यूपी राजनीति का शिकार, मगर दुराचार पर शर्म करो सरकार

-निशा शुक्ला-
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उत्तर प्रदेश जो राजनैतिक, आध्यात्मिक रूप से समृद्ध है, विगत कुछ महीनों से महिलाओं के साथ बलात्कार और हिंसा की घटनाओं के दाग को इस कदर अपने ऊपर लिए है कि अब लोग यहां तक कहने लगे हैं कि यूपी जाने में डर लगता है। ये हिंसा यहां काफ़ी बढ़ गई हैं। प्रदेश के कई जिलों बदायूं, सीतापुर, लखीमपुर, बहराइच, बाराबंकी, अमेठी, फैजाबाद, कुशीनगर और मुरादाबाद, में महिलाओं के साथ कथित तौर पर बलात्कार के बाद हत्या करने की खबरें आईं।

आखिर ऐसे हालात क्यों हो रहे हैं। क्या सच में यूपी में अपराध बढ़े हैं, या राजनीतिक षड्यंत्र का यह राज्य कुछ ज्यादा ही शिकार होता जा रहा है। इसमें दो मत नहीं कि प्रदेश की अखिलेश यादव की सरकार बलात्कार करने वाले लोगों के विरुद्ध कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रही है, जिससे अपराधियों के हौसले काफ़ी बुलंद हैं। ऐसे आरोप अक्सर लगते रहे हैं कि सरकार रेप को अंजाम देने वाले अभियुक्तों को ही बचाने का काम कर रही है। ऐसे में किसी भी पीड़ित महिला और उसके परिवार को न्याय कैसे मिलेगा? सरकार को महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को रोकने वाले सख्त क़ानून लागू करना चाहिए जिससे ऐसी घटनाओं में कमी की जा सके। लेकिन अब हम दूसरे पहलू पर विचार करते हैं। क्या दुष्कर्म की घटनाएं दूसरे राज्यों में नहीं होती ?, क्या उत्तर प्रदेश में ही ऐसी घटनाएं हो रही हैं ? जवाब है- ऐसी घटनाएं तो और भी जगह हो रही हैं। तो आखिर यूपी मीडिया में इतना हाइलाइट क्यूं है? दरअसल, यूपी तब से ऐसे छीटों को अधिक झेल रहा है, जब से लोकसभा चुनाव संपन्न हुए हैं। मीडिया में यहां की खबर को तुरंत तवज्जो के साथ दिखाया जाता है। असल में राजनीति एक ऐसा विषय है जिसमें एक किसी पार्टी के जब छाने के दिन होते हैं तो बहुत सारी बातें हवे में उड़ जाती हैं। हवे में उड़ने से मतलब कि मीडिया के तवज्जो से बाहर होती हैं। लेकिन जब किसी पार्टी, वो चाहे सत्तासीन ही क्यों न हो, दिन लद जाते हैं तो उसे हर एक बात पर लाखों जवाब देने होते हैं। उस राज्य में पिन भी गिरे तो आवाज़ दूर तक जाती है। उत्तर प्रदेश के साथ इस दशा को भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

लेकिन फिर भी हम यह सकते हैं कि यूपी में महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़े हैं। आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार और हिंसा का ग्राफ नौ प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया है। सरकार पर केवल अपराध के आंकड़ों को छुपाने का आरोप लगता रहा है। यह एक सामाजिक समस्या है। प्रदेश की आबादी 21 करोड़ है। सवाल ये भी है कि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जब सार्वजनिक रूप से यह बयान देंगे कि बलात्कार और हत्या रूटीन है तो ऐसे में क़ानून व्यवस्था की स्थिति और महिलाओं की सुरक्षा कैसे हो पाएगी। ऐसी व्यवस्था से तो प्रदेश सरकार अपना नैतिक अधिकार खो ही देगी। ऐसे हालात में प्रशासनिक आलाधिकारी क़ानून व्यवस्था को मज़बूत करने और महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के बजाए बलात्कार और हत्या की घटनाओं को साजिश बताएंगे तो काफ़ी दुर्भाग्यपूर्ण है।

उत्तर प्रदेश में आए दिन हो रही अपराध की जहां की अखिलेश सरकार दावे पर दावे कर रही है कि प्रदेश में कहीं कोई अपराध नहीं हो रहा है औऱ अगर कहीं अपराध हो भी रहा है तो अपराधी को पकड़ कर उसके साथ सख्ती से निपटा जा रहा है, लेकिन सच तो यह है कि यूपी में कोई ऐसा दिन नहीं जाता जब कोई न कोई बड़ा अपराध होता हो और पुलिस अपरिधयों को पकड़ना तो दूर उनका अता-पता व मकसद भी नहीं जान पाती कि आखिर इस अपराध के पीछे की वजह क्या थी। आज हालात यह हो गए हैं कि देश हो या प्रदेश, शहर हो या गांव, कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं है। और तो औऱ महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराध को रोकने में न तो कोई सरकार दिलचस्पी नहीं ले रही है और न ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों को ही सरकारों द्वारा सख्ती से लागू किया जा रहा, जिसका नतीजा है कि हर दिन कोई न कोई महिला रेप, गैंगरेप या अपने ही घरवालों की ज्याजतियों का शिकार होती है। मंच से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दिए जाने वाले नेताओं के भाषण सुनने से तो ऐसा लगता है मानो देश-प्रदेश की हर महिला सुरक्षित है। पर जब किसी महिला के साथ कोई आपराधिक घटना घट जाती है तो ये नेतागण उसे न्याय दिलाने की बजाय उसके चरित्र पर ही उंगली उठाने लगते हैं।

वैसे तो 16 दिसंबर 2012 में हुई दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद देश भर में जो भूचाल आया था उसे देख कर तो ऐसा लग रहा था मानो लोगों की मानसिकता बदल रही है और लोग महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जागरूक हो रहे हैं पर शायद हमारा यह सोचना गलत था। उस घटना ने संसद से सड़क तक भले ही सबको हिला दिया हो लेकिन महिलाओं पर हो रहे अत्याचार में कमी नहीं आई औऱ न ही समाज के ठेकेदारों की आंख ही खुली। हालात देखकर तो ऐसा लग रहा है मानो उस घटना के बाद से लोगों के दिलों से कानून का खौफ ही खत्म हो गया हो। आज हालात यह हो गए हैं कि हर दिन देश का कोई ऐसा राज्य और राज्य को कोई ऐसा जिला नहीं होता होगा जहां कोई न कोई महिला रेप या फिर गैंगरेप का शिकार न होती हो। हद तो तब होती है जब कोई अपना ही महिला की आबरू के साथ खेल जाता है और खून के रिश्ते को शर्मशार कर देता है। 4 दिसंबर 2013 की ही घटना को लीजिए। यह घटना उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की है जहां से प्रदेश भर की कानून व्यवस्था का संचालन होता है। इस घटना ने बाप-बेटी और भाई बहन के रिश्ते को ही शर्मशार कर दिया। मालूम हो कि लखनऊ की लोको फैक्ट्री में काम करने वाला 52 साल का एक शख्स नौ साल से अपनी ही बेटी के साथ दुराचर कर रहा था। इतना ही नहीं, उसका भाई भी उससे अपनी हवस की भूख मिटाता था।

इसी तरह 4 जनवरी 2014 को मेरठ में एक और मामला प्रकाश में आया जिसमें पहले तो बाप ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ दुराचार किया और जब मामला पंचायत पहुंचा तो इंसाफ की दुहाई देने वाले पंचों ने रेपिस्ट बाप को सजा देने के बजाय उसे दुराचार पीड़ित बच्ची का पति बना दिया और पुलिस ने कार्रवाई करना तो दूर इस पूरे मामले से ही अनभिज्ञता जाहिर कर दी। इसी क्रम में एक जून 2014 को खेत जा रही किशोरी के साथ गैंगरेप का मामला प्रकाश में आया। आरोप है कि बाइक सवार तीन लोगों ने किशोरी को जबरन पकड़ कर जंगल ले जाकर रेप किया।

12 जून 2014 को बांदा हमीरपुर जिले के सुमेरपुर थाने में एक महिला ने पुलिस वालों पर थाने में ही गैंगरेप किए जाने का आरोप लगाया। यह तो महज बानगी भर है। सच तो यह है कि महिलाएं हर रोज रेप, गैंगरेप, छेड़छाड़ सहित तमाम तरह की अत्याचार का समाना करती हैं। सच तो यह है कि देश भर में हर पांच मिनट में कोई न कोई महिला किसी न किसी हादसे का शिकार जरूर होती है, तब यही नेता, अधिकारी अपराधियों को पकड़ने की बजाय महिलाएं को ही सलीके से रहने की हिदायत देते हैं, और दुराचार जैसा धिनौना अपऱाध करने वालों का बचाव करने से नहीं चूकते। इसका ज्वलंत उदाहरण है अभी हाल ही में बदायूं में दो बहनों के साथ हुए रेपकांड के बाद देखने को मिला जब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यह बयान देकर कि सभी रेप के मामलों में फांसी देना पूरी तरह से गलत है, लड़कों से गलती हो जाती है, सबको चौंका दिया। इसी तरह से डीआईजी ने भी इस मामले में कुछ तथ्य छिपाने की कोशिश की जैसे उन्होंने कहा कि दुराचार दोनों लड़कियों के साथ नहीं हुआ। वह बात अलग है कि मेडिकल रिपोर्ट में दोनों का साथ दुराचार की पुष्टि हुई, जिसके बाद डीआईजी के बयान की काफी किरकिरी हुई। अधिकारियों और नेताओं के बयान को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेताओं की कथनी और करनी में कितना अंतर है औऱ हमारे देश में महिलाएं कितनी सुरक्षित है।

महिलाओं को सुरक्षा देने और उनके लिए कानून बनाने का दावा तो हर नेता, हर अधिकारी और हर सरकार करती है पर क्या कोई नेता, अधिकारी व सरकार अपने इस दावे पर आज तक खरी उतर पाई है? शायद नहीं। हालांकि महिलाओं की सुरक्षा के लिए देश में तमाम तरह के कानून भी बनाए गए हैं, पर उन कानूनों का धरातल से कोई वास्ता ही नहीं है। सच तो यह है कि अपराध को रोकने और अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाने के लिए बनाए गए कानून सिर्फ फाइलों तक ही सीमित रह गए हैं। हद है जब कानून के रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं। देश, प्रदेश को अपराध मुक्त रखने की कसम खाकर भी चंद रुपयों के लिए अपराध में शामिल होकर अपनी कसम से मुकर जाते हैं। दुख होता है जब एक जिम्मेदार नेता वोट बैंक के लिए जनता से किए वादे भूलकर उनकी बहु-बेटियों की आबरू से खिलवाड़ कर खुद को विजेता साबित करने में भी गुरेज नहीं करता। अपनी पार्टी की छवि को अच्छा दिखाने और अन्य दलों की छवि को खराब दर्शाने के लिए भी नेता लोग जनता की भावनाओं और उनकी सुरक्षा से खिलवाड़ कर देते हैं। लेकिन शायद वह नहीं जानते कि ऐसा करके वह पीड़ित परिवार को कभी न भरने वाला घाव दे देते हैं।

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