राष्ट्रनिष्ठ, संघनिष्ठ और विचारनिष्ठ रामशंकरजी

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-पंकज झा

अभी पिछले ही दिनों पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावतजी के निधन पर उनके संस्मरण को हम लोगों से बांटते एवं लिखने को प्रोत्साहित करते हुए आदरणीय रामशंकर जी अग्निहोत्री को देखकर ऐसा बिलकुल नहीं सोचा जा सकता था कि अगला संस्मरण इनका ही लिखना होगा. वैसे उम्र का अपना तकाजा होता है. एक सफल एवं उपलब्धियों से भरपूर जिंदगी जीने के बाद ‘महाप्रयाण’ किसी उत्सव की तरह ही होना चाहिए. बात-बात पर और बे-बात भी ठहाका लगाने वाले जिंदादिल अग्निहोत्री जी की यह सोच भी थी कि मौत क़भी मातम का सबब नहीं होता अगर आपने जीवन को भरपूर जीया हो. अगर आपकी जिंदगी देश और समाज के काम आया हो. इस मानदंड पर तो वास्तव में इस निधन को ‘सधन’ ही माना जाना चाहिए. आखिर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय जी जैसे महापुरुषों का सान्निध्य प्राप्त कर नव-पल्लवित राजनीतिक दल के उन्नन्यन में भागीदार बनना, भारतीय जनसंघ जैसे राष्ट्रनिष्ठ दलों के संस्थापक सदस्य, शुरुआती दौर से ही संगठन मंत्री का दायित्व सम्हालना, अटल-आडवानी जैसे लोगों के समकालीन रह उनके कार्यों में सतत सहचर की भूमिका निभाना, संघ के ऐसे प्रचारक जिन्होंने पूर्व सर-संघचालक सुदर्शन जी जैसे लोगों को भी मार्गदर्शन देकर राष्ट्र कार्य में लगाया हो. हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पत्रकारिता का सर्वोच्च सम्मान प्राप्त करने के कार्यक्रम में खुद सुदर्शन जी ने यह स्वीकार किया था कि उनके जीवन में अग्निहोत्री जी के शब्द ही सदा प्रेरक रहे थे और इन्होने ही सुदर्शन जी को प्रचारक निकाला था. पत्रकारिता में उपलब्धि ऐसी कि अभी के प्रतिष्ठित एवं चर्चित पत्रकारों की फौज इन्होने तैयार की थी. वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता जैसे लोगों को इन्होने पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया था. हिन्दुस्थान समाचार में इनके ट्रेनी रिपोर्टर रहे आलोक मेहता ने आउटलुक में लिखे अपने एक सम्पादकीय में अग्निहोत्री जी को याद करते हुए लिखा था कि आडवानी जी जब अपनी आत्मकथा लिख रहे थे तो उन्हें अग्निहोत्री जी जैसे सहगामी को याद रखना था. देश के पहले भाषाई समाचार एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के मुखिया, ख्यातिलब्ध राष्ट्रवादी समाचार पत्र पाञ्चजन्य समेत कई वैचारिक पत्रों के संपादक़, डॉ. आंबेडकर के जीवन पर कथात्मक उपन्यास समेत दर्ज़नों पुस्तक के लेखक, राष्ट्रवादी कविताओं के रचयिता, राम जन्मभूमि आंदोलन के मीडिया प्रभाग के निदेशक के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद समेत कई अनुषंगी संगठनों में अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन करते रहकर सदा ही अग्निहोत्री जी युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे. अभी भी याद है जब इस लेखक ने उन्हें जानकारी दी कि लिब्राहन आयोग ने बाबरी विध्वंष का “अपराधी” उन्हें ही ठहराया है तो उनका युवोचित उत्साह देखते ही बनता था. ‘राम जी के यहाँ मेरी भी हाजिरी लग गयी’’ कहते हुए उन्होंने इस लेखक को गले से लगा लिया था.

रामशंकर जी से बात करना सदा ही किसी नए पत्रकार या राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए इतिहास का साक्षात्कार करने जैसा होता था. परदे के बाहर से लेकर अंदर की चीज़ों तक को जानना सदा ही हम जैसे लोगों के लिए लाभप्रद रहता था. वास्तव में देखा जाय तो रामशंकर जी नेपथ्य के ही व्यक्ति थे. गुरूजी के शब्द ‘मैं नहीं तू’ को जैसे उन्होंने अपना जीवन-दर्शन बना लिया था. सही अर्थों में वह ऐसे नींव के पत्थर थे जैसे कर्मयोगियों का निर्माण करना डॉ. हेडगेवार और गुरूजी की कल्पना थी.

यदि थोडा तटस्थ होकर कहा जाय तो निश्चय ही अपनी प्रसिद्धि परान्ग्मुखता की कीमत भी चुकानी पडी उन्हें. जहां राजनीति या समाज सेवा में इनसे कम योगदान देकर भी दर्ज़नों लोगों ने अपने प्राप्य से ज्यादा प्राप्त किया वहीं अग्निहोत्री जी ने कभी किसी लाभकारी पद को प्राप्त करने के लिए कोई जद्दोजहद नहीं की. न ही राजनीति की रपटीली राहों पर सरपट दौडने वाले लोगों ने कभी पीछे मुडकर या थोडा ठहरकर भी इस मील के पत्थर को देखने तक की ज़हमत नहीं उठायी. लेकिन कभी इन सब चीज़ों के प्रति कोई शिकवा, किसी भी तरह की शिकायत करना इनका स्वभाव नहीं रहा. कुरेदने पर हर बार यही दोहराते थे कि सारा जीवन अविवाहित रहकर, अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित इन्होने कभी किसी भौतिक आकांक्षा के लिए नहीं किया है.

छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में अपने विचार-परिवार की पार्टी भाजपा को फलते-फूलते देखकर ही वे अपने जीवन के साफल्य का आनंद प्राप्त करते थे. सहृदय मुख्यमंती डॉ. रमण सिंह जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर एक शोध पीठ का गठन कर जहां इन्हें सम्मनित किया था वही इनके दशकों के संचित वैचारिक अनुभवों का लाभार्थी अपने विचार-परिवार को बनाने का यशस्वी कार्य भी किया था. पीठ के अध्यक्ष के नाते प्राप्त आवास को छोड़कर सदा ही पार्टी कार्यालय में रहकर, हम जैसे नवागंतुकों का पथ-प्रदर्शन करना ही जैसे रामशंकर जी ने अंत समय में अपने जीवन का ध्येय बना लिया था.

लेकिन एक ध्येय उनका और था और वह था मिशन 2014 . यानी अपने पार्टी को इस सन में होने वाले चुनाव में सफलता के लिए सदा सदिच्छा व्यक्त करना और सामर्थ्य के अनुसार गिलहरी की तरह ही सही लेकिन प्रयास करना. मोटे तौर पर मां भारती को उसके पुरा-वैभव की पुनर्स्थापना के लिए प्रयत्नशील रहने वाले इस योद्धा का निर्वाण एक शुन्य छोड़कर तो गया ही है. राजनीति और समाज निर्माण के कार्य में लगे विभिन्न अनुषंगी संगठनों के कार्यकर्ताओं के लिए इनका सारा जीवन सदा ही प्रेरणास्रोत रहेगा. अभी जब बिहार के न्यूनतम संचार सुविधाओं वाले एक गाँव में काफी बिलंब से इस निधन का समाचार मिला तब वास्तव में अग्निहोत्री जी जैसे उस पुराने पीढ़ी के कर्मयोगियों को नमन कर श्रद्धानवत हुआ जिनके लिए कभी संपर्क और संवाद हेतु किसी तकनीकी उपकरणों पर आश्रित रहने की ज़रूरत नहीं थी. व्यक्तिगत संबंधो की गर्माहट से सदा व्यक्ति निर्माण के बहाने समाज निर्माण करने के संघकार्य में तल्लीन इस निष्काम कर्मयोद्धा को कोटिशः नमन.

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  1. श्रधेय रामशंकर अग्निहोत्री को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ —–.अशोक बजाज रायपुर

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