आत्महत्या दलित की या पिछड़े की ???

यह हमारा ही देश है, जहाँ अन्तिम संस्कार करने के पहले मृतक की जाति पता की जाती है। हैदराबाद में एक छात्र ने आत्महत्या क्या की, जाति की राजनीति पूरे देश में गरमा गई। इलेक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडिया ने छात्र को दलित बताकर धर्मयुद्ध छेड़ दिया। सारे नेताओं को अपनी-अपनी राजनीति चमकाने का एक स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो गया। देश की सहिष्णुता खतरे में पड़ गई। जो साहित्यकार धार्मिक असहिष्णुता के नाम पर अपना पुरस्कार वापस नहीं कर पाए थे, वे आगे आ गए। एक ने तो बिना थिसिस लिखे प्राप्त पीएच. डी. की डिग्री भी वापस कर दी। तभी मीडिया ने खबर दी कि आत्महत्या करने वाला छात्र दलित नहीं, पिछड़े वर्ग का था। कोई और यह खुलासा करता, तो उसे आर.एस.एस. या स्मृति इरानी का एजेन्ट करार दिया जाता, लेकिन सहिष्णुओं के दुर्भाग्य से यह रहस्योद्घाटन, आत्महत्या करने वाले छात्र रोहित वेमुला के सगे पिता वेमुला मणि कुमार ने किया है। रोहित के पिता ने कुछ ऐसे रहस्य बताए हैं जिसके आधार पर अगर रोहित ज़िन्दा होता, तो उसपर धोखाधड़ी का आपराधिक मुकदमा चल सकता था।

रोहित के पिता ने शुक्रवार, दिनांक २२, जनवरी, २०१६ को हैदराबाद में मीडिया के सामने यह खुलासा किया है कि रोहित दलित नहीं था, बल्कि पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का था। उनके पुत्र ने कैसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हासिल कर लिया, उन्हें ज्ञात नहीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी जाति ‘वड्डेरा’ आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचित BC-A के अन्तर्गत पिछड़ी जाति में सम्मिलित है। रोहित के पिता के अनुसार दसवीं कक्षा तक रोहित का नाम मल्लिक चक्रवर्ती पंजीकृत था। उन्हें पता नहीं कि कब और क्यों उसका नाम मल्लिक से बदलकर रोहित कर दिया गया। गुंटुर जिले के गुरजाला गाँव के निवासी रोहित के पिता ने यह भी बताया कि पिछले आठ महीनों से रोहित से उनकी कोई बात नहीं हुई।उन्हें इसकी भी जानकारी नहीं थी कि उसे विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया था। उसकी माँ राधिका उर्फ़ बेबी अपने छोटे बेटे राजा चैतन्य के साथ उप्पल में रहती है। राजा चैतन्य के पास जो जाति प्रमाण पत्र है उसमें यह प्रमाणित किया गया है कि वह ओबीसी की श्रेणी में ही आता है। रोहित के पिता ने अपनी जाति को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने के प्रति अपनी अनिच्छा जाहिर की।

रोहित के पिता के खुलासे के बाद रोहित की सत्यनिष्ठा पर ही उँगली उठने लगी है। फ़र्ज़ी जाति प्रमाण-पत्र बनवाना, उसके आधार पर हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त करना तथा वज़ीफ़े हासिल करना, विशुद्ध धोखाधड़ी है। यह एक आपराधिक मामला है जिसपर मुकदमा चलाया जा सकता है। यह मालूम करना अत्यन्त आवश्यक है कि इस फ़र्जीवाड़े में कौन-कौन शामिल थे और कितने लोगों ने अनुसूचित जाति का फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र बनवाकर वास्तविक दलितों के अधिकार पर डाका डाला है।

अपने देश में किसी की हत्या या आत्महत्या के विरोध या सहानुभूति में आँसू बहाने की मात्रा और विधान भी निर्धारित है। अगर मृतक मुसलमान है तो दोनों आँखों से सावन-भादों की मुसलाधार बारिश की तरह आँसू बहाना अनिवार्य है; खुद भी बहाएं और अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी से भी आँसू बहवाने का हर संभव प्रयास करें। छोटा-बड़ा पुरस्कार लौटाना भी रुदाली का ही अंग है। पुरस्कार की राशि लौटाना आवश्यक नहीं। मुवावज़ा कम से कम पचास लाख। अगर मृतक दलित है, तो शीतकालीन बारिश की तरह ही आँसू बहाना आवश्यक होगा। बिना थिसिस लिखे प्राप्त की गई पीएच.डी. की डिग्री वापस करना ऐच्छिक होगा। मुवावज़ा कम से कम पच्चीस लाख।  अगर वह पिछड़े वर्ग से संबन्धित है, तो आँखें गीली करके समाचार चैनलों पर चर्चा में भाग लेने से भी काम चल जाएगा। पुरस्कार वापसी के बारे में सोचना भी पाप होगा। मुवावज़ा कम से कम पचास हजार। मृतक अगर सवर्ण श्रेणी का है, तो उसकी मृत्यु का समाचार टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में प्रकाशित करना असंवैधानिक माना जाएगा। उसका संबन्ध आर.एस.एस., बजरंग दल, एबीवीपी, भाजपा या शिव सेना से जोड़ने का अथक प्रयास, महानतम पुण्य माना जाएगा। हत्या करने वाले या आत्महत्या के लिए उकसाने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा।

रोहित के पिता के खुलासे के बाद केजरीवाल, राहुल, नीतीश, ममता, ओवैसी आदि सहिष्णुओं ने अचानक चुप्पी साध ली है। अब तो वे चाहकर भी बहाए गए अतिरिक्त आँसुओं को वापस  नहीं ले सकते। उनको भी ग्लानि हो रही होगी कि उन्होंने अपने आँसू उस व्यक्ति के लिए बहाए जिसने आतंकी याकूब मेमन का खुलकर समर्थन किया था और नाम बदलकर तथा फ़र्ज़ी जाति प्रमाण-पत्र बनाकर दलितों के अधिकारों और सुविधाओं पर खुली डकैती डाली थी। देखना है सरकार मुवावज़े की धनराशि २५ लाख रखती है या ५० हजार.

 

1 COMMENT

  1. किसी मानव ने आत्महत्या की तो लोग उसकी जात को ले कर राजनीति की रोटियां सेकना शुरू कर देते है। यह बेमाने है की उसकी जात क्या है। जब हम जात की बात करते है तो मानवीय सन्वेदना की दृष्टी से हम चूक जाते है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here