रोहित को मरना नहीं, लड़ना था

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या उसी तरह एक बड़ा मुद्दा बन गई है, जिस तरह दादरी के अखलाक की हत्या बन गई थी। रोहित की आत्महत्या उसने खुद की और अपनी मर्जी से की, इसके बावजूद टीवी चैनलों और अखबारों ने उसे दादरी कांड से भी बड़ा मुद्दा बना दिया जबकि मैं यह मानता हूं कि दादरी कांड उसकी तुलना में कहीं अधिक संगीन था। इसका अर्थ यह नहीं कि रोहित की आत्महत्या की हम अनदेखी कर दें। रोहित एक नितांत गरीब परिवार में पलकर बड़ा हुआ था और बहुत प्रखर और परिश्रमी नौजवान था। वह दलित था या पिछड़ा वर्ग का था, इस पर विवाद हो सकता है लेकिन यह सत्य है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय ने रोहित और उसके कुछ दलित साथियों के विरुद्ध जरुरत से ज्यादा कठोर कदम उठा लिये थे। विद्यार्थी परिषद के किसी छात्र के साथ मारपीट करने के आरोप इन मुअत्तिल छात्रों पर लगाए गए थे। मारपीट का कारण यह था कि ये दलित छात्र याकूब मेनन की फांसी के विरुद्ध कार्यक्रम चला रहे थे और विद्यार्थी परिषद उनका विरोध कर रही थी। मैं सोचता हूं कि दोनों को वैसा करने की आजादी होना चाहिए लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने जिन छात्रों को मुअत्तिल किया, क्या उसने वैसा उनके दलित होने के कारण किया? बिल्कुल नहीं। इसीलिए इस सारे मामले को दलित बनाम सवर्ण का रंग देना कहां तक उचित है? भारत मां के एक प्रतिभाशाली पुत्र ने आत्महत्या कर ली, यह बेहद दुखद है लेकिन इस घटना के बाद यह भी पता चला कि जब से यह वि.वि. बना है, 12 दलित विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है। क्या रोहित की आत्महत्या का कारण सिर्फ उसकी मुअत्तिली रहा होगा? नहीं, उसका कारण काफी गहरा है। वह हमारी जातिबद्ध समाज की दूषित मानसिकता है, जिसके कारण हमारे दलित, वंचित और अल्पसंख्यक वर्ग के नौजवानों के मनों को गहरी और लंबी हताशा से भर देती है। रोहित को मरने की नहीं, लड़ने की जरुरत थी। यदि वह लड़ता तो वि.वि. को या तो जमकर टक्कर देता या अपना दोष स्वीकार करता लेकिन उसने वही रास्ता चुना, जो हताश और हारे हुए लोग चुनते हैं। जातिवाद के जहर को मिटाना, इसका असली इलाज है लेकिन हमारे नेतागण उसी ज़हर को बड़ पैमाने पर फैला रहे हैं और बड़ी बेशर्मी से फैला रहे हैं।

1 COMMENT

  1. वेद प्रताप जी , आप तो विद्वान है |कृपया खुलासा करोगे :- क्यों कोई ब्रहामण आत्महत्या नहीं करता ? क्यों कोई ब्राहमण कठिन स्थान पर पोस्टिंग नहीं लेता ? सभी विश्व विधालयों के कुलपति एक ही वर्ग विशेष के है फिर भी विश्व में पहले २०० में कोई स्थान नहीं है ? क्यों आप अपने ही देश के लोगों को कमतर आंकते हो जब तक कोई विदेशी उनकी प्रशंसा नहीं कर दे ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here