राष्‍ट्रधर्म- बाबा रामदेव

।। इदं राष्ट्राय इदन्न मम ।। 

योगाभ्यास के साथ-साथ प्रतिदिन 5 से 10 मिनट राष्ट्र-शक्ति व हमारे राष्ट्रधर्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें लोगों को बताना तथा लोगों को समझाना कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं। इन बिन्दुओं को पहले संक्षिप्त रूप में तथा बाद में विस्तारपूर्वक प्रत्येक ग्रामवासी व राष्ट्रवासी को समझायें।

  1. राष्ट्र की शक्ति : हमारे देश भारत में 89 प्रकार की भूसम्पदाएं हैं-लोहा, कोयला, ताम्बा, सोना, चांदी, हीरा, एल्यूमिनियम आदि धतुएँ तथा गैस व पेट्रोल से लेकर बहुत से मिनरल्स हैं इन सबके ज्ञात भण्डार (रिजर्वस) का यदि आर्थिक मूल्यांकन किया जाए तो यह करीब 10 हजार लाख करोड़ रुपये होते है। इसमें अकेला कोयला ही (केवल ज्ञात भण्डार) 276.81 बिलियन टन है जिसका मूल्य लगभग 950 लाख करोड़ है तथा लोहे के ज्ञात भण्डार लगभग 15.15 बिलियन टन है। ऐसी ही अन्य बहुत सी बेशकीमती चीजें भारत माता के गर्भ में छिपी हैं। यदि हमने इन बेईमान लोगों को नही हटाया तो ये सब देश की सभी सम्पदाओं को लूट लेंगे। भूसम्पदाओं के अतिरिक्त जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटी व अन्य राष्ट्रीय सम्पदाओं के साथ-साथ बौद्धिक, आर्थिक, चारित्रकि व आध्यात्मिक दृष्टि से भी भारत दुनियाँ का सबसे बलवान व धनवान देश है।
  2. महाशक्ति भारत : हमारे देश में जर्मनी, जापान और प्रफांस जैसे देशों से कम से कम 50 गुणा अधिक शक्तिशाली है। जिस दिन भ्रष्टाचार मिट जायेगा उस दिन भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा। दुनियाँ की पाँच बड़ी संस्थाएं आई.एम.एफ., वर्ल्ड बैंक, डब्लू.एच.ओ., यू.एन.ओ., डब्लू. टी.ओ., सब यहींं से हम संचालित कर सकेंगे। हम वल्र्ड सुपर पॉवर होंगे, हम दुनियाँ की सबसे बड़ी आर्थिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक महाशक्ति होंगे और यह सब हमारे लिए बड़े गर्व की बात होगी।
  3. क्या देश स्वतन्त्र है – 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया, यह देश के इतिहास में पढ़ाया जाता है तथा नेताओं द्वारा बताया जाता है कि हम आज स्वतन्त्र हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दुर्भाग्य से 14 अगस्त 1947 को तत्कालीन प्रधनमंत्री तथा अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि माउंटबेटन ने एक बहुत बड़ा शर्मसार समझौता कर लिया और उसका नाम है ट्रांसफर ऑफ पॉवर एग्रीमेंट (सत्ता के हस्तांतरण का समझौता)। इस एग्रीमेंट के तहत आज भी स्वतन्त्र भारत में विदेशी तंत्र चलता है। न तो हम भाषा की दृष्टि से आजाद हो पाये हैं और न ही व्यवस्थाओं की दृष्टि से, जैसे अंग्रेज सरकार भारत को चलाती थी, ठीक वैसे ही भारत सरकार भारत को चलाती है। टी.बी. मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा-व्यवस्था, जिसमें संस्कार व आध्यात्मिक मूल्यों को पूरी तरह निकाल दिया गया है; अंग्रेजी चिकित्सा-व्यवस्था जिसमें भारतीय चिकित्सा-व्यवस्था-योग, आयुर्वेद व प्राकृतिक-चिकित्सा आदि को हाशिये पर रख दिया है; अंग्रेजी कानून-व्यवस्था, जिसमें 34735 कानून जो अंग्रेजों ने भारत को लूटने के लिए बनाए थे, वह आज भी लागू हैं। अंग्रेजी अर्थव्यवस्था, जिसमें पूँजी का विकेन्द्रीकरण न होकर गाँव, गरीब व भारत का शोषण हो रहा है। इसी तरह आज आजादी के नाम पर हम अंग्रेजी गुलामी में जी रहे हैं। महात्मा गाँधी व सभी क्रान्तिकारियों का निविदमववादित रूप से स्पष्ट मानना था कि भारत आजाद होते ही सभी अंग्रेजी व्यवस्थाओं का हमें स्वदेशीकरण करना होगा, जो दुर्भाग्य से नहीं हुआ। अब इस आधी अधूरी आजादी के स्थान पर हमें पूरी आजादी लानी है। आज हम अन्याय के खिलाफ बोल सकते हैं तथा सरकार बदल सकते हैं। इसका हमें पूरा लाभ उठाना है। आज जब किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र में विदेशी तंत्र व विदेशी भाषा नहीं चलती, तब स्वतन्त्र होते हुए भी विदेशी तन्त्र व विदेशी भाषा को ढोना यह हमारे लिए कितने शर्म व अपमान की बात है।
  4. राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेशी नीति – जिस तरह से चीन ने पूर्वोत्तर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक सड़कों व रेल आदि का जाल बिछा दिया है तथा अपनी लगभग 31 लाख सेना का अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र प्रोद्यौगिकी के साथ तीव्र गति से आधुनिकीकरण कर रहा है और साथ ही चीन सरकार के नियन्त्रण में चलने वाले प्रचार-प्रसारों के माध्यम से भारत को 20-30 भागों में विखंडित करने की जो बात कही जा रही है, यह बहुत ही चिन्ताजनक है। अत: हमें अपनी सेनाओं के तीव्र गति से आधुनिकीकरण एवं अन्य ढांचागत सुविधओं के लिए तुरन्त प्रभावी कदम उठाने चाहिए तथा अपनी विदेश-नीति में भी हमको व्यापकता, दूरदर्शिता एवं रहस्यमय कूटनीति को अपनाना पड़ेगा। हमें वैश्विक स्तर पर भारत को मजबूत स्थिति में लाना पड़ेगा। चीन के साथ-साथ पाकिस्तान के नापाक इरादों व बंग्लादेशी घुसपैठ को भी प्रभावी तरीके से रोकने की आवश्यकता है। भारत-हित को सर्वोपरि रखकर हमें अन्य देशों के साथ अपनी व्यापार-नीति व विदेश-नीति बनानी होगी। हमें उदारीकरण, वैश्वीकरण व डब्लू.टी.ओ. की नीतियों, सन्धियों व कानूनों का देश को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करने में उपयोग नहीं होने देना, अपितु अपने उत्पादन एवं निर्यात को बढ़ाकर राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने में उपयोग करना है। राष्ट्रीय सुरक्षा (बाह्य सुरक्षा) के साथ-साथ हमारी आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था में भी नक्सलवाद, माओवाद व अन्य घरेलू हिंसा भी बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं। इनके भी निर्णायक समाधन के लिए हमें स्पष्ट रणनीति बनानी होगी।
  5. विदेशी हस्तक्षेप :- हमारे देश में, हमारे देश के नीति-निर्धरण से लेकर प्रधनमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री आदि महत्वपूर्ण पदों पर कौन व्यक्ति होने चाहिए, इसमें विदेशी सरकारों, उनकी अगेंसियों व विदेशी कम्पनियों का बहुत बड़ा हस्तक्षेप रहता है। इसके लिए मीडिया मेनेजमेन्ट और सम्बन्धित व्यक्तियों के महिमा मण्डन से लेकर सम्बन्ध पार्टी या सम्बन्धित व्यक्ति के लिए फुन्डिंग (Funding-धन) भी विदेशी सरकारें, एजेसियाँ व कम्पनियाँ करवाती है तथा कई बार तो सीधे तौर पर ही विदेशी सरकारों या एजेंसियों के एम.एल.ए., एम.पी. चुनाव लड़कर विधनसभा एवं लोकसभा तक पहुँचते हैं। विदेशी हस्तक्षेप द्वारा परोक्ष रूप से देश की सरकारें विदेशी ताकतों से संचालित होती हैं। यह देश के लिए बहुत खतरनाक है। राजनैतिक हस्तक्षेप के अलावा सामाजिक, धमिर्क, आर्थिक, चारित्रकि व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी विदेशी हस्तक्षेप बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है।
  6. गरीब का अपमान क्यों :- हम यह भूल जाते हैं कि जिन मकानों में हम रहते हैं, जिन मन्दिरों में पूजा करते हैं, जिन अस्पतालों में हम इलाज करवाते हैं, जिन विद्यालयों में हमारे बच्चे पढ़ते हैं तथा जिन सड़कों पर हम अपनी गाड़ियाँ चलाते हैं। देश का ये सारा निर्माण देश के गरीब-मजदूर व कारीगरों ने किया है। मजदूर व कारीगर तथा 120 करोड़ लोगों का अन्नदाता किसान, इन दोनों का ही सत्ता व कुछ समर्थ लोगों द्वारा अपमान हो रहा है। देश के निर्माता व अन्नदाता का यह अपमान तुरन्त बन्द होना चाहिए। उनके श्रम का पूरा मूल्यांकन होना चाहिए और सत्ता व सब समर्थ लोगों को भी इनका सम्मान करना चाहिए। विलासिता की चीजें उपलब्ध करवाने वालों का तो सम्मान हो रहा है तथा जो मूलभूत विकास करने वाले मजदूर-कारीगर और जीवनदाता व अन्नदाता है उनका अपमान हो रहा है।
  7. कितना दुर्भाग्य – चीन, जापान, अमेरिका व प्रफांस आदि देशों में देशभक्ति की बात करना स्वाभिमान, सम्मान, गौरव की बात मानी जाती है लेकिन हिन्दुस्तान में जो लोग देशभक्ति की बात करते हैं, देश के लिए काम करते हैं, भ्रष्टाचार, कालेधन, भ्रष्ट-व्यवस्था का विरोध करते हैं तो उनको गुनाहगार, अपराधी की तरह देखा जाता है यह कितनी शर्म की बात है।
  8. जनसंख्या – वर्तमान में देश में 120 करोड़ लोग हैं उनको भी आज तक सरकारें न्याय नहीं दे पाई हैं। प्रतिवर्ष 2 करोड़, 38 लाख, 39 हजार, 945 नये बच्चों का पैदा होना बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है तथा अभी तक तीन से चार करोड़ अवैध रूप से बंग्लादेशी घुसपैठिये घुस चुकें हैं तथा प्रतिदिन लाखों घुसपैठियों का घुसना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
  9. सामाजिक न्याय – आज आजादी के 64 वर्षों बाद भी 3 करोड़ 33 लाख 5 हजार 845 मामले देश की विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस जे.एस. वर्मा के अनुसार इन लम्बित मामलों को निपटाने में लगभग 350 वर्ष लगेंगे। यह न्याय के नाम पर कितना बड़ा अन्याय है और हमारे ईमानदार जज भी कई बार अंग्रेजों द्वारा बनाये गये गलत कानूनों के कारण न्याय की अपेक्षा मात्र फैसला ही दे पाते हैं। भोपाल गैस काण्ड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हमें न्याय-व्यवस्था की सत्य के आधर पर पुन: रचना करनी होगी। जिससे न्यायालयों में फैसले नहीं बल्कि न्याय मिल सके। नये न्यायालयों, फास्ट ट्रैक कोर्ट व नये जजों की नियुक्ति करनी होगी।
  10. देश की आर्थिक लूट के दो बड़े स्रोत :- देश का धन देश से बाहर जाए तो देश शक्तिहीन होता है। अत: जो विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करके देश का धन लूट रही हैं तथा भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार करके देश को लूट रहे हैं, अब हमें स्वदेशी को अपनाकर तथा विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार को मिटाकर देश को बचाना है। विदेशी-व्यापार व भ्रष्टाचार दोनों ही देश के सबसे बड़े शत्रु हैं, अधिकांश लोग अन्जाने में ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय पाप के भागीदार बन रहे हैं और इससे बहुत बड़ा देशाघात हो रहा है।
  11. 64 वर्षों में कितना विकास या कितनी लूट व विनाश –सत्ताओं पर आसीन सरकारों ने विकास के रूप में अब तक जो बजट बनाया उसका लगभग 80 से 90 प्रतिशत भ्रष्टाचार करके लूट लिया तथा मात्र 10 से 20 प्रतिशत ही धन देश के विकास में लगा है। इसके अलावा अवैध-खनन, रिश्वतखोरी व टैक्स इत्यादि चोरी करके जो देश लूटा है। वह देश के साथ बहुत बड़ा अन्याय व धोखा हुआ है। जब केन्द्र-सरकार व अन्य सरकारें विकास का श्रेय (क्रेडिट) लेती है तो उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के रूप में हुये 80 से 90 प्रतिशत विनाश की जिम्मेदारी (रेस्पोंसिबिलिटी) भी उनको लेनी पड़ेगी। हकीकत यह है कि देश का विकास देश के लोगों की मेहनत से हुआ है तथा सरकारें भी जिस विकास का श्रेय लेती हैं उसके लिये भी धन देश के मेहनत करने वाले लोगों ने टैक्स के रूप में दिया है अत: अब तक की अधिकांश सरकारों ने इस देश को विकास के नाम पर लूटा है तथा इस देश में जो कुछ भी विकास हुआ है अथवा अच्छा नजर आ रहा है, वह सच्चे, अच्छे व ईमानदार नागरिकों, गाँव के किसानों, गरीबों व मजदूरों की मेहनत का परिणाम है।
  12. भ्रष्ट-आचरण – बिना मेहनत किए धन, सम्पत्ति अजिदमवत करना यही भ्रष्टाचार है। ऐसे लोगों को वेद में दस्यु या राक्षस कहा गया है अकर्मा दस्यु: – वेद । सरकारी अथवा गैर सरकारी नौकरी में समय से न जाना, नौकरी में पूरा काम न करना, बिना मेहनत किए वेतन लेना तथा विवाह में दहेज लेना व अन्य सामाजिक बुराइयाँ भी नैतिक रूप से भ्रष्ट-आचरण है। इस आर्थिक व राजनैतिक-भ्रष्टाचार के लिए मुख्य रूप से राज्य-व्यवस्था जिम्मेदार है व नैतिक भ्रष्ट-आचरण के लिए जनता स्वयं जिम्मेदार है। राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र-निर्माण ही इस नैतिक भ्रष्टाचार का एकमात्र समाधन है। इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही ऊँचे संस्कार देने होंगे तथा शिक्षा व्यवस्था में संस्कार व आध्यात्मिक मूल्यों का सम्मिलित करने से लेकर पूरी सामाजिक संरचना में सकारात्मक-परिवर्तन लाना होगा और इस काम को हम पूरी दृढ़ता से कर रहे हैं।
  13. भ्रष्टाचार :- भ्रष्टाचार एक सामाजिक समस्या नहीं है अपितु ये एक विशुद्ध रूप से राजनैतिक समस्या है। संवैधनिक पदों पर बैठे लोग ही अपने अधिकारों व शक्तियों का दुरुपयोग करके या तो भ्रष्टाचार खुद करते हैं या फरि दूसरों से करवाते हैं। इस देश का आम आदमी मेहनत करके कमाता है व ईमानदारी से जीने में विश्वास रखता है।
  14. भ्रष्टाचार का स्थाई समाधान :-
    1. कठोर कानून।
    2. लोगों के जीवन में सच्चाई, उच्च नैतिक मूल्य तथा गाँव, गरीब व राष्ट्र से प्रेम। जो लोग सच्चे व ईमानदार हैं, वे कभी बेईमान नहीं हो सकते, दुनियाँ सच्चाई से ही चल रही है तथा फरि भी यदि कोई ईमानदार भी बेईमान हो जाए अथवा बेईमान व्यक्ति भ्रष्टाचार करे तो उसके लिए कठोर से कठोर दण्ड होना चाहिए।
  15. देश से ममता –
    1. जैसे हमें अपने शरीर, घर, धन, दौलत से प्रेम होता है और उसको हम लुटने व नष्ट होने नहीं देते हैं वैसे ही हमें अपने देश, देश की भूसम्पदाओं, जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटियों व जवानों से प्रेम होना चाहिए तथा किसी भी कीमत पर देश को लुटने व बरबाद नहीं होने देना चाहिए।
    2. जैसे हमारे घर में यदि 400 रुपये से लेकर 4 लाख रुपये की भी चोरी हो जाती है तो हम चोरों का पता लगाते हैं तथा पूरी ताकत लगाकर अपना धन वापस लेते हैं। क्योंकि वह हमारी मेहनत का पैसा है वैसे ही देश के 120 करोड़ लोगों की टैक्स के रूप में दी गई मेहनत की कमाई व अन्य स्रोतों से लूटा गया देश का लगभग ये 400 लाख करोड़ रुपये हमें वापस लेना है क्योंकि ये देश एवं देश का धन हमारा है।
    3. जैसे-हमारे घर में एक भी बच्चा भूखा सोता है, अनपढ़ रहता है या अभाव व अपमान में जिदंगी जीता है तो माता-पिता की आँखों में आँसु आ जाते हैं और वे चैन से सो नहीं पाते हैं, वैसे ही इस देश के 84 करोड़ लोगों की भूख, अशिक्षा व अपमान से हमें आहत होना चाहिए, हमारी आँखों में संवदना के रूप में आँसु होने चाहिए। क्यांकि ये हमारे हैं और जब तक हम इनको इनका अधिकार नही दिलवा देते तब तक न तो चैन से बैठगे न ही चैन से सोयग।
  16. नेता व पाटिदमवयाँ कठोर कानून क्यों नहीं बनातेदेश में सत्ता के शीर्ष पर बैठे किसी केबिनेट मंत्री या अन्य नेताओं की माँ, बहन व बेटियों के साथ न तो बलात्कार होता है, न ही उनके परिवार वालों को खाने-पीने की मिलावटी चीजों का सामना करना पड़ता है तथा भ्रष्टाचार में भी नेताओं व पाटिदमवयों का धन नही लुटता। देश की महिलाओं के साथ बलात्कार होता है व लगभग देश के 120 करोड़ लोगों को मिलावटी सामान मिलता है जिससे वे बीमार होकर मरते हैं। भ्रष्टाचार से देश का धन लुटता है तथा इन अधिकांश भ्रष्ट नेताओं का भ्रष्टाचार से घर भरता है। देश से इनको कोई ममता, प्रेम या मोहब्बत नही है। अत: ये अधिकांश नेता व पाटिदमवयाँ-भ्रष्टाचार, बलात्कार व मिलावट के खिलाफ आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड का कठोर कानून नहीं बनाते; भ्रष्टाचार के खिलाफ रिकवरी (वसूली) का कानून भी नही बनाते, ऐसा करने से इन भ्रष्टाचारियों से कालाधन छिनेगा तथा देश को धन मिलेगा।
  17. अखण्ड भारत – भ्रष्टाचार व कालेधन के समाप् त होते ही भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 20 हजार लाख करोड़ रुपये की हो जाएगी। भारत के आर्थिक महाशक्ति बनते ही समय के साथ अलग हुए सभी राष्ट्र पुन: भारत में विलीन हो जायेंगे। अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक तथा कैलाश मानसरोवर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा भारत अखण्ड होगा और एक शक्तिशाली व आध्यात्मिक भारत के उदय से नये विश्व का उदय होगा।
  18. सेवा का सिद्धांत – सम्पूर्ण सृष्टि या ब्रह्माण्ड सेवा, श्रम या कर्म के सिद्धांत पर कार्य कर रहा है। सूर्य, चन्द्र, धरती, वृक्ष व जड़ी-बूटियाँ आदि सब दूसरों के लिए जी रहे हैं। बदले में कुछ भी नहीं ले रहे हैं। हम भी इन सबसे निःस्वार्थ सेवा, श्रम व कर्म करना सीखें। देखो ! इन सबमें कोई स्वार्थ, प्रतिक्रिया व प्रमाद आदि नहीं है।
  19. राष्ट्रसेवा : देश को अच्छा, शक्तिशाली बनाने के लिए तथा राष्ट्र सेवा के लिए आत्मानुशासन में रहकर आत्मविश्वास व साहस के साथ अपने कर्म को अपना धर्म मानकर, श्रमपूर्वक अपने राष्ट्र की समृद्धि करना, यह हमारी व्यक्तिगत रूप से सबसे बड़ी राष्ट्रसेवा है। जिस दिन हर किसान, हर जवान, हर अध्यापक, विद्यार्थी, राजनेता, डॉक्टर, इन्जीनियर, साधु, संन्यासी, योगी, माताएँ, बहनें व बेटियाँ आदि सब अपना-अपना काम अपनी पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करने लगेंगे, उस दिन देश जरूर महान~ बनेगा। जापान, अमेरिका व चीन आदि देश ईमानदारी से मेहनत करके ही ऐसे ही आगे बढ़े है।
  20. राष्ट्र-निर्माण – कुछ लोग घर बनाने में, कुछ लोग भवनों के निर्माण में, कुछ लोग सड़के बनाने में, कुछ लोग गाड़ियाँ बनाने में, कुछ लोग औद्योगिक क्षेत्र में, इस तरह से राष्ट्र-निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों में लगे सभी लोगों की हम हृदय से प्रशंसा करते हैं। कुछ लोग इसी तरह से एक से दो घण्टा अथवा पूरा जीवन व्यक्ति-निर्माण, ग्राम-निर्माण व राष्ट्र-निर्माण में जीवन को लगा दें तो इससे बड़ा जीवन का सौभाग्य कुछ और नहीं हो सकता एवं यह जीवन की सबसे बड़ी उपयोगिता होगी।
  21. योग-सेवागरीब-अमीर सब व्यक्तियों, समाज, राष्ट्र व विश्व की सेवा का सर्वश्रेष्ठ व सम्पूर्ण साधन या माध्यम है- योग। व्यक्ति व समाज में बहुत से रोग, विचार, दु:ख व बुराइयाँ है – योगसेवा इन सबका समाधन है। अब अलग-अलग अभियान (कम्पियन) न चलाकर, सब लोग योग-कम्पियन ही चलायेंगे। इससे रोग, नशा, हिंसा, अज्ञान व अन्य सब बुराईयों से मुक्त समाज तो बनेगा ही साथ ही योग से हम सब संगठित होकर करॅप् शन, कैरॅप् ट पोलिटिकल सिस्टम व ब्लैक मनी के अगेंस्ट भी कम्पियन को सार्थक, निर्णायक व निःस्वार्थ भाव से चला पायेंगे। योग आत्मोन्नति, राष्ट्रोन्नति, आत्मनिर्माण, ग्राम-निर्माण व राष्ट्र निर्माण का, आत्मकल्याण व विश्वकल्याण का सर्वश्रेष्ठ, सार्थक, परिणामकारी, सार्वभौमिक, वैज्ञानिक, शाश्वत व सात्विक माध्यम या साधन है। जैसे अतीत में यज्ञ, स्वाध्याय, शास्त्रार्थ, मठ, मन्दिर, कथा व शाखाएं व्यक्ति-निर्माण, राष्ट्र-निर्माण व युग-निर्माण आदि की माध्यम बनी व आज भी इन सबकी प्रासंगिकता है लेकिन योग-सेवा समय, काल परिस्थिति के अनुसार सर्वश्रेष्ठ सेवा का रूप ले चुकी है।
  22. योग संन्यास या सेवा संन्यास- प्राचीन काल में हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यवस्था के तहत सोलह संस्कार व चतुर्वर्णाश्रम की रचना की थी। भारत के सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक व राजनैतिक पतन के कारण वह व्यवस्था क्षीण हुई है। अब कम से कम योग संस्कार व योग संन्यास से हम अपने प्राचीन आध्यात्मिक वैभव को बचा सकते हैं। जितने भी वरिष्ठ नागरिक हैं अथवा समर्थ लोग हैं वे बाहर से संसार में रहते हुए भी भीतर से अर्थात् कर्म या आचरण से संन्यासी बनें। इनमें से कुछ आंशिक रूप से तो कुछ पूर्णरूप से योग-संन्यास अथवा सेवा-संन्यास का व्रत या दीक्षा लें कि अब हम अपने सम्पूर्ण जीवन को इस श्रेष्ठतम कार्य में लगायेंगे। शीघ्र ही योग-संन्यास अथवा सेवा-संन्यास की श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के सान्निध्य में पंजीकरण की व्यवस्था भी की जायेगी।
  23. व्यक्ति व राजनीति की शुद्धि में समय –प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत दोषों को दूर करने का अवसर प्रतिदिन व प्रतिपल मिलता है। अत: हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम आज से तथा इसी क्षण से अपने दोषों को स्वीकार कर स्वयं में सुधर करेंगे। दृढ़-संकल्प, योग, प्राणायाम व ध्यानादि से जीवन को पूर्ण-पवित्र बनायेगें। राजनैतिक दोषों को दूर कर भारतीय राजनीति का पुनर्जन्म करने का अवसर पाँच वर्ष में एक बार अथवा चुनाव के समय ही मिलता है लेकिन इस एक दिन में हम निष्कलंक लोगों को एक-एक वोट करके इस राजनीति की पूरी खोट को दूर कर सकते हैं और भ्रष्टाचार, कालाधन व भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था जिसके कारण पूरा देश नरक बना हुआ है उसको बदल कर इस देश को स्वर्ग व सुखी बना सकते हैं। राजनीति का शुद्धिकरण या पुनर्जन्म तो हमारे 1 प्रतिशत ध्येय के अन्तर्गत आता है जोकि चुनाव के समय लोकतन्त्र के महाकुम्भ पर निष्कलंक (नॉन-करेप् ट) लोगों को हम वैसे ही वोट करके व दूसरों को प्रेरित कर वोट करवाकर प्राप् त कर लेंगे। 99 प्रतिशत तो हमारा ध्येय प्रतिदिन साधना व सेवा करके चरित्र-निर्माण करना ही है।
  24. भारत स्वाभिमान का ध्येय-रोग, नशा व विदेशी कम्पनियों की लूट के षड्यंत्र से देश को बचाकर भ्रष्टाचार, कालाधन व भ्रष्ट व्यवस्थाओं से मुक्त एक महाशक्तिशाली, वैभवशाली भारत का निर्माण करना तथा भारत को एक आध्यात्मिक राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठापित करना भारत स्वाभिमान का ध्येय है।
  25. भारत स्वाभिमान के मुख्य सिद्धांत व आदर्श –
    1. चारित्रकि, आर्थिक व आपराधिक दोषों से मुक्त रहना।
    2. वाणी व व्यवहार के दोषों से मुक्त रहना।
    3. अपमान, उपेक्षा व विरोध आदि से विचलित न होकर अपने कर्त्तव्यपथ पर निरन्तर आगे बढ़ना, चरैवेति-चरैवेति।
    4. गीता के अनुसार एक आदर्श कार्यकर्त्ता होना -मुक्तसग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:। सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकर:कर्ता सात्विक उच्यते।। (गीता 18/26)- लालच व अंहकार से मुक्त, धैर्य व उत्साह से युक्त रहकर परिणाम की परवाह किये बिना, फलासक्ति से रहित रहकर योगधर्म व राष्ट्रधर्म को निष्ठापूर्वक निभाना।
    5. गुरु को केन्द्र में रखकर संगठन के अनुशासन व मर्यादा में रहकर पूर्ण समपिदमवत भाव से प्रतिदिन सेवा करना।
  26. हमारी संगठन-शक्ति व्यक्ति निर्माण से ग्राम-निर्माण व राष्ट्र-निर्माण के लिए तथा भ्रष्टाचार व कालाधन आदि को खत्म करने के लिए और व्यवस्था परिर्वतन हेतु सत्ता आदि परिर्वतन के लिए आज हमारे पास देश के सभी प्रान्तां, सभी जिलो, सभी तहसीलों व लाखों गाँवों में एक मजबूत संगठन है तथा वर्ष 2011 के अन्त तक सभी गाँवों में भी 100 प्रतिशत भारत स्वाभिमान का संगठन खड़ा हो जायेगा।
  27. सफलता :- सही दिशा व पूर्ण पुरुषार्थ सफलता के मुख्य साधन है। आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से बड़े परिवर्तन के लिए पाँच आधर-भूत साधन है –
    1. व्यापक मजबूत व अनुशासित संगठन,
    2. निरन्तर निःस्वार्थ सेवा
    3. पूर्ण-पवित्रता
    4. आर्थिक सामथ्र्य
    5. व्यापक लोकप्रियता व विश्वसनीयता। हमारे संगठन में ये पाँचों शक्तियाँ हैं एवं इनको और अधिक बढ़ाना है तथा हमें 100 प्रतिशत सफल होना है।
  28. भारत स्वाभिमान आन्दोलन से देश को क्या मिलेगा –
    1. रोग में देश का प्रतिवर्ष लगभग दस लाख करोड़ रुपये, नशों में लगभग दस लाख करोड़ रुपये तथा विदेशी कम्पनियाँ भी व्यापार के नाम पर जो लूट कर रही हैं। उससे देश का प्रतिवर्ष 5 लाख लाख करोड़ रुपये से अधिक धन विदेशों में चला जाता है। योग व भारत स्वाभिमान अभियान से, प्रतिवर्ष हो रही इस लगभग 25 लाख करोड़ रुपये की लूट से देश को हम बचा रहे हैं और आगे पूरी तरह से बचायेंगे ।
    2. भ्रष्टाचार करके अब तक जो 400 लाख करोड़ रुपये लूटे गएं हैं। वह देश व देशवासियों का धन तो देश को वापस दिलायेंगे ही, साथ ही आगे से लगभग 10 हजार लाख करोड़ रुपये से भी अधिक जो हमारी राष्ट्रीय सम्पदायें हैं उनकी लूट न हो ऐसा प्रबन्ध करेंगे तथा भ्रष्टाचार के सभी मुख्य पाँच स्रोतों को बन्द करके प्रतिदिन हो रहे हजारों करोड़ रुपये के घोटालों से देश को बचायेंगे। साथ ही स्वतन्त्र भारत में चल रहे अंग्रेजी तंत्र के स्थान पर समस्त व्यवस्थाओं का भारतीयकरण व आध्यात्मीकरण करेंगे।
    3. भारत की आर्थिक समृद्धि इतनी अधिक होगी कि हमारा एक रुपया अर्थात् एक भारतीय मुद्रा अमेरिका के 50 डॉलर के बराबर होगी अर्थात् एक रुपये देने पर हमको 50 अमेरिकी डॉलर मिलेंगे। दुर्भाग्‍य से आज 50 रुपये देने पर हमको एक अमेरिकी डॉलर मिलता है।
    4. गरीब-अमीर सब को समान रूप से संस्कारों के साथ नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी तथा पढ़ाई करने के बाद एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं रहेगा।
    5. जैसे आज भारतीय नागरिक डॉलर व पौण्ड आदि विदेशी मुद्रा के लिये विदेशों में कार्य करते हैं, खासकर वहाँ के पेट्रोल पम्प, रेस्टोरेन्ट व एयरपोर्ट आदि पर, वैसे ही आने वालों 10 से 25 वर्षों में ब्रिटेन, अमेरिका व अन्य यूरोप आदि देशों के लोग सशक्त भारतीय मुद्रा के लोभ में हमारे देश में, एयरपोर्ट, पेट्रोल-पम्प, होटलों व अन्य कर्मचारियों के रूप में काम करेंगे तथा उनके बॉस के रुप में बड़े अधिकारी भारतीय लोग होंगे।
  29. वोट – एक प्रश्न अक्सर लोगों के मन में उठता है कि भारत स्वाभिमान आंदोलन की सभाओं में आने वाले लोग या वैचारिक रूप से हमसे जुड़े हुए लोग क्या भारत स्वाभिमान के आह्वान पर चुनाव के समय ईमानदार, निष्कलंक (नॉन-करप्ट) व योग्य व्यक्तियों को वोट देंगे? तो हमारा उत्तर है-हाँ, क्योंकि श्रद्धेय स्वामी जी जब लोगों से पूछते हैं “क्या आप लोग चुनाव के समय संगठन के आह्वान पर वोट देंगे”-तो लोग कहते हैं कि “बाबा जी वोट देंगे, औरों से भी दिलवायेंगे तथा संगठन के काम के लिए दान (नोट) भी देंगे तथा जरूरत पड़ी तो जान भी कुर्बान करने से पीछे नहीं हटेंगे”। दरअसल ये बात राजनैतिक पाटिदमवयों के विषय में बिल्कुल उल्टी होती है क्योंकि उनकी रैलीयों में लोगों को पैसे देकर बुलाया जाता है। अत: उस भीड़ का वोट में बदलना एक बहुत बड़ा प्रश्न होता है। यहाँ तो श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के कार्यक्रमों में आने वाले लोग श्रद्धापूर्वक अत: प्रेरणा से आते हैं। वैचारिक रूप से हमसे जुड़े 100 करोड़ से अधिक लोग, अब इस भ्रष्टाचार, कालेधन व भ्रष्ट-व्यवस्था को समाप् त करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं जन-साधरण को केवल अगले चुनाव का इंतजार है।
  30. हमारी भावी विकास योजना:-
    1. जल प्रबन्धन की राष्ट्रव्यापी नीति बनाना, जो देश को बाढ़ व सूखे से बचाए तथा करीब 50 करोड़ एकड़ भूमि के ऊपर लगभग 50 लाख करोड़ रुपये की प्रतिवर्ष सालाना उपज लेना। इससे भारत के गरीब, मजदूर व किसान को समृद्ध बनाना।
    2. प्रत्येक जिले के विकास योजनाओं का स्वरूप एक राष्ट्र की तरह बनाना। गाँव से लेकर शहर तक औद्योगिक, सेवागत व कृषिगत विकास में एक संतुलन बनाना। आजादी के बाद अधिकांश सरकारों की गलत आर्थिक नीतियों के कारण से जो विषमताएं पैदा हुई हैं उनको समाप् त करना व विकास के विकेन्द्रीकरण की नीतियों को पूरी ईमानदारी के साथ क्रियान्वित करके विकास का संतुलन बनाना।
    3. आयुर्वेद के विकास से कॉस्मेटिक, स्वास्थय-वर्धक आहार व अन्य नित्य-प्रयोग की वस्तुओं में जड़ी-बूटियों के प्रयोग को प्रोत्साहन देकर 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाते हुए कम से कम 50 प्रतिशत तक ले जाना।
    4. देश की जनसंख्या का उपयोग देश के उत्पादन को बढ़ाने में तथा विकास करने में करना। अनुत्पादक व दिशाहीन श्रम से देश को मुक्ित दिलाना। सभी नागरिकों को शिक्षा देकर व समृद्ध बनाकर जनसंख्या को व्यवहारिक तथा ताकिदमवक रूप से नियन्त्रति करना। यदि हम राष्ट्र की श्रम शक्ति का पूरा उपयोग करें तो 100 से 200 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आर्थिक समृद्धि हासिल हो सकती है। अनुत्पादक-श्रम देश के वर्तमान शासकों की अदूरदर्शिता व मू[र्ाता का बहुत बड़ा उदाहरण है।
    5. दुर्भाग्य से हमारे देश में विश्व-स्तरीय शोध व अनुसंधन-संस्थान, विश्व-विद्यालय एवं अन्य सम्पूर्ण विकास का ढाँचा जितना होना चाहिए, उतना नहीं है। हम इसे खड़ा करेंगे तथा विज्ञान व तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, अन्तरिक्ष-विद्या, भूगर्भ-विद्या आदि से हर क्षेत्र में भारत को सर्वोच्च स्थान पर लेकर जायेंगे, जैसे कि प्राचीन काल में भारत ने हर क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व किया था और हमने ही विश्व को सबसे पहली भाषा, संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, कृषि व अर्थ-व्यवस्था आदि दी थी।
  31. इतनी जल्दी क्यों –योग व अध्यात्म से जब देश ठीक हो जायेगा तो सब कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा, फरि भारत स्वाभिमान आन्दोलन की जरूरत व इतनी जल्दी क्यों ? यह प्रश्न बहुत से लोग करते हैं पहली बात ये भ्रष्ट-बेईमान व चोर लोग न योग करते है, न अध्यात्म व भगवान को मानते हैं। अत: इनको सुधरने के लिए तो भारत स्वाभिमान जरूरी है ही, साथ ही पहले जो 400 लाख करोड़ रुपये लूटा गया सो तो लूटा गया, आगे से राष्ट्रीय सम्पदाओं के रूप में लगभग दस हजार लाख करोड़ रुपये लूटने का खतरा बना हुआ है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क के अनुसार दुनियाँ के भ्रष्ट लोग प्रतिवर्ष 1.6 ट्रिलियन डॉलर अर्थात् लगभग 72 लाख करोड़ रुपये क्रोस बोर्डर ब्लैक मनी जमा करते हैं इसमें भारत से भी लगभग 20 लाख करोड़ रुपये की प्रतिवर्ष लूट होती है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रतिमाह लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये तथा प्रतिदिन लगभग 5 हजार करोड़ रुपये भारत से ये बेइमान लोग लूट कर रहे है। अत: एक दिन भी इन भ्रष्ट लोगों का सत्ता में बना रहना भी देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
  32. राजनैतिक हस्तक्षेप क्यों? :- हम देश को अच्छा देखना चाहते हैं। हम देखना चाहते हैं, कि हमारे देश में भी अमेरिका, जापान व इंग्लैण्ड आदि की तरह अच्छी सड़के हों, सबके लिए नि:शुल्क समान शिक्षा हो, शिक्षा के साथ संस्कार व उच्च आध्यात्मिक मूल्य व आदर्श हों, अच्छी स्वास्थ्य सुविधएं हों, कानून अच्छे हों, जिससे अपराधियों को दण्ड मिले व सब लोगों को सुरक्षा मिलें। क्योंकि देश कानून से ही चलता है नेता व सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। भूमि अधिग्रहण व गोहत्या जैसे काले कानून खत्म हों। भ्रष्टाचार, बलात्कार व मिलावट के खिलाफ मृत्युदण्ड का कानून बने तथा गोहत्या-निषेध का कानून बने, पशुधन आधरित विष-मुक्त कृषि हो जिससे किसान व सब देशवासी स्वस्थ व समृद्ध बनें, देश में सर्वत्र आध्यात्मिकता व ईमानदारी हो आदि-आदि। परन्तु हम भूल जाते हैं कि देश में लोकतान्त्रकि शासन प्रणाली में सर्वोच्च शक्ति चुनी हुई सरकार के पास होती है। सरकार चाहे तो ये सब काम एक दिन में कर सकती है। देश की सभी व्यवस्थाएं (पूरा सिस्टम) सभी सेनाएं व देश की आधे से ज्यादा जमीनें तथा सभी भूसम्पदाएं सरकार के अधिकार मे हैं। देश के जल, जमीन, जंगल, जड़ी-बूटियाँ, जवानों का वर्तमान व भविष्य सब कुछ सरकार के हाथों में है। अत: सरकार का अच्छा व ईमानदार होना बहुत ही जरूरी है। यदि देश, भारत माता गलत लोगों के हाथों में होगी तो वे उसे लूटेंगे, बेचेंगे, नोचेंगे, खा जायेंगे और अधिकांशत: यही हो रहा है। अत: हम चुनी हुई सरकारों पर अपना संवैधनिक कर्तव्य निभाने के लिए दबाव डालेंगे और यदि वे पूरे सिस्टम को ठीक नहीं रखती हैं, तो इस देश को बचाने के लिए हमारे संविधन ने एक बहुत बड़ी शक्ति हमें दी है कि हम पाँच साल में अथवा जब भी चुनाव हो, तो एक दिन में अपने एक-एक वोट से भ्रष्ट सरकारों को बदलकर अच्छे लोगों को चुनकर देश को बचा सकते हैं।
    यदि हमने देश को नहीं बचाया तो हम भी उतने ही गुनाहगार होंगे जितना ये देश को लूटने वाले भ्रष्टाचारी। अत: यह राजनैतिक हस्तक्षेप हमारा राष्ट्रधर्म है, यह हमारा देश के प्रति संवैधनिक कर्त्तव्य है, यह पाप नहीं पुण्य है, राजनीति का शुद्धिकरण या पुनर्जन्म करना यह नफरत, घृणा, उपेक्षा या तिरस्कार की बात नहीं अपितु यह देश के लिए बहुत बड़ा धर्म व पुण्य का काम है। यह राजनैतिक हस्तक्षेप राष्ट्रसेवा है, राष्ट्रधर्म है, यह राष्ट्रप्रेम है।
  33. हमारे विरोधी कौन – गाँव, गरीब व भारत विरोधी भ्रष्ट लोग अपने निहित स्वार्थों के चलते हमारा विरोध करते रहे हैं तथा आगे भी करेंगे। विरोध के मुख्य चार कारण होते है:- स्वार्थ, अज्ञान, आग्रह व अहंकार। जो अज्ञान, आग्रह व अहंकार-वश हमारा विरोध कर रहे हैं। हम उनको विनम्रतापूर्वक समझाकर समाप् त कर लेगें व अपनी बात पूरी बताकर अपना समर्थक बना लेंगे, लेकिन स्वार्थी तत्व व भ्रष्ट लोग तो सदा ही विरोधी रहेंगे।
  34. पाप व अन्याय का विरोध – राष्ट्रहित में ज्ञानपूर्वक शालीनता के साथ पाप व अन्याय का विरोध करना अनुचित नहीं अपितु उचित है, धर्म व पुण्य है। पाप का तो विरोध हमारे पूर्वजों ने सदा से ही किया है तथा वेद में भी कहा है-मा व स्तेनऽ ईशत: (यजु0 1.1) अर्थात् भ्रष्ट व चोर लोग हम पर शासन न करें। अत: पाप का विरोध करना अपराध या गुनाह नहीं अपितु पाप का विरोध न करने वाले अपराधी, पापी व गुनहगार है।
  35. परिवर्तन –जैसे लगभग 2 या 3 हजार वर्ष पूर्व वैदिक धर्म के साथ अन्य धर्म-सम्प्रदायों के रूप में धमिर्क परिवर्तन हुआ, जैसे 100 साल पहले पूरे विश्व में राजतंत्र से प्रजातंत्र के रूप में शासन व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन हुआ है। वैसा ही अब इस देश में एक बड़ा सामाजिक, आध्यामिक, आर्थिक, राजनैतिक-परिर्वतन अवश्यंभावी है। यदि हमने व अन्य संगठनों, सात्विक लोगों ने यह परिवर्तन नहीं किया, तो भी यह तो होना ही है। परिवर्तन संसार का वैसा ही अटल सत्य है जैसा बचपन के बाद यौवन। यदि हम सब संगठित होकर इस परिवर्तन को सही दिशा में लायेंगे तो यह राष्ट्र व संसार के लिए शुभ , हितकर व कल्याणकारी होगा।
  36. सत्य या उचित-अनुचित क्या है – कोई भी नेता अथवा तथाकथति बड़ा व्यक्ति किसी भी संदर्भ में मीडिया में कोई बयान देता है तो वह सत्य व उचित नहीं हो जाता अपितु तथ्य, तर्क व प्रमाणों से ही उचित-अनुचित, सत्य अथवा झूठ का निर्णय होता है।
  37. मूलत: हम सब ग्रामवासी – हम सबके पूर्वज मूलत: गाँव में ही पैदा हुये हैं। शहरी संस्कृति तो बहुत ही अर्वाचीन है। हमारे बड़े-बुजुर्ग व ऋषि-मुनि अरण्यों (वनों) व गाँवों में वास करते थे। अत: हम सबका यह कर्तव्य है कि अपने पूर्वजों की जन्मभूमि गाँव व गाँव के गरीब, मजदूर व किसानों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने के लिए ग्राम-इकाईयाँ गठित करके योजनाबद्ध व चरणबद्ध तरीके हम सब मिलकर प्रयास करें। इससे एक ओर जहाँ गाँव में खुशहाली आयेगी तथा गरीबों व किसानों के चेहरों पर मुस्कान आयेगी वहीं हमारे पूर्वजों की आत्मा को भी शान्ति मिलेगी।
  38. हम किसके साथ – हम देश, सत्य व न्याय के साथ हैं तथा गाँव, गरीब व भारत के हितैषी सदा हमारे साथ थे, हैं और रहेगें तथा जो लोग पूरी ईमानदारी व सच्चाई से पहले अपने भीतर के (जीवन या पार्टी के) पाप को साफ करके देश से भ्रष्टाचार, भ्रष्ट-व्यवस्था को मिटाने व कालेधन को देश को वापिस दिलाने के लिये सहमत हैं, वे भी हमारे साथ होंगे। हम अपने तप व करोड़ों लोगों के विश्वास को देश के लिए तो दाँव पर लगायेंगे, भ्रष्ट लोगों के लिए नहीं।
  39. हम कौन हैं :- हम सब आध्यात्मिक दृष्टि से ईश्वर की सन्तान हैं, कुल वंंश, परम्परा से हम ऋषि पुत्र हैं तथा भौतिक रूप से मूल में भारत माता की सन्तान हैं। क्योंकि प्रथम पिता यह राष्ट्ररूपी पिता है तथा प्रथम माता यह धरती-माता या मातृभूमि है -माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: (अथर्ववेद 12.1.12)। अत: हमारा कर्त्तव्य है हम सब मिलकर भगवान~ का साम्राज्य अर्थात स्वर्ग धरती पर लाएं। हम ऋषियों के वंशज हैं, अत: भारत को ऋषि भूमि बनाएं तथा भारत माता की सन्तान होने का धर्म निभाते हुए भारत को विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनाएं।
  40. आत्म-स्वरूप या स्वभाव अहिंसा, सत्य, अस्तेय, सदाचार, प्रेम, करूणा, सेवा, सद~भावना, आनन्द, शान्ति, ज्ञान, शौर्य, साहस, धैर्य, सहजता, कर्मशीलता ये हमारे स्वभाव, धर्म या स्वरूप हैं। स्वभाव उसको कहते हैं जिसमें हम 24 घण्टे जीतें हैं। सहज प्रेम व सत्य आदि में हम 24 घण्टे जीते हैं अथवा जीना चाहते हैं अत: ये हमारे स्वभाव हैं। लेकिन काम, क्रोध व अहंकार आदि, यदि एक क्षण के लिए भी हमारे मन में उठते हैं तो हमें कष्ट देते हैं। अत: अविद्या आदि पाँच क्लेश व अज्ञान-मूलक काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकारादि पाँच विकार इन्द्रियों का व मन का मिथ्यारूप बोध ये हमारे स्वभाव, स्वधर्म व स्वरूप नहीं हैं।
  41. व्यक्ति की शक्ति – भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को प्रथम होने की शक्ति, सामथ्र्य व ज्ञान दिया है। जो क्षमता सृष्टि के आदिकाल से अब तक विश्व के महान~ आदर्श महापुरूषों में थी वही सम्पूर्ण क्षमता हम सब में है। अत: हमें जीवन के हर श्रेष्ठ क्षेत्र में प्रथम बनना है तथा अपने देश को भी प्रथम बनाना है। हमारे राष्ट्र में भी विश्व के प्रथम राष्ट्र होने की सम्पूर्ण क्षमता है।
  42. विचार की शक्ति – जीवनव मन एक खेत की तरह है तथा विचार बीज की तरह। जीवन व चित्त-रूपी भूमि में जैसे विचारों के बीज डालेंगे वैसा ही हमारा जीवन, आचरण व चरित्र हो जायेगा। हम जो कुछ भी हैं सदाचारी-दुराचारी, हिंसक-अहिंसक, शाकाहारी-मांसाहारी, सुखी-दु:खी, सफल-असफल, शांत-अशांत, आस्तिक-नास्तिक, ईमानदार-बेईमान, अच्छे या बुरे आदि सब कुछ हमारे विचारों के कारण से हैं। अत: ऊँचे व श्रेष्ठ विचार ही महान् जीवन के आधर होते हैं।
  43. जीवन-प्रबन्धन – प्रतिदिन 1 घन्टा योग, 8 से 16 घन्टे कर्मयोग, 6 घन्टे निद्रा व 2 घन्टे परिवार के साथ बैठना, यह जीवन प्रबन्धन का सिद्धांत है ।
  44. आदर्श की स्थापना –आदर्श-जीवन, आदर्श-परिवार, आदर्श-समाज, आदर्श-राष्ट्र व आदर्श-राज्य व्यवस्था हमारा लक्ष्य है। हम जीवन में सदा उच्च आदर्शों पर चलने में ही गौरवान्वित महसूस करते हैं तथा जिन्होंने उच्च आदर्शों से युक्त जीवन जीया उनको ही अपना आदर्श मानते हैं तथा स्वयं भी जीवन में उच्च आदर्शों की स्थापना करना चाहते हैं।
  45. ऊर्जा का सिद्धांत :- एक सैल (कोशिका) से लेकर पूरा पिण्ड (शरीर) व एक-एक परमाणु से लेकर पूरा ब्रह्माण्ड एनर्जी (ऊर्जा) के सिद्धांत पर कार्य करता है। योग, प्राणायाम, ध्यान, यज्ञ, जड़ी-बूटियों के सेवन से हमारे भीतर एक सकारात्मक शक्ति का सृजन होता है तथा रोग, नशा, समस्त अशुभ विचार, अज्ञान, अविद्या, क्लेश, शरीर, इन्द्रियों व मन आदि के सब दोष नष्ट हो जाते हैं और मानव महामानव बन जाता है। जैसे मोबाईल की बैटरी 30 मिनट में चार्ज होने के बाद, हम पूरा दिन मोबाईल पर बात कर सकते हैं वैसे ही प्रतिदिन योग, प्राणयाम, ध्यान द्वारा शरीर, मन व आत्मा को चार्ज कर सकते हैं।
  46. सत्यमेव-जयते जब भी कोई इंसान जीवन में कोई बड़ा निर्णय लेता है तो वह 99वें प्रतिशत अन्तरात्मा से उठ रही परमात्मा की प्रेरणा या संदेश के अनुरूप ही कार्य करता है और हर व्यक्ति की आत्मा व्यक्ति को गलत काम करने से रोकती है तथा उसको सच्चाई पर चलने के लिए प्रेरित करती है। अत: देश हमारे साथ खड़ा होगा क्योंकि हम सत्य व न्याय के पथ पर है।
  47. चित्र – चित्र देखकर हमें ऊँचे चरित्र की प्रेरणा मिलती है अत: हम अपने घरों में उन महापुरुषों के चित्र लगायें जिन्होंने सामाजिक, राष्ट्रीय व आध्यात्मिक जीवन के उच्च आदर्शों की स्थापना की है।
  48. कर्म – जो हम करते हैं वही हमको मिलता है तथा वह कई गुणा होकर मिलता है जैसे सरसों, तिल, बाजरा आदि जो कुछ भी हम जमीन में डालते हैं वह हमें फसल के रूप में कई गुणा होकर मिलता है। दान व सेवा में भी यही सिद्धांत लागू होता है।
  49. पाप-पुण्य –जिस काम को करने में आत्मा हमको रोके वह काम पाप है जैसे- हिंसा, झूठ, दुराचार, व्यभिचार इत्यादि। जिस काम को करने में आत्मा को सुख, शान्ति व तृप्ति मिले वह पुण्य है जैसे- योग, ध्यान, सेवा, दान इत्यादि।
  50. सरकारी कर्मचारी व अधिकारी – हम सभी सरकारी नौकरी करने वाले देशक्त कर्मचारियों व अधिकारियों का राष्ट्रहित में हृदय से आह्वान करते हैं कि आप किसी पार्टी के गुलाम नहीं, अत: किसी भी षड्यन्त्र व भ्रष्टाचार में भ्रष्ट-नेताओं का साथ न दें अपितु भ्रष्टाचार को मिटाने व कालाधन देश को दिलाने वाले काम में सहयोग करके अपना संवैधनिक दायित्व व राष्ट्रधर्म निभायें।
  51. प्रतिभा पलायन – हमें पढ़-लिखकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि विदेशों में नहीं जाना अपितु अपने देश को विदेशों से भी अच्छा बनना हैं तथा हमारे देश में हमें विश्व-स्तर के शोध,अनुसंधन-केन्द्र, विश्वविद्यालय व सम्पूर्ण विकास का एक आदर्श ढाँचा तैयार करना है। भ्रष्टाचार मिटाकर कालाधन देश को दिलाकर, हम भारत को अमेरिका से भी अधिक शक्तिशाली बनाना है।
  52. आरक्षण –भ्रष्टाचार व कालाधन खत्म होने से हमारे पास इतना धन होगा कि हम प्रत्येक जिले, तहसील में लाखों विद्यालय व हजारों विश्वविद्यालय बना सकेंगे तथा प्रत्येक गाँव में औद्योगिक व अन्य विकास के काम कर सकेंगे। हम अपने लोगों को पढ़ाने व रोजगार देने के साथ-साथ विश्व के अन्य लोगों को भी रोजगार दे सकेंगे। अत: भ्रष्टाचार के खत्म होने व विकास होने पर जब सबको आर्थिक व सामाजिक न्याय मिल जायेगा तो आर्थिक विषमतायें समाप् त हो जायेंगी। प्रारम्भ में आरक्षण का उद~देश्य था कि आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से जो पिछड़े हुए लोग थे उनको ऊपर उठाया जा सके। यह वैचारिक व व्यवहारिक रूप से तर्कसंगत भी था, परन्तु अब आरक्षण के नाम पर जिस तरह से घटिया राजनीति हो रही है वह चिन्ताजनक है। अत: सम्पूर्ण भारतवासियों को सामाजिक व आर्थिक न्याय पाने के लिए तथा समस्त विषमताओं को दूर करने के लिए भ्रष्टाचार व कालेधन के खिलाफ एक साथ खड़ा होना होगा। तभी सभी जातियों को समान रूप से न्याय मिल पायेगा।
  53. विकास का दर्शन – हम व्यवस्थाओं, पूँजी, उद्योग, सेवाओं व अधिकारों के विकेन्द्रीकरण में विश्वास रखते हैं। यही सवा±Äõीण विकास का आदर्श-दर्शन है। हम पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, उदारीकरण व वैश्वीकरण के नाम पर गाँव, गरीब व भारत की बलि नहीं चढ़ाना चाहते।
  54. मूलभूत सुविधाएं – रोटी, कपड़ा, मकान व शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा बिजली, पानी, सड़क ये नौ मूलभूत बुनियादी सुविधयें देश के सभी नागरिकों को बिना किसी पक्षपात तथा भेदभाव के उपलब्ध करवाना ये सरकार का नैतिक एवं संवैधनिक कर्तव्य है।
  55. युवा-शक्ति – भारत में करीब 50 करोड़ युवा व अन्य मजदूर व कारीगर आंशिक या पूर्ण रूप से बेरोजगार हैं यदि हम युवा-शक्ति का उपयोग उत्पादन बढ़ाने में करें तो हम 100 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का उत्पादन कर सकते हैं। आज चीन प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करता है जबकि हम प्रतिवर्ष मात्र 7 लाख करोड़ रुपये का ही निर्यात कर पाते हैं।
  56. चुनाव सुधार :-
    1. राजनीति में अपराध रोकने के लिए तथा चुनाव में बाहुबल, धनबल या कालेधन के दुरूपयोग पर अंकुश के लिए तथा आपराधिक तत्वों को राजनीति से दूर करने के लिए चुनाव सुधारों की नितान्त आवश्यकता है। इसके लिए स्टेट-फुन्डिंग (धन) इलैक्शन और चुनाव के नाम पर रैलियाँ और झूठे वादे न होकर एक स्थान पर ही सब पाटिदमवयों व अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार की व्यवस्थाएं हों। सरकार के नियन्त्रण में सार्वजनिक सभाएं हों व जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मीडिया में स्थान सरकार अपने खर्च पर उपलब्ध करवाये। इसमें सरकार को राजनैतिक पाटिदमवयों से यदि खर्च में हिस्सेदारी लेनी हो तो, वह भी तर्क-संगत ढंग से की जा सकती है।
    2. प्रधनमंत्री किसी पार्टी, परिवार या व्यक्ति के प्रति वफादार व जिम्मेदार न होकर सीध देश के प्रति वफादार व जवाबदेह हो। इसके लिए प्रधनमंत्री का सीध जनता से चुनाव होना चाहिए।
    3. देश में अनिवार्य मतदान का कानून बनाना चाहिए, विश्व के 30 से भी ज्यादा देशों में अनिवार्य मतदान का कानून है और इससे वहाँ पर स्वस्थ्य लोकतन्त्र है। मतदान करना हमारा मात्र एक अधिकार ही नहीं अपितु लोकतान्त्रकि कर्त्तव्य व धर्म है। मतदान न करने वाले नागरिक को राष्ट्र के नागरिक होने के नाम पर प्राप् त होने वाली सुविधओं से वंचित या उनमें कटौती करने का प्रावधन होना चाहिए।
  57. देश के लोकतन्त्र व सरकारों के लिए सबसे बड़ी शर्म व अपमान की बात –
    1. देश में एक घण्टे में दो महिलाओं के साथ बलात्कार, तीन महिलाओं की दहेज के लिए हत्या। (नेशनल क्राइम ब्यूरों के अनुसार जो रिर्पोटिड केस हैं)
    2. देश में बड़ी संख्या में प्रतिदिन किसानों की आत्महत्या।
    3. देश में 84 करोड़ लोग 20 रुपये मात्र पर प्रतिदिन जीवन यापन कर रहे हैं और ये 84 करोड़ लोग मूलभूत सुविधओं से वंचित है। (प्रा0 अजुनसेन गुप् त व भारत सरकार के आर्थिक सवेक्षणों की रिपोट)
    4. देश में प्रतिदिन 20 हजार व प्रतिवर्ष 60 से 70 लाख लोग भूख से मरते हैं।
    5. देश की सम्पूर्ण आबादी में से 50 प्रतिशत पूरी तरह अनपढ़ तथा 90 प्रतिशत कम पढ़े-लिखे हैं।
    6. देश भ्रष्टाचार, बलात्कार, गंदगी, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा गरीबी में दुनियाँ का सर्वाधिक पिछड़ा देश है।
    7. देश में गलत आर्थिक नीतियों के चलते जहाँ एक ओर भारत में अमीर लोगों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है और वहाँ विश्व के सबसे बड़े 10 धनवानों में से 4 धनवान भारत के हैं। साथ ही भ्रष्टाचार के चलते हमारे देश के पैसे से आधी से ज्यादा दुनियाँ के देशों की अर्थ-व्यवस्था चल रही है। हमारे देश के पैसे से दुनियाँ के 100 से अधिक देश ऐशो-आराम कर रहे हैं तथा हमारे देश के लोग गरीबी से भूखे मर रहे हैं और यही कारण है कि इस देश में अमीर प्रतिदिन-प्रतिपल अधिक अमीर हो रहे हैं तथा गरीब प्रतिदिन-प्रतिपल अधिक गरीब होते जा रहे हैं तथा बेबसी में पशुओं से भी ज्यादा बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं।
  58. “उत्ष्ठित जाग्रत प्राप्य वरान~ निबोधत।” -(कठोपनिषद 3.14) उठो, जागो! और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रूको। सभी देशभक्त, नागरिक एक से दो घण्टे प्रात:काल का समय सोने में न गंवाकर योगसेवा में लगायें। सोने से स्वयं को व देश को कुछ भी नही मिलेगा, योग-साधना व योगसेवा करने से आपको व देश को सब कुछ मिलेगा। अत: स्वयं जागो व ओरों को जगाओ! तथा स्वयं को तथा देश को बचाओं!
  59. सुखस्य मूलं धर्म:। धर्मस्य: अर्थ:। अर्थस्यमूलं राज्यम्। राज्यस्य मूलमिन्द्रयिजय:। (चाणक्य-सूत्राणि) -सुख का मूल (आधर) अर्थ है, अर्थ का नियन्त्रक राज्य है, राज्यशक्ति, राजसत्ता का नियन्त्रण इन्द्रिय विजय अर्थात् जितेन्द्रियता का आधर योग व आध्यात्म है अत: आदर्श राज्य व्यवस्था का आधर भी योग व आध्यात्म ही है।
  60. तप से ऐश्वर्य :- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तप व त्याग से ही संचालित हो रहा है, जिनको कुछ चाहिए वो कुछ तो कर सकते हैं परन्तु सबकुछ नहीं कर सकते हैं। जिनको कुछ नहीं चाहिए, वो सबकुछ कर सकतें हैं। भारत स्वाभिमान आंदोलन के कार्यकर्त्ता नि:स्वार्थ भाव से अपना कर्त्तव्य मानकर राष्ट्रसेवा, राष्ट्र-निर्माण व राष्ट्रधर्म में लगे हुए हैं। अत: देश के लिए सबकुछ करेंगे और हम सफल होंगे। वेद के इन परम वचनों के साथ हम अपनी बात का उपसंहार करते हैं – अकर्मा दस्यु: इस जगत में कर्महीन आलसी व्यक्ति दस्यु (लुटेरा) होता है तथा मा व स्तेनऽईशत माऽघशंस: (यजु0-1/1) चोर, डाकू, लुटेरे और इनके प्रशंसक तथा समर्थक हमारे ऊपर शासन न करें।

विशेष नोट :- इस प्रपत्र को पढ़ने के बाद योग व भारत-स्वाभिमान आन्दोलन से जुड़े सभी प्रश्नों, जिज्ञासाओं व शंकाओं का समाधन होगा तथा जो लोग अज्ञानवश मौन, उदासीन अथवा विरोध कर रहे हैं इस प्रपत्र को पढ़ने के बाद वे भी इस आंदोलन के प्रबल समर्थक बने बिना नही रूकेंगे।


विशेष –

  1. प्रतिदिन प्रात: 5 से 8 व सायंकाल 8 से 9.30 तक आस्था चैनल पर, 9 से 10 संस्कार चैनल तथा राष्ट्रीय चैनल (डी. डी.-1, दूरदर्शन) पर प्रात: 6.30 से 7.30 बजे तक पर “योग व आयुर्वेद कार्यक्रम” अवश्य देखें। इसके अतिरिक्त श्रद्धेय आचार्य प्रद्युमन जी महाराज का “वेद व दर्शन” पर आधरित कार्यक्रम प्रात: 4:00 बजे से 5:30 बजे तक संस्कार चैनल पर देखें।
  2. राष्ट्र-निर्माण के इस यज्ञ को आगे बढ़ाने के लिये इस पत्रक को राष्ट्रभाषा व अन्य भारतीय भाषाओं में छपवाकर दानस्वरूप गाँव-गाँव व घर-घर वितरित करें तथा वितरक के रूप में आप अपना या अपने संस्थान का नाम प्रकाशित कर सकते हैं।
  3. भारत स्वाभिमान आन्दोलन की नवीनतम जानकारी व जीवन दर्शन, व्यवस्था-परिवर्तन, अग्निपत्र पढ़ने व परम पूज्य स्वामी जी के प्रतिदिन के नये विचार जानने के लिये देखें हमारी हिन्दी वेब-साईट www.bharatswabhimantrust.org

 

निवेदक : भारत स्वाभिमान एवं पतंजलि योग समिति, सम्पर्क-सूत्र :……………………………………………..
सौजन्य से :………………………………………………………………………………………………………………………………………………
मुख्यालय पता: केन्द्रीय कार्यालय, पतंजलि योगपीठ, द्वितीय चरण, महर्षि दयानन्द ग्राम,
दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग, निकट बहादराबाद, हरिद्वार-249405,
Telephone: 01334-240008, 248888, 248999, 246737, Fax: 01334-244805, 240664
Website: www.bharatswabhimantrust.orgwww.divyayoga.com

2 COMMENTS

  1. आदरणीय स्वामी रामदेव जी से पूरी तरह सहमत और इनके अभियान को पूर्ण पूर्ण समर्थन.

    आज तक हमको झूठा इतिहास पढाया गया है, पढाया जा रहा है. बचपन से सुन रहे है की प्रत्यक पैदा लेने वाले बच्चे के ऊपर ३००० कर्ज है, जो आज १०-१२ हजार प्रति व्यक्ति हो गया है. स्वामी रामदेव जी के करह ही पता चला की कला धन हमारे देश में आ जाये तो हर भारतीय अगर करोडपति नहीं तो कम से कम कई कई लाख का मालिक हो जाए.

    सरकार कभी कुछ नहीं कर रही थी, न कर रही है और न ही कभी करेगी. जनता को निर्णय लेना है की इस अवसर का लाभ उठाय और सर्कार को नियम बनाए पर मजबूर कर दे.

    जय हिंद.

  2. “यदि हमने इन बेईमान लोगों को नही हटाया तो ये सब देश की सभी सम्पदाओं को लूट लेंगे”
    यह बात तो सौ फी सदी सही है,।पर इसकी क्या गारंटी है की जो इनकी जगह आयेंगे वे भी वैसा ही नहीं करेंगे?१९७७ का उदाहरण हमारे सामने है.भ्रष्टता के मामले में आज हम वहां से बहुत आगे हैं और दिनोदिन उन्नति हीं करते जा रहे हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here