दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। सीआरपीएफ के 76 जवानों के शहीद होने पर देशवासियों के दिल में शहीद परिवारों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव है, वहीं नीति बनाने वाली सरकार और उनके नुमाइंदों के खिलाफ आक्रोश भी है। केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम इस हकीकत को समझते हैं। यही वजह है कि उंगली उठने से पहले ही दंतेवाड़ा नक्सली हमले की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफे की पेशकश कर दी। ये कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का दबाव है या कुछ और यह तो चिदंबरम साहब ही जानते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा कर देश की 100 करोड़ जनता की भावनाओं का सम्मान किया है, क्योंकि यह समय रेजिग्नेशन देने का नहीं, बल्कि ठोस रिएक्शन कर नक्सलियों को नेस्तानाबूत करने का है।
देश के इतिहास में यह पहला मौका है, जब नक्सलियों को किसी गृहमंत्री से सीधी चुनौती मिली है। श्री चिदंबरम ने मंत्रालय संभालते ही नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ऐसा नहीं है कि उन्होंने नक्सलियों को वार्ता का मौका नहीं दिया, लेकिन उन्होंने यह जता भी दिया कि वे पूववर्ती सरकारों की तरह झुकेंगे नहीं। आज देश के लाल गलियारों में जो भगदड़ है वह श्री चिदंबरम की ही देन है। आपरेशन ग्रीन हंट से नक्सली बौखला गए हैं और दंतेवाड़ा जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इस घटना में कहां चूक हुई, कैसे चूक हुई, इसकी जांच तो होगी ही, लेकिन इतनी साफगोई से किसी गृहमंत्री को जिम्मेदारी लेते हुए देश की जनता ने कम ही देखा है। इस्तीफे की पेशकश कर श्री चिदंबरम ने आज की इस स्वार्थपरख राजनीति में नया उदाहरण पेश किया है, लेकिन आज देश इस्तीफा नहीं, नक्सलियों का सफाया चाहता है। इस मुद्दे पर समूचा विपक्ष भी श्री चिदंबरम के साथ खड़ी नजर आ रही है। ऐसी स्थिति 1999 में आई थी, जब पाकिस्तान ने भारत पर कारगिल थोपा था। विपक्ष के सहयोग का भरपूर फायदा उठाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कुशल मार्गदर्शन में देश के वीर जवानों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था। देश के विपक्ष ने एक बार फिर मौका दिया है, चिंदबरम साहब इस भावना को समझिए और नक्सलियों को कुचलने के लिए बनाइये कोई ठोस रणनीति, जिससे फिर किसी पत्नी का मांग न उजड़े, किसी बच्चे के सिर से पिता का साया न उठे और न ही किसी बाप को जीते जी अपने बेटे का अर्थी उठाना पड़े।
इस मौके पर मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि मौजूदा परिस्थिति में जब भाजपा और कम्युनिस्ट जैसे घोर विरोधी पार्टियां भी देशहित में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नक्सलवाद से लड़ना चाहती है, वहीं छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी नेता रमन सरकार को घेरने की छिछोरी राजनीति कर नक्सली मोर्चे पर डटे बहादुर जवानों के मनोबल को तोड़ने का काम कर रहे हैं। मैं डा0 रमन से इस्तीफा मांगने वाले अपने कांग्रेस मित्रों से पूछना चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ समेत देशभर में नक्सलियों के खिलाफ जो अभियान चल रहा है, उसका लीडर तो केंद्र सरकार है, इस लिहाज से उन्हें डा0 रमनसिंह से इस्तीफा मांगने के बजाए मनमोहन सिंह से इस्तीफे की मांग करनी चाहिए।
–दानसिंह देवांगन
वरिष्ठ पत्रकार