आकाशवाणी तब – हारमोनियम पर प्रतिबन्ध

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harmonium

बी एन गोयल
18 अप्रैल 1980 के रात 8.45 के समाचारों में प्रसारित एक समाचार ने संगीत जगत में हर्षातिरेक की एक लहर पैदा कर दी थी. समाचार था कि आकाशवाणी द्वारा हारमोनियम पर गत चार दशकों से लगाये गए प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया गया है. संगीतकारों के लिए एक सुखद समाचार. इस समाचार का प्रायः सभी ने स्वागत किया था. प्रसारण कर्मियों की आज की पीढ़ी को शायद मालूम भी नहीं होगा और काफी लोगों को विश्वास भी नहीं होगा कि लगभग 40 वर्षों तक हारमोनियम के लिए रेडियो से प्रसारण का दरवाज़ा बंद था. वैसे हारमोनियम और ढोलक को संगीत के मूल वाद्य यंत्रों के रूप में सभी जानते हैं. आम भाषा में हारमोनियम को हारमुनी अथवा पेटी भी कहते हैं.
1963 में नौकरी में आने के बाद काफी समय तक मेरा भी इस तरफ ध्यान नहीं गया लेकिन धीरे धीरे बातचीत में पता लगा कि उस समय रेडियो में हारमोनियम का नाम लेना एक अपराध जैसा है. इतिहास के पृष्ठ पलटे – यह 1939 का समय था हारमोनियम के पक्ष और विपक्ष में अनेक बातें कही जाती थी. कुछ लोग इसे संगीत के विरुद्ध मानते थे. और किसी की बात न भी करे – लेकिन गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर ने भी इस के विरोध में आवाज़ उठाई. कोलकाता केंद्र पर उस समय केंद्र निदेशक थे श्री अशोक कुमार सेन. गुरुदेव ने उन्हें एक पत्र लिखा –
उत्तरायण, शान्तिनिकेतन, बंगाल
January 19/ 21 1940 –
Ref: DO, GC, 1414 dated 17.1. 40

Dear Asoke,
I have always been very much against the prevalent use of the harmonium for purposes of accompaniment in our music and it is banished completely from our asrama. You will be doing a great service to the cause of Indian music if you can get it abandoned from the studios of All India Radio.

Yours sincerely,
Rabindranath Tagore

Sj Ashoke Kr. Sen
All India Radio
1, Garstin Place, Calcutta.

गुरुदेव का यह पत्र एक प्रकार से आकाशवाणी के लिए ही नहीं वरन पूरे संगीत समाज के लिए एक आदेश था. भारतीय प्रसारण के सब से पहले कंट्रोलर ऑफ़ ब्राडकास्टिंग लायनल फील्डन ने इसे पहले ही भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रतिकूल कहा था.1940 की ही बात है – दिल्ली केंद्र पर वेस्टर्न म्यूजिक के निदेशक थे जॉन फौल्ड्स और मुंबई केंद्र पर वाल्टर कॉफमन- जो आकाशवाणी की संकेत धुन के जन्मदाता कहे जाते हैं. इन दोनों की दृष्टि में हारमोनियम एक गैर भारतीय और संगीतात्मकता रहित यन्त्र था. इन सब का परिणाम हुआ कि 1 मार्च 1940 को महानिदेशालय ने सभी केन्द्रों को तुरंत प्रभावी पत्र लिख कर प्रसारण में हारमोनियम के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया गया. केन्द्रों को निर्देश दिया गया कि वे हारमोनियम यन्त्र का उपयोग प्रसारण अथवा रिहर्सल आदि के लिए भी बिलकुल न करे और यन्त्र को नीलाम कर दें जिस से की वह केंद्र पर दिखाई भी न दें. इस निर्देश का विरोध न केवल कलाकारों ने किया वरन हारमोनियम बनाने वाले और संगीत यंत्रों के बेचने वालों ने भी किया. संगीत के प्रसिद्ध कलाकारों में लखनऊ संगीत अकेडमी के अध्यक्ष एस एन रतंजानकर ऐसे व्यक्ति थे जिन ने हारमोनियम के प्रतिबन्ध का समर्थन किया. 1950 में सरदार पटेल के निधन के बाद कुछ दिनों के लिए आर आर दिवाकर सू० प्र० मंत्री बने और मई 1951 में डॉ. बी वी केसकर ने यह पद भार सम्हाला. अप्रैल 1962 तक इन का कार्यकाल था. ये स्वयं ध्रुपद धमार के गायक थे और शास्त्रीय संगीत के पुरोधा. फ़िल्मी संगीत के प्रति इन का इतना घोर विरोध था कि इन के समय में भारतीय फिल्म संगीत का प्रसारण और उस से होने वाली सारी आय तत्कालीन रेडियो सीलोन के पास चली गयी थी. डॉ. केसकर के जाने के बाद डॉ. गोपाल रेड्डी सू० प्र० मंत्री बने और उन के सामने हारमोनियम के प्रतिबन्ध को हटाने की मांग उठने लगी. इस सम्बन्ध में डॉ. रेड्डी का पुणे में कुछ लोगों ने घेराव भी किया था लेकिन डॉ. रेड्डी ने प्रतिबन्ध नही हटाया. 31 वर्ष के बाद श्री के के शाह के मंत्रित्व काल में मंत्रालय ने महानिदेशालय से इस विषय पर एक सेमीनार आयोजित करने के लिए कहा. इस सेमिनार में बड़े बड़े संगीतकारों और विशेषज्ञों को निमंत्रित किया गया. इस में कुछ निर्णय लिए गए जैसे –
(1) एक प्रयोग के तौर पर हारमोनियम का उपयोग केवल ‘A’ ग्रेड अथवा इन से ऊपर के कलाकारों के साथ एक संगत यन्त्र के रूप में किया जाये.
(2) हारमोनियम का प्रसारण एकल (Solo)यन्त्र के रूप में केवल उच्च कोटि के हारमोनियम वादक द्वारा ही होना चाहिए.
वास्तव में 1970 के प्रारम्भ से ही इस प्रतिबन्ध को हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी. कुछ उच्च स्तरीय कलाकार ऐसे भी थे जिन्हें आदर भाव के कारण आकाशवाणी उनकी हारमोनियम संगत जैसी मांग को नकार नहीं सकती थी . इन में प्रमुख थे – आफ़ताबे मुसिकी फैयाज़ खां साब, उस्ताद अमीर खां, बेगम अख्तर, बंगाल के ज्ञान प्रकाश घोष, मुनेश्वर दयाल, दिनेश चन्द्र मित्र, मोंटू बनर्जी प्रमुख नाम थे .1980 आते आते हारमोनियम प्रसारण पर लगा प्रतिबन्ध धीरे धीरे कम होने लगा और अंततः 18 अप्रैल 1980 के सांयकालीन समाचार बुलेटिन में इस पर लगे सभी प्रतिबन्ध समाप्त करने की घोषणा कर दी गयी. साथ साथ हारमोनियम के एकल (सोलो) वादन को भी स्वीकार कर लिया गया. कुछ बड़े केन्द्रों पर इस तरह के अर्थात हारमोनियम के ‘BH’ और ‘A’ ग्रेड के कलाकार थे जैसा कि दिल्ली केंद्र पर महमूद धौलपुरी थे. इन को स्वतंत्र बुकिंग मिलनी शुरू हो गयी. संगीत कलाकारों के लिए यह एक स्वर्णिम दिवस जैसा था.

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

4 COMMENTS

  1. मुझे नहीं मालूम था कि कभी कहीं हारमोनियम पर निषेध अथवा प्रतिबंध था| जब पता चला तो मन में प्रश्न आया क्यों और कब प्रतिबंध था| मैं स्वयं सुर को कलाकार नहीं बल्कि उपभोक्ता होते शोर से प्रभावित नगाड़े के शोर और हारमोनियम के शोर में भिन्नता को अवश्य समझता हूँ| नगाड़े का शोर भीड़ को आह्नान है तो भजन कीर्तन करते हारमोनियम का शोर भीड़ की आत्मा है| फिरंगी राज और तत्पश्चात १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भीड़ से सदैव भय रहा है| फलस्वरूप इस और ऐसी किसी भी स्थिति में भीड़ पर नियंत्रण रखने के नए नए प्रपंच किये जाते रहे हैं|

  2. जानकारी के लिए गोयल जी बहुत बहुत धन्यवाद।
    (१) हार्मोनियम को शुद्ध मराठी में *संवादिनी* पढा हुआ है।
    (२) हार्मोनियम पर स्वरों की कंपन संख्या अचल (Fixed) होने के कारण, उसपर साथ देने में गायक के स्वर के साथ मेल कर सुसंवादिता उपजाने में कठिनाई होती है— ऐसा सुना हुआ है–और सही भी प्रतीत होता है।
    (३) तंतुवाद्य (सारंगी) पर उचित स्थान पर (आगे पीछे) स्पर्श कर समान (Frequency)कंपन संख्या उपजाई जा सकती है। —-ऐसा मैंने संगीतकारों से सुना हुआ है। (मेरा अपना अनुभव-ज्ञान नहीं है।)
    (४) –आपके आलेख की जानकारी बडी मह्त्वपूर्ण है।—धन्यवाद।
    (५) मैं हार्मोनियम पर निम्न स्तर का वादन स्वयं के आनंद के लिए करता रहता हूँ।
    पर जानकार नहीं हूँ।

    • प्रिय डॉ. मधुसूदन – मुझे न संगीत का ज्ञान है और न ही सुरों का. हारमोनियम के बारे में जो कुछ देखा अथवा सुना वह लिख दिया. हमारे यहाँ आकाशवाणी में स्वर परीक्षा के समय हारमोनियम की संगत निषेध है क्योंकि इस के कारण कलाकार के स्वर की पहचान नहीं होती. बात वस्तुतः वही है जो आपने (2) पर कही है – आप की टिप्पणी से मेरा लेखन सफल हो जाता है.

      • आ. गोयल महोदय –नमस्कार
        <> अच्छी जानकारी (मुझे नहीं थीं) ।
        आप की उदारता को नतमस्तक हूँ।
        कृपांकित —मधुसूदन

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