सूचना का अधिकार और सरकार की अस्वस्थता : मा. गो. वैद्य

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सूचना अधिकार का कानून (राईट टू इन्फर्मेशन ऍक्ट) हमारे देश में है. इस अधिकार के अंतर्गत, सामान्य नागरिक सरकारी निर्णयों के बारे में, अनजाने या जानबूझकर अकारण गोपनीय रखी जानकारी पूछ सकता है और संबंधित विभाग को वह देनी पड़ती है. इस अधिकार के कारण, अनेक सरकारी घोटाले, सही में मंत्री और अन्य सरकारी अधिकारियों ने किए घोटाले सामने आए है. युवराज राहुल गांधी कहते है, और वह सच भी है कि, कॉंग्रेस की सरकार ने ही यह कानून पारित किया है. लेकिन इसके साथ यह भी नहीं भूल सकते कि महान् समाजसेवक अण्णा हजारे ने भी ऐसा कानून बने, इसके लिए आंदोलन किया था.

प्रधानमंत्री द्वारा आलोचना

इसके साथ ही यह भी सच है कि, यह कानून पारित करने के बारे में कॉंग्रेस सरकार के रणनीतिकारों को पछतावा हो रहा है. १२ अक्टूबर २०१२ को ‘केन्द्रीय सूचना आयोग’ (सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन) द्वारा आयोजित सातवे राष्ट्रीय ‘सूचना अधिकार’ विषयक अधिवेशन (नॅशनल आरटीआय कॉन्फरन्स) में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने विद्यमान सूचना अधिकार के कानून की तीव्र आलोचना की. उन्होंने कहा, ‘‘सूचना के अधिकार का बहुत ही हल्के तरीके से (Frivolous) उपयोग किया जा रहा है जो खीझ (Vexatious) निर्माण करता है.’’ उन्होंने आगे कहा कि, ‘‘सूचना का अधिकार और निजी जीवन/जानकारी के बीच की सीमारेखा हमने समझनी चाहिए. हमारे संविधान ने, जीवन और निजीता (Private life) के सुरक्षा का मूलभूत अधिकार दिया है. इस मूलभूत अधिकार का सम्मान रखा ही जाना चाहिए; इसके लिए जानकारी का जो विद्यमान कानून है, उसकी मर्यादा सीमित की जानी चाहिए.’’ ‘‘इस कानून का विधायक काम के लिए ही उपयोग होना चाहिए. सरकारी कामकाज में अधिक तत्परता लाकर, सरकारी यंत्रणा अधिक लोकोपयोगी बनाने के लिए यह कानून है. सरकारी अधिकारियों का उपहास कर, उनकी बदनामी करने के लिए यह कानून नहीं है,’’ ऐसा कहकर, निजी और सरकारी हिस्सेदारी के उद्योगों के बारे में इस कानून को स्वैर प्रवेश देने का उन्होंने विरोध किया है.

विशेषज्ञ समिति का मत

निजीता की सुरक्षा के लिए क्या प्रावधान करें इस बारे में सिफारिस करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति ए. पी. शाह की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की है ऐसी घोषणा प्रधानमंत्री ने इसी अधिवेशन में की. प्रधानमंत्री का भाषण होने के एक सप्ताह बाद ही शहा की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट आई. दिलचस्व बात यह है कि, इस विशेषज्ञ समिति का मत प्रधानमंत्री के मत के एकदम विरुद्ध है. विशेषज्ञ समिति के मतानुसार, निजीता की सुरक्षा के लिए विद्यमान ‘सूचना के अधिकार’ में पर्याप्त प्रावधान है. इसके लिए विद्यमान कानून की सीमाओं का आकुंचन करने का कारण नहीं. प्रधानमंत्री और कॉंग्रेस के मंत्रिमंडल में के अनेक मंत्री, इसी समय नीजिता की सुरक्षा के लिए क्यों छटपटा रहे है, ऐसा प्रश्‍न किसी के भी मन में निर्माण हो सकता है. उसका उत्तर खोजना बहुत कठिन नहीं.

अस्वस्थता का कारण

कॉंग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने स्वास्थ्य तथा अन्य कारणों के लिए विदेश दौरे किए है. सूचना का अधिकार यह जानना चाहता है कि, इसके लिए हुआ खर्च सरकार ने किया है या सोनिया जी ने? इसमें अनुचित क्या है? सोनिया जी ने वह खर्च किया होगा, तो अन्य किसे ने उसमें मुँह मारने का कारण नहीं. लेकिन वह खर्च सरकार ने किया होगा, तो नागरिकों को उस बारे में पूछने का अधिकार है. सरकारी पैसा, जनता से वसूल किए कर से आता है. इस कारण, उस पैसे के विनियोग के बारे में प्रश्‍न पूछने का अधिकार जनता को है. सोनिया जी के विदेश दौरे के बारे में प्रश्‍न उपस्थित होने के बाद, सरकार ने बताया कि, वह खर्च सरकार ने नहीं किया. बस्. विषय समाप्त. लेकिन सोनिया जी के संदर्भ में वह प्रश्‍न है, इस कारण वह सौ प्रतिशत नीजि साबित होता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता.

वढेरा का मामला

तथापि, सोनिया जी की अपेक्षा उनके दामाद रॉबर्ट वढेरा के लिए सरकार ने दी जमीन का प्रश्‍न अधिक चुभने वाला है. जमीन सरकार ने मतलब हरियाणा सरकार ने दी. वह सही दाम में दी, या रॉबर्ट वढेरा कॉंग्रेस की अध्यक्ष के दामाद होने के कारण उन्हें सस्ते में दी और उसे बेचकर उन्होंने भरपूर मुनाफा कमाया, यह जानने का अधिकार नागरिकों को है. हरियाणा में की जमीन, वहॉं के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रसिंह हुड्डा की नीजि जमीन होती, तो प्रश्‍न पूछने का कोई औचित्य नहीं था. लेकिन वह सरकारी जमीन थी; मतलब जनता की थी; उसे अपनी मर्जी के अनुसार बॉंटने का अधिकार न हुड्डा को है, और न हरियाणा सरकार को. यह ठीक हुआ कि, इस जमीन के सौदे में कुछ भी बेकायदा नहीं, यह सरकार ने स्पष्ट किया है. लेकिन वह जमीन बेचकर वढेरा ने प्रचंड पैसा कमाया होगा, तो उस बारे में, सरकार से पूछताछ करने में कुछ भी अनुचित नहीं.

मंत्री या चाटुकार?

वास्तव में वढेरा ने ही स्वयं सामने आकर अपना बचाव करना सही होता. भाजपा केअध्यक्ष नीतिन गडकरी के समान, मेरे सब आर्थिक व्यवहार की किसी भी सरकारी यंत्रणा से जॉंच कराए ऐसा उन्होंने छाती ठोककर बताना चाहिए था. लेकिन वे कुछ भी नहीं बताते, और इस अवसर का लाभ उठाकर, उनके बचाव के लिए केन्द्र में के अनेक मंत्री जब सामने आते है, तब वहॉं कुछ गडबड है ऐसा ही लगेगा. कोई ऐसा न कहे ऐसा किसी का अभिप्राय होगा, तो केन्द्रीय मंत्री सोनिया गांधी के परिवार के शागीर्द है, ऐसा कहना पड़ेगा. वे जनप्रतिनिधि होने के कारण नहीं, गांधी परिवार के चाटुकार होने के नाते वहॉं तक पहुँचे है, ऐसा निष्कर्ष निकालना होगा.

इन मंत्रियों ने क्या कहा यह ध्यान देने लायक है. नए परराष्ट्र मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा, ‘‘गांधी परिवार के लिए मैं जान भी दूँगा.’’ इतना ही कहकर वे रूके नहीं. वढेरा के विरुद्ध आरोप लगाने वाले ‘भ्रष्टाचार विरोधी भारत’ आंदोलन के एक अग्रगण्य नेता ऍड. प्रशांत भूषण को गांधी परिवार से संबंधित विवादित मामले कैसे मिलते है, ऐसा भी प्रश्‍न उन्होंने उठाया. हम ऐसा मान ले कि, प्रशांत भूषण एक भ्रष्ट व्यक्ति है. लेकिन इससे वढेरा का निर्दोषित्व कैसे सिद्ध होता है? फिर मनीष तिवारी आगे आए. बोले, केजरीवाल और कंपनी भाजपा की बी-टम है. होगी भी. यह बी-टीम ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विरुद्ध भी आरोप लगा रही है, इसके बारे में तिवारी जी का क्या स्पष्टीकरण है, यह तो उन्हें ही पता होगा. फिर राजीव शुक्ला ने कमान संभाली. उन्होंने कहा, सरकार और वढेरा के बीच कोई साठगांठ नहीं है. लेकिन यह सब वढेरा को बताने दो! प्रशांत भूषण को भी हिमाचल प्रदेश में ऐसी ही जमीन मिली है, ऐसा उन्होंने कहा. लेकिन इससे भी वढेरा को हरियाणा सरकार की ओर से औने-पौने दामों में जमीन मिलने का भेद कैसे खुलता है? बाद में मोईली आगे बढ़े. तुरंत कर्नाटक के राज्यपाल भी वढेरा को बचाने दौड पड़े. अन्य एक मंत्री जयंती नटराजन् से टी. व्ही. चर्चा में इस बारे में प्रश्‍न पूछे जाने पर वे हडबडा गई. बहुत क्रोधित हुई. यह सब आरोप बेशरमी के है, ऐसा कह दिया. सूचना मंत्री अंबिका सोनी ने कहा, केजरीवाल राजनीति में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए ऐसे आरोप लगा रहे है. लेकिन राजनीति में हो या जनता के बीच, अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने का उद्योग करना अपराध है? वे सूचना एवं प्रसार विभाग की मंत्री है! इस कारण उन्होंने टी. व्ही. चॅनेल्स पर भी आरोप लगाया कि, चैनेल्स, केजरीवाल के आरोपों को अमाप प्रसिद्धि देकर, उनकी सहायता कर रहे है! टी. व्ही. वाले क्या करें, यह भी तो श्रीमती सोनी बताएँ? केन्द्रीय मंत्रिमंडल में ऐसे बालबुद्धि के लोग होंगे, ऐसी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. खुर्शीद से सोनी तक, सब ने अपने अपने मंत्री पद का दुरुपयोग किया है. उस पद का अपमान किया है. डॉ. मनमोहन सिंह कहते है कि, व्यक्ति की नीजिता की सुरक्षा होनी चाहिए. यह माना भी जा सकता है. लेकिन वढेरा जैसे नीजि (सामान्य) व्यक्ति के बचाव के लिए, मनमोहन सिंह की पूरी सरकार इतनी सक्रिय होने का क्या कारण है? इस प्रश्‍न का सम्यक उत्तर प्रधानमंत्री से अपेक्षित है.

नीजि की मर्यादा

यह सर्वविदित है कि, अनेक सरकारी उपक्रमों में सरकार और नीजि उद्योगपतियों की भागीदारी है. इन नीजि उद्योगपतियों के उद्योगों की सुरक्षा नहीं हुई, तो विकास योजनाओं पर परिणाम होगा ऐसा कहा जा रहा है. लेकिन यह सयुक्तिक नहीं. नीजि उद्योजक सरकारी उपक्रम का भागीदार होने के बाद, उसकी नीजिता समाप्त होती है. उसके व्यक्तिगत जीवन के संदर्भ में, मतलब उसकी पत्नी कौन, बच्चें क्या करते है, उनके क्या उद्योग है – इत्यादि संबंधित प्रश्‍न ही ‘नीजि’के अंतर्गत आएगे. उनकी सरकारी उद्योगों में की भागीदारी और उनकी ही भागीदारी क्यों, अन्य उद्योजकों को दूर रखा गया होगा तो क्यों, यह पूछने का अधिकार जनता को है.

अक्ल ठिकाने आई

अनेक मंत्रियों का यह जो हास्यास्पद वर्तन हुआ और स्वयं प्रधानमंत्री ने भी, सूचना आयोग के अधिवेशन में जो कहा, उस सब का एक अच्छा परिणाम हुआ. चारों ओर से उन पर आलोचना के कोडे बरसे और सरकार की अक्ल ठिकाने आई. सूचना अधिकार की कक्षा आकुंचित करने का जो सरकार का मानस था और उस मानस के अनुसार, सरकार उस कानून में बदल करने की योजना बना रही थी, उसे ब्रेक लग गया. सरकारी कामाकज फाईलों पर चलता है. उन पर सरकारी अधिकारी उनकी श्रेणी के अनुसार अभिप्राय दर्ज करते है. उन टिप्पणियों को सूचना के अधिकार से बाहर रखें, ऐसा निर्णय सरकार ने निश्‍चित किया. उसके अनुसार सरकार ने संशोधन भी तैयार किया. इन संशोधनों को केन्द्रीय सेवा आयोग (युनियन पब्लिक सर्व्हिस कमिशन) का समर्थन भी हासिल था. दूसरा संशोधन, केन्द्रीय सेवा आयोग जो स्पर्धा परीक्षा लेता है, उन परीक्षाओं की प्रक्रियाओं को, सूचना के अधिकार से परे रखने का था. शायद इस संशोधन की सूचना आयोग की ही ओर से आई होगी और सरकार ने वह मान्य की होगी. यह संशोधन तैयार थे. मंत्रिमंडल ने उन्हें सम्मति भी दी थी. लेकिन उस संबंध में विधेयक संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया था. वह किसी भी समय प्रस्तुत किया जा सकता था. लेकिन ताजा समाचार यह है कि, सरकार ने अपना यह इरादा बदल दिया है. केवल सर्वोच्च न्यायालय के कार्यालय को इस कानून की परिधी से परे रखें या नहीं, केवल इस पर ही विचार किया जा रहा है. वह शीघ्र ही पूर्ण होगा, और सरकारी निर्णय यथाशीघ्र जनता के सामने आएगा, ऐसी आशा है. केवल रक्षा मंत्रालय अथवा खुफिया विभाग की ही जानकारी गोपनीय होनी चाहिए. फाईलों पर की अधिकारियों की टिप्पणियॉं भी, सूचना के अधिकार से परे रखी गई, तो ‘आदर्श’ घोटाले में फँसे महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों जैसे लोगों के घोटाले कभी सामने आ ही नहीं सकते. तात्पर्य यह कि, सूचना के अधिकार का कानून उपयुक्त है. उसकी धाक सरकारी यंत्रणा पर होनी ही चाहिए. अपना प्रशासन स्वच्छ और पारदर्शी हो, ऐसी मन से इच्छा रखने वाली सरकार ने तो ऐसे कानून का सच्चे मन से स्वागत ही करना चाहिए.

(अनुवाद : विकास कुलकर्णी )

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