पदोन्नति में आरक्षण

विपिन किशोर सिन्हा

कोई भी व्यक्ति या संस्था अगर सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करती है, तो पूरे देश में एकसाथ बवाल मच जाता है, लेकिन अगर सरकार ही इस संवैधानिक संगठन के आदेश को मानने से इंकार कर दे, तो क्या किया जा सकता है! केन्द्र की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर सीएजी, सीबीआई, सीवीसी तक प्रत्येक स्वायत्तशासी संगठन को अपने अनुसार चलाने का कार्य किया है। अगर इन संगठनों ने देशहित और न्याय के हित में सरकार के अनुकूल कोई काम नहीं किया तो सरकार ने इनकी विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एनडीए के कार्यकाल में अपना निर्णय देते हुए प्रोन्नति में आरक्षण को अवैध घोषित किया था। सारी राजनीतिक पार्टियों ने वोट की राजनीति करते हुए संविधान में संशोधन करके प्रोन्नति में आरक्षण को बहाल कर दिया। इसके खिलाफ़ विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने देश के लगभग प्रत्येक भाग से विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की। सभी याचिकाओं को एकसाथ सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च महीने में प्रोन्नति में आरक्षण को खारिज़ करते हुए अपना निर्णय सुनाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण संविधान में वर्णित समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन है। नौकरी में आरक्षण को जायज ठहराते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि नौकरी प्राप्त करने के समय सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए समानता प्राप्त करने हेतु आरक्षण उचित है लेकिन एक बार समानता प्राप्त कर लेने के बाद पुनः आरक्षण देना अपने कुछ नागरिकों को जाति के आधार पर विशेषाधिकार देने के समान है जो संविधान की मूल आत्मा के हनन के समान होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी बार प्रोन्नति में आरक्षण के खिलाफ़ अपना निर्णय सुनाया। इसपर गंभीरता से सोच-विचार के बदले सरकार ने अपनी सत्ता की रक्षा हेतु बसपा सुप्रीमो मायावती के तुष्टीकरण के लिए संविधान में संसोधन करना ही मुनासिब समझा। बिल राज्यसभा से पारित हो चुका है और लोकसभा से भी इसका पारित होना निश्चित है। मुलायम सिंह यादव की सपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दल संगठित दलित वोटों की चाहत में इसका विरोध करने में अपने को असमर्थ पा रहे हैं।

सत्ता की राजनीति ने इस देश का जितना अकल्याण किया है, उतना विदेशी शासकों ने भी नहीं किया है। देश के बंटवारे से लेकर समाज के विभाजन के खेल खेले गए। सारे देश को सन २०२० तक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना दिखाया जाता है परन्तु अक्षम और अयोग्य व्यवस्था के साथ क्या यह सपना पूरा किया जा सकता है? प्रोन्नति में आरक्षण के कारण सभी ऊंचे पदों पर आरक्षित जातियों के अधिकारी और कर्मचारी छा जाएंगे। उनसे दक्ष और वरिष्ठ अधिकारी तथा कर्मचारी अपने मूल पद से ही सेवानिवृत्ति के लिए वाध्य होंगे जैसा उत्तर प्रदेश में मार्च २०१२ के पहले हो रहा था।

मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक होने के बाद सन १९७८ में तब के उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में सहायक अभियन्ता के पद पर नियुक्ति के साथ नौकरी शुरु की थी। नियम के अनुसार मुझे सात वर्षों के बाद अधिशासी अभियन्ता के पद पर पहली प्रोन्नति मिलनी चाहिए थी। लेकिन नहीं मिली। मेरे साथ सहायक अभियन्ता के पद पर नियुक्ति पाने वाले मेरे ही साथियों को जो अनुसूचित जाति से आते थे, सात वर्ष के बाद प्रोन्नति मिल गई। वे सात वर्षों के बाद अधिशासी अभियन्ता, अगले पांच वर्षों के बाद अधीक्षण अभियन्ता और उसके अगले तीन वर्षों के बाद मुख्य अभियन्ता के पद पर प्रोन्नति पा गए। मैं २६ वर्षों तक अपने मूल पद पर सहायक अभियन्ता के रूप में कार्य करता रहा जबकि आरक्षित वर्ग के मेरे साथी और कनिष्ठ २० वर्षों में ही प्रबन्ध निदेशक के उच्चतम पद पर आसीन थे। इस दौरान मुझे अपने से १५ साल जूनियर अधिकारी की मातहती में काम करना पड़ा। मुझे लगातार कई वर्षों तक उत्कृष्ट कार्य करने का प्रमाण पत्र भी मिला लेकिन यह किसी काम का नहीं था। मैंने सन २००४ में अधिशासी अभियन्ता के पद पर पहला प्रोमोशन पाया और आठ साल बाद पिछले मई में अधीक्षण अभियन्ता का प्रोमोशन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद पाया। देश के सारे प्रदेशों में कमोबेस यही स्थिति है। देश की सारी विकास योजनाएं राज्य सरकारों द्वारा ही लागू की जाती हैं। राज्य सरकारों में विभिन्न विभागों में सर्वोच्च पदों पर नीति निर्धारक और कार्यान्यवन अधिकारी के रूप में जाति के आधार पर आरक्षण पाए अधिकारी ही उपलब्ध होंगे जिनपर विकास की जिम्मेदारी होगी। उनकी टीम में सबसे निचले स्तर पर वे लोग होंगे जो उनसे वरिष्ठ, कुशल, दक्ष और प्रतिभाशाली हैं। जातीय आधार पर बंटे प्राशासकीय तंत्र से किस तरह के चमत्कार की उम्मीद की जा सकती है। एक तरफ होंगे भग्न हृदय, भग्न मनोबल वाले निम्न अधिकारी और कर्मचारी तथा दूसरी ओर होंगे राजनीतिज्ञों से अभयदान प्राप्त आरक्षित वर्ग के कनिष्ठ और अपेक्षाकृत अकुशल अधिकारी/कर्मचारी।

राजनीतिक दलों को न देश की चिन्ता है, न विकास की और ना ही सामाजिक समरसता की। उनकी आंखें तो सिर्फ कुर्सी पर है चाहे वह जिस विधि मिले –

तमाम मुल्क अंधेरे में डूब जाए तो क्या,

वो चाहते हैं कि सूरज उन्हीं के घर में रहे।

 

7 COMMENTS

  1. supreem court nhi संसद सर्वोच्च है और राईट टू रिकॉल नही होने से सरकार के किसी फैसले को बिना सरकार गिरे रोका नही जा सकता. दुसरे जितना गलत प्रमोशन में आरक्षण देना है उतना ही जातिवाद के करण सही पात्र होते हुए भी किसी दलित को आगे बढने से रोकना भी है. हमारे देश में ये पक्षपात जमकर हो रहा है ये बात तमाम सर्वे साबित करते हैं.

  2. पदोन्नति में आरक्षण है सामुहिक भ्रष्टाचार!
    आरक्षण देश की उन्नति में हो, पदोन्नति में नहीं—जापान, देश की उन्नति कैसे आरक्षित करता है? जानिए।
    जपानी शैली का आरक्षण उस देश की उन्नति कर पाया है।
    कडा परिश्रम आरक्षित किया जाता है, जापान में।
    (१) जापान में एक कर्मचारी एक कार ९ दिन में बना देता है, जब अन्य सभी देशों को ४७ दिन लगते हैं। {परिणाम: समृद्धि पांच गुना हुयी} समृद्धि नोट या वोट से नहीं, पर उत्पादन से आती है।
    (२) सामान्यतः जपान में प्रत्येक कर्मचारी प्रतिवर्ष २४५० घंटे,
    संयुक्त राज्य अमरिका का कर्मचारी १९५७ घंटे,
    संयुक्त राज्य U K का कर्मचारी १९११ घंटे,
    जर्मनी का कर्मचारी १८७० घंटे,
    फ्रान्स का कर्मचारी १६८० घंटे काम करता है।
    भारत का कर्मचारी, कितने घंटे? आप बताइए।
    (३) आरक्षण आप भारत की उन्नति जिस विधि से हो, उसका करें।(निष्पक्ष देशहितकारी चिन्तक एकत्रित बैठे, किसी भी पक्ष से ऊपर उठकर निर्णय ले}
    (४) १९४५ में हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु बम्ब से जो विध्वंस हुआ, लाखों (हजारो नहीं) नागरिक उसमें मारे गये, उस जपान नें उन्नति की?
    –पूरा आलेख इस विषय पर बन(समय मिलने पर, बनेगा ) जाए इतनी सामग्री मेरे पास है।
    जापानी का विकास भी इसी हेतुसे किया गया।
    महाराज,जब जपान उठ खडा हुआ, क्या कारण था? हम नहीं उठ पाए?
    ==>केवल पढने के लिए सारी सहायता आरक्षित हो, जैसा अमरिका में भी है।<===
    पर पदोन्नति में, आरक्षण, मैं मत पाने के लिए, "सामुहिक भ्रष्टाचार" मानता हूँ।
    केजरीवाल, बाबा रामदेव, और अन्ना हज़ारे—-इत्यादि मंडली इस पर ध्यान दें।
    क्यों देश को खाई में ढकेल रहे हो, मेरे भारत?

  3. ye satta ke lalachu log samaj ko varg vigrah ki or le ja rahe hai inko pata nahi ki ye log kya karne ja rahe hai satta ki lalach me andhe or vicharsunya ho gaye hai

  4. फूट डालो राज करो की नीति सदा कामयाब रही है और रहेगी .अंग्रेजो ने इस नीति को अपने चमचे नेहरू को बताया और नेहरू ने अपने वंशजो को. दलित वर्ग अच्छी तरह से जानता है की ये गलत है पर बिना मांगे ही मोती मिल जाये तो कौन छोड़ेगा. F D I के लिए मुलायम सिंह को बेवकूफ बनाया तो इस इल को पास करवाने के लिया कम्युनिस्ट गधों को . काबिल लोग घर बैठ कर माथा पीटें.

  5. मधुसूदन जी,
    आपने बिल्कुल सही कहा – भारत से प्रतिभा पलायन का मुख्य कारण देश में प्रतिभा का दमन है। कोई भी राष्ट्र अपने ही लोगों की प्रतिभा का इस तरह दमन कर कभी विकास नहीं कर सकता। लेकिन अपने क्षुद्र स्वार्थ की काली पट्टी बांधे इन नेताओं को कुर्सी के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता।

  6. ऐसे आरक्षण के कारण भारत की प्रतिभाएं धनाढ्य़ देशॊं को और धनी करने में व्यस्त है। अन्ततोगत्वा भारत की हानि हो रही है। कितने बुद्धिमान प्रवासी भारतीय जानता हूँ, जिन्हों ने भारत में बहुत प्रयास करने के पश्चात परदेश में धनी देशों को और धनी करने में योगदान दिया।
    क्या आपके परिवार से प्रतिभा सम्पन्न बेटे को आप दूसरे परिवार को सम्पन्न बनाने दान कर दोगे?
    जागो जागो मेरे भाई अपने पैरों पर ऐसी कुल्हाडी ना मारो।

    भारत तेरा उन्नति का मार्ग कहीं, नर्क में जाता नहीं ना?
    आरक्षण का भस्मासुर तेरे सर पर हाथ रखता नहीं ना?

  7. सुना है, कि भगवान नें स्वर्ग में प्रवेश के लिए भी आरक्षण लागु कर दिया है।
    जो पाप करेगा, वही स्वर्ग में प्रवेश पाएगा।
    पुण्यवान अब नर्क में जगह पाएगा।
    (१) सारे राजनितिज्ञ जब अस्पताल में भरती होंगे, तो उनकी शल्य क्रिया आरक्षित डाक्टरों से करवाई जाएं।
    (२)विमान चालक, बस चालक, प्रधान मंत्रीका कार-चालक सभी आरक्षित कर्मचारियों द्वारा ही सम्पन्न हो।
    कालेज-शाला-शिक्षा की भी क्या आवश्यकता?
    चुनाव भी कोई आवश्यक नहीं। आरक्षित मन्त्री ही आप ही आप चुना जाए।
    गधे को घोडा बनाओ, और घोडे को गधा कहा जाए।
    अब शब्द कोष में भी बदलाव लाओ.
    उठो जागो और मर जाओ.

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