आपकी सौंवीं सेंचुरी की भारत को और कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी, सर सचिन तेंदुलकर?
सचिन वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ घरू पिचों पर बड़े आराम से सौंवाँ शतक जड़ सकते थे। मगर नहीं खेले। सोचा था अब शायद कभी न टूट सकने वाला सौ शतकों का रिकार्ड वे ब्रेडमैन की धरती पर कायम करेंगे। वैसे भी वहां के स्टेडियमों में भीड़ ज़्यादा होती है। भारत में वेस्ट इंडीज़ के साथ होने वाले मैच तो दुनिया के दुसरे देशों में लोग देखें न देखें। आस्ट्रेलिया में और उसमे भी आस्ट्रेलिया के मैच तो लोग देखते ही हैं। सो उन ने सोचा होगा कि बड़ा काम करना है तो बड़े कैनवस पे करो।
उनकी सोच भले ही जैसी हो। इरादा वही था। कोशिश और तैयारी भी वैसी। पहले ही टेस्ट में नब्बे का आंकड़ा पार कर भी गए थे वे। भारत से ज़्यादा अपने शतक के लिए खेलते। लेकिन अपने क्रिकेट जीवन के बुढापे में अपने बेटे से भी बुरा शाट लगा के, कैच थमा के चले आये….और तब से वे कैच थमाते ही आ रहे हैं उछाल लेती शार्ट पिच गेंदों पर। बल्कि कभी कभी तो लगता है कि वे इंतज़ार कर रहे हैं कि कब दांव लगे और वे स्लिप्स में कैच उछालें।
हालत ये हो गई कि भारत के इस क्रिकेटी शूरवीर, इस खेल के महानतम नायक को अब एकदिवसीय मैचों में भारत उनके खेल पराक्रम नहीं, शायद उनकी भद पिटवाने के लिए खिला रहा है। भारत रत्न तो क्या ही मिलना था इस बार के गणतंत्र दिवस पर, टीम में उनकी जगह भी पक्की नहीं रह गई है। तीसरे और चौथे स्थान पर उनसे कहीं अच्छी फील्डिंग और उन से बेहतर नहीं तो उन जैसी बैटिंग कर लेने वाले विराट और रोहित जम गए हैं। महानायक अब उस दिन का इंतज़ार करते हैं जब सहवाग बुरा खेलें और एक मौका उन्हें और मिले। मगर ये होते होते भी हद हो गई है। त्रिकोणीय श्रंखला भी अपने अंतिम पड़ाव पर है। इस इतवार के मैच में वे भारतीय पारी का कुल योग दो अंकों तक भी पंहुचाये बिना तीन रन बना कर चलते बने हैं। हार इतनी करारी है कि भारत भौंचक हो के रह गया है। अगर ये सचिन के लिए एक सिग्नल नहीं, सिर्फ रोटेशन ही है तो भी अगले मैच में ओपनिंग के हकदार वे नहीं। और अगर वीरू का बल्ला मंगलवार को चल गया और भारत ने पीट ली श्रीलंका तो मान के चलिए आस्ट्रेलिया के साथ फाइनल तो फिर वे ही खेलेंगे।
आप अच्छे हैं। महान हैं। उस से भी बड़ी बात कि आप एक बड़े देशप्रेमी और उस से भी अच्छे इंसान हैं। आपने अब तक जो किया वो आपकी मेहनत और आपकी प्रतिभा का परिणाम है। लेकिन ये न भूलिए कि आपको आज जो आप हैं वो बनाने के लिए इस देश (के खेल प्रेमियों और खिलाड़ियों) ने भी कुर्बानियां दी हैं। कई बार आपके चुस्त दुरुस्त नहीं होने के बाद आपको खिलाया और झेला गया है। बहुत बार आपको खेलते देने रहने के लिए गलती आपकी होने के बावजूद रन आउट आपके साथी बल्लेबाज़ हो के गए हैं।
लेकिन फिर भी गावस्कर से लेकर प्रभाष जोशी, यानी विशेषज्ञों से लेकर समीक्षकों तक ने आपकी हौसला अफज़ाई की है। बोर्ड ने भी जब आपने चाहा, खिलाया और जब आपने नहीं चाहा, विश्राम दिया है (भले ही वो व्यावसायिक कारणों से हो)। यही वजह है कि कोई गुरु ग्रेग आपको कभी सौरव गांगुली नहीं बना सका। बहुत भीतर पैठें तो पायेंगे कि इसकी वजह आप से वो रिकार्ड बनवा लेना रही होगी जो सिर्फ आप ही बना सकते थे। ठीक वैसे कि जैसे वेस्ट इंडीज़ ने अपने कोर्टनी वाल्श से बनवाना चाहा उनके अंतिम दौर में उन्हें कम से कम शुरूआती विकटें नहीं मिल पाने के बावजूद। या श्रीलंका ने जैसे खुद उन्हीं के बस कह देने तक मुरली को खिलाया। और रिकार्ड की ही बात करें तो आप के साथ ये रियायत कपिल देव या हरभजन के मुकाबले बहुत ज्यादा हुई है। अब ये अलग बहस का विषय हो सकता है कि भज्जी अगर आस्ट्रेलिया के इस दौरे पे गए होते तो क्या हुआ होता। लेकिन निशाने अगर वे इंग्लैण्ड में चूके हैं तो गज़ब कोई आपने भी नहीं ढाया। शारीरिक रूप से अनफिट (अगर सच में ही) वो थे तो तकनीकी रूप से निराश आपने भी जी भर के किया है।
आप के और आप से भी ज़्यादा क्रिकेट के प्रशंसक के नाते चाहूंगा तो मैं भी कि अपना सौंवा शतक आप प्राप्त करें। आप खेल सकें तो खेलें भी और भी। लेकिन सयाने बुजुर्गों की बात भी कान पे रखना। और वो ये कि मेला हमेशा भरा हुआ ही छोड़ देना चाहिए। वो बहुत पीड़ा और क्षोभ के दिन होंगे कि जब आपको आज सहवाग या गंभीर की तरह टीम में बने रहने के लिए विराट कोहली के साथ मुकाबला करना पड़े। सहवाग की जगह तो आप को मौका मिल भी सकता है कभी। विराट की जगह नहीं मिल पाएगा। हालत अब ये हो ही गई है कि अपना सौंवाँ शतक पाने के लिए भी और टीम में बने रहने के लिए भी सिर्फ प्रारम्भिक बल्लेबाज़ ही रह सकते हैं।
रही टेस्ट के ज़रिये सौंवीं सेंचुरी मारने की बात तो वहां भी ।।। कितनी नावों में आखिर कितनी बार? उस सौंवें सैकड़े के लिए भी आपको इतना तो साबित करना ही होगा कि आप आज भी टीम के लिए एक एसेट हैं, लायबिलिटी नहीं। याद दिला दें आपको। भारत समेत दुनिया के कई नामी खिलाड़ियों को खुद न चले जाने की सूरत में उनके चले जाने के हालात पैदा किया गए हैं। भगवान् न करे, आपके साथ कभी वैसा हो !