11 मार्च 2011 के दिन, 2 और 3 बजे के मध्य जब अन्य दिनों की भांति अपने काम काज में लगा था। फलोसीमा और ऐवातो जैसे शहरों पर प्रकृति की ओर से ऐसी विपत्ति आई कि न केवल जापान बल्कि विश्व ने ऐसी तबाही नहीं देखी। और लोग अपने अपने घरों, स्कूलों और दफ्तरों से निकल कर सड़कों पर आ गए थे। रोज रोज भूकम्प देखने वाले बहादुर जापानियों ने इतना बड़ा प्रलय तो अपने जीवन में नहीं देखा इतिहास खाली रहा होगा। इतनी बड़ी त्रासदी न तो किसी ने सुनी होगी और न ही देखी होगी। 9 की रफ्तार आए इस भूकम्प ने फिलो शीमा और युवातों के भवनों को कागज की भांति हिला रहा था। इन प्रान्तों में हर जगर सरकारी साइरन बजने लगे, निवासियों को समझ में नहीं आ रहा था कि वह आखिर कहां जाएं और अपनी जान कैसे बचायें। समुद्र से उठते कई मीटर ऊंचे लहरों ने इतना भयावह सोनामी पैदा कर दिया कि लोगों का बच पाना असंभव सा दिखाई देने लगा था। जापान में आये भूकम्प और सोनामी से दोनों प्रान्तों में 88415 लोग मारे गए, 1476 लोग घायल हुये और 6362 लोग आज तक लापता हैं। उस दिन के तूफान ने न केवल जापान के तटीय शहरों को तबाह किया बल्कि जापान के मध्य भागों जैसे टोकियो के अतिरिक्त अन्य स्थानों को भी बुरी तरह क्षति पहुंचाई और जान व माल का काफी नुकसान हुआ था। जापान सरकार के द्वारा अधिकारी तौर पर जो आंकड़े दिये गये हैं उसके अनुसार तीन वर्ष पूर्व आये उस तूपफान में 290127 भवन आंकड़े दिये गये हैं, उसके अनुसार तीन वर्ष पूर्व आये उस तूफान में 290127 भवन ध्वस्त हुये और न केवल असंख्य लोगों की जाने गई बल्कि जापान की अर्थव्यवस्था और संसाधनों को बड़ा नुकसान पहुंचा, जिसमें बड़ी संख्या में सड़के टूटीं, रेलवे लाइन्स खराब हुई, प्रमुख डेमो में दरारे पड़ी और उस समय के जापान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि जापान में इतनी क्षति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार हुआ है। जापान में 15 लाख घरों में पानी की आपूर्ति बाधित हुई थी। इस तूफान ने जापान के परमाणु संयंत्र पर मानो एक प्रकार से प्रकोप ही डाला और आपान स्थित अनेको परमाणु संयंत्र, या तो क्षतिग्रस्त हो गये, अथवा उसे बंद कर देना पड़ा। फेकोसिमा स्थित जापान के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र में दरार के बाद पानी घुस जाने के कारण परमाणु घटना घटित हुई और लाखों लोगों को खाली करवाना पड़ा और अंतरराष्ट्रीय परमाणु संघ की ओर से जापान की आलोचना हुई और विश्व के देशों को अपने अपने परमाणु संयंत्र की निरीक्षण पर विचार करना पड़ा। जापान की जनता के ओर से जापान से जापान की सरकार पर इतना दबाव पड़ा के सरकार ने अपने देश भर में पचास से अधिक परमाणु घरों को बंद कर दिया और देश में बिजली की मांग को पूरा करने के लिए हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से बिजली की आपूर्ति शुरू की गई।
जापान की जनता ने इतने बड़े प्रकृति त्रास्दी और प्रकोप के बावजूद हिम्मत बनाए रखा और जापान की सरकार ने न तो अन्तराष्ट्रीय बिरादरी और न ही किसी अन्य शक्तिशाली देशों के समक्ष घुटने टेके बल्कि अपने बूते ही अपने आप को पुनः स्थापित किया और अपने तटीय शहरों और सूनामी से पूरी तरह तबाह हुये स्थानों में पुनः रौनक से भर दिया और इन शहरों को देखकर लगता ही नहीं कि कभी यह सब तबाह हो गया था। जापानियों ने अपने विरान शहरों को पहले से भी अधिक सुन्दर अपने दम पर बना डाला है। तटीय शहरों पर सुन्दर सुन्दर भवनों और व्यापार पिफर से शुरू हो गण् हैं। सड़के पहले से अधिक महबूत और आधुनिक बन गये हैं। अर्थात् इन तीन वर्षों की अवधि में जापान ने अपने आप को पहले से भी अधिक बेहतर स्थिति में अपने आप को ला खड़ा किया है। बिना किसी बाहरी सहयोग के! यह किसी उदाहरण से कम नहीं है और जापान की जनता एवं सरकार के जज्बों को सलाम है।
यह जापान ही था , जापान ही है जो कर सकता है , जो द्वितीय युद्ध के बाद पूर्णतया नष्ट होने के बाद उठ खड़ा हुआ था , व विश्व को जिसने चकरा दिया था ,समपर्ण उस राष्ट्र का चरित्र है भारतीयों छोटे से मुल्क से ही सीख लेने जरुरत है