मिला एक दिन दादाजी से,
वह दादा हैं राष्ट्रबंधुजी|
बच्चों की खातिर सब करने,
आमादा हैं राष्ट्रबंधुजी|
नहीं कोई छल छंद दिखावा,
बस, सादा हैं राष्ट्रबंधुजी,
बच्चों का संसार सुनहरा,
एक वादा हैं राष्ट्रबंधुजी|
मिला एक दिन दादाजी से,
वह दादा हैं राष्ट्रबंधुजी|
बच्चों की खातिर सब करने,
आमादा हैं राष्ट्रबंधुजी|
नहीं कोई छल छंद दिखावा,
बस, सादा हैं राष्ट्रबंधुजी,
बच्चों का संसार सुनहरा,
एक वादा हैं राष्ट्रबंधुजी|
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।