भारतीय अर्थशास्त्रियों ने विश्व आर्थिक मंदी का भारत पर कम असर होने के कई कारण दिए हैं. कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया की मुख्यधारा से बची हुई है, निर्यात पर निर्भरता कम है, बैंकों पर अभी भी काफ़ी नियंत्रण है, और आमतौर पर पश्चिमी देशों की तरह कर्ज़ लेकर ख़र्च करने की आदत नहीं है.
लेकिन विशेषज्ञ इस बात पर लगभग एकमत हैं कि भारत को इस संकट से बचाने में ग्रामीण या ग़ैर-शहरी अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका रही .भारत की एक अरब की आबादी में से 70 प्रतिशत ग्रामीण या ग़ैर-शहरी इलाक़ो में रहती है और सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान 26 प्रतिशत है. अंदाज़ा है कि ये योगदान जितना बढ़ेगा अर्थव्यवस्था उतनी ही तेज़ी से बढ़ेगी.
गांव-गांव तक टेलिविज़न के पहुंचने और विज्ञापनों से हर तरह के प्रसाधनों की चाहत बढ़ी है और कॉरपोरेट जगत अपने सामान को इस बाज़ार की मांग और जेब के अनुरूप ढाल रहा है.
तो दस रूपए में आप मोबाईल को टॉप अप करवा सकते हैं, पचास पैसे में शैंपू और टूथपेस्ट के पाउच खरीद सकते हैं, सस्ते रीबॉक के जूते पहन सकते हैं, सस्ती वाशिंग मशीन और गैस स्टोव ख़रीद सकते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों के बाज़ारों पर मंदी के दौरान भी कोई असर नहीं हुआ क्योंकि लोगों की आय पर कोई असर नहीं हुआ..बल्कि तेज़ी ही आई. लेकिन अब जबकि देश के एक तिहाई ज़िले सूखे से प्रभावित हैं, क्या ये तरक्की जारी रह पाएगी?