पतन की राह पर अग्रसर संघ (भाग एक)

पवन कुमार अरविंद

भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष नितिन गडकरी वर्ष 2009 में महाराष्ट्र की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर अचानक आ धमके। गडकरी के इस अस्वाभाविक और अत्यंत तीव्र विकास के पीछे राजनीतिक हलकों में आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहनराव मधुकर भागवत का आशीर्वाद बताया जाता है। ये बातें गडकरी की कंपनियों पर लग रहे भ्रष्टाचार के कथित मामलों से साफ भी हो गया है, क्योंकि भ्रष्टाचार के इन कथित मामलों के कारण गडकरी से ज्यादा चिंतित डॉ. भागवत और आरएसएस खेमा दिख रहा है। डॉ. भागवत की भाजपा में विशेष रूचि के कारण पूरे संघ परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। गडकरी की कंपनियों में घोटाला हुआ है या नहीं, यह बाद की बात है और जांच की बात है। लेकिन भ्रष्टाचार के लपेटे में गडकरी के आने से पूरा संघ निरुत्तर है। क्योंकि गडकरी “परमपूज्य” की “परम पसंद” हैं।

संघ के सरसंघचालक का पद उससे जुड़े सभी संगठनों के लिए मार्गदर्शक का होता है। संघ से जुड़े विविध संगठनों की संख्या 60 से भी ज्यादा है। ये संगठन समाज के विभिन्न क्षेत्रों व वर्गों का संगठन करते हैं। जैसे- छात्रों के बीच कार्य करने वाली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वकीलों का संगठन करने वाली अधिवक्ता परिषद, किसानों के क्षेत्र में सक्रिय भारतीय किसान संघ, मजदूरों के क्षेत्र में सक्रिय भारतीय मजदूर संघ, वनवासी व गिरिवासी क्षेत्रों में सक्रिय वनवासी कल्याण आश्रम, हिंदू जागरण मंच, भारत विकास परिषद, विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय सेविका समिति और राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करने वाली भारतीय जनता पार्टी सहित आदि संगठन हैं। इन संगठनों के कार्यकर्ताओं के लिए सरसंघचालक का पद पूजनीय माना जाता है। यहां तक कि सरसंघचालक का आदेश सभी संगठनों के लिए अंतिम है।

डॉ. भागवत संघ के छठें सरसंघचालक हैं। इसके पहले संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी, बाला साहब देवरस, प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जूभैया, कुप्पहल्ली सीतारामैया सुदर्शन जैसे महान व्यक्तित्व इस पद को सुशोभित कर चुके हैं। प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने 1925 में संघ की स्थापना की थी और इस पद पर वह 1939 तक रहे। उसके बाद गुरूजी वर्ष 1939 से 1973 तक इस पद पर रहे। गुरूजी के कार्यकाल में 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापनी हुई थी। गुरूजी प्रकाण्ड विद्वान थे, साथ ही सिद्ध पुरुष भी माने जाते थे। इस कारण वे राजनीति की काली कोठरी की कालिमा को जानते थे। वे राजनीतिक दल बनाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन सहयोगियों के आग्रह पर आधेमन से भारतीय जनसंघ की स्थापना के लिए तैयार हुए और संघ के कुछ पूर्णकालिक कर्यकर्ताओं को जनसंघ के कार्य के लिए भेजा। इसके बावजूद गुरूजी संघ कार्यकर्ताओं को अपने त्यागमयी व्यक्तित्व से राजनीति से आवश्यक दूरी बनाकर चलने के लिए प्रेरित करते रहे। हालांकि वे राजनीति के विरोधी नहीं थे लेकिन संघ के सांगठनिक कार्यों में राजनीति के घालमेल के सर्वथा खिलाफ थे।

तीसरे सरसंघचालक बालासाहब देवरस भी गुरूजी के ही रास्ते पर चले। उनका जीवन गुरूजी की ही तरह निर्विवाद रहा। चौथे सरसंघचालक के रूप में रज्जूभैया भाजपा के काफी निकट आये लेकिन उन्होंने भी अपनी मर्यादा और गरिमा को बनाए रखा। इसके बाद प्रकांड विद्वान सुदर्शन वर्ष 2000 में संघ के पांचवे सरसंघचालक बने। उन्हीं के साथ डॉ. भागवत सरकार्यवाह के पद पर चुने गये थे। हालांकि बतौर सरसंघचालक सुदर्शन का कार्यकाल बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने भाजपा के राजनीतिक मामलों में काफी रूचि भी ली, इसके बाजवजूद उन्होंने अपने पद की गरिमा और महिमा को बरकरार रखा। लेकिन मार्च 2009 में सरसंघचालक बने डॉ. भागवत ने अपनी स्थापित छवि के विपरीत भाजपा के राजनीतिक मामलों में अप्रत्यक्ष रूप से जोरदार रूचि लेनी शुरू कर दी।

आज गडकरी पर आरोप लग रहे हैं तो इसी कारण संघ चिंतित नजर आ रहा है। हालांकि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ड वाड्रा पर आरोप लगने के बाद हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने उनको पाक साफ करार दिया है। केंद्र सरकार भी वाड्रा के खिलाफ किसी भी जांच को तैयार नहीं है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अरविंद केजरीवाल की प्रेस कान्फ्रेंस के बाद कुछ मीडिया रिपोर्टों में गडकरी के खिलाफ कथित मामलों की चर्चा को सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम आदेश सरीखा मानलिया गया है। समाज के कुछ लोगों, राजनीतिक दलों और मीडिया का ऐसा रवैया सरासर अनुचित है। यहां तक कि गडकरी अपने खिलाफ लगे आरोपों की किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। लेकिन वाड्रा जांच से घबरा रहे हैं और बिना जांच के ही अपने को पाक साफ साबित करने में जुटे हुए हैं। वाड्रा और गडकरी के खिलाफ लगे कथित आरोपों में कितना दम है और कितनी सच्चाई, यह जांच का विषय है। लेकिन बिना जांच के ही दोनों को अपराधी मान लेना अनुचित ही कहा जाएगा। संघ भी यही बात कह रहा है। लेकिन संघ यह बात डॉ. भागवत से गडकरी की निकटता के कारण कह रहा है। यह अत्यंत निकटता ही संघ की छवि धूमिल कर रही है। साथ ही संघ के निष्ठावान व त्यागमयी जीवन जीने वाले कार्यकर्ताओं को कई बातें सोचने पर भी मजबूर कर रही हैं। कार्यकर्ताओं की यह सोच ही संगठन के उद्भव या पराभव का मार्ग प्रशस्त करती है। (जारी….)

6 COMMENTS

  1. अरविन्द जी, आतंकवाद के क्षेत्र में संघ का कौन सा संगठन कम रहा है ये तो आपने बताया ही नहीं. आप लोगो ने बहुत अफवाह फैलाई लेकिन सच्चई सामने आचुकी है, कि इस देश में आतंवाद संघ वाले फैला रहे हैं. समझौता एक्स., मक्का मस्जिद हैदराबाद, अजमेर शरीफ और माले गांव के धमाकों में संघ का हाथ साबित हो चुका है. मालेगांव के आरोपी असीमानंद ने अपना जुर्म क़ुबूल भी किया है.
    कृपया संघ की आतंकवाद शाखा पर भी प्रकाश डालें.
    कर्नल पुरोहित, प्रज्ञा सिंह आदि किस शाखा में थे.

    • यदि आप कांग्रेस से हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना है, मैं आप की मंशिकता समझ सकता हूँ. यदि नहीं तो अपनी चाहार दिवार से बाहर निकलिए. संघ आपको सच्चा भारतीय बनाता है जो अपनेको गौरब से भारतीय कह सके. आतंकबादी बनाने का काम कौन कर रहा है यह आप बहार निकले तो खुद समझ जायेंगे.

  2. कौन सही और कौन गलत – यह एक बेहद गंभीर मसला है. इन सभी बातो से इतना तो स्पष्ट है की RSS का गडकरी प्रेम अनावश्यक और आत्मघाती है. आरएसएस जैसी संस्था के सर्वोच्च पद पर आसीन ब्यक्ति को संघ के गरिमा के अनुरूप ही कोई कदम उठाना चाहिए. इतना तो निश्चय ही कहा जा सकता है की BJP भ्रस्ताचार से अछुता नहीं है और जड़ी यह कहें की आज के भ्रस्ताचार के लिए BJP भी बराबर के भागीदार है तो गलत नहीं होगा. ब्रस्ताचार को सहना और बिरोध में खरा नहीं होना भी भ्रस्ताचार करनेके बराबर ही है. संघ को गंभीर अताम्चिन्तन करनेकी आवश्यकता है और बीजेपी मे आमूल ब्यावास्थागत परिवर्तन का. क्या आज निष्टावान भारतियों की कमी है की संघ ब्रस्ताचार में लिप्त व्यक्तियों का समर्थन करनेको बिबश है. गडकरी प्रकरण मैं आज कुछभी स्पस्ट नहीं है. बिजनेस वर्ल्ड में तो एक कंपनी को दुसरे कम्पनी को लोन देना गलत नहीं कहा जा सकता है. यह बात जानने की आवश्यकत है की जो पैसा दिया गया उसका स्रोत क्या है. अगर पैसा ब्रस्ताचार से अर्जित है तो उस भ्रस्ताचार को देखना होगा.
    इतना तो कहा ही जा सकता है की गडकरी बीजेपी के लिए दुर्भाग्य हैं (शायद बीजेपी से मेरी अपेक्षा गलत थी). और मेरी नजर में बीजेपी के अध्यक्ष के योग्य तो कदापि नहीं.

  3. किसी पर लगें आरोपों के आधार पर ही आपने क्या क्या लिख डाला.

    तो आप में और उन लोगों में, जो गांधी हत्या का कोई प्रमाण गत छः दशकों तक दे नहीं पाए, पर संघ को ही हत्या के लिए उत्तरदायी मानते रहते हैं, क्या अंतर है?
    आपका कोई अलग उद्देश्य तो नहीं?

    महाराष्ट्र टाइम्स में छपा गडकरी का उत्तर तो आपने पढ़ा होगा ही, उसके विषय में भी कुछ कहिये. क्या आप प्रचारक रहकर भी यह ना समझ पाए, कि एक सर संघ चालक किसी व्यक्ति के वयक्तिक उत्थान के लिए, सारे संघ की हानि सहेगा?
    पक्ष विपक्ष के बीच एक तटस्थ अवस्था भी होती है.
    गडकरी ने कहा है, कि जांच के लिए वे तैय्यार है, फिर वाड्रा कि भी जांच करो ना.

  4. अरविन्द जी पत्रकार होने के अतिरिक्त संघ के प्रचारक भी रहे हैं इसलिए उनका ज्ञान साधारण से काफी ऊंचा होना चाहिए .मैं संघ परिवार से कभी संबंधित नहीं रहा।लेकिन मेरी ऐसी मान्यता है कि संघ ने राष्ट्र के लिए अच्छा कार्य किया था। मेरे एक मित्र जो संघ से जुड़े हुए थे बताते हैं की संघ भी अपने मूल उद्देश्यों से भटक गया है शायद सर्कार से डर कर . मैंने सुदर्शन जी को एक सभा को संबोधित करते सुना था और उसके पश्चात मुझे आश्चर्य हुआ कि इन महाशय को कैसे लोग प्रकांड पण्डित मानते रहे हैं उसी समय कुछ और लोगों की टिप्पणी पढ़ने को मिली जिन का कहना था कि सुदर्शन जी ने कुछ संस्कृत के सुभाषित कंठस्थ कर रखे हैं और उन्ही का समय समय पर अपने पांडित्य प्रदर्शन हेतु प्रयोग करते हैं।उस भाषण मैं मैंने जो सुना उसके आधार पर में यह कह सकता हूँ की सुदर्शन जी को इस्लाम का कोई मौलिक ज्ञान नहीं था और वे केवल सुनी सुनाई बातों के आधार व्याख्यान देने से कतराते नहीं थे .
    सुदर्शन जी के कार्यकाल में सर्कार की हिंदूविरोधी नीतियाँ अपने शीर्ष पर पहुंची . सच्चर कमिटी,रंगनाथ मिश्रा कमीशन इत्यादि हथकंडे अपना कर सर्कार ने संविधान द्वारा प्रदत्त समानता ,न्याय।तथा धर्मं के आधार पर भेद भाव नहीं करने के अधिकारों को तिलांजलि देते हुए मुसलमानों तथा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की हित में सहस्रों करोड़ों की योजनायें क्रियान्वित की पर किसी भाजपा,अधिवक्ता परिषद् हिन्दू जागरण मंच या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता द्वारा इन घोर असंवैधानिक कार्यों का विरोध देखने को नहीं मिला .मोहन भागवत जी भी उन्ही नीतियों पर चल रहे हैं अखिलेश यादव प्रत्येक मुसलमान कन्या को 30,000.देने की घोषणा करते हैं और उन कन्याओं को जिन्हों ने हिन्दू परिवार में जन्म लेने का अपराध किया हैं राज्यकृपा के योग्य नहीं समझते सारे देश में सरकारें एक से एक बढ़कर हिन्दू विरोधी निर्णय लेने की प्रतियागिता में लगे हैं और हिन्दू मौन रहकर अन्याय सहते आरहे हैं
    हिन्दू स्वतत्र भारत के जिम्मी हैं जो शासकों की इतनी ही कृपा पर्याप्त समझते हैं की उन्हें जीने दिया जा रहा है

  5. अरविन्द जी को अपने को पत्रकारिता क्षेत्र में स्थापित करने के लिए इस लेख की बड़ी आवश्यकता थी, ऐसे लेखों से यदि अरविन्द जी की प्रगति होती है तो उनका यह लेख ठीक है,
    रही बात संघ की और मोहन भागवत की तो अरविन्द भी जानते है की ऐसे लेखों से संघ की हानि नहीं होती ,
    बेचारा अरविन्द प्रचारक भी रहा है तो ऐसे लेख के लिए संघ को उसे क्षमा कर देना चाहिए ,
    आखिर उसके व्यक्तिगत जीवन के प्रचारक रूपेंन
    चार साल ऐसे ही लेख भरपाई कर सकते है , दोष अरविन्द का नहीं है उसके मार्गदर्शकों का है
    ,यदि अपने को ही निष्ठावान और त्यागी समझते है तो उन्हें अपनी मानसिक स्थिति को ठीक करना चाहिए ,मेरा यह सुझाव अरविन्द के लिए हितकर और उन्नति करने वाला होगा

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