सदन चलाने हेतु उप्र विस का रास्ता अपनायें सरकार

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लेबर एक दिन काम न करे तो उसे रोटी भी नही मिलती और अपनी पगार के लिये अफसरों के चक्कर कई साल तक लगाये , क्या यह ठीक है । लोग अपने नाम से सम्पत्ति होने के बाद अदालतो के दरवाजे पीढी दर पीढी चक्कर लगाये , क्या यह सही है । निर्दोष होकर लोग जेल में इसलिये रहे कि उनके पास जमानत के लिये पैसे नही है और चंद रसूखदार लोग जमानत पहले ही जेब में रखे, क्या यह सही है। एक ही देश में दोहरा कानून क्यों ? अलग अलग क्यूं ताकि आजादी के बाद भी हम भारतीय न हो सके ,इस पर सदन में चर्चा नही होनी चाहिये? आखिर कबतक हम हिन्दू ,मुस्लिम , सिख , ईसाई , जैन , पारसी , फारसी आदि का दंश झेलते रहेगें ? हमें गर्व के साथ भारतीय कहने का अधिकार संविधान क्यों नही देता?  इस बात पर सदन में चर्चा नही होना चाहिये. आज तक व्यवधान क्यों है यह बात जनता की समझ में अभी तक नही आ रहा है।
अब बात विरोध के राजनीति की . किस तरह का विरोध होना चाहिये ? उसकी प्रकृति क्या होनी चाहिये ?  स्वभाव कैसा होना चाहिये और किस तरह का व्यवहार सदन में होना चाहिये इस बात को अब नये सिरे से समझना होगां। इस देश में राष्ट्रगान के नाम पर वन्देमातरम् का नाम लिया जाता है किन्तु अधिकतर सांसदों को यह याद नही है अधूरा याद है या भूल गये हंै । चूंकि आरएसएस में इस बात का जयघोष होता है इसलिये यह उनका जुमला है इस बात को वह प्रचारित करते है और इसे कभी आदर के साथ नही कहा जाता , इतना ही नही इस उद्धोष को कभी सदन में कहा जाता होगा, इस पर भी गुरेज है। गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर के इस गान को किसने राष्ट्रगान बनाया , कांग्रेस ने और उसी कांग्रेस के किसी नेता को शायद ही यह गान आता होता है। चर्चा इस पर होना चाहिये जो नही होती . सम्मान देना तो एक तरफ किसी कालेज या स्कूल में, किसी महोत्सव में या राष्ट्रीय कार्यक्रंम में इस गान को पूरा नही गाया जाता , क्या यह सदन में चर्चा का विषय नही होना चाहिये?
इसी तरह कई ऐसे अनुच्छेद है जिन्हें कांग्रेस ने आजादी के बाद जब संविधान बना तो प्रमुखता से बनाये , राष्ट्रीय पोशाक तय की , राष्ट्रीय पक्षी तय किया , पशु तय किया , फूल तय किया , भाषा तय की, ताकि देश एक हो सके और लोग इसका जब अनुसरण करें तो लगे कि भारतीय आ रहा है लेकिन इन विषयों को गौण करके कांग्रेस इंडिया बनाने में लग गयी , आये दिन इन मुद्दों का अपमान हो रहा है कोई भी अधिकारी या मंत्री या उसका नुमाइदा इस पक्ष का अवलोकन करता है। हर दिन, हर पल , हर क्षण इसकी अवमानना हो रही है । इस पर चर्चा होनी चाहिये क्या कभी सदन ने इस पर ध्यान केन्द्रित किया , नही इसलिये कि जिन रिवाजों को उन्होने बनाया वह आम आदमी के लिये है उनके लिये नही। यह बात उनकी जेहन में सदैव बसी रही। देश को खंडित किया , अगर देश के लिये कुछ करना है तो पहले इस पर ध्यान देकर इसे तत्काल प्रभाव से व सख्ती से लागू करना चाहिये। इस पर चर्चा होनी चाहिये।
एक सच पहलू और भी है हमारे देश में अधिकारियों व नेता पर किसी को विश्वास नही है , इस कडी में हर आदमी शामिल है जो ईमानदार है वह भी और जो बेईमान है वह भी? आखिर क्यों ? क्या सदन में इस बात पर कभी चर्चा हुई शायद नही , सभी अपने आप को दूसरे से योग्य साबित करने में लगे है , क्या सही है , योग्यता की कसौटी यही है, हम अपने बच्चों को क्या दे रहें है प्रतिस्पर्धा , एक दूसरे से आगे निकलने की होड , सभी आगे निकलने लगेगें तो साथ कौन देगा , इस बात पर विचार होना चाहिये लेकिन सदन में क्या कभी इस बात पर चर्चा हुई। पूरा विश्व जिस भारत का अनुसरण करता था आज यहां के लोग विदेशों में अपनी प्रतिभा बेंचकर दूसरे दर्जे की जिन्दगी व्यतीत कर रहें है क्या यह सही है। इस पर सदन में चर्चा नही होनी चाहिये।
आज कांग्रस में नेशनल हेराल्ड को लेकर चर्चा हो रही है कुछ दिन सदन भी ठप्प था, अब अरूणाचल प्रदेश को लेकर ठप्प है। क्या यह सही है कि सोनिया गांधी व राहुल गांधी अगर आरोपी है तो उन्हें अपनी बात कोर्ट में नही रखनी चाहिये, यह राजनीति है, यह सही है भी मान लिया जाय तो क्या यह रास्ता कांग्रेस ने नही दिखाया , उनके सरदारों ने अपने मालिक के लिये क्या क्या कारगुजारियां की, यह देश के सामने नही आना चाहिये। इस पर सदन में चर्चा व हंगामें का आधार क्या है, यह बात भी राष्ट्र के सामने आना चाहिये । जनता के पसीने की कमाई का मुआवजा इन अराजकतत्वों से क्या नही वसूलना चाहिये, इस बात पर सदन में चर्चा होनी चाहिये लेकिन नही होगी , गरीबों के लिये समय किसके पास है , देश के लिये समय किसके पास है। इस मामले पर चर्चा नही होनी चाहिये।
सही मायने में देखा जाय तो आज भी हर बीमार सिस्टम की गिरफत में है। कानून बनाने वाले की शैक्षिक योग्यता मायने इसलिये नही रखती क्योंकि उसे अच्छे व बुरे का ज्ञान हो जायेगा और बात कथित अधिकारियों के हाथ से बाहर चली जायेगी । उनका जो रूतबा है वह कम हो जायेगा इसलिये निचली अदालतो ंमें जज की नियुक्ति परीक्षा के आधार पर होती है और उनके ज्ञान की परीक्षा वह लोग लेते है जो पार्टी कार्यालयों की गणेश परिक्रमा कर हाईकोर्ट में नियुक्त हो जाते है । यह सोच किसी भी तरह से न्यायालय के सामाजिक स्तर को बरकरार रखने में कभी सफल नही हो सकती । इसी तरह शिक्षा,शासन – प्रशासन व चिकित्सा पर भी चर्चा करने के लिये बहुत कुछ है लेकिन कभी सदन में चर्चा के लिये नही उठाया जाता, क्योंकि इससे देश तरक्की कर जायेगा और उन लोगों की दुकान बंद हो जायेगी जो इस तरह के संस्थानों पर आधारित है ं।
यह सारी चीजें वही है जो जनता देख रही है और आने वाले समय में जनता के सामने यही सब बातें कहनी भी होगी, आज सरकार विपक्ष के इस रवैये को देश के जनता के सामने रखकर समय बर्बाद करना चाहता है और यह बात मंत्री रखेगें तो तय है कि समय बर्बाद , देश का पैसा बर्बाद और जो काम मंत्रियों को करना चाहिये उससे अलग यह काम ? क्या यह सही है । जरूरत है सदन को चलाने की न कि राग अलापने की , बुजुगों की बातें हमेशा से हमारे संस्कारों का आधार रही है और श्री मद्भागवत गीता में इस परिस्थित से लडने का हल विघमान है तो इतना खर्च क्यों ? इस पर चर्चा होनी चाहियें। देश का विकास किसी बाधा से खंडित नही होना चाहिये , अनुशासन में रहते हुए सख्ती के साथ उस बाधा को ही खंडित कर देश से बाहर निकाल देना चाहिये। तभी देश की तरक्की संभव है। जनता का विश्वास इसी लिये था और भरोसे को कायम रखना , यही सरकार की नीति होनी चाहिये।
अब रही सदन की बात तो अभी दो दशक के आसपास ही हुए होगें जब देश की सबसे बडी रियासत उत्तर प्रदेश में विधानसभा कैसे चलती है इस बात को बताया व दिखाया गया था । उस समय महामहीम राज्यपाल के तौर पर जिन सख्स का नाम था वह मोतीलाल बोरा थे और प्रदेश मे राम मनोहर लोहिया का नाम लेकर सत्ता में आये समाजवादी पार्टी व भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर सत्ता में आयी बहुजन समाज पार्टी की साझा सरकार थी। उस रास्ते को देश के कई प्रदेशों की विधानसभाओं में आजमाया गया और सही बैठा। यही काम अब संसद में भी होना चाहिये , जनता बहुत ही समय से इस काम का इंतजार कर रही है क्योंकि अरबों रूप्ये खर्च होने के बाद भी सदन में काम नही होता और हंगामा होता रहता है तो इस व्यवस्था से आंख मिचैली क्यों ? जिससे देश का पैसा तो बर्बाद हो रहा है, साथ ही जनता का विश्वास भी इस व्यवस्था में खत्म होता जा रहा है। जिन कामों पर सदन को काम करना चाहिये उसे छोडकर वह ऐसे रास्ते पर जा रहें है ,जिसका कोई मतलब नही होता , देश लगातार रसातल में जा रहा है। तो परहेज कैसा ?

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