहीं लिया। दूसरे,दिल्ली पुलिस और परिवहन विभाग में बरते जा रहे भ्रष्टाचार के चलते अवैध को वैध बनाने का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। निर्भया की हत्या के बाद जो देशव्यापी आक्रोष सड़कों पर फूटा था, उसका असर भी इन दोनों विभागों पर कतई नहीं दिखता है ? यदि थोड़ा बहुत भी असर होता तो इस तरह से सार्वजनिक वाहनों में सुरक्षा के इंतजामों से खिलवाड़ संभव नहीं हुआ होता ?

अब जरा सुरक्षा के बहाने टैक्सी प्रदाता कंपनी उबर की तफ्तीश करें। कई देशों में परिवहन सेवा देने वाली उबर कंपनी सैन फ्रांसिस्को की मूल की बहुराष्ट्रिय कंपनी है। 2009 में यह कंपनी वजूद में आई और देखते-देखते इसने बिना कोई बुनियादी ढांचा खड़ा किए 45 देशों के करीब 200 शहरों में अपना कारोबार फैला लिया। भारत में दिल्ली समेत इस कंपनी का कारोबार मुंबई, कोलकाता, चैन्नई, बैंग्लुरु, पुणे, अहमदाबाद, जयपुर, इंदौर और चंडीगढ़ में फैला हुआ है। यह बेहद आश्चर्यजनक है कि इतने बड़े पैमाने पर पिछले 6 साल से यह कंपनी भारत में रेडियो टैक्सी के बहाने अवैध कारोबार कर रही है और प्रशासन तंत्र पूरी तरह बेपरवाह है। इससे साफ होता है कि हमारे प्रशासनिक ढ़ांचे का एक हिस्सा जनता पर बड़ा बोझ है,जिसे कम करने की जरूरत है।

रेडियो टैक्सी मुहैया कराने वाली इन कंपनियों का दावा है कि उनकी टैक्सियों में यात्रा करना शत-प्रतिषत सुरक्षित व सुविधायुक्त है। क्योंकि उनकी सार्वजनिक परिवहन सेवा एक ऐसे जीपीएस से जुड़ी हुई है, जो चलते वाहन की प्रत्येक गतिविधि और वर्तमान स्थल की जानकारी पर निगरानी रखती है। लिहाजा उनकी टैक्सियों के चालक मुसाफिर के साथ न तो मनमानी कर सकते हैं और न ही बद्सलूकी ? बलात्कार जैसी घटना की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती ? मगर उबर की टैक्सी में हुए बलात्कार ने सच सामने ला दिया कि दावे कितने खोखले हैं ?

जीपीएस यानी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम ;वैश्विक स्थिति प्रणालीद्ध या फिर ज्यूग्रफिक पोजीशनिंग सिस्टम ;भूमंडल स्थिति प्रणालीद्ध से है। इस प्रणाली की कारगर उपलब्धियां तब संभव हैं, जब यह पूरी सूचना प्रोद्यौगिकी एक केंद्रीयकृत कंप्युटर व्यवस्था से जुड़ी हो। जबकि उबर कंपनी इस तरह की रेडियो कैब सर्विस से जुड़ी हुई नहीं है,जैसा कि उबर या इस जैसी अन्य कंपनियों ने भ्रम फैला रखा है,इन्हें महज स्मार्टफोन से संचालित किया जा रहा है। अब यदि टैक्सी चालक घिनौनी करतूत करते वक्त अपने फोन को बंद करले तो उसकी कोई जानकारी अन्य किसी फोन पर नहीं मिलेगी। हरकत के वक्त आरोपी चालक ने भी अपना फोन बंद कर लिया था।

भारत में कोई भी जीपीएस तब सफल हो सकता है, जब प्रत्येक गांव, कस्बा और नगर के मौहल्ले व गलियों का पहले तो नामाकरण हो और फिर उस पूरे अक्ष को उपग्रह के जरिए इंटरनेट से जोड़ा जाए ? भारत के अधिकांश शहरों के अनेक मौहल्ले फिलहाल तो नक्शों में ही शामिल नहीं हैं, इसलिए जीपीएस की सफलता संदिग्ध है ? हां, भारतीय रेल में जरुर जीपीएस सफलता की सीढि़यां चढ़ रहा है। दुष्कर्म का यह मामला तो इसलिए जल्दी पकड़ में आ गया, क्योंकि उस बहादुर एवं विवेकवान युवती ने भागती टैक्सी को मोबाइल में कैद कर लिया था।

उबर कंपनी राजधानी समेत देश के अन्य षहरों में संपूर्ण रूप से नाजायज तौर से चलाई जा रही है। इसका खुलासा खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किया है। अब इस सेवा पर रोक भी लगा दी गई और कंपनी के विरुद्ध फर्जी दस्तावेजों की कूट रचना करने व चार सौ बीसी का मामला दर्ज कर लिया गया है। लेकिन अब कानूनी कार्रवाई करने के साथ बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि उबर के पास जब लायसेंस ही नहीं था तो वह कैसे इतने वर्षों से इंटरनेट और स्मार्टफोन के जरिए अपनी सेवाएं मुहैया करा रही थी ? और इस दौरान पुलिस व परिवहन महकमा क्या करता रहा ? जबकि इस कंपनी का प्रबंधन विदेश से जुड़ा था,इसलिए इस पर ज्यादा निगरानी की जरुरत थी ? जबकि कंपनी ने अपना बुनियादी ढांचा स्थानीय टैक्सी और चालकों के जरिए ही खड़ा किया है। ऐसा नहीं है कि यह सब गुप-चुप और कुछ चंद दिनों में हुआ हो ? यह संस्थागत अवैध ढांचा पुलिस और परिवहन विभाग की मिलीभगत के बिना खड़ा ही नहीं हो सकता ? इसलिए इस अपराध में इन विभागों के आला अधिकारी भी बराबर के दोषी हैं।

संसद के चालू सत्र में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेमेंट एवं सैटलमेंट सिस्टम विधेयक-2007 पर चर्चा करते हुए कहा है कि उबर कंपनी रिजर्व बैंक के नियमों की भी अनदेखी करते हुए ग्राहकों से अग्रिम भुगतान हासिल करती रही है, जबकि इसका भुगतान पोर्टल अमेरिका में स्थित है। रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार भारत आधारित पोर्टल होना चाहिए, जिससे लेन-देन में पारदर्शिता सामने आती रहे ? रिजर्व बैंक ने 15 नबवंर 2015 तक कंपनी को भारत आधारित वेब पोर्टल बनाने का निर्देश दिया हुआ है। जबकि रिजर्व बैंक को भुगतान को प्रतिबंधित करने की जरूरत थी। लेकिन अमेरिकी कंपनी होने के कारण हमारे कानून और संवैधानिक संस्थाएं इस अदना सी कंपनी के सामने बौने साबित होते रहे ? सवाल उठता है कि जब कंपनी का कारोबार ही अवैध रुप से चल रहा हो तो वह पोर्टल क्यों खोले ? यह कंपनी भारतीय धन तो देश से बाहर भेज ही रही है,आयकर को भी पलीता लगा रही है। बहरहाल, इस एक दुष्कर्म ने हमारे संस्थागत ढांचों की पोल, खोल कर रख दी है। जाहिर है,मात्र सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तित होने वाली नहीं है। इस हेतु बड़े प्रशासनिक बदलाव की भी जरुरत है।

 

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