मोदी सरकार की सफलता और विफलता पर आरएसएस विचारक गुरूमूर्ति जी के बेबाक विचार |

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति द्वारा इंडिया टुडे के लिए शोभा वारियर को दिया गया साक्षात्कार –
क्या आपको लगता है कि भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चलाना नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है?
यह एक मौलिक उपलब्धि है | मोदी तबतक कुछ भी करने की उम्मीद नहीं कर सकते, जब तक कि सरकार ईमानदार न हो । ऐसा माना जाता था कि भारत में यह संभव नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसे संभव कर दिखाया ।
यह उनकी राजनीति का मौलिक दृष्टिकोण है | इसने राजनीति में यथास्थितिवाद की वर्तमान जड़ता दूर हुई और प्रक्रिया में ईमानदारी से निर्णय ले पाना संभव हुआ । यह धार से विपरीत तैरने जैसा साहसिक काम था |
उन्होंने 75 संयुक्त सचिव नियुक्त किए गए, जो कोई प्रधान मंत्री कभी नहीं करेंगा। यही वह जगह है जहां से प्रशासन में सही और गलत शुरू होता है।
इस बात को लेकर आलोचना हो रही है कि विभिन्न मंत्रालय न जैसे है, केवल प्रधान मंत्री कार्यालय से ही देश चलाया जा रहा है।
मैं कहूंगा कि पीएमओ भी सरकार चलाने में शामिल है। मनमोहन सिंह सरकार के समय तो कोई पीएमओ था ही नहीं । इसके कारण, निर्णय लेने के लिए बाद हस्तक्षेप होता था | आज आप यह नहीं कह सकते कि पीएमओ मंत्रालयों के निर्णयों को बदल रहा है; यह केवल मंत्रालयों के काम को बेहतर बना रहा है, ईमानदारी से और अधिक अधिकार के साथ काम कर रहा है।
प्रशासन में सम्पूर्ण परामर्श होता है, एकजुटता है। जो भी निर्णय लिए जाते हैं, वे प्रभावी होते है और उन्हें प्रधान मंत्री का समर्थन होता है। प्रधान मंत्री के समर्थन का यह मतलब नहीं है कि वे ही एकमात्र निर्णयकर्ता और निरंकुश है।
यदि भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चलाना एक उपलब्धि है, तो क्या आप कहेंगे कि गौरक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों को दंड, काले धब्बे हैं?
इस तरह की गतिविधियाँ लंबे समय से चल रही हैं और गौ रक्षक हमेशा रहे हैं। इस सरकार के आने के बाद यह बढे हों ऐसा नहीं है । मैं इसे सही नहीं ठहरा रहा हूं। लेकिन क्या इसे सरकार ने मंजूरी दे दी है? जब भी इस प्रकार की घटनाएँ सामने आती हैं, क्या सरकार आरोपियों को दंडित नहीं करती है? उन पर पुलिस कार्यवाही होती है । नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से गौ रक्षा के नाम पर क़ानून हाथ में लेने वालों की निंदा की है | क्या आप यह कह रहे हैं कि उनके शासन में बड़े पैमाने पर दंगे हो रहे हैं?
देश में सर्वाधिक चर्चा बीफ़ राजनीति की है, क्या किसी भी स्तर पर राज्य को लोगों के खाने की आदतों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है?
राज्य लोगों के खाने की आदतों में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है | यदि आप अपने गौधन को नहीं बचायेंगे तो एक दशक बाद ही आपको दूध आयात करना होगा । यदि आप बीफ़ खाने की आदत को बढ़ावा देते हैं, तो पर्यावरण समाप्त हो जाएगा।
आखिर पेरिस के जलवायु सम्मेलन ने मांसहीन सोमवार की अवधारणा पर क्यों जोर दिया ? उस हेतु आग्रह क्यों किया ? क्योंकि मांस पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता हैं |

शाकाहारी भोजन की तुलना में बीफ़ को 48 गुना अधिक पानी की आवश्यकता होती है | यहाँ तक कि चीन भी अपने लोगों से मांस की खपत कम करने का आग्रह करता है । अगर यह लोगों के खाने की आदत में हस्तक्षेप भी है, किन्तु पर्यावरण के अनुकूल है, तो इसमें गलत क्या है ? अगर गौधन समाप्त होने से कृषि और पर्यावरण प्रभावित होते है, तो सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया जाना उचित ही है ।
भारत में गाय, अन्य जानवरों के समान केवल पशु नहीं है । संविधान के तहत भी सरकार का दायित्व है, गाय और उसकी संतान की रक्षा करना । संविधान के अनुच्छेद 48 में इस दायित्व का उल्लेख है। सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में निर्णय लिया कि वृद्ध और आर्थिक रूप से बेकार गायों को भी संरक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि गोबर और गोमूत्र मिट्टी के जैविक संवर्धन के स्रोत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहाँ तक कहा था कि कोई गाय बेकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 48 जो जनता की भलाई के लिए है, भोजन की पसंद के व्यक्तिगत अधिकारों को अधिरोपित करता है। आज कई देशों ने पर्यावरण की रक्षा के लिए बीफ़ को सीमित कर दिया है।
इसके अतिरिक्त, 29 राज्यों में से 18 राज्यों ने गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया है, और उनमें से ज्यादातर ने ऐसा तब किया जब कांग्रेस सत्ताधारी पार्टी थी। क्या वे लोगों के भोजन की आदतों में हस्तक्षेप कर रहे थे ?
ऐसा क्यों है कि गाय अब सांप्रदायिक बन गई है? 1 9 70 के दशक में, गाय और बछड़े कांग्रेस के चुनाव चिन्ह थे। आज विडम्बना तो देखिये कि वही कांग्रेस एक बछडे को मार रही है !
उत्तरी भारत के विपरीत केरल जैसे राज्य में, हिंदू गोमांस खाते हैं | इसी प्रकार बंगाल, तमिलनाडु और उत्तर पूर्वी राज्यों में भी हिंदू गौमांस खाते हैं ।
ठीक है, तो इसका अर्थ हुआ कि आप भी इस बात से सहमत हैं कि यह एक सांप्रदायिक मुद्दा नहीं है और मुसलमान ही इसका लक्ष्य नहीं हैं | आप इस बात पर जोर क्यों नहीं देते कि मुख्य लक्ष्य भारत के गौधन, कृषि और पर्यावरण की सुरक्षा है | इसमें मुसलमान बीच में कहाँ आते हैं, जब पूरे पूर्वोत्तर में मिथुन को खाया जाता है जो गाय जैसा दिखता है?
क्या राज्यों को यह तय नहीं करना चाहिए? केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने कहा है कि राज्यों को नागपुर (अर्थात आरएसएस मुख्यालय) और दिल्ली से यह निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए कि वे क्या खाएं, क्या नहीं ।

क्या किसी ने उन्हें मांस खाने से रोका है? अगर वे चाहते हैं तो खाएं | किन्तु वे पर्यावरण के मुद्दे को बीफ़ के मुद्दे में क्यों परिवर्तित कर रहे हैं?
कानून ने केवल इतना कहा था कि आप बाजार में मवेशियों को नहीं बेच सकते । आप निजी तौर पर खरीद सकते हैं और खा सकते हैं |
यदि आप बीफ़ पर 50% टैक्स लगाते हैं, तो आप कह सकते हैं कि सरकार लोगों को बीफ खाने से रोक रही है | पश्चिम अब यही करने का प्रयास कर रहा है – बीफ़ पर इतना टैक्स लगा रहा है कि लोग खा ही न पायें ।
जब किसान अपनी गायें किसी को बेचता है, तो क्या आप गौ रक्षकों को यह अवसर नहीं दे रहे हैं कि वे लोगों को परेशान करें ?
गौ रक्षकों को करने तो दीजिये, फिर हम देखेंगे कि क्या करना है। अकारण काल्पनिक चर्चा का क्या अर्थ है ?
मोदी के आलोचकों का कहना है कि उनके सत्ता में आने के बाद से भारत का हिंदूकरण हो रहा है।
भारत एक हिन्दूबहुल देश है और यही कारण है कि यह धर्मनिरपेक्ष है | यदि यह इस्लामिक देश होता, तो धर्मनिरपेक्षता कहां होती ? स्वयं नेहरू जी ने अपनी पुस्तक “विश्व इतिहास की झलक” में लिखा है कि भारतीय राष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्रवाद के बीच भेद की रेखा बहुत पतली है, क्योंकि भारत एकमात्र देश है जहां हिंदू जनसंख्या का बहुमत है।
तो यह मसला हमेशा से रहा है। लेकिन विभाजन और स्वतंत्रता के बाद धर्मनिरपेक्षता पर प्रवचन विकृति बन गया है ।
धर्मनिरपेक्षतावादियों ने भारत में छद्म धर्मनिरपेक्षता शुरू की | वस्तुतः अल्पसंख्यक अधिकारों को ही धर्मनिरपेक्षता मान लिया गया और वोट बैंक के आधार पर अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण प्रारम्भ हुआ । यह सबसे बुरी बात है, इसे धर्मनिरपेक्षता नहीं कहा जा सकता | धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है, सभी धर्मों के समान अधिकार । वास्तव में तो विशेष अधिकार, धर्मनिरपेक्षता के ही खिलाफ है |
आप यह नहीं कह सकते कि भारत का हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। हमारे हिंदू मूल्य, हिंदू रीति-रिवाज, हिंदू दर्शन, हिन्दू जीवन शैली, जिसमें सभी धर्मों की स्वीकार्यता है । ये भारत की सभी महान संपत्ति हैं | भारत धर्मनिरपेक्ष इसीलिए है, क्योंकि यह हिंदू है।
जब आप इस तरह बात करते हैं, तो क्या अन्य धर्मों के लोग विमुख नहीं होंगे?
उन्हें विमुख क्यों होना चाहिए? मुसलमानों को खुश होना चाहिए कि भारत पाकिस्तान जैसा मुस्लिम बहुमत वाला देश नहीं है।
देखें कि वहां शीया, अहमदिया और अन्य गैर-सुन्नियों के साथ क्या हो रहा है ? फिर, अल्पसंख्यक अधिकारों की अवधारणा का मतलब बहुमत के शासन से है। इसमें तो कोई शक है ही नहीं कि भारत एक हिंदू बहुमत वाला देश है। हिंदू संस्कृति भारत की प्रमुख संस्कृति है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
संविधान अल्पसंख्यक सुरक्षा की गारंटी देता है। किन्तु धर्मनिरपेक्ष प्रवचन ने भारत की पहचान को ही विकृत कर दिया है | आप भारत के पहले संविधान को देखें। इसमें रामायण, महाभारत के चित्र शामिल हैं। संविधान के संस्थापक, जिन्होंने पहली पुस्तक पर हस्ताक्षर किए, उन्हें हिंदू पहचान और धर्मनिरपेक्ष भारत के बीच कोई संघर्ष नहीं दिखा ।
जब कोई सरकार से सवाल करता है या उससे असहमत होता है, तो उसे राष्ट्र विरोधी कहा जाता है ?
जो राष्ट्र विरोधी हैं, उन्हें ही राष्ट्र विरोधी कहा जाता है । उनके रिकॉर्ड को देखें, वे अलगाववादियों को कैसे समर्थन दे रहे हैं, वे कैसे भारत को एक असहिष्णु देश के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। अगर वे भाजपा को असहिष्णु कहते तो बात समझ में आती, लेकिन वे पूरे हिंदू समाज और भारतीय राष्ट्र को असहिष्णु कहते हैं। जब कुछ लोग गलत काम कर रहे हैं, आप उन्हें असहिष्णु कह सकते हैं, लेकिन आप यह कैसे कह सकते हैं कि राष्ट्र असहिष्णु है? जो ऐसा कहते हैं, क्या वे राष्ट्र-विरोधी नहीं हैं?
क्या आप मोदी सरकार के प्रदर्शन से खुश हैं?
मैं खुश हूं क्योंकि वह उन लोगों के मुंह बंद करने में सक्षम सिद्ध हुए, हैं जिन्होंने उन्हें हिटलर कहा था। उन्होंने दिखाया कि वे विशुद्ध हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवादी है जो सभी के अनुकूल है।
वे दुनिया का ध्यान आकर्षित कर सकते है और वह पाकिस्तान को ठीक कर सकते है। वे दृढ़ता के साथ कश्मीर समस्या से निपटने में सक्षम हैं।
मुझे लगता है कि उन्होंने 3 वर्षों में जो कुछ किया, उसे करने में किसी अन्य प्रधान मंत्री को 10 वर्ष लगते । याद रखें कि उन्होंने माइनस पांच से प्रारम्भ किया था |वे अब कहाँ खड़े है?
10 में से 7 । नरेंद्र मोदी ने जो किया है वह पारलौकिक है। यहां तक कि उनके विरोधी भी मानते हैं कि वे महज एक अभिनेता नहीं हैं, एक बेहतरीन कलाकार हैं । उन्हें जोखिम उठाना और फैसले लेना आता है, जो कई प्रधान मंत्री नहीं करते ।
पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद, मोदी के समय के अलावा कोई उच्च जोखिम वाला राष्ट्रवादी निर्णय नहीं हुआ था। लेकिन मुझे लगता है कि उनके कुछ कैबिनेट सहयोगियों का प्रदर्शन उस स्तर का नहीं है, जो कि आवश्यक है। मंत्रालयों में दूरियां है और ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां निर्णय लेने में शीघ्रता होना चाहिए।
हां, सरकार “मुद्रा योजना” को आगे बढ़ाने में सफल नहीं रही है, जो कि आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है | क्योंकि छोटी छोटी कंपनियां ही विकास के साथ रोजगार के अवसर भी पैदा कर सकती हैं और बहुत ज़्यादा नौकरियां मुहैया करा सकती हैं। इसमें दो साल की देरी हुई है और यही इस सरकार की सबसे बड़ी विफलता है ।

4 COMMENTS

  1. No-one talking about the threat from internal enemy . Today many nation in middle east on death bed .
    Only due to one reason all local population was converted by invaders. Local root culture destroyed or forgotten .
    We need to reconvert our local fools who are still serving the enemy masters.
    It’s govt job to fund the dept to reconvert our lost souls and bodies still following the enemy culture ..Look at kashmir .
    These lost souls should be forced to reconvert or declare them anti nationals .

  2. बेहतर होता FDI, GM, विनिवेश, कालधन, असंगठित क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, रोज़गार आदि मुद्दे जिनके बारे में वे अतीत में बेबाक़ी से बोलते रहे हैं उन विषयों पर भी विचार जानने का अवसर मिलता ।

  3. इसमें आर्थिक विषय जो कि लोगों की रोज़ी रोटी से जुड़े हैं तथा जिनके लिए वे जाने जाते हैं, उन पर सिर्फ़ अंतिम तीन पंक्तियों में उल्लेख है ।
    बेहतर होता FDI, GM, Land Aquisition, blackmoney, unorganised sector, economy, employment, effect of demonetisation on MSME,आदि मुद्दे जिनके बारे में वे अतीत में बेबाक़ी से बोलते रहे हैं उन विषयों पर भी विचार जानने का अवसर मिलता ।

  4. इसमें आर्थिक विषय जो कि लोगों की रोज़ी रोटी से जुड़े हैं तथा जिनके लिए ये जाने जाते हैं, उन पर सिर्फ़ अंतिम तीन पंक्तियों में उल्लेख है ।
    बेहतर होता FDI, GM, विनिवेश, कालधन, असंगठित क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, रोज़गार आदि मुद्दे जिनके बारे में वे अतीत में बेबाक़ी से बोलते रहे हैं उन विषयों पर भी विचार जानने का अवसर मिलता ।

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