ऋग्वेद के आठवें मण्डल का संस्कृत-हिन्दी भाष्य वा भाषानुवाद विषयक जानकारी

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मनमोहन कुमार आर्य

महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में वेद प्रचार को सबसे अधिक महत्व दिया। सभी मत व सम्प्रदायों के बीच यदि भविष्य में कभी एकता हो सकती है तो केवल वेद के आधार पर ही हो सकती है। वेद ज्ञान की उपस्थिति में किसी इतर मत की आवश्यकता ही नहीं रह जाती क्योंकि वेद व इनका ज्ञान अपने आप में पूर्ण ज्ञान है जिसमें धर्म, समाज, राजधर्म व विज्ञान आदि बीज रूप में सभी कुछ विद्यमान हैं तथा जो सत्य, ज्ञान एवं विज्ञान सम्मत भी है। इसी कारण वेद प्रचार के लिए ही ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश और ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया। ऋषि दयानन्द को तीव्र गति से वेदभाष्य का कार्य करते हुए सन् 1883 ईसवी आ गया था। वह यजुर्वेद का सम्पूर्ण भाष्य संस्कृत व हिन्दी में कर चुके थे। ऋग्वेद के सातवें मण्डल का भाष्य चल रहा था। वह सातवें मण्डल के अनुवाक 4 सूक्त 61 के दूसरे मन्त्र तक का भाष्य कर चुके थे। तभी उन्हें जोधपुर में विष दिया गया जिससे आगे के वेदभाष्य का कार्य सर्वथा रूक गया। इससे मुख्यतः आर्यों व विश्व के लोगों की भी महती हानि हुई। जो लोग ऋषि की मृत्यु के षडयन्त्र में भागीदार बने वह सब मानवता के शत्रु थे, उन्हें कोटिशः धिक्कार है। परमात्मा से उन सभी को उनके इस दुष्कृत्य का यथावत् दण्ड अवश्य ही मिला होगा। ऋषि की मृत्य के बाद वेदों के शेष भाग के भाष्य का कार्य उनके अनेक शिष्यों व अनुयायियों ने किया है जो सम्प्रति अनेक प्रकाशकों से उपलब्ध होता है।

परोपकारिणी सभा, अजमेर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की उत्तराधिकारिणी सभा है। परोपकारिणी सभा ने महर्षि दयानन्द कृत यजुर्वेद और ऋग्वेदभाष्य सहित इन वेदों के हिन्दी भाषाभाष्य भी प्रकाशित किये हैं। विगत अनेक वर्षों से परोपकारिणी सभा से ऋग्वेद का जो संस्कृत-हिन्दी दोनों भाषाओं में भाष्य मिलता है उसमें आठवें मण्डल का भाष्य उपलब्ध नहीं होता। हमारे पास परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित वेदभाष्य का पूरा सैट है परन्तु इसमें ऋग्वेद का आठवां मण्डल नहीं है। हमने सभा से अनेक बार पता भी किया है, परन्तु कुछ कारण हैं कि आठवें मण्डल का भाष्य उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। हमसे भी हमारे अनेक मित्रों ने अतीत में इसके विषय में पूछताछ की। कल भी गुरुकुल पौंधा के मित्रों ने आठवें मण्डल का परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित भाष्य उपलब्घ कराने के लिए कहा जिसकी उन्हें किसी परीक्षा के संबंध में आवश्यकता है। इस विषय में हमें याद पड़ता है कि हमने इस विषय में पहले भी कुछ लिखा था। आज हमने पुनः इसकी जांच पड़ताल की। हमारे पास परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ऋग्वेद का जो भाष्य है वह ऋषि दयानन्द जी का किया हुआ पूरा भाष्य है। सातवें मण्डल के अनुवाक 4 के सूक्त 61 के मन्त्र 3 से इस मण्डल के अन्त तक का किया हुआ ऋषिभक्त पं. आर्यमुनि जी का संस्कृत-हिन्दी भाष्य भी है। यह भाष्य सभा ने प्रथववार सम्वत् 2046 विक्रमी अर्थात् सन् 1990 के आसपास प्रकाशित किया था। इसके बाद ही आठवां भाग भी सभा ने, यदि प्रकाशित किया हो, तो प्रकाशित किया होगा। हो सकता है कि किन्हीं कारणों से प्रकाशित ही न किया हो। हमें इसकी पूरी जानकारी नहीं है। सभा द्वारा प्रकाशित ऋग्वेद के नवम् मण्डल का भाष्य भी हमारे पास है। यह भी महामहोपाध्याय श्रीमदार्यमुनि जी द्वारा निर्मित है। हमारे पास जो प्रति है वह नवम मण्डल के भाष्य का दूसरा संस्करण है जो संवत् 2056 विक्रमी अर्थात् सन् 2000 का प्रकाशित है। इसका प्रथम संस्करण संवत् 1976 विक्रमी अर्थात् ईसवी सन् 1920 में प्रकाशित हुआ था। इससे अनुमान् होता है कि आठवां संस्करण भी इन दोनों के बीच, इससे पूर्व व बाद में प्रकाशित हुआ हो। विगत अनेक वर्षों से यह उपलब्ध नहीं हो रहा है। हमसे जब कुछ मित्रों ने मांग की तो हमने स्थानीय वैदिक साधन आश्रम तपोवन के पुस्तकालय में भी इसे ढूंढा था वहां भी यह उपलब्ध नहीं था। अब हमें ऐसा अनुमान होता है कि शायद किसी कारण से यह परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ही न हुआ हो। यदि प्रकाशित होता तो इसकी प्रति कहीं किसी के पास अवश्य उपलब्ध होती। इसकी यथावत् जानकारी के लिए ही हमने यह पंक्तियां लिखी है।

यह भी बता दें कि हमारे पास सार्वदेशिक सभा, दिल्ली द्वारा अक्तूबर, 2014 में प्रकाशित ऋग्वेद का हिन्दी भाष्य (संस्कृत भाष्य का भाषानुवाद) है जो सम्भवतः आर्यमुनि जी द्वारा किया हुआ ही है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल के इस हिन्दी भाष्य की हमारी प्रति में भाष्यकार के नाम के स्थान पर महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत शब्द छपे हुए हैं जबकि ऋषि तो यह भाष्य कर ही नहीं सके थे। यह मुद्रण व प्रैस की त्रुटि वा प्रूफ रीड़िग आदि की भूल प्रतीत होती है। हमारा अनुमान है कि यह हिन्दी भाष्य पं. आर्यमुनि जी द्वारा किया गया हो सकता है। यदि हम गलत हो तो पाठक कृपया हमें इसकी जानकारी देने की कृपा करें।

आर्यसमाज के विद्वान पाठकों से हम यह भी निवेदन करते हैं कि वह सूचित करने की कृपा करें कि किन ऋषिभक्त आर्य विद्वानों ने ऋषि कृत ऋग्वेद के सातवें मण्डल के बाद वेदों का संस्कृत व हिन्दी भाष्य-भाषानुवाद  ऋषि दयारन्द की वेदार्थ शैली का अनुगमन करते हुए किया है। पं. आर्यमुनि, स्वामी ब्रह्ममुनि, पं. शिवशंकर शर्मा आदि हमें वह विद्वान लगते हैं जो वेदभाष्य करने की योग्यता से सम्पन्न थे। अन्य अनेक विद्वान भी इस कार्य को करने में सक्षम रहे होंगे व किसी विद्वान ने वेदभाष्य किया भी हो सकता है। इनमें से किसी विद्वान ने सातवें मण्डल का अवशिष्ट भाग तथा आठवें मण्डल व उसके बाद के शेष भाग पर संस्कृत-भाष्य किया या नहीं, यह भी जानने की इच्छा है। स्वामी ब्रह्ममुनि जी का दसवें मण्डल का भाष्य हमारे पास है। हम आशा करते हैं कि आर्य विद्वानों से हमें इस विषयक जानकारी अवश्य मिलेगी।

हमारा यह भी अनुरोध है कि यदि किसी विद्वान मित्र के पास ऋग्वेद के आठवें मण्डल का संस्कृत-हिन्दी भाष्य हो तो वह कृपया हमें अवगत कराने की कृपा करें। हम उनके आभारी रहेंगे

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