कश्‍मीर और संघ पर निरर्थक बयान

-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी अपने अलग-अलग बयानों पर आलोचना के शिकार हुए। उमर ने फरमाया कि कश्मीर का भारत में विलय अंतिम नहीं है। इस लाइन पर वह पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों के साथ खड़े नजर आए। राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना राष्ट्र विरोधी आरोपों में प्रतिबंधित संगठन सिमी से की। ऐसा कहते समय वह जाने-अनजाने जिहादी मानसिकता वालों के करीब थे। राहुल और उमर को वर्तमान मुकाम राजनीतिक विरासत के फलस्वरूप मिला है। अनुभव और जानकारी की कमी अस्वाभाविक नहीं है। फिर भी सार्वजनिक जीवन के महत्वपूर्ण पदों से सतही बयानों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। यदि यह बयान सुनियोजित रूप से वोट बैंक की राजनीति के मद्देनजर दिए गए, तब भी आपत्तिजनक है। राष्ट्रहित सर्वोच्च है। अलगाववादी हुर्रियत और सिमी के नेताओं की गतिविधियां देशहित में नहीं हैं। अलगाववादियों की बात पर संवैधानिक पद से मोहर लगाना और सिमी जैसे संगठन की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से तुलना करना अनुचित है।

यदि उमर अब्दुल्ला अपनी विफलता छिपाने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं तो यह निरर्थक प्रयास है। उन्हें समझना चाहिए कि भारत में कश्मीर का विलय वैधानिक राजसत्ता की प्रार्थना पर औपचारिक तौर पर हुआ था। यह अंतिम है। इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी शामिल है। कश्मीर के इतिहास पर चर्चा होगी तो कल्हण और कश्यप ऋषि तक या उससे भी पहले लौटना होगा। यह कुछ दशकों का इतिहास नहीं है। यदि उमर वहां तक देखना नहीं चाहते तो अपने दादा शेख अब्दुल्ला का स्मरण कर लें। आज जो उमर कह रहे हैं, वह कभी शेख अब्दुल्ला ने कहा था। हकीकत समझने के लिए उन्हें पंद्रह वर्ष कैद में बिताने पड़े। इसके बाद वह इस पद पर पहुंचे जहां उमर आसीन हैं। उमर उल्टी गिनती क्यों गिनना चाहते हैं ?

वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की दशा देख लें। वह कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच की समस्या बता रहे हैं। अली शाह गिलानी, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला या अन्य अलगाववादी जैसे टिप्पणी कर रहे हैं, वह भारत में रहकर ही संभव है। पाकिस्तान में होते तो सेना की निगरानी में दबे होते। सैन्य कमांडरों के रहमो-करम पर होते। भारत में विशेष दर्जा प्राप्त है। जम्मू और लद्दाख क्षेत्र उपेक्षित हुए, लेकिन वहां से अलगाव की बातें नहीं उठी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से असहमत होने का अधिकार है। किन्तु स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इण्डिया (सिमी) से इसकी तुलना का न तो कोई आधार है, ना किसी को निराधार टिप्पणी करने का अधिकार मिलना चाहिए। संघ के संस्थापक डॉ0 हेडगेवार मानते थे – देशभक्ति प्रत्येक नागरिक का सामान्य और अपरिहार्यर् कत्तव्य है। हिन्दू संगठित और शक्तिशाली होंगे, तभी देश में पंथनिरपेक्षता रहेगी, सर्वधर्म समभाव रहेगा और विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश मिलेगा। हिन्दुओं का संगठन भारत में ही हो सकता है। इसलिए संघ इसे सनातन जीवन पध्दति और राष्ट्रीयत्व मान कर चला। यह एकात्मकता की यात्रा है। अपने मजहब को एकमात्र श्रेयस्कर मानकर अन्य लोगों के प्रति असहिष्णुता का भाव इस शाश्वत चिंतन में संभव ही नहीं है। यही विचार संघ के स्वयंसेवकों को दादरी विमान दुर्घटना स्थल पर बचाव व सहायता के लिए खींच ले जाता है जिसमें सभी मृतक मुसलमान थे। यही विचार प्राकृतिक आपदा और बाहरी आक्रमण के समय पीडितों की सहायता, सैनिकों, नागरिक प्रशासन को सहयोग देने की प्रेरणा देता है। संघ के स्वयंसेवकों को गणतंत्र दिवस की राष्ट्रीय परेड में आमंत्रित करने वाले प्रधानमंत्री कांग्रेस पार्टी के ही थे। वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, राष्ट्रीय सिख संगत, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, विज्ञान भारती जैसे अनेक प्रकल्पों के माध्यम से राष्ट्र जागरण, सेवा, सौहार्द, एकता-अखंडता को मजबूत बनाने का अभियान संघ की प्रेरणा से चल रहे हैं।

राहुल गांधी को सिमी के विचारों की जानकारी लेनी चाहिए। इसमें मानवता, राष्ट्रीयता, शांति, सौहार्द, सहिष्णुता के तत्व तलाशने चाहिए। उस पर किन आरोपों के आधार पर प्रतिबंध लगा, इस पर गौर करना चाहिए इसकी जानकारी उन्हें दिग्विजय सिंह से मिल सकती है। सिमी पर प्रतिबंध लगाने वाले वह पहले मुख्यमंत्री थे। यह काम वह ईमानदारी से करें। स्पष्ट होगा कि उन्होंने जो तुलना की, वह गलत थी। प्रतिबंध संघ पर भी लगे। लेकिन बाद में साबित हुआ कि मसला राजनीतिक है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के. सुब्बाराव का कथन उल्लेखनीय है। एक समारोह में उन्होंने कहा था- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश की राष्ट्रीय चेतना के जागरण में लगा हुआ है। उदार और समन्वयवादी हिन्दू संस्कृति के आधार पर हिंदुओं को संगठित करने के लिए संघ समर्पित है। यह टिप्पणी बिल्कुल अर्थहीन है कि संघ सेक्युलरिज्म के खिलाफ प्रचार करता है।

* लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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  1. धन्यवाद दिलीप जी आपके द्वारा लिखा निबंध हमने पढ़ा हमारे देश की राजनीती करने वाले तथाकथित विभिन्न पार्टियों के बड़े बड़े नेता बोआत बैंक बनाने के चक्कर में देशभक्त और देश द्रोही में अनन्तर ही नहीं समझते. और बचकानी भासा बोलते है . आप जैसे लोगों के लेखों से सबक लेना चाहिए.

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