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ऋतुराज बसन्त - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
शकुन्तला बहादुर आ गया ऋतुराज बसन्त। छा गया ऋतुराज बसन्त ।। * हरित घेंघरी पीत चुनरिया , पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई नव- समृद्धि पा विनत हुए तरु, झूम उठी देखो अमराई । आज सुखद सुरभित सा क्यों ये मादक पवन बहा अति मन्द ।। आ गया .... * फूल…