राहुल गांधी का लोकसभा चुनावों के पहल यह कहना था कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम इसलिए घोषित नहीं किया जा रहा है, क्योंकि यह लोकतांत्रिक परंपरा के अनुकूल नहीं है। चुनाव में जीते सांसद ही अपना नेता चुनते हैं। आज कांग्रेस विपक्ष में हैं तो लोकसभा में कांग्रेस सांसदों का नेता का चुनाव सांसदों के वोट से क्यों नहीं किया गया! कांग्रेस जिस दौर से गुजर रही है लोकसभा में उसका नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जो आम जनता में उसकी विश्वसनीयता को बढ़ा सके। कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। उसकी जिम्मेदारी है सत्ता को मदांध होने से रोके और उसकी आलोचना कर कमियों को उजागर करे। जहां शासन से चूक हो उसे आगाह करे और जनता की आकांक्षाओं को स्वर दे। यह अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है और यदि चुनाव का अवसर आता तो जाहिर है पहला व्यक्ति जिसे कांग्रेस के सांसद अपना वोट देकर चुनते वे राहुल गांधी ही होते। लेकिन संसदीय दल में इस पर चुनाव नहीं हुआ, सोनिया गांधी ने कर्नाटक के सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में कांग्रेस का नेता नियुक्त कर दिया।
नेहरू के बाद इंदिरा से लेकर राजीव गांधी तक कांग्रेस का नेतृत्व और हार-जीत में उसकी बागडोर इस परिवार ने उठाई। लेकिन सोनिया गांधी ने रिमोट कंट्रोल की राजनीति की शुुुरुआत की। राहुल गांधी ने सदा ही नेतृत्व से परहेज किया। मनमोहन सिंह चााहते थे कि वे मंत्रिमंडल में आकर जिम्मेदारी और अनुभव लें लेकिन राहुल गांधी ने पिछली बेंच पर बैठकर नेतृत्व को अपने इशारों पर चलाना ही पसंद किया। लोकसभा चुनाव में ऐसी भयानक पराजय के बावजूद रिमोट कंट्रोल की वही नीति बरकरार है। मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में कांग्रेस के दल का नेता चुना जाना इसे ही जाहिर करता है। खडगे ने लोकसभा का नेता चुने जाने के बाद प्रेस के सामने सबसे पहले जो कहा वह यह कि वे कांग्रेस अध्यक्ष की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे। यह दरबारीशैली नहीं तो और क्या है! संसद में जनता सांसदों को चुन कर भेजती है। सांसदों का दायित्व होता है जिस जनता ने उसे वोट देकर सदन में भेजा है, उसकी आकांक्षाओं पर खरा उतरे। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता की जिम्मेदार अहम होती है। कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। हालांकि उसके सदन में सांसदों की कुल संख्या का दसवां हिस्सा, अर्थात 55 सदस्यों की जगह मात्र 44 सांसद हैं तब नेता प्रतिपक्ष के लिए आवश्यक वेतन-भत्ता और अन्य सुविधाओं से वंचित होने के बावजूद देश में सत्ता पक्ष पर नकेल रखने और जनता के हितों की रक्षा करने की उसकी जिम्मेवारी की अहमियत इससे कम नहीं होती। ऐसे में कांग्रेस के मुख्य नेता को ही लोकसभा में विपक्ष की नेतृत्वकारी भूमिका का निर्वाह करना चााहिए। लोकसभी के बाद राज्यसभा में नेता का चुनाव करने का समय आया तो वहां भी कांग्रेस ने लोकतंत्र की कोई प्रक्रिया पार्टी के भीतर नहीं अपनाई। सोनिया गांधी ने रिमोट कंट्रोल की राजनीति को बरकरार रखते हुए गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में कांग्रेस का नेता बनाए जाने का फरमान जारी कर दिया। ऐसे में कांग्रेस में इन नेताओं से अब कोई ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती, जिससे पार्टी के भीतर लोकतंत्र कायम हो सके।
सोनिआ क्या करे ?कोंग्रेसी खुद रिमोट कंट्रोल व डांट फटकार तथा डंडे के डर से चलने वाले प्राणी है इन बेचारों में वे गुन ही नहीं रहे कि खुद कुछ कर सके अब कांग्रेस की यही किस्मत है
आज की कांग्रेस वह कहा रही आज तो सोनिया कांग्रेस दिखाई दे रही है तो फिर सोनिया जी का रिमोट कंट्रोल तो उसके नेताओ पर होगा ही इसमें क्या नयी बात है.