भोपाल में तय हुआ न्यू मीडिया का रोडमैप

 सामाजिक दायित्व, जबावदेही के साथ आर्थिक पक्ष के लिए जारी हुआ साझा एजेंडा

झीलों की नगरी भोपाल न्यू मीडिया की जबाबदेही के साथ ही उसको समृद्ध बनाने का गवाह बना है। इस मकसद को पूरा करने के लिए देश भर से न्यू मीडिया के संचारकों का जमावडा रविवार को भोपाल में लगा। मध्यप्रदेष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सभागार में आयोजित इस राष्ट्रीय मीडिय चैपाल में देष के न्यू मीडिया संचारकों ने छह बिंदुओं का एक साझा मसौदा जारी किया है, जिसमें सामाजिक दायित्व जबावदेही के साथ ही बेव के लिए आर्थिक मॉडल बनाने की बात शामिल है।इस मसौदे में स्वीकार किया गया है कि न्यू मीडिया वर्तमान मीडिया का ही विस्तार है, बावजूद इसके पहुंच प्रभाव और सरोकार के आधार पर वेब मीडिया को भी मुख्यधारा का माध्यम माना जाए। इस आधार पर इस माध्यम को भी पत्रकारिता की श्रेणी में मान्यता और कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए। इस चैपाल में राष्ट्र विरोधी बातें नेट में करने वाले ब्यक्तियों और समूहों की निंदा कर उस पर लगाम लगाने की जरूरत पर बल दिया गया। कार्यक्रम का आयोजन मध्यप्रदेष विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद एवं स्पंदन संस्था ने संयुक्त रूप से किया था।

इसके पूर्व उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह संपर्क प्रमुख राममाधव ने न्यू मीडिया को मीडिया का लोकतांत्रिकारण निरूपित किया। श्री माधव ने कहा कि आज के दौर में आभिव्यक्ति के लिए मुख्यधारा के माध्यमों में आमआदमी के लिए जगह कम है। जिसकी भरपाई यह न्यू मीडिया बखूबी कर रहा है। उन्होंने इस माध्यम को दायरे में सीमित करने पर असहमति जताई। उन्होंने कहा कि इससे इसका पैनापन खत्म हो जाएगा। उन्होंने न्यू मीडिया को मुख्यधारा की मीडिया के लिए एक बेहतर रिसोर्स भी स्वीकार किया। उन्होंने ने न्यू मीडिया को मिषनरी मीडिया मानते हुए कहा कि इसकी जबावदेही अधिक होने के साथ ही यह जबावदेही का वातावरण निर्माण करती है।इन साधनों से जनता शसक्त हुई है।यह जमीनी लोकतंत्र है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने न्यू मीडिया को एक अवसर माना। उन्होंने कहा कि कम्यूटर की भाषा में शून्य है या तो एक। इसलिए इस माध्यम के संचारकों भी या तो शून्य हो जाएंगे या तो मिलकर एक हो जाएंगे। इस माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ ही संरक्षण की सुविधा मिली है। अभिव्यक्ति की आजादी का आभूतपूर्व विस्तार हुआ है।इसे हम इंटरेक्टिव मीडिया कहें तो अतिश्‍योक्ति नहीं होगी। न्यू मीडिया ने अपना वर्चआल समाज खडा किया है। इससे हमारा वास्तविक समाज में कही कमी आ रही है। इसमें स्वछंदता को रोकने के लिए आत्मनियंत्रण की जरूरत है। इस मौके पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद वर्मा ने इस माध्यम में वैज्ञानिक पहलू को बढावा देने पर बल दिया। वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया ने कहा कि हम आज नॉलेज वर्कर के रूप में अधिक हैं, लेकिन जरूरत नॉलेज क्रियेटर बनने की है। स्पंदन के सचिव अनिल सौमित्र ने भी न्यू मीडिया को अधिक प्रभावी बनाने पर बल देते हुए उसके विस्तार पर प्रकाश डाला।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि सांसद प्रभात झा ने कहा कि शब्द ब्रम्ह होता है। ब्रम्ह समर्थ होता है और शब्द ही अनर्थ बनाता है। आज लोकतंत्र में बहस नहीं होती है। यह बहस ही लोकतंत्र को मजबूत बनाती है। देष की सबसे बडी संसद संवेदनशील नहीं है। मतबोध के आगे मनबोध की चिंता नहीं हो रही है। देश का सांसद जब बहरा और गूंगा हो तब न्यू मीडिया ही संभावना है। श्री झा ने कहा कि देश में सार्थक विरोध का सामर्थ खत्म हो गया है। लोकशाही में राजशाही दिखने लगी है। संचारकों में महात्मा गांधी को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ संचारक बताते हुए कहा कि उन्हें पता था कि क्या, किसे और क्या संदेश देना है। न्यू मीडिया को भी इसी तरह से काम करना होगा। देश को नजरंदाज कर न्यू मीडिया आगे बढेगा तो हम राष्ट्र के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि हमें दायित्व बोध करना होगा। जोडने की शर्त पर जुडेगे या तोडने की शर्त पर जुडेगे यह तय हमे करना है।

विशिष्‍ट वक्ता के रूप में उपस्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के कुलपति बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि पिछले 300 सालों ने एकतरफा संवाद चल रहा था। सामाजिक संवाद भी गिने चुने हाथों तक ही सीमिति रहा। इसी की न्यास संगत प्रतिक्रिया आज न्यू मीडिया है। इस माध्यम ने मानवता को जोडने का कार्य किया है। आत्मा के विकास का माध्यम बनने की संभावना इसमें है। लेकिन अभी भी न्यू मीडिया के सामने पहचान की चुनौती हैं। इस पर नियंत्रण नहीं हो सकता, लेकिन आत्मसंयम की जरूरत है। इस अवसर पर सभी सहभागियों ने ने अपनी बात रखी। (प्रेस विज्ञप्ति)

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