प्रधानमंत्री पर लगाए कांग्रेसी आरोपों के सही जवाब

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

कुछ जवाब ऐसे होते हैं जो बिना कहे दिए जाते हैं,  जैसे भारतीय लोकतंत्र में जनता ने केंद्र में सरकार बदलकर दिया या भाजपा ने सरकार बनाने से पहले जो वायदे किए उस और जीत हासिल कर वह जनता के प्रश्न खड़े करने के पहले ही उत्तर देने लगी। लेकिन इसके बाद भी कुछ प्रश्न इस प्रकार के उत्पन्न होते रहेंगे जिनका निराकरण और उन्हें लेकर लगातार की जिज्ञासाओं का शांत करने का काम केद्र की सरकार और भाजपा को करते रहना होगा, संभवत: तभी उसके देश हित में किए जा रहे कार्यों के तात्कालिक और दूरगामी परिणाम निकलेंगे। यह कहने के पीछे का आशय बिल्कुल स्पष्ट है, देश को हम मिल-जुल कर ही शक्ति सम्पन्न बना सकते हैं ना कि एक-दूसरे के ऊपर मिथ्या आरोप लगाकर देश का कुछ भला कर पायेंगे।

हाल ही में विपक्ष के स्वभाव के अनुसार कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस पार्टी ने कालेधन, प्रधानमंत्री के ऑस्‍ट्रेलिया दौरे, किसान विकास पत्र दोबारा शुरू करने जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरते हुए उस पर निशाना तो साध दिया किंतु उसने यह नहीं सोचा कि देश में इसका क्या संदेश जाएगा। आरोप लगाने के पहले कांग्रेस को नैतिकता के आधार पर क्या यह नहीं सोचना चहिए कि अभी-अभी पांच महिने की सरकार को कठघरे में खड़ा करना कितना औचित्यपूर्ण है ? क्यों कि जो काम कांग्रेस अपने दस सालों के कार्यकाल में नहीं कर सकी है, कम से कम उन कार्यों को सत्ता में बैठते ही प्रमुखता से करने के लिए भाजपा ने अपने एजण्डे में तो शामिल किया है।

लम्बे समय से भारतीय उद्योगपतियों की यह शि‍कायत रही है कि जिस प्रकार अमेरिका, चीन, जापान, कोरिया तथा इजराईल जैसे बड़े-छोटे देश अपने उद्यमियों का सहयोग करने आगे आते हैं और स्वय एक संप्रभु राष्ट्र होने के बाद भी दूसरे देशों के प्रमुखों से व्यापारिक स्तर की बाते करते हैं। अपने यहां के उद्योगपतियों के लिए व्यापार के नए-नए रास्ते बनाते हैं, भारत सरकार की ओर से उस प्रकार का सहयोग देश के उद्योगपतियों को नहीं मिलता है। वैसे यहां कांग्रेस का जो आरोप है, वह है कि ऑस्‍ट्रेलिया में कोयला खनन के लिए अडानी की कंपनी को मोदी की शह पर एसबीआई से लोन दिलाया गया । प्रधानमंत्री के कारण ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने छह हजार करोड़ रुपए का लोन अडानी को दिया। अडानी माइनिंग इन रुपयों से ऑस्‍ट्रेलिया के क्‍वींसलैंड में कोयला खनन के लिए काम करेगी। कांग्रेस का आरोप यह भी है कि अदानी समूह पर पहले से ही 72 हजार करोड़ रुपये का ऋण बकाया है, साथ ही कंपनी लगभग तीन करोड़ रुपये की डिफाल्‍टर है। पहले अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के छह बैंकों ने अडानी को ऋण देने से इंकार कर दिया था, ऐसे में एसबीआई ने किस आधार पर आडानी को अपने यहां से ऋण दिया है ?

वस्तुत: एसबीआई से स्वीकृत अडानी लोन के इस पूरे प्रकरण में भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहां है, यह समझ में नहीं आ रहा है।  कांग्रेस को कैसे लगता है कि मोदी के कहने पर अडानी को लोन मिला है, यदि अडानी समूह पहले छह बैंकों में लोन के लिए प्रयास कर चुका है तो कांग्रेस को यह बात क्यों नहीं समझ में आती कि यदि भारत का प्रधानमंत्री किसी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद के लिए सामने आ जाए तब भला किस बैंक की हिम्मत होगी कि वह अपने देश के प्रधानमंत्री की बात को तरजीह न दे। जबकि कांग्रेस कह रही है कि पहले अडानी ने अन्य बैंकों से ऋण प्राप्त करने की कोशि‍श की थी जहां से उनको ना बोल दिया गया। यहां सभी को समझना होगा कि कोई भी बैंक इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह किसे कितना ऋण स्वीकृत कर प्रदान करे। ऋण दे भी या ना दे। आरबीआई के नियमों का पालन करते हुए सभी बैंक अपनी नीतियों का निर्धारण करती हैं। हर बैंक ग्राहक को रुपए उधार देते वक्त यह जरूर अच्छी तरह देखती है कि उसकी कुल संपत्त‍ि और प्रतिभूतियां कितनी हैं। ऐसा तो नहीं कि ऋण लेने वाला व्यक्त‍ि या संस्थान बैंक से लिया गया उधार चुका ना पाए। वास्तव में यह जांच-परखकर ही कोई बैंक अपने यहां ऋण स्वीकृत करती हैं। आडानी के मामले में भी ऐसा ही है।

हां, यह संभावना जरूर हो सकती है कि भारत का कोई व्यापारी विदेश में अपना कारोबार शुरू करने जा रहा है तो उसे वहां की सरकार और स्थानीय लोगों का पूरा सहयोग मिले, इसके लिए मोदी सरकार के विदेश विभाग से जुड़े अधि‍कारियों ने आस्ट्रेलिया में उच्च स्तर पर बात की हो। यदि ऐसा हुआ भी है तब भारत सरकार की यह अवश्य ही सार्थक पहल कहलाएगी। इस पर किसी की न शि‍कायत होनी चाहिए और न ही कोई स्यापा करना चाहिए। वस्तुत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई यह पहल आगे के लिए नज़ीर का काम करेगी। क्यों कि इस माध्यम से भारत के अन्य उद्यमियों के लिए भी सरकार द्वारा सहयोग करने के कूटनीतिक रास्ते खुल जायेंगे। आखि‍र चीन और अमेरिका आज क्या कर रहे हैं, यही काम वह वर्षों से करते हुए अपने देश को आर्थ‍िक रूप से सबल करते आ रहे हैं। यदि भारत की ओर से अब देर से ही सही इस दिशा में पहल की गई है तो वाकई इस बात का विपक्ष को भी स्वागत करना चाहिए था ना कि कांग्रेस इस बात पर केंद्र सरकार को विशेषकर प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा करती।

कांग्रेस का एक आरोप यह भी है कि मोदी ने गौतम अडानी को आस्‍ट्रेलिया में कोयला खनन कर भारत की जरूरतों का पूरा करने के लिए कहा है जबकि अगले दो सालों में भारत अपने ही कोयले से अपनी जरुरतों को पूरा कर सकता है। यहां कहने के लिए यह है कि कांग्रेस भी आज मान रही है कि भारत के पास अपनी आवश्यताओं को पूरा करने के लिए सिर्फ दो वर्षों का कोयला बचा है। प्रश्न लाजमी है दो वर्ष बाद क्या होगा ? आस्ट्रेलिया तो अभी-अभी  युरेनियम देने को राजी हुआ है, उस पर भी देश में परमाणु ताप संयत्रों की संख्या गिनतीभर है लेकिन अ‍धि‍कांशत: हमारी विद्युत जरूरतें कोयले से पूरी होती हैं। सरकार यदि पहले से अपनी जरूरतों के लिए इंतजामात नहीं करेगी को फिर कैसे व्यवस्थि‍त होंगी देश की व्यवस्थायें ?

कांग्रेस और अन्य भाजपा के विपक्षि‍यों को समझना होगा कि आडानी कोयला निकालेंगे भविष्य में उसे केवल भारत को नहीं देंगे, जहां जिस देश को उसकी जरूरत होगी एक उद्यमी होने के नाते वह उस कोयले का व्यापार उस देश के साथ करेंगे। इससे जो धन मिलेगा उससे एसबीआई का ऋण तो चुकेगा ही साथ में और भी नए काम खड़े होंगे जिसके परिणाम स्वरूप देश में रोजगार बढ़ेगा तथा एक कंपनी का रूपया किसी भी रूप में सही भारत में आएगा। इस प्रकार यदि भारत की एक-एक कंपनी ताकतवर हो जाए तो भविष्य में भारत कैसा होगा आज यह बात देश की जनता भली-भांति समझ सकती है।

 

इसी प्रकार कांग्रेस जो किसान विकास पत्र को लेकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशि‍श कर रही है वह भी निराधार है क्यों कि जहां तक भ्रष्टाचार का प्रश्न है, वह जितना उसके शासन में बढ़ा आज यह देश की जनता अच्छी तरह से जानती है। वास्तव में केंद्र की किसान विकास पत्र शुरू करने की पहल की प्रशंसा सभी को इसलिए भी करना चाहिए कि कम से कम इसके कारण ही सही आने वाले दिनों में पोस्ट ऑफिसों की स्थि‍तियां सुधरेंगी। धन आने से जैसे बैंक एवं अन्य उद्यम अपनी व्यवस्थायें बनाते हैं, आने वाले धन का अधकितम उपयोग कर उसे और बढ़ाने का प्रयास करते हैं कम से कम किसान विकास पत्र के माध्यम से यह काम यहां भी व्यापक पैमाने पर शुरू हो सकेगा। जहां तक इसे लेकर भ्रष्टाचार का प्रश्न है तो जिसे भ्रष्टाचार करना होता है वह कई प्रकार के रास्ते खोजकर रखता है, उसके लिए किसान विकास पत्र औचित्यहीन है, क्यों कि वह यहीं अपना धन लगाने के लिए बैठा नहीं रहेगा।

इसके अलावा कांग्रेस का एक आरोप केंद्र सरकार पर  विदेशों में जमा कालेधन को वापिस लाने को लेकर किए गए वायदे का है।  जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो उसने भी देश की जनता से वायदा किया था। जब कांग्रेस का जवाब था कि वह विदेशों में भ्रष्टाचार के द्वारा जमा भारतीय धन को भारत में वापिस लाने के लिए प्रतिबद्ध है। देखते ही देखते सालों गुजर गए लेकिन धन वापिस आना तो दूर वह सूची भी ठीक से जारी नहीं कर सकी थी जिन्होंने देश को लूटकर विदेशी बैंकों में भारतीय रूपया जमा किया हुआ है। कम से कम वर्तमान सरकार इस दिशा में सक्रियता से प्रयास करने में तो लगी है। सरकार इस मामले को लेकर नए सिरे से सोच रही है। वह नवीन कानून बनाने में लगी है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्य देशों के साथ भारत की नीति कैसी होनी चाहिए इन दिनों इस दिशा में डाक्युमेंट तैयार किए जा रहे हैं। क्या देश की जनता केंद्र सरकार के यह सभी प्रयास नहीं देख रही है ?  जो आज कांग्रेस इसे एक बड़ा विषय बनाकर सरकार घेरने के प्रयास कर रही है।

केंद्र में नयी सरकार बने कुछ ही माह अभी बीते हैं, कांग्रेस को थोड़ा धैर्य रखना होगा। भारत की जनता ने उन्हें लगातार दस वर्षों का समय दिया था देश बनाने और दुनिया पर छा जाने के लिए, इन वर्षों में उसने जो किया, आज वह देश जानता है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने दूसरे रेडियों संबोधन में स्पष्ट कहा है कि प्रधान सेवक की बातों पर भरोसा करो, जो कहा गया, जिन वायदों के परिणामों से केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है वे सभी संकल्प पूरे किए जायेंगे। तब आज हमें अपने प्रधानसेवक की बातों पर विश्वास रखना ही होगा और अभी उन्हें कुछ समय देकर देखना होगा कि उनके लिए गए निर्णय देश को किस ओर ले जा रहे हैं। फिलहाल देश की जनता में मोदी के कार्यों और निर्णयों की वर्तमान में सुखद अनुभूति है आगे भी यह बनी रहे यह हमें निरंतर देखने की जरूरत है। यदि भविष्य के अनुभव सरकार को लेकर सुखद नहीं रहे तो कांग्रेस को कुछ कहने और करने की जरूरत नहीं होगी। जनता सब जानती है, इस सरकार का क्या करना है वह खुद ही तय कर लेगी।

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