अपनी शक्ति पहचानिये

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सुशान्त कुमार सिंहल

हमारे देश की अधिकांश जनता अक्सर संत्रस्त क्यों रहती है? क्यों लोग हाथों में दरख्वास्त लिये प्रशासनिक अधिकारियों के आगे – पीछे रिरियाते हुए घूमते दिखाई देते हैं? अधिकारी तो अधिकारी, उनके चपरासी भी अनपढ़, ग्रामीणों को जब देखो, हड़का लेते हैं । क्या ये सब स्वस्थ लोकतंत्र के लक्षण हैं? मेरे विचार से तो नहीं !

कहावत है, “गरीब की जोरू, सबकी भाभी !” दबाया सिर्फ उसको जाता है, जो दबने के लिये तैयार है, इसका प्रतिकार नहीं करता; प्रतिकार तो दूर, ऊफ भी नहीं करता! जनता अधिकारियों के अत्याचार इसलिये सहती है क्योंकि उनसे डरती है या उनको नाराज़ नहीं करना चाहती ! परन्तु उत्तर प्रदेश में हम देखते हैं कि यहां के आई.ए.एस. / आई.पी.एस. अधिकारी मुख्यमंत्री मायावती के गुस्से से खौफ खाते हैं। जब वह गरजती हैं तो इन अधिकारियों की पैंट वास्तव में ही गीली होजाने का खतरा बना रहता है। पर क्या यह जानना मनोरंजक नहीं कि खुद मायावती जनता से भयभीत रहती हैं, जनता को दिखाने के लिये ही अधिकारियों पर गरजती – बरसती हैं? यह जनता ही है जो उनको सत्ता सौंपती है। मायावती को भी जनता का विश्वास चाहिये, वोट चाहिये ! उनकी समस्त शक्तियां उस जनता में निहित हैं जो उनके नेतृत्व में विश्वास प्रकट करती है, उनको वोट देती है।

ऐसे में जनता को यह समझना चाहिये कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में समस्त शक्तियां जनता में निहित होती हैं। क्या अधिकारी और क्या नेता, सब जनता की सेवा के लिये ही हैं। पर जनता अपने जायज़ हक भी इनसे इस अंदाज़ में मांगती है मानों भीख मांग रही हो। जिन अधिकारियों को और नेताओं को, इस जनता को अपना माई-बाप समझना चाहिये, वह अक्सर गुर्राते रहते हैं। नेताओं को तो फिर भी पांच वर्ष में एक बार जनता की अदालत में आकर खड़ा होना पड़ता है, उसकी कृपादृष्टि चाहिये होती है, पर अधिकारी तो सिर्फ नेताओं से ही डरते हैं, जनता को तो दुत्कारते ही रहते हैं।

हमारे प्रशासनिक अधिकारी जनता को माई बाप तब समझेंगे जब जनता अपने मालिकाना अधिकारों को समझती हो, पहचानती हो, उसे अपनी शक्ति का अहसास हो। जनता को यह शक्ति संगठन से और एकता से आती है। इक्का – दुक्का व्यक्ति के विरोध की कोई परवाह नहीं करता पर जब जनता संगठित होकर अपनी आवाज़ बुलन्द करती है तो बड़े – बड़े शक्तिशाली लोग भी धरती पर आ जाते हैं। अन्ना हज़ारे को इतनी शक्ति किसने दी कि उनके अनशन से पूरी केन्द्रीय सरकार भयभीत हो गई? स्वाभाविक उत्तर है कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एहसास हुआ कि अन्ना हज़ारे के समर्थन में पूरे देश की जनता संगठित होने लगी है तो उनके कस-बल तुरन्त ढीले पड़ गये। जो मनमोहन सिंह पिछले कुछ महीनों में अन्ना हजारे के छः पत्रों को कूड़ेदान के हवाले कर चुके थे, वह घिघियाते हुए जन-लोकपाल बिल के लिये मसौदा समिति गठित करने के लिये तुरन्त तैयार हो गये। जो तथाकथित ईमानदार, मगर मज़बूर, लाचार, रीढ़रज्जु विहीन मनमोहन सिंह सी.वी.सी. पद के लिये पी.जे. थामस जैसे भ्रष्ट व्यक्ति के समर्थन में खड़े थे, जो सुरेश कलमाडी को अभय दान दिये हुए थे, जो मनमोहन सिंह ए.राजा को अपनी गोद में बैठाये घूमते थे, वह अचानक गरजने लगे कि भ्रष्टाचार के मामलों में किसी को बख्शा नहीं जायेगा । उनके यह उद्गार भी जनता को शान्त करने का भ्रामक प्रयास भर हैं, इससे अधिक कुछ भी नहीं! यदि ऐसा न होता तो कांग्रेस लगे हाथों अन्ना हज़ारे के पीछे संगठित हो रही जनता को बरगलाने के प्रयास क्यों करती ? संगठन में फूट डालने के कुत्सित प्रयास क्यों करती रहती ? बाबा रामदेव के द्वारा रामलीला मैदान में किये गये अनशन को आधी रात को हमला कर समाप्त करने के पीछे भी सरकार का यही भय था कि आज साठ हज़ार लोग एकत्र हुए हैं, यह संख्या बढ़ती ही जाने वाली है। कल को साठ लाख एकत्र होगये तो क्या होगा?

वास्तव में अंग्रेज़ों की ही तरह से कांग्रेस को भी एक ही चीज़ आती है – “फूट डालो और राज करो !” बाबा रामदेव और अन्ना को एक दूसरे से अलग करने का, बाबा रामदेव के भक्तों के मन में बाबा के प्रति अविश्वास पैदा करने का प्रयास इसी मानसिकता से उपजता है। अभी भी निरंतर यही प्रयास चल रहे हैं कि अन्ना और बाबा की छवि धूमिल करने में लगे रहो। सारा सरकारी प्रचार तंत्र इसी काम में लगा हुआ है। लेखकों, पत्रकारों को खरीदा जा रहा है ताकि वह कांग्रेस सरकार का विरोध करना छोड़ कर उसकी भाषा बोलना आरंभ करें। जो समाज को संगठित करने का प्रयास कर रहा हो, उसे कांग्रेस अपना जानी दुश्मन मानती है। कांग्रेस को ब्राह्मण सम्मेलन, ठाकुर सम्मेलन, राजपूत सम्मेलन, सैनी सम्मेलन, वैश्य सम्मेलन, दलित सम्मेलन, कायस्थ सम्मेलन, जाट सम्मेलन, कुर्मी सम्मेलन, जैन सम्मेलन, सिक्ख सम्मेलन सब स्वीकार हैं परन्तु हिन्दू सम्मेलन स्वीकार नहीं हैं क्योंकि उससे पूरे समाज के संगठित हो जाने का खतरा है । संगठित समाज कांग्रेस के अस्तित्व के लिये खतरा है। कांग्रेस का प्रयास तो यह रहता है कि ब्राह्मणों की शक्ति बढ़ती दिखाई दे तो उन में भी फूट डलवा दो। अलग – अलग गुट बनवाओ, सबको एक दूसरे का भय दिखाओ, अस्तित्व के, पहचान के संकट का नारा बुलन्द करो और उनके संगठन को मटियामेट कर दो। घटियापन की पराकाष्ठा तब आ जाती है जब तमिलनाडु को कर्नाटक से, गुज़रात को महाराष्ट्र से, उत्तर प्रदेश को दिल्ली और उत्तराखंड से लड़वा दिया जाता है – कभी नदी के पानी के बंटवारे के नाम पर तो कभी भाषा तो कभी बिजली के नाम पर तो कभी सड़क परिवहन के नाम पर।

पर कहते हैं कि आप हर किसी को कुछ समय के लिये मूर्ख बना सकते हैं, थोड़े से लोगों को हमेशा के लिये मूर्ख बनाये रख सकते हैं परन्तु हर किसी को हमेशा के लिये मूर्ख नहीं बना सकते। जनता को जागना ही होगा, इस विघटन कारी षड्यंत्र को पहचानना होगा तभी हमारा भविष्य संवर सकता है।

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