कालाधन के कुबेर

-प्रमोद भार्गव-

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कालाधन से पर्दा उठने लगा है। नरेंद्र मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद केंद्रीय मंत्रीमंडल की पहली बैठक में ही विशेष जांच दल के गठन से साफ हो गया था कि मोदी सरकार कालाधन के कुबेरों के न केवल नाम उजागर करेगी, बल्कि धन वापसी का सिलसिला भी शुरू करेगी। इस दिशा में पांच माह के भीतर तीन संयुक्त खाताधारियों के 8 नाम उजागार कर दिए गए थे और अब स्विस सरकार ने वहां के बैकों में खाता रखने वाले 5 भारतीयों के नाम उजागार किए है। इनके खिलाफ भारत में कर सबंधी जांच चल रही है। स्विट्जरलैंड के संगीय राजपत्र में ये नाम छापे गए हैं। इससे यह तय होता है कि सरकार के पास इन नामों से संबंधित पुख्ता सुबूत हैं। क्योंकि इन खाताधारियों को अब अदालती कानूनी प्रक्रिया से लेकर आयकर विभाग की कार्रवाई से भी गुजरना होगा। और ये लोग यदि विदेशी बैंकों में जमा अपने धन की वैघता पेश नहीं कर पाते हैं तो धन की वापिसी भी संभव हो जाएगी।

तमाम जद्दोजहद और आशंकाओं के बावजूद कालेधन के कुबेरों को नाम उजागार होना शुरू हो गए हैं। यह पर्दाफश इसलिए अहम् है, क्योंकि ये नाम कानूनी प्रक्रिया के तहत सामने आए हैं। अब तक आए काले कुबेरों के नाम हैं, यश बिड़ला, पोंटी चड्ढा के दामाद गुरजीत सिंह कोचर, रितिका शर्मा, स्नेहलता साहनी और संगीता साहनी । इसके पहले आए 8 नाम थे, डाबर इंडिया के पूर्व निदेशक प्रदीप बर्मन, राजकोट के बुलियन किंग पंकज लोढिया और गोवा की खनिज उत्खनन कंपनी टिंबलो प्रा.लि. और उसके निदेशक मंडल में शामिल राधा सतीश टिंबलो, चेतन एस टिंबलो रोहन एस टिबंलो, एन्ना जी टिबंलो और मल्लिका आर टिबंलो मसलन काले धन की मालिक भारतीय महिलाएं भी हैं। इस दायरे में जल्द ही संप्रग सरकार में मंत्री रहीं परनीत कौर का नाम भी आने वाला है। हालांकि अभी यह उजागार नहीं किया गया है कि इनका कितना कालाधन जमा है। देर-सबेर यह भी साफ हो जाएगा।

फिलहाल भले ही 13 काले कुबेर कानून की जद में आए हों, लेकिन इससे यह साफ हो जाता है कि सरकार ओैर एसआईटी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। एसआईटी को जांच बड़े पैमाने पर करने का अधिकार दिया गया है। लिहाजा एसआईटी को सीधे मुकदमा चलाने की जिम्मेबारी भी सौंप दी गई है। जिसके कारगर परिणाम सामने आने लगे हैं। इस कड़ी में 800 खाताधारियों के नाम मिल भी गए हैं। लेकिन विदेशी बैंकों में खाता खोलना कोई अपराध नहीं है। बशर्तें खाते रिर्जव बैंक ऑफ इंडिया के निर्देशों का पालन करते हुए खोले गए हों। आयकर विभाग को जानकारी देने में संपूर्ण पारदार्शिता बरती गई हो। नियमों के मुताबिक रिजर्व बैंक प्रत्येक खाताधारी को एक साल में सवा लाख डॉलर भेजने की छूट देता है। लिहाजा इस तरह से भेजी गई धन राशि कालेधन के दायरे में नहीं आती। जाहिर कानून काले और सफेद धन में स्पश्ट विभाजित रेखा खींचता है। काले कुबेरों की सूचियां जारी होने के सिलसिले से यह संदेह पुख्ता होता है कि डॉ.मनमोहन सिंह सरकार दोहरे कराधान संधियों का हवाला देकर निहित स्वार्थों के चलते कालाधन वापसी के मुद्दे को जान-बूझकर टालती रही थी।

इस बावत हाल ही में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बयान दिया था कि मनमोहन सिंह सरकार ने स्विट्जरलैंड के बैंकों से भारतीयों के जमा काले धन को बाहर निकालने का अवसर दिया था। यदि ऐसा नहीं था, तो क्या वजह थी कि स्विट्रलैंड के साथ दोहरे कराधान संशोधित करने के लिए जो संशोधित प्रोटोकॉल समझौता हुआ था, उसे हस्ताक्शर होने के 14 माह के बाद अमल में लाया गया। इस दौरान बड़ी मात्रा में सोने की शिलाओं के रूप में कालाधन देश में वापिस लाकर रियल इस्टेट के कारोबार में लगाया गया। इसीलिए 2010-11 और 12 में संपत्ति के कारोबार में सबसे ज्यादा उछाल आया था।

संप्रग सरकार ने कालेधन के देश में लाने की इच्छा तब भी नहीं जताई थी, जब भ्रश्टाचार के खिलाफ संयुक्त राश्ट्र्र ने एक संकल्प पारित किया था। इसका मकसद था कि गैरकानूनी तरीके से विदेशों में जमा कालाधन वापिस लाया जा सके। इस संकल्प पर भारत समेत 140 देशों ने दस्तखत किए थे। यही नहीं संकल्प पारित होने के तत्काल बाद 126 देशों ने तो इसे सख्ती से अमल में लाते हुए कालाधन वसूलना भी शुरू कर दिया था। यह संकल्प 2003 में पारित हुआ था, लेकिन भारत सरकार ने 2005 में जाकर इस पर दस्तखत किए थे। दरअसल दुनिया में 77.6 प्रतिशत काली कमाई ट्रांसफर प्राइसिंग, मसलन संबद्ध पक्शों के बीच सौदों में मूल्य अंतरण के जरिए पैदा हो रही है। इसमें एक कंपनी विदेशों में अपनी सहायक कंपनियों के साथ सौदों में 100 रूपए की वस्तु की कीमत 1000 रूपए या 10 रूपए दिखाकर करों की चोरी और धन की हेराफेरी करती हैं। भारत में संबद्ध फर्मों के बीच अभी भी यह हेराफेरी धड़ल्ले से चल रही है, कालाधन पैदा करने का यह बड़ा माध्यम है। काले कुबेरों पर की गई यह कारवाई इसलिए ठोस लग रही है, क्योंकि भारतीय उद्योग संगठन ने इस पर पर्दा डाले रखने की मांग सार्वजनिक रूप से की है। एसौचेम का तर्क है कि सिर्फ विदेशी बैंकों में खाताधारकों के नाम सार्वजनिक कर दिए गए और बाद में उनकी आय के स्रोत वैद्य पाए गए तो संबंधित खाताधारकों के सम्मान को जो ठेस लगेगी, उसकी भरपाई भविश्य में कैसे होगी ? यह दलील अपनी जगह उचित है। इसीलिए सरकार ने साफ किया है कि खाताधारियों के खातों में कालाधन होने के पक्के सुबूत मिलने पर ही कानूनी प्रक्रिया अदालत के दायरे तक पहुंचाई जाएगी। सरकार यह सावधानी इसलिए भी बरतेगी, क्योंकि जांच पूरी किए बिना जल्दबाजी में कानूनी कार्रवाई कर दी गई तो दम पकड़ रही अर्थव्यस्था लड़खड़ा कर औंधे मुंह गिर जाएगी।

वैसे 2002 से विदेशी बैंकों में खाता खोलना कोई कानूनी अपराध नहीं है, बशर्ते उसमें काली-कमाई जमा न हो। असल में व्यापारियों के अलावा राजनेताओं और अधिकारियों का भी कालाधन विदेशी बैंको में जमा है। यह राशि विशुद्ध रूप से भ्रश्टाचार से उपजी धन राशि है। जब तक इन भ्रश्टाचारियों पर शिकांजा नहीं कसेगा, तब तक इस मुहिम के सार्थक परिणाम आने वाले नहीं है। यहां यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि नेता और अधिकारी कोई उद्योगपति नहीं हैं कि उन्हें आयकर या दोहरे कराधान की समस्या से बचने के लिए विदेशी बैंकों में धन जमा करने की जरूरत पड़े ? यह सीधे-सीधे घुसखोरी से जुड़ा अपराध है। इस दिशा में अरविंद केजरीवाल ने 2012 में कुछ काले-कारोबारियों के नाम उजागार किए थे, इनमें एक बड़े आयकर अधिकारी की पत्नी का नाम भी शामिल था। यदि ऐसे संदिग्ध नामों पर जल्दी कार्रवाई की जाती है तो सरलता से कालेधन की वापसी का वैधानिक सिलसिला शुरू हो सकता है ? अन्यथा अवैधानिक तरीकों से कालेधन की वापिसी तेज होगी। क्योंकि मोदी सरकार ने जब से जांच में सख्ती बरतना शुरू की है, तब से स्विट्रलैंड से भारत में सोने के आयात में हैरतअंगेज बढ़ोत्तरी हुई है। इसी साल सितंबर तक 70 हजार करोड़ रूपए का सोना आयात किया जा चुका है। स्विस कस्टम विभाग द्वारा दी जानकारी के मुताबिक भारत को कुल 347 टन सोने और चांदी के सिक्के निर्यात किए गए हैं। हालांकि यह अच्छी बात है कि सोने-चांदी के रूप में ही सही काला धन लौट रहा है। लेकिन धातु के रूप में आया यह धन देश के आर्थिक विकास या गरीबी दूर करने में भागीदार नहीं हो सकता। क्योंकि धन के काले कुबेर इसे बैंक लॉकरों और तिजोरियों में जमा कर देंगे। मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए चलायमान मुद्रा की जरूरत रहती है। लिहाजा सरकार को इस सोने-चांदी के आयात पर भी नजर रखने की जरूरत है।

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