सचिन तेंदुलकर : हिमालयन रिकॉर्ड, हिमालयन व्यक्तित्व

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 कुन्दन पाण्डेय

imagesसचिन का क्रिकेट में केवल कद और व्यक्तित्व ही हिमालय की तरह नहीं है, बल्कि व्यक्तित्व, शालीनता, जीवटता और जीवंतता भी हिमालय की तरह है। उनके रिकॉर्ड के बारे में शब्दों में लिखना अत्यंत दुष्कर जान पड़ता है।

दुनिया भर के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना 200वां टेस्ट मैच खेलने के बाद क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लेंगे। क्रिकेट में एकमात्र महाशतक बना चुका क्रिकेट का यह भगवान क्रिकेट के भक्तों को अब मैदान पर दर्शन नहीं देगा। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को अपने महाशतक (नाबाद 100) के लिए कुल 369 दिनों का इंतजार करना पड़ा। साल 2011 के 12 मार्च को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शतक जमाने के 33 पारियों के बाद उनका बहुप्रतिक्षित स्वप्निल शतक बना था। शतकों के महाशतक लगाने वाले सचिन के लिए यह शतक इस मामले में भी खास था क्योंकि उन्होंने अपनी इस महान पारी में अंतरराष्ट्रीय करियर में 2008 वां चौका मारा था।

दर्शकों और क्रिकेट प्रेमियों को उनकी कमी लंबे समय खलती रहेगी। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत नवंबर 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच से की थी। सचिन तेंदुलकर ने अब तक 198 टेस्ट मैच खेलकर 53.86 की औसत से 15,837 रन बनाए। इसमें 51 शतक और 67 अर्धशतक शामिल हैं। टेस्ट में उनका सर्वोच्च स्कोर 248 रन हैं।

मास्टर ब्लास्टर ने अपना पहला वनडे मैच पाकिस्तान के खिलाफ 18 दिसंबर 1989 खेला था। सचिन ने 463 वनडे मैचों में 44.83 की औसत से 18,426 रन बनाए जिसमें 49 शतक और 96 अर्धशतक शामिल हैं। सचिन ने केवल एक टी 20 अंतरराष्ट्रीय मैच दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दिसंबर 2006 में खेला है जिसमें उन्होंने 10 रन बनाए।

सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर मराठी भाषा के साहित्यकार थे, जबकि मां रजनी तेंडुलकर एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करती थीं। पिता रमेश तेंडुलकर संगीतकार सचिन देवबर्मन के बहुत बड़े फैन थे और उन्हीं के नाम पर मास्टर ब्लास्टर का नाम सचिन रखा गया था।

सचिन को मिले अनेक पुरस्कार मिले। इनमें पद्म विभूषण, राजीव गांधी पुरस्कार खेल रत्न, पद्मश्री, अर्जुन अवॉर्ड, 2010 में आइसीसी से सर गैरीफील्ड सोबर्स ट्रॉफी, 1997 में विजडन प्लेयर ऑफ द ईयर, 2010 में इंडियन एयर फोर्स के ऑनरेरी ग्रुप कैप्टन और 2011 में वर्ल्ड कप के प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट प्रमुख हैं। लेकिन सबसे बड़ा पुरस्कार उन्हें 2012 में मिला, जब वे राज्यसभा सदस्य मनोनीत होने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बने थे।

1995 में वर्ल्ड टेल के साथ 30 करोड़ रुपये की डील साइन करते ही सचिन देश के पहले करोड़पति क्रिकेटर बन गए थे। सचिन के तीन रेस्तरां हैं, उन्होंने मार्स रेस्तरां के मालिक संजय नारंग के साथ पार्टनरशिप की है। इसके अलावा 2007 में मास्टर ब्लास्टर ने फ्यूचर ग्रुप और मनीपाल ग्रुप के साथ ‘एस ड्राइव और सैच’ नाम के साथ स्पोर्ट्स ब्रैंड लांच किया। बहुत कम लोगों को पता होगा कि नैतिकता को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले सचिन ने 20 करोड़ की बड़ी रकम का विज्ञापन ठुकरा दिया था, क्योंकि वह शराब का विज्ञापन था।

सचिन ने कभी भी गुस्से में प्रतिक्रिया नहीं दी। विपरीत समय में जब वे आउट आफ फॉर्म में चल रहे थे, अपनी कठोरतम आलोचनाओं को बिना उफ किए पी गए। क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी सर डॉन ब्रेडमैन ने सचिन की विशेष प्रशंसा की। तेंदुलकर अपने समकालीन क्रिकेटरों ब्रायन लारा और रिकी पोंटिंग आदि पर हमेशा से ही भारी पड़ते रहे हैं।

दुनिया में सबसे बड़ा क्या है? उत्तर है सचिन का दिल। सचिन क्रिकेट और बिजनेस के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। मुंबई के एक एनजीओ अपनालय के 200 गरीब बच्चों का खर्च सचिन स्वयं उठाते हैं। एक प्राइवेट न्यूज चैनल के साथ मिलकर उन्होंने पिछड़े इलाकों में स्थित स्कूलों और बच्चों की मदद के लिए एक अभियान चलाया हुआ है। कैंसर के खिलाफ चल रहे एक अभियान के लिए उन्होंने ट्विटर के जरिए 1.025 करोड़ रुपये जुटाए थे। लगातार लगभग 24 साल पूरी फिटनेस को मेंटेन रखकर क्रिकेट खेलना केवल सचिन के बस का ही है।

जब वे क्रिकेट की जीवंत किंवदन्ती बन रहे थे, तो पिता ने सचिन को एक खास सीख दी थी, कि तुम क्रिकेटर तो महान बनना, लेकिन इंसान क्रिकेटर से भी महान बनना। क्योंकि तुम्हारा क्रिकेट करिअर तो एक सीमित समय तक ही होगा, लेकिन यदि तुम महान इंसान बनोगे तो यह तुम्हारे खेल को अमर कर देगा। पिता से खास लगाव के कारण उनकी सिखाई बातों पर गंभीरता से अमल करते थे। अपने क्रिकेट करिअर में उन्होंने रिकार्ड़ों का जो हिमालय खड़ा किया है उस तक पहुंचने की शायद ही कोई खिलाड़ी सोच पाए। सचिन केवल गेंद पर ही ब्लास्ट होते हैं, व्यवहार में वे कभी ब्लास्ट नहीं होते। हमेशा विनम्र और संयत रहना उनकी सफलता का एक सूत्र है।

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कुन्दन पाण्डेय
समसामयिक विषयों से सरोकार रखते-रखते प्रतिक्रिया देने की उत्कंठा से लेखन का सूत्रपात हुआ। गोरखपुर में सामाजिक संस्थाओं के लिए शौकिया रिपोर्टिंग। गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक के बाद पत्रकारिता को समझने के लिए भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी रा. प. वि. वि. से जनसंचार (मास काम) में परास्नातक किया। माखनलाल में ही परास्नातक करते समय लिखने के जुनून को विस्तार मिला। लिखने की आदत से दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण, दैनिक जागरण भोपाल, पीपुल्स समाचार भोपाल में लेख छपे, इससे लिखते रहने की प्रेरणा मिली। अंतरजाल पर सतत लेखन। लिखने के लिए विषयों का कोई बंधन नहीं है। लेकिन लोकतंत्र, लेखन का प्रिय विषय है। स्वदेश भोपाल, नवभारत रायपुर और नवभारत टाइम्स.कॉम, नई दिल्ली में कार्य।

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