डॉ. मयंक चतुर्वेदी
यह सर्वविदित है कि जब देश ब्रिटिश संसद द्वारा पारित भारतीय स्वातंत्र्य अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत आजाद हो रहा था तो तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के आधीन भारत को दो भागों में विभाजित करके दोनों भागों को डोमिनियन स्टेट्स प्रदान किया गया था। जिनमें से एक भारत था तो दूसरे का नाम पाकिस्तान था । देशभर की देशी रियासतों को उसी अधिनियम में निहित प्रावधानों के तहत यह अधिकार दिया गया था कि वे दोनों डोमिनियनों में से जिसके साथ जाना चाहें जा सकती हैं या अपने को स्वतंत्र भी रख सखती हैं । उस वक्त कुछ को छोड़कर अधिकांश रियासतें स्वप्रेरणा से भारतीय गणराज्य का हिस्सा बन गईं थीं किंतु उन कुछ रियासतों में से जो या तो स्वतंत्र रहना चाहती थीं या फिर वह पाकिस्तान के साथ जाना चाहती थीं में से जम्मू-कश्मीर, महाराजा हरि सिंह की रियासत भी ऐसी थी जो पहले भारत के साथ न मिलकर स्वतंत्र अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहती थी।
इसी के साथ इतिहास का एक सच यह भी है कि जम्मू–कश्मीर रियासत ने आगे अपने अपारहित भारत के साथ देखे और समग्रता के साथ अपना विलयीकरण भारत गणराज्य में कर दिया । उस समय जम्मू-कश्मीर तो भारत में मिल गया था किंतु आगे जिस तरह से 20 अक्टूबर 1947 को पाक-कबायली और पाक सेना द्वारा जम्मू-कश्मीर पर सशस्त्र हमला किया गया और यहां के नागरिकों पर वीभत्स अत्याचार किये गये, उसे देखते हुए बिना समय गवांए भारतीय फौजे श्रीनगर पहुंच गई थीं और उन्होंने बहुत तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ना आरंभ कर दिया था। तभी तत्कालीन प्रधान मंत्री पं. नेहरू का अपने कश्मीरी मित्र शेख अब्दुल्ला की बातों में आ जाना और कश्मीर मुद्दे का गृहमंत्री सरदार पटेल की बात न मानते हुए अंतर्राष्ट्रीय करण कर देना वास्तव में वो बड़ी भयंकर भूल थी जिसकी वजह से आज भी कश्मीर सुलग रहा है और जिसके कारण से अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं।
इतना सब होने के बाद भी लगता है कि कांग्रेस अपने बीते इतिहास से कुछ सबक लेना नहीं चाहती । वह कश्मीर मामले में कुछ न कुछ ऐसा कर बैठती है, जिसे सुनकर और देखकर कहना पड़ता है कि कांग्रेस अपनी पिछली गलतियों से भी कुछ सीखना नहीं चाहती । जबकि देश कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी से इस प्रकार की अपेक्षा कतई नहीं करता है।
वस्तुत: वर्तमान विवाद मोदी सरकार को घेरने की कोशिश में लगी कांग्रेस का यह है कि उसने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर आंच नाम से जारी एक बुकलेट में कश्मीर को भारत अधिकृत कश्मीर बता दिया है । इस बुकलेट के पृष्ठ क्रमांक 12 पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का मानचित्र प्रकाशित है। इस मानचित्र में कश्मीर का नक्शा भी दिखाया गया है । कश्मीर के नक्शे पर अंग्रेजी में इंडियन ऑक्यूपाईड कश्मीर (भारत के कब्जे वाला कश्मीर) लिखा हुआ है। इस पुस्तक को कांग्रेस के महासचिव गुलाम नबी आजाद ने सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना करने के साथ मीडिया के बीच बंटवाया था।
कांग्रेस की नई राजनीतिक अलोचना की शुरूआत यहीं से होती है। जब भाजपा एवं अन्य राजनीतिक-सामाजिक संगठनों ने इस विषय को लेकर कांग्रेस को घेरा तो उसने सफाई दी कि यह प्रिंट की गलती है। क्या कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह इस प्रकार की गलतियां करने की गुंजाइश अपने यहां रखे, जबकि उसे पता है कि उसके एक नेता पं. नेहरू की गलती जम्मू-कश्मीर मामले पर इतनी भारी पड़ी है कि देश आजतक उसे भुगत रहा है।
सभी जानते हैं कि 1947 में हुआ क्या था ? जम्मू कश्मीर नेहरू के ‘असफल’ राजनीतिक मॉडल का एक स्पष्ट उदाहरण है। महाराजा हरि सिंह के नियंत्रण में जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र 2.25 लाख वर्ग किलोमीटर का था लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की ‘असफल’ राजनीति के चलते भारत के हिस्से में उस क्षेत्र का मात्र एक लाख वर्ग किलोमीटर ही आया, बाकी पाकिस्तान द्वारा कब्जा कर लिया गया जिसे आज गिलगित,बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर कहा जाता है । वस्तुत: जब 1948 में पाकिस्तान से आए कबाइली आक्रमणकारियों को कश्मीर से खदेड़ा जा रहा था, तो नेहरू को संघर्ष विराम की घोषणा नहीं करनी चाहिए थी। अचानक ही बिना किसी कारण के, जो आज तक ज्ञात नहीं हो सका कि क्यों संघर्ष विराम की घोषणा कर दी गई। यह इसी का परिणाम है कि हमारे सामने आज भी कश्मीर की समस्या है और इस एक फैसले की वजह से कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के पास है।
इसके बीच कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसने यह गलती पहली दफे नहीं की है। कश्मीर को लेकर पिछले साल 18 अगस्त को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने विवादित बयान दिया था जिसके बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई थी। इसमें भी दिग्विजय ने कश्मीर को भारत अधिकृत बताया था । पूरे देश में कांग्रेस की जमकर आलोचना भी हुई थी और देश की जनता से दिग्विजय को तो छोड़िए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से इस मुद्दे पर सार्वजनिक माफी मांगने तक के लिए कहा था। इस विवाद के कुछ पहले जाएं तो तत्कालीन पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी पीओके को लेकर अपना विवादास्पद बयान दिया था। जिस पर कि कांग्रेस ने इससे पल्ला झाड़ते हुए उसे खुद सलमान खुर्शीद का बयान बताया था और कहा था कि इससे पार्टी का कोई लेना-देना नहीं।
इस सब के बीच बड़ा प्रश्न यह है कि क्यों कांग्रेस जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर बार-बार अपनी असंवेदनशीलता दिखा रही है। आखिर क्यों कांग्रेस के नेताओं में इस मसले को लेकर तालमेल नजर नहीं आता। क्या इसका मतलब यह माना जाए कि कांग्रेस पाकिस्तान को दोषमुक्त करना चाह रही है? या फिर वर्तमान सरकार को घेरने के लिए वह इतनी उतावली है कि उसे सही और गलत देखने-समझने तक का समय और विवेक उसके पास शेष नहीं बचा है ? देश कम से कम राष्ट्रीय मुद्दों के साथ इस तरह के खिलवाड़ की उम्मीद तो कांग्रेस से कतई नहीं रखता है। कांग्रेस इस बात को जितना जल्दी समझे उतना ही देश हित में होगा ।