ऋषि वेलेण्टाइन को प्रणाम

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saint valentineहमारा देश अपने मूल स्वरूप में रूढि़वादियों या परंपराओं का देश तो नही है पर यहां भेड़चाल बहुत चलती है। लोग बिना इस बात का आगा-पीछा देखे और बिना ये सोचे-समझे कि अमुक परंपरा का क्या उद्देश्य है या वह क्यों प्रचलित की गयी-उसकी लकीर पीटते रहते हैं। जब किसी परंपरा के शुद्घ वैज्ञानिक और वास्तविक अर्थ का पता न होकर उसे केवल अपनाये रखना अनिवार्य हो जाता है तब उसका वास्तविक स्वरूप कहीं विद्रूपित होते-होते पूर्णत: प्रदूषित हो जाता है, यह प्रदूषित स्वरूप ही रूढि़वाद होता है।
अब ‘वेलेण्टाइन-डे’ को ही लें। इसे हम परंपरा से निर्वाह कर रहे हैं, बिना इसके वास्तविक अर्थ और संदर्भ को जाने। यदि हम इस दिवस पर थोड़ा चिंतन करें, तो इसे अपनाने के पीछे शुद्घ भारतीय चिंतन और भारतीय-संस्कृति को अपनाने की वेलेण्टाइन की सोच का पता चलते ही उस महामानव ‘ऋषि’ के समक्ष हमारा मस्तक स्वयं ही झुक जाएगा। इस महामानव यूरोपियन ऋषि का जन्म 478 ई. में हुआ था। उस समय यूरोप में लोग परिवार की कल्पना करना भी नही जानते थे। वे नही जानते थे कि व्यक्ति की एक पत्नी हो सकती है अथवा किसी महिला का एक पति हो सकता है, जिससे जन्म लेने वाली संतानों से एक परिवार जैसी अद्भुत संस्था का जन्म हो सकता है और यह परिवार ही अंत में विश्व को भी एक संस्था या महापरिवार बनाने की एक संकल्पना की सूत्रधार हो सकती है।

ऋषि वेलेण्टाइन ने अपने समकालीन समाज में देखा कि लोग (स्त्री-पुरूष) पशुओं की भांति रहते थे, और उसी प्रकार संभोग कर लिया करते थे। उससे जन्मी संतान का कोई पिता नही होता था। इसलिए कोई परिवार भी नही होता था। ऋषि वेलेण्टाइन ने भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों का बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन किया था। जिससे उन्हें पता चला कि भारत में परिवार जैसी एक पवित्र संस्था होती है, पर उस संस्था का विकास विवाह जैसे  पवित्र संस्कार से ही होता है, जिसके लिए एक स्त्री को एक पुरूष के साथ तथा एक पुरूष को एक स्त्री के साथ अनिवार्यत: बंधना पड़ता है। ऋषि वेलेण्टाइन ने गंभीर चिंतन किया और उसे संपूर्ण यूरोप में लागू कराने का एक सुंदर अभियान चलाया। उनका लक्ष्य था कि भारतीय विवाह संस्कार प्रणाली को अपनाओ और अपने समाज का सुधार करो।

इस प्रकार एक समाज सुधारक वेलेण्टाइन ने अपने देश और समाज का सुधार करना आरंभ कर दिया। उनकी बात को सुनने वालों की संख्या में धीरे-धीरे वृद्घि होती गयी। लोग उनकी बात पर श्रद्घा और विश्वास करने लगे। फलस्वरूप वेलेण्टाइन ने उन्हें एक साथ विवाह संस्कार में बांधना आरंभ किया। उससे पूर्व की यूरोप की स्थिति पर भी विचार करना अपेक्षित होगा। प्लेटो जैसा दार्शनिक कहता है-‘‘मेरा 20-22 स्त्रियों से संबंध रहा है।’’ अरस्तू का कथन है कि उसने कितनी ही स्त्रियों से संपर्क किया। रूसो का कहना है कि एक स्त्री के साथ रहना तो कभी भी संभव नही हो सकता। इससे पूर्व यूरोपियन समाज में स्त्री में जीवात्मा ही नही मानी जाती थी। उसे मेज-कुर्सी के समान माना जाता था, जब पुरानी से मन भर जाए, तब दूसरी ले आओ। इस पाशविकता को समाप्त करने के लिए ही वेलेण्टाइन कटिबद्घ हुए थे। एक प्रकार से उन्होंने उस समय यूरोपियन समाज को सुधारने के लिए एक क्रांति का सूत्रपात किया। यह एक ऐसी क्रांति थी जिस पर अब से पूर्व के किसी दार्शनिक का ध्यान नही गया था। इस प्रकार वेलेण्टाइन एक साहसिक व्यक्ति थे, जिन्होंने यूरोप को एक नई व्यवस्था में ढालने का साहसिक निर्णय लिया। वह रोम सहित यूरोप के कई नगरों में घूम-घूम कर यही प्रचार करते थे कि अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारो और सांस्कृतिक रूप से भारत का अनुकरण करो।

ऋषि वेलेण्टाइन की विद्वत्ता को देखकर उन्हें एक चर्च का पादरी बना दिया गया था। जिससे उन्हें अपनी चर्चा को और भी अधिक विस्तार देने का अवसर उपलब्ध हो गया था। उनका विरोध करने वाले लोग अब मैदान में उतरने लगे। ये वही लोग थे जो रूढि़वादी थे और अपने भीतर किसी प्रकार की सुधार की कोई संभावना नही देखते थे। परंतु वेलेण्टाइन ने इन सभी विरोधियों का तर्क और बुद्घि से सामना किया। जिससे उनके धैर्य और साहस का पता चलता है। वह बताते थे कि आजकल मैं भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अध्ययन कर रहा हूं, और मैं समझता हूं कि भारतीय संस्कृति अपने आप में पूर्ण है। यदि उसे आप लोग अपनाते हैं तो इससे संपूर्ण यूरोप का कल्याण हो सकता है।

जिन लोगों पर वेलेण्टाइन की बात का प्रभाव होने लगा था वे उनके पास चर्च में आते और अपने विवाह कराने का संकल्प लेते थे। उन्होंने भारतीय पद्घति को अपनाने वाले कितने ही स्त्री पुरूषों के विवाह करा दिये थे। जिस समय वेलेण्टाइन हुए थे उस समय रोम का राजा क्लौडियस था। उस राजा ने भी वेलेण्टाइन के कार्यों की निंदा करनी आरंभ कर दी। क्योंकि ‘वेलेण्टाइन’ के रहते उस राजा के व्यभिचारी होने पर प्रतिबंध लगना संभावित था। इसलिए उसने यूरोप को सुसंस्कृत बनाने का संकल्प लेने वाले वेलेण्टाइन को यूरोप में अपसंस्कृति फैलाने वाला कहकर संबोधित करना आरंभ कर दिया था, पर महापुरूषों पर किसी की निंदा या स्तुति का कोई प्रभाव नही पड़ा करता है, वे तो अपने पथ पर अटल रहकर आगे बढ़ते रहने को ही अपना धर्म मानकर कार्य करते रहने के अभ्यासी हो जाते हैं। अंत में जब क्लौडियस ने देखा कि वेलेण्टाइन अपनी बात पर अडिग है तो उसने उसे गिरफ्तार करवा लिया और उसे यूरोपियन समाज को भारतीय विवाह प्रणाली को अपनाकर एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज बनाने के आरोप में फांसी की सजा देकर समाप्त करा दिया। उस समय इस ऋषि की अवस्था मात्र 20 वर्ष की ही थी। इस ऋषि को यूरोप के निर्मम समाज के इस निर्दयी शासक ने 14 फरवरी  498 ई. को ही फांसी का दण्ड दिया था।

इस प्रकार 14 फरवरी एक क्रांतिकारी यूरोपियन ऋषि की पुण्यतिथि है। यह व्यभिचार, अनाचार, विलासिता या किसी भी प्रकार की अश्लीलता को समाज से मिटाने का एक ‘पवित्र संकल्प दिवस’ है। क्या ही अच्छा हो कि हमारा युवा वर्ग इस दिन को इसी रूप में अपनायें और समाज में यूरोप की प्राचीन पाशविक संस्कृति के बढ़ते प्रचलन पर रोक लगाने के लिए इस दिन विभिन्न विचार गोष्ठियों का आयोजन कराया जाए।

स्मरण रहे इस दिन यूरोप के लोग किसी एक निष्ठावान साथी के साथ विवाह संस्कार में बंधने का संकल्प लेते थे, हम भी इस परंपरा को इसी प्रकार आगे बढ़ा सकते हैं। पर ‘लिव इन रिलेशनशिप’ की बढ़ती सामाजिक कुरीति को मिटाकर ही इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। हम यह समझ लें कि रूढि़वादिता यूरोप की देन है, जो आज भी अपनी परंपराओं में जकड़ा पड़ा है और वहां आज भी शादियों को लेकर लोग ईमानदार नही हैं, पर भारत तो अपने मौलिक स्वरूप में सनातन है, इसे तो समझना चाहिए कि सत्य क्या है और उसे कैसे अपनाया जाए?

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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