मार्केटिंग कंपनियों की जाल में फंस रहे हैं ग्रामीण युवा

सूर्यकांत देवागंन 

पहले की अपेक्षा आज के समय में नौकरियों की बाढ़ आई हुई है। केंद्र व राज्य सरकारों में विभिन्न सेवा इकाईयों में भर्ती की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। यहां तक कि मंदी के बावजूद निजी कंपनियों में भी नियुक्ति का दौर जारी है। अखबारों के क्लासीफाइड सूचना के पृष्ठ से लेकर रोजगार समाचार तक में हजारों पदों पर नियुक्ति के लिए इश्तेहार देखे जा सकते हैं। वैश्वीकरण व उपभोक्तावाद के दौर में आज छोटे-बड़े व्यवसाय से भी जीवन जीने के लिए आवश्यक धन कमाना कठिन नहीं रह गया है। कुल मिलाकर कहें तो आज युवकों को उनकी योग्यता और हुनर को देखते हुए पर्याप्त रोजगार के अवसर मिल रहा है।

देश में बेरोजगारों की बढ़ती फौज में यदि कुछ को नौकरी मिल जाती है तो यह सागर में एक बूंद के समान है। परंतु आशा की किरण जरूर दिखलाती है। लेकिन इस सुनहरे मौके का लाभ उठाने से देश के कुछ क्षेत्रों विशेषकर छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्यों के युवा महरूम हैं। ऐसे में छोटी मोटी मार्केटिंग कंपनियां इसका भरपूर फायदा उठा रहीं हैं। जो युवाओं को कम समय में अधिक लाभ अर्जित करने का सब्जबाग दिखाकर उनके कैरियर से खिलवाड़ कर रहीं हैं। हालांकि इन कंपनियों का बुनियादी ढ़ांचा इतना कमजोर होता है कि कभी भी स्वंय को दिवालिया घोषित कर दें।

यहां हम उदाहरण के रूप में उत्तर बस्तर (कांकेर) की बात करेंगे। जहां आज की तारीख में लगभग दर्जन भर मार्केटिंग कंपनियां अपना गोरखधंधा चला रही हैं और इसमें हजारों युवा कार्यरत हैं। इन कंपनियों द्वारा कमीशन खाने का खेल खेला जा रहा है। कंपनियों के प्रवक्ता यह कहकर युवाओं को भ्रमित करने में लगे हैं कि आने वाला समय चेन मार्केटिंग का है। दुनिया की सारी खुशियां इससे जुड़कर पाई जा सकती हैं। जीवन को एक बेहतर मुकाम दिया जा सकता है। जीवन में पैसों की बाढ़ लाई जा सकती है। कुछ वर्षों में ही करोड़पति बनने का सपना पूरा करने का एकमात्र तरीका इन मार्केटिंग कंपनियों से जुड़ना है। आज महज दस-बीस हजार वाली सरकारी और गैर सरकारी नौकरी से जीवन चल नहीं सकता। आप कंपनी से जुड़कर डायमंड बन सकते हैं। इस तरह की बातों को सुनकर इस क्षेत्र के अबोध युवा भ्रमित हो रहे हैं और अच्छी-खासी पढ़ाई और रोजगार को छोड़कर इनकी धोखाधड़ी में फंसते जा रहे हैं। जबकि उनके आंखों के सामने कई ऐसी कंपनियां जालसाजी कर चंपत हो चुकी हैं। विगत कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में असंख्य छोटी-बड़ी चिटफंड कम्पनियों ने अपना जाल बिछा रखा है। ये कम्पनियां ज्यादातर चैन (नेटवर्किग) सिस्टम पर काम करती है और लोगों से भारी भरकम पैसे लेकर उनके पैसों को दो गुना या चार गुना करने की बात कहती है।

विगत पांच साल पहले की अगर हम सोचे तो इस प्रकार की किसी भी गैर शासकीय कम्पनियां नहीं थी परन्तु वर्तमान में ये तहसील व ब्लाक स्तर पर धड़ल्ले से अपना पांव पसार रही है। इस प्रकार की कम्पनी का मुख्यालय ज्यादातर विदेशों या देश के बडे महानगरों में होता है। कम्पनियां अपने व्यापार को फैलाने के लिए अनेक ऐजेटों की नियुक्ति करती है और वही ऐजेंट ग्रामीण इलाको में जाकर लोगों को अपना शिकार बनाते है। इनका काम इस कारण भी आसान हो जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के ज्यादातर लोग कम पढ़े-लिखे होते है या जल्द से जल्द पैसे कमाने की लालसा रखते हैं। एजेंट दूर दराज के गांवों-कस्बों-नगरों-शहरों में जाकर एक-दो अस्थायी कार्यालय खोलकर स्थानीय युवकों को अधिक पैसे देने की लालच देते हैं। उनकी मदद से पूरे क्षेत्रवासियों को अपने चैन सिस्टम में जोड़ने का प्रयास करते है और सफल भी हो जाते है।

इस बिजनेस में पैसा कमाने का आधार कुछ इस प्रकार होता है कि कम्पनी के ऐजेंट साधारण व्यक्ति से एक निर्धारित रकम लेकर उनके पैसों को एक या दो साल की अवधि में दो से चार गुना ज्यादा करने की बात कहकर जमा कराती है साथ ही उन्हें यह भी प्रलोभन दिया जाता है कि यदि वह इसमें दूसरे लोगो को भी जोड़ेंगे तो उनके पैसे पांच गुणा बढ़ जाएंगे। लगभग सभी कम्पनी अपने नये ग्राहको को लुभाने के लिए सदस्य बनने पर उनके द्वारा निर्धारित जमा किए गये रूपयो के एवज में नाम पात्र के कुछ उपहार जैसे कपडे, मोबाइल फोन, घडी, कम्प्युटर आदि देती है। जिससे नये व्यक्ति का उस कम्पनी के प्रति विश्वास थोडा और गहरा हो जाता है। इस माध्यम का प्रयोग कर कम्पनी लोगों से पैसे इकट्ठा करने में सफल हो जाती है।

ऐसी चिटफंड कम्पनियां लोगो को अपने झांसा में लेने के लिए इंटरनेट का सहारा ले रही है। इसके माध्यम से लोगों को कम्पनी के अनेक लोक लुभावनी जानकारियां दी जाती हैं। जिससे ग्रामीण बहुत जल्द प्रभावित हो जाते है। अपने व्यापार सम्बधित समस्त कार्य वेबसाइट के माध्यम से करते हैं। जालसाजी के पैसों को जनता की जेब से निकालकर कम्पनी के मालिक तक पहुंचाने का वर्तमान में सबसे सशक्त माध्यम इंटरनेट है। हालांकि यह साइबर क्रांइम के अंतर्गत आता है परंतु देश में साइबर लॉ की कमी का यह कंपनियां बखूबी फायदा उठा रहीं हैं। चिटफंड कम्पनियों के सदस्यों में अधिक संख्या उन युवा छात्रों की है जो बारहवीं की पढाई कर रहे हैं। कम उम्र में ही पैसे कमाने के जोश ने उनके अंदर पाट टाइम जॉब की रूचि बढ़ा दी है। इस प्रकार छात्रों में नियमित कक्षा की जगह प्राइवेट पढ़ाई का चलन बढ़ा है। जिसका सीधा प्रभाव उनके बौ़द्धिक विकास पर हो रहा है।

हालांकि पूर्व मे भी ऐसी कई गैर शासकीय चैन सिस्टम वाली कम्पनियां आई थीं जो कुछ वर्षों तक पैसा कमाने के नाम पर लोगों को लूटती रहीं और अपनी झोली भरकर रफूचक्कर हो गई। फिर भी हमारे देश के लोगों को क्या हो गया है? यह बात समझ से परे है? पूर्व में हुये घटनाओं से सबक लेने की बजाय और भी अधिक दलदल में फंसते चले जा रहे हैं। वर्तमान में इस प्रकार के कम्पनियों में काम करने वाले लोगों ने हद कर दी है गली, मुहल्लों, सडकों, चाय ठेलों व पान दुकानों में सिर्फ इसी प्रकार के ही बिजनेस की चर्चाए चलती रहती हैं। घर परिवार की औरतें अपने खाली समय में अन्य बातों को ज्यादा महत्व देने की बजाय इन चैन सिस्टम की बाते करते नजर आती हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में तो अब बेरोजगार युवाओ के साथ-साथ शासकीय कर्मचारियों ने भी रूचि लेना प्रारम्भ कर दिया है। यहां तक की कई ऐसे कर्मचारी हैं जो अपने विभागीय कार्य के साथ साथ चिटफंड़ कम्पनियों में कार्य कर रहे हैं। इन कंपनियों से जुड़े लोगों से मिले आंकड़ों के अनुसार उत्तर बस्तर के भानुप्रतापपुर, कोरर, दुर्गूकोंदल ब्लॉक में कम से कम 20 हजार से अधिक लोग जुड़े हैं। अपने इस जालसाजी के व्यवसाय को सूचारू रूप से चलाने के लिए पूरी रणनीति के तहत युवाओं को मीटिंग में आमंत्रित किया जाता है। इसके लिए बजाप्ते एक इनविटेशन कार्ड दिया जाता है। जिस पर कई बड़े कंपनियों के लोगों व उनकी सुविधा का जिक्र होता है। यहां तक युवाओं को लाने के लिए गांव-गांव मोटरसाइकिल और छोटी चैपहिया गाडि़यां भेजी जाती हैं। अक्सर बड़े शहरों के किसी सामान्य होटल या छोटे शहरों के किसी बड़े हॉल में कार्यक्रम रखा जाता है। किसी प्रेरक धुन पर खूब तालियां बजाई जाती है। भीड़ का हर दूसरा व्यक्ति इधर-उधर बैठकर जमकर उत्साहवर्धन तालियां बजाता है। वहां कई को दस, पचास हजार, लाख-दो लाख महीने कमाने वाले युवा कहकर मंच पर परेड करवाई जाती है और उनसे उनकी सफलता के बारे में पूछा जाता है। गत दिनों एक बड़े व विश्वसनीय कहे जाने वाले मार्केंटिंग कंपनी के बिक्री केंद्रों में ताला पड़ गया। इसके कारण भानुप्रतापपुर, दुर्गूकोंदल, कोयलीबेड़ा, कोरर, ब्लॉक के हजारों युवा एक झटके में बेरोजगार हो गए। कंपनी घोटाले व फर्जीवाड़े के काम में पकड़ी गई। कंपनी का मालिक महीनों से फरार है। एक तो यह कंपनी रजिस्ट्रेशन के नाम पर हजारों रूपए वसूल करती थी। वहीं घटिया प्रोडक्ट व अन्य कंपनियों का प्रोडक्ट महंगे दामों में बेचकर कमीशनबाजी का खेल खेलती थी।

इन क्षेत्रों में एक कंपनी ऐसी भी है जो विद्यार्थियों को कम्प्यूटर ट्रेनिंग के साथ-साथ कमाई का आश्वासन देकर उनसे पैसे वसूल कर रही है। वहीं एक दूसरी कंपनी जो करीब दस हजार रूपए से रजिस्ट्रेशन शुरू करती है। इसके बावजूद युवाओं को वेतन की जगह कंपनी के स्किम बेचने पर ही पैसे दिए जाते हैं और हर एक नया सदस्य जोड़ने पर पांच सौ रूपए का बोनस दिया जाता है। यह कंपनियां दुनिया की अत्याधुनिक वस्तुओं का प्रचार कर लोगो में उसके प्रति जिज्ञासा पैदा करती हैं और फिर उन्हें पूरा करने के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की कम्पनियों से किसी व्यक्ति को लाभ नहीं होता। बल्कि एक अनुमान के मुताबिक 100 में से 10 लोगो को इससे जुड़ने का फायदा होता है बाकी लाभ के इंतजार में कम्पनी का गुणगान करते रहते है और एक दिन उन्हे इस इंतजार के बदले कम्पनी के फरार होने की सूचना मिलती है। वास्तव में ऐसी चिटफंड कम्पनियां नामी गिरामी कम्पनियों से हिस्सेदारी व सम्बंध होने की बात कहकर लोगो से पैसे जमा करवाती है और फिर उन्हें वायदा बाजार और शेयर मार्केट में इनवेस्ट करती है। मार्केट प्रभावी होने पर लाभ का वही सामान्य हिस्सा लोगों तक पहुंचता है। यदि मार्केट मंदी का शिकार होती है तो यही कम्पनी अपना व्यापार बंद कर रातोरात फरार हो जाती है।

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर क्षेत्र में ऐसे कई परिवार मौजूद है। जो इस प्रकार की कम्पनी के सहारे अपनी आजिविका चला रहें है। एक ही जिले में लगभग 30 से 50 चिटफंड कम्पनियां कार्य कर रही है। इनके सदस्यों की संख्या का आंकलन करना संभव नही है। लेकिन क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगो को देखकर हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि चिटफंड कम्पनियां शिक्षा के अभाव में जी रहे ग्रामीणों को अपने जाल में फांसने में बहुत कामयाब रही है। कुछ तो वर्तमान में भी लोगों को लूटने को कार्य कर रही है तो कुछ लूट कर फरार हो चुकी हैं। कम्पनी द्वारा लोगो को ठगे जाने पर पुलिस का सहारा भी लिया जाता है। लेकिन जांच के नाम पर पुलिस स्थानीय एंजेटों को पकड़कर केस की फाइल बंद कर देती है। जिससे मुख्य आरोपी बच जाते हैं और लोगो द्वारा लगाया गया पैसा भी वापस नही होता है। 90 के दशक में ग्लोबलाइजेशन की पॉलिसी ने चिटफंड कंपनियों के लिए द्वार खोल दिए हैं। लेकिन इससे होने वाले दुशपरिणामों पर कभी गंभीरता से विचार नहीं किया गया। आवष्यकता है ऐसी कंपनियों के कार्यों पर लगाम लगाने तथा धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कड़े कानून बनाने की अन्यथा पूर्व की तरह भविष्यप में भी अस्थाई कम्पनियां लोगो को लूटती रहेगी। (चरखा)

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