बलिदान-विनय साहू

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poice brutleथाने में एनकाउंटर में मारे गए अमजद की लाश रखी हुई है। उसी के बगल पुलिस की रोबदार वर्दी में मोहनीश बैठा हुआ था। हमेशा चुस्त फुर्त रहने वाले ,पुलिस विभाग का शेर कहलाने वाले मोहनीश के चेहरे पर न ही वो रोब था, न वो हिम्मत ,ये मोहनीश की ज़िन्दगी का पहला एनकाउंटर नहीं है । लेकिन ऐसा कौन सा इंसान है ?जिसका एनकाउंटर करने के बाद आज मोहनीश के एनकाउंटर करने वाले हाथ क्रियाशील नहीं रह गए है। अब तक मोहनीश कम से कम दस गिलास पानी पी चुका है। लेकिन अभी भी वो पसीने से तर है।। वो अमजद की मौत के सदमे से बाहर नहीं निकल पा रहा है। बार बार अमजद के शब्द उसके दिमाग में घूम रहे थे। अमजद ने किस तरह उसकी बाँहों में दम तोड़ दिया। आज मोहनीश का मन उसे बार बार धिक्कार रहा था । उसने आज तक बिना सोचे समझे कितने एनकाउंटर कर डाले थे ,लेकिन इस बार उसका हृदय बार बार उसे हत्यारा कह रहा था । वो इतने बड़े अपराधी से दुनिया की नजरो में जीत गया लेकिन खुद की नजरो में हार गया और अधिक गिर गया। उसके दिमाग में उसके बचपन की यादे परत दर परत खुलने लगीं सिर्फ अमजद के भरोसे की कल अमजद उनका सपना साकार करेगा और अपनी सारी जिम्मेदारी निभाएगा। अमजद सचमुच सोना निकला जो हर क्षेत्र में खरा उतरा था। अमीषा अम्मी को तो अपने इसी खजाने पर नाज़ था। इंटर में जब अमजद पूरे इलाके के स्कूलों में फर्स्ट आया तो उसकी अखबार में छपी हुई फोटो को देख कर वो ख़ुशी के मारे पागल सी हो जा रही थी,पूरे इलाके में सेवैया बाटी थी उन्होंने। लोगों से कहती फिर रही थी अब देखना आगे आगे अभी मेरा अमजद कितना आगे जायेगा। लेकिन विधि का विधान कुछ और ही निकला। तक़दीर शायद किसी दूसरे रास्ते पर चलना चाहती थी। इसके बाद मोहनीश अमीषा अम्मी ,आयशा आपा ,अमजद सब से विदा लेकर पढाई के लिए चला गया। अमीषा भी अमजद को बाहर भेजना चाहती थी,लेकिन अमजद अब उन्हें मजदूरी नहीं करने देना चाहता था। इस बार अमजद की जिद के आगे अमीषा को नतमस्तक होना पड़ा। उनकी एक न चली,अमजद ने बताया की अम्मी मुझे नौकरी मिल गई है,महीने में एक हफ्ते क लिए बाहर जाना होगा बस एक हफ्ते का काम है ,तनख्वाह मिलेगी महीने भर की। अमजद में आये सयानेपन को देख अमीषा की रुलाई फुट पड़ी। बस उसने इतना ही कहा -मुझे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है। लेकिन ये बात हमेशा ध्यान रखना भले ही हमे दो वक़्त की रोटी न मिले लेकिन अपनी साख पर कोई दाग न लगे ,भले हम गरीब है लेकिन हम इज्जतदार है ,और बाकी तो उस अल्लाह की मर्ज़ी । अमजद ने बस उत्तर में यही कहा -अम्मी मेरा सिर्फ एक उसूल है की अब तेरी ज़िन्दगी में कोई दुःख नहीं होने दूंगा,अपने आयशा का निकाह करूँगा। उसके लिए चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े। बीच-बीच में मोहनीश के तार भी आते रहे। अमजद भी तार भेजता रहा। लेकिन ये सिलसिला एक-डेढ़ साल ही चला। दोनों अपने अपने कामो में व्यस्त थे। मोहनीश जहा अपने बाप का सपना साकार कर रहा था वही अमजद ने भी अम्मी के भरोसे को निभाया। उसने बहुत जल्दी तरक्की कर ली थी। अम्मी जब कभी -कभार पूछती आखिर ऐसी कौन सी नौकरी है जो इतने पैसे देती है । अमजद टालते हुए कहता अम्मी एक विदेशी कंपनी है ,वैसे आपको आम खाने से मतलब है या गुठलिय गिनने से। बेटे के तर्कों के आगे अम्मी चुप्पी साध लेती। उधर मोहनीश पुलिस कमिश्नर बन चुका था । पेपर में उसकी फोटो देख अमीषा का दिल उसके मन को बहुत कचोटता ,काश अमजद उसकी बात सुनता तो वो भी उसे वर्दी में देखती लेकिन वो जानती थी अमजद के सामने ये बात भैस के आगे बीन बजाने जैसी है। उधर मोहनीश का रुतबा बढ़ता जा रहा था । उसकी निडरता उसके पेशे में चार चाँद लगा रही थी । वो अपने इस सफ़र में न जाने कितने अतंकवादियो -बदमाशो को ढेर कर चुका था । अब बड़े से बड़ा दल उससे सामना करने से डरता था। एक दिन उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा जब उसका ट्रांसफर उसके शहर में हो गया । वहाँ जाने की ख़ुशी उसे इस लिए थी की वो अमीषा अम्मी और अमजद से मिल लेगा । लेकिन यहाँ आने पर पता चला की अमजद किसी काम के लिए फर्रुखाबाद गया हुआ है । उसने अमीषा अम्मी से ढेर सारी बाते की और बताया -कल उसका संगठन किसी अब्दुल्ला नाम के अपराधी से मुठभेड़ के लिए जा रहा है। आते हुए वो अमजद को साथ ले आयेगा। और वही मुलाकात भी कर लेगा। लेकिन जिंदगी का पता नहीं उसे कौन सा मोड़ दिखाने वाली थी। अब्दुल्ला नाम का वो अपराधी बुरका पहन उस बाज़ार में अल्लौत्दीन नाम से किसी साथी से हथियार ले जाने आया था । यह बात पुलिस को ख़ुफ़िया विभाग से मिली। पुलिस ने हर जगह अपने आदमियों को लगाया था। एक जह्सुस ने अब्दुल्ला को पहचान लिया लिया। फिर क्या था मोहनीश ने अब्दुल्ला को रुकने के लिए कहा लेकिन जब वो नहीं रुका तो पुलिस को मजबूरन फायरिंग करनी पड़ी ,। फिर तो उस बाज़ार का दृश्य बदल गया। धड़ाधड़ शटर बंद होने लगी। लोगो के दरवाज़े बंद होने लगे। सब इधर उधर भागने लगे।पु लिस कमिश्नर मोहनीश चिल्लाये जा रहे थे -अब्दुल्ला रुको -रुको ,लेकिन अब्दुल्ला के पावों में जैसे बिजलियाँ लगी थी,। वो रुकने का नाम नहीं ले रहा था। मोहनीश उसे जिन्दा पकड़ना चाहता था,लेकिन वो ये मौका हाथ से कैसे जाने देना चाहता देता।उ सने गोली चला दी। पल भर में अब्दुल्ला जमीन पर गिर पड़ा। याह अल्लाह के उसके चीखते हुए स्वर में पुरे इलाके में गूंज उठे। खून से लथपथ उसकी लाश ने मजबूर कर दिया मोहनीश के मुह से ये शब्द निकलने के लिए -हे भगवान् । तभी पुलिस दल के जवानों ने अलौत्दीन को पकड़ लिया। मोहनीश ने आगे बढ़ कर बुर्के को चेहरे से हटाया। मोहनीश स्तब्ध । उसे लगा उसके शरीर पर हजारो चीटिया काट रही है। उसके मुह से चीख निकने अमजद और वो जमीन पर बैठ गया । अमजद हे अब्दुल्ला हो सकता है ये उसने सपने में भी नै नहीं सोचा था। उसका शरीर एकदम सुन्न हो गया। उसे कुछ समझ नहीं आया,ये तकदीर का कौन सा खेल ,आखिर विधाता उसे क्या सजा दे रहा है।उसके दिमाग में इतने सारी बाते घूमी की उसका दिमाग ही घूम गया। उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। आखिर ऐसी कौन सी मुसीबत आई थी की अमजद को अब्दुल्ला बनना पड़ा। अन्य कर्मचारियों ने लाश को थाने पंहुचा दिया । मोहनीश भी जल्द ही थाने पहुचना चाहता था क्यों की उसे लगता था की अलौत्दीन उसके प्रश्नों का जवाब दे सकता है ,अब्दुल्ला की मौत से भयभीत और सहमे हुए अलौत्दीन ने जल्द ही अपनी जुबान खोल दी। इसके बाद उसने मोहनीश को जो बात बताई ,उससे पता चला की आखिर ऐसा कौन सा कारण था जिसने अमजद जैसे खरे सोने को मिलावटी बना दिया।उस शेर को नरभक्षी बाघ बना दिया । अलौत्दीन ने बताया -अमजद की बड़ी बहन महविश को उसके ससुराल वालो ने छोड़ दिया और पचास हज़ार रुपये की मांग की।वो बहन के आंसू नहीं देख पाया । उसने दर दर की ठोकरे खायी मगर किसी ने उसे पैसे उधार नै दिए। फिर उसकी मुलाकात एक आतंकवादी संगठन के माफिया से हुई। उसने ऐन वक़्त पर अमजद की मदद की। और उसके बदले में उसे कुछ हथियार एक जगह पहुचाने को कहा। उसने महविश की खुशिया तो लौटा दी लेकिन बीच में ही अमीषा की तबियत ख़राब हो गई और डॉक्टर ने अमजद को बताया उन्हें दिल की बीमारी है अगर तुरंत इलाज न हुआ तो वह इस संसार से चली जाएँगी। अमजद को एक बार फिर उसी संगठन से मदद मिली।उसने अम्मी को इस बारे में कुछ नै बताया । माफिया ने उसे ऑपरेशन में एक लाख ररुपये दिए।और एक महीने बाद अमीषा का ऑपरेशन होने वाला था। उसने किसी तरह इस मुसीबत से छुटकारा पा लिया लेकिन उसके पीछे तो जैसे मुसीबतों की लाइन लगी हुई थी। मुसीबतों का ज्वालामुखी शांत नहीं हुआ।उसकी छोटी बहन आयशा एक हिन्दू लड़के से शादी कर ली।जब तक अमजद को पता चला देर हो गयी थी,।बहन के घरवालो ने उसे स्वीकार कर लिया। लेकिन समाज ने उसे स्वीकार नहीं किया। और उनकी अम्मी और अमजद को बिरादरी से बेदखल कर दिया। अब अमजद को बिरादरी से कोई डर न था,इज्जत की कोई परवाह न थी।उसने उस माफिया से हाथ मिला लिया था।अब वो उसके साथ काम करने लगाथा । लेकिन अमीषा अम्मी को इस बात की भनक भी न लगने दी।अलौत्दीन भी ऐसे नौजवानों में से था।उसे उस संगठन से अमजद ने ही मिलवाया था।अमजद की वजह से ही अलौत्दीन अपने अंधे माँ बाप को सहारा दे रहा था नहीं तो वो भी दुनिया का धिक्कारा हुआ इन्सान था। अब मोहनीश को पता चला की किसलिए अमजद जैसा मासूम एक दरिंदा बन गया।जिसका जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि हमारी दुनिया है। मोहनीश को तो अब इस बात की चिंता थी की अमीषा अम्मी को वो अब क्या मुह दिखायेगा । कितनी ख़ुशी से कहा था-अमजद से मिल कर उसे वापस ले कर आएगा।

 

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