आसाराम प्रकरण के बाद ऐसा लगने लगा था कि देश में बाबाओं के मायाजाल से आम आदमी दूर हो जाएगा किन्तु हाल ही में उजागर हुए दो मामलों से मैं गलत साबित हुआ हूं। ओडिशा में खुद को भगवान विष्णु का अवतार बताने वाले सारथि बाबा हों या देवी दुर्गा का अवतार कहलाने वाली सुखविंदर कौर उर्फ़ बब्बू उर्फ़ राधे मां; धर्म का ऐसा मखौल इस देश में बन गया है मानो ईश्वर इन कथित धर्मगुरुओं के बगैर मिल ही नहीं सकता। क्या भारत में इससे पूर्व संतों को इस कदर धूर्त होते देखा गया है? क्या देश का सनातन धर्म, मान्यताएं, परम्पराएं तथा संस्कार इस बात की इजाजत देते हैं कि संत अपनी संतई को सार्वजनिक रूप से उपहास का पात्र बनाए? सारथि बाबा पर आरोप हैं कि उनके कई महिलाओं से शारीरिक संबंध हैं और वे सेक्स रैकेट में भी लिप्त हैं। वहीं राधे मां पर अश्लीलता फैलाने, दहेज़ उत्पीड़न एवं आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। आखिर सारथि बाबा और राधे मां का सच क्या है यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा किन्तु इनकी करतूतों को पूरे देश में जिस तरह देखा है, उसके बाद कहा जा सकता है कि धर्म को सबसे बड़ा खतरा इन ढोंगियों से ही है। उसपर से दोनों के चेहरे पर गलत कर्मों का कोई पछतावा नहीं है। दरअसल ऐसे मामलों में हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था और आम आदमी के भीतर घर कर बैठा अंधविश्वास ही है जिसने इन संतों को घमंडी बना दिया। अपने प्रभाव व समर्थकों की फ़ौज के सहारे किसी ने इनपर शिकंजा नहीं कसा। धर्मभीरु जनता ने भी इन्हें सर आंखों पर बिठाया जिसने उनके अभिमान में बढ़ोतरी ही की। पर शायद ये कथित धर्मगुरु यह भूल बैठे थे कि जहां अभिमान तथा घमंड आता है, बर्बादी भी उसके पीछे-पीछे आती है; फिर भले ही उसका रूप कैसा भी हो? और देखिए, सारथि बाबा और राधे मां पर बर्बादी आई तो ऐसी कि उनकी संतई पर ही सवालिया निशान लगा दिए? उनके लाखों समर्थक लाख दुहाई दें कि उनका ईश्वर निर्दोष है, वह ऐसा पतित कर्म कर ही नहीं सकता किन्तु संत पर आरोपों का लगना ही उसके लिए मृत्यु समान है। संत की संतई किसी सफाई या सबूत की मोहताज नहीं होती किन्तु इनके विरुद्ध तो हवा भी ऐसी चल रही है कि अब इनकी सफाई भी उडती हुई दिखाई दे रही है। हालांकि यह भी सच है कि जब तक कानून किसी आरोपी पर लगे आरोप की साक्ष्यों द्वारा पुष्टि न कर दे उसे सार्वजनिक रूप से आरोपी नहीं कहा जा सकता किन्तु यह नैतिकता आम आदमी के लिए ही ठीक है, कथित संतों के लिए नहीं। फिर कई बार आरोपों की गंभीरता इतनी बड़ी होती है कि फिर उसके साबित होने या न होने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
वहीं इन दोनों के मामले में मीडिया की भूमिका को वृहद् नजरिए से देखा जा सकता है। सारथि बाबा और राधे मां के अनुयायियों से लेकर कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि इन्हें बिना न्यायालय की पुष्टि के मीडिया ने गुनाहगार साबित कर दिया है। ऐसा मानने वालों का तर्क है कि मीडिया ने टीआरपी और रीडरशिप बढाने के चक्कर में यह सब किया है। उनका मानना है कि संतों पर तमाम आरोप पहले भी लगते रहे हैं किन्तु मीडिया ने जो हाय तौबा इस बार मचाई है वह इनके विरोध में चली गई। जबकि देखा जाए तो ऐसा बिलकुल नहीं है। सारथि बाबा और राधे मां के मामले में मीडिया ने वही दिखाया जो पत्रकारिता के मांपडंडों पर खरा उतरता है। दरअसल इन्हें भगवान की तरह पूजने वाले यह चाहते थे कि मीडिया भी कथित तौर पर उनके भगवान का प्रवक्ता बन जाए। यदि ऐसा होता तो इनके करोड़ों अनुयायी येन केन प्रकरेण पुलिस से लेकर राजनीतिक व्यवस्था पर दवाब बना देते। और पूर्व के अनुभवों को देखते हुए यह संभव भी है क्योंकि यदि कानून व्यवस्था को मीडिया का सकारात्मक साथ नहीं मिला होता तो सोचिए; दुष्कर्म के आरोपों से घिरे आसाराम को कभी गिरफ्त में लिया जा सकता था? इतिहास गवाह है कि धूर्त के साथ व्यवहार भी वैसा ही होना चाहिए। आखिर देश की जनता सब देख रही है। माना कि दोनों के करोड़ों समर्थक हैं किन्तु १२५ करोड़ से अधिक जनसंख्या वाला हमारा देश क्या इनके कथित समर्थकों से ही पटा है? उनके समर्थकों के इतर जो हैं क्या उनके प्रति मीडिया और कानून जवाबदेह नहीं है? राधे मां कभी बताएंगी कि यदि वे देवी दुर्गा का अवतार हैं तो १००० करोड़ का साम्राज्य उनके किस काम का? सारथि बाबा यदि विष्णु जी के अवतार हैं तो उन्हें सेक्स रैकेट चलाने की क्या आवश्यकता है? यह भारत में ही संभव है कि धर्म का आवरण ओढ़कर कोई भी स्वयंभू संत बन बैठे और जनता भी उसके पीछे पागलों की तरह दौड़ लगा दे। इन कथित संतों ने हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करने के साथ ही धर्म को धोखा दिया है। इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होना चाहिए। जनता को भी ऐसे कथित संतों से दूरी बना लेनी चाहिए क्योंकि यदि जनता ने अब भी सबक नहीं लिया तो उसे साक्षात भगवान भी नहीं बचा सकता। कुल मिलाकर दुनिया और समाज को धोखा देकर सारथि बाबा और राधे मां ने संत की संतई पर ऐसा बदनुमा दाग लगाया है जिसे चाहकर भी नहीं मिटाया जा सकता। हो सकता है दोनों अपने ऊपर लगे आरोपों से मुक्त हो जाएं किन्तु प्रपंचों और स्वांगों के कारण खुद को संत कहाने का दर्ज़ा तो दोनों निश्चित रूप से खो चुके हैं।
जनता को स्वयं समझना चाहिए और इस हेतु शिक्षा का अत्यधिक प्रसार व तर्क शक्ति का लोगों में विकास किया जाना जरुरी हैं ,आखिर सरकार किस किस को कब कब कहाँ बचाएगी , धूर्त लोग अपनी करनी से चूकने वाले नहीं , हमारी न्यायिक व्यवस्था बहुत सुधार की जरूरत है ताकि शीघ्र निर्णय सके , कानून को कड़ा करना भी जरुरी है ही ,
इन संतों और तथाकथित ढोंगियों की कोई गलती नहीं है. जिस देश में काम चोर और मक्कार और बिना मेहनत के पैसा ,प्रतिष्टा पाने वाले बेइमानो की भीड़ हो ,उन बेवकुफों के लिए ये बाबा एकदम ठीक हैं. मेरे एक मित्र हैं. उनका यातायात का व्यवसाय था. वे एक फ़क़ीर के जाल में पड़ गये. उस फ़क़ीर का कहना था की उसे कोई पीर साहेब निर्देश देते हैं. और श्रद्धा रखने वाले का पैसा दुगना कर देते हैं. फिर क्या था/ उसे यातायात के व्यवसाय में एक ट्रक के बजाय दो करने थे। उसने गहने बेचकर और बैंक से ऋण लेकर ३लाख जमा किये. और उस फ़क़ीर को दे दिए। क्रियाएं की गयीं। एक दो दिन तक तो कुछ हुआ नहीं किन्तु एक हफ्ता गुजरने के बाद वह फ़क़ीर ऐसा गायब हुआ की आज तक दिखा नही. केवल धर्म के मामले में ऐसा होता है ऐसा नही. शेयर मार्किट में,जुआघरों में लिटने लोगों का शाशन होता है. ये सब लोभी लोग हैं.