प्रासंगिकता हिन्दुत्व की

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अतुल तारे
हिन्दुत्व क्या है? आज के परिप्रेक्ष्य में हिन्दुत्व की प्रासंगिकता क्या है? यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक सार्थक बहस, एक गंभीर विमर्श एवं सतत् चिंतन आज इस विषय पर समय की मांग है। परन्तु बावजूद इसके  इन प्रश्नों को समझे बिना, इनके उत्तर को जानने की कोशिश किए बिना ही फिर एक बार देश के राजनीतिक दल सन्नपात की स्थिति में हैं। स्वयं को बुद्धिजीवी मानने वाला एक बड़ा वर्ग भी बदहवास है। भारतीय जनता पार्टी की जीत से ये वर्ग भयाक्रांत है। वह समझ रहा है कि उसके पांव तले जमीन खिसक चुकी है और वे न केवल आज अप्रासंगिक हो गए हैं, अपितु खारिज भी हो चुके हैं। भारत के इतिहास में वर्ष 2014 ने भविष्य के भारत की रचना में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निष्पादित कर दी है। भारतीय जनता पार्टी की अभूतपूर्व विजय मात्र एक राजनीतिक दल की विजय नहीं  है। इस जीत ने देश की राजनीति से जातिवाद की राजनीति को, तुष्टीकरण की राजनीति को, भ्रष्टाचार की राजनीति को, गुलामी की मानसिकता को पराजित किया है। जाहिर है, क्षण उत्साह के हैं, उमंग के हैं, विश्वास के हैं, उम्मीदों के हैं पर उत्सव के इन क्षणों में मातम का राग भी सुनाई दे रहा है। भाजपा की जीत को मंदिर, मस्जिद की लड़ाई में मंदिर की जीत बताया जा रहा है। डर फैलाया जा रहा है कि अब भाजपा सरकार में है तो देश खतरे में है। यह हिन्दूवादियों की जीत है। यह अतिवादियों की जीत है। भारत में अब अल्पसंख्यक खतरे में हैं। अत: देश के जितने आज विपक्षी हैं, चाहे वे लालू हों, कालू हों, ममता हों, समता हो सब एक हो जाएं। कारण देश खतरे में है, हिन्दुत्व की जीत हो गई है। राजनीतिक दलों से इसी विधवा प्रलाप की उम्मीद भी थी कारण उनकी सुविधाओं का भोग विलास का सुहाग उजड़ चुका है। परन्तु यही वह समय है कि हम याने देश का सकारात्मक बुद्धिजीवी वर्ग अपने जनादेश पर गर्व करें। कारण यह तो सही है कि यह जीत हिन्दुत्व की जीत है। पर हिन्दुत्व की जीत का आशय अयोध्या में सिर्फ रामलला के मंदिर का निर्माण नहीं है। कारण हिन्दुत्व की मान्यता तो कण-कण में शंकर की, रोम-रोम में राम की है। न ही हिन्दुत्व की जीत के मायने अल्पसंख्यकों के लिए कोई चेतावनी है। हिन्दुत्व की जीत का अर्थ है सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया, अर्थात सभी को सुखी एवं निरोगी देखने की आकांक्षा हिन्दुत्व की जीत का अर्थ है वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात सारे विश्व को एक परिवार मानने की परिकल्पना। हिन्दुत्व की जीत का अर्थ है, कृणवंतो विश्व आर्यम अर्थात सम्पूर्ण विश्व को हम आर्य बनाएंगे, आर्य बनाएंगे का अर्थ सुसंस्कृत बनाएंगे, सभ्य बनाएंगे। हिन्दुत्व की जीत का अर्थ है जीयो और जीने दो। हिन्दुत्व की जीत का अर्थ है विकास की जीत इसीलिए हमारे यहां कहा गया है, शत ह समार:, सह विकिर: अर्थात सौ हाथ से कमाइए, हजार हाथ से बांटिए। अर्थात समृद्धि होनी चाहिए, भौतिक विकास होना चाहिए पर क्यों ताकि हम कल्याण कर सकें, निर्धनों की मदद कर सकें, वंचितों का सहारा बन सकें। हिन्दुत्व की जीत का अर्थ है, धर्म की जीत और धर्म की जीत का अर्थ राम की जय-जयकार और अल्लाह को गाली नहीं है। हिन्दुत्व का अर्थ तो ‘एकम् सत्यं बहुधा वदंति है, अर्थात सत्य एक ही है, मान्यता और आस्था के अनुसार रूप अलग हैÓ स्वरूप भिन्न हैं। हिन्दुत्व एक जीवन शैली है और इस जीवन शैली में सबका महत्व है। हिन्दुत्व ही वह जीवन शैली है जो सह अस्तित्व को मान्यता देती है। यह सह अस्तित्व ही हमें न केवल सम्पूर्ण मानव जाति से अपितु वृक्षों से नदियों से, पहाड़ों से, पशुओं से पक्षियों से तादाम्य स्थापित करने का दर्शन देता है। इसी का नाम हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व ही वह विचार है, जिसमें व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र और राष्ट्र से समूचे विश्व ही नहीं अपितु अखिल ब्रह्मांड के कल्याण की विनम्र प्रार्थना है। अत: विजय के इन उत्सवी क्षणों में हिन्दुत्व को समझने की आवश्यकता है। यह आवश्यक इसलिए भी है कि स्वाधीनता के पश्चात योजनाबद्ध तरीके से, षड्यंत्रपूर्वक हिन्दुत्व के अर्थ को उसके महत्व को विकृत करने का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर षड्यंत्र चल रहा है। बावजूद इन षड्यंत्रों के विगत आठ दशकों से भी अधिक समय से चल रही नित्य साधना के  एक महत्वपूर्ण पड़ाव के पूर्ण होने का यह क्षण है पर यह क्षण सिर्फ आनंद के लिए नहीं है। हमारी संस्कृति में राज्य को भी राजधर्म के रूप में स्वीकार किया गया है। महायज्ञ का एक महत्वपूर्ण चरण आज पूरा अवश्य हुआ है, पूर्णाहुति तो तब होगी जब सम्पूर्ण आर्यावर्त का नाम विश्व में गूंजेगा भारत माता को पुन: उसका गौरव प्राप्त होगा। निश्चित रूप से इस महायज्ञ में इस निर्णायक समय में सत्ता भी एक महत्वपूर्ण साधन होगी पर इन विजयी क्षणों में राक्षसी शक्तियां फिर एक बार सज्ज हो रही हैं, पूरी ताकत के साथ प्रतिकार के लिए। अत: आवश्यक है कि देश की तमाम सज्जन शक्तियां भी इस महायज्ञ में अपनी-अपनी सकारात्मक भूमिका के लिए दक्ष रहें, यही अपेक्षा, यही निवेदन।

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अतुल तारे
सहज-सरल स्वभाव व्यक्तित्व रखने वाले अतुल तारे 24 वर्षो से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। आपके राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और समसामायिक विषयों पर अभी भी 1000 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से अनुप्रमाणित श्री तारे की पत्रकारिता का प्रारंभ दैनिक स्वदेश, ग्वालियर से सन् 1988 में हुई। वर्तमान मे आप स्वदेश ग्वालियर समूह के समूह संपादक हैं। आपके द्वारा लिखित पुस्तक "विमर्श" प्रकाशित हो चुकी है। हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी व मराठी भाषा पर समान अधिकार, जर्नालिस्ट यूनियन ऑफ मध्यप्रदेश के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराजा मानसिंह तोमर संगीत महाविद्यालय के पूर्व कार्यकारी परिषद् सदस्य रहे श्री तारे को गत वर्ष मध्यप्रदेश शासन ने प्रदेशस्तरीय पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया है। इसी तरह श्री तारे के पत्रकारिता क्षेत्र में योगदान को देखते हुए उत्तरप्रदेश के राज्यपाल ने भी सम्मानित किया है।

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