अयोध्या पर संतों का निर्णय और हमारा उत्तरदायित्व

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– विनोद बंसल

गत 6 अप्रेल को हरिद्वार पूर्ण कुंभ के अवसर पर गंगा तट पर देश भर के वरिष्ठ पूज्य संतों ने जब श्री राम की जन्म भूमि पर बनने वाले भव्य मंदिर हेतु हनूमान चालीसाओं का पाठ करने का निर्णय दिया तो पता नहीं क्यों मेरे मन में एक अनपेक्षित शंका ने जन्म लिया और कहा कि आज के इस कलयुग में भला केवल हनूमान चालीसाओं के सहारे मंदिर बनने की बात कहां तक तर्क संगत है। खैर। क्योंकि पूज्य संतों का निर्णय था, किसी भी प्रकार की शंका करना धर्म विरुद्ध होगा, ऐसा मान कर मैंने न सिर्फ़ स्वयं वल्कि पूरे परिवार व ईष्ट मित्रों को भी नियमित कम से कम एक हनूमान चालीसा करने का आग्रह किया। जो लोग इस बारे में शंका करते थे उन्हें भी मैं यही कहता कि फ़ल की इच्छा छोड संतों के आदेशानुसार आप को तो एक हनूमान चालीसा रोज इस संकल्प के साथ करनी है कि भगवान इसका फ़ल जन्म भूमि मन्दिर के लिए समर्पित करें। इस तरह हनूमान चालीसाओं के पारायण का क्रम देश भर में चालू हो गया और तीस सितम्बर को आये उच्च न्यायालय के निर्णय में उन सारी चालीसाओं का फ़ल स्पष्ट दिखाई दिया। केवल उन तीन न्यायाधीशों को छोड विश्व के किसी व्यक्ति ने शायद कल्पना भी न की थी कि ऐसा निर्णय आयेगा। भगवान का पूज्य पवित्र जन्म स्थान न सिर्फ़ भगवान राम लला विराजमान को मिला वल्कि सभी आशंकाओं को तिलांजलि दे एक भी अप्रिय घटना देश के किसी कौने में नहीं घटी। देश भर में एक खुशी की लहर सी दौड गई। वह ठीक है कि उस निर्णय में अभी भी कुछ मूल भूत बदलाव की आवश्यकता है तभी वहां भव्य मंदिर का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

न्यायालय ने तो अपना निर्णय सुना दिया किन्तु संतों ने अपने इस उच्चाधिकार का प्रयोग करते हुए गत बीस अक्टूबर को अयोध्या के जानकी घाट, परिक्रमा मार्ग स्थित कारसेवक पुरम में जो फ़ैसला सुनाया वह निम्नानुसार है:

‘‘आज जिस स्थान पर श्रीरामलला विराजमान है वही स्थान श्रीराम की जन्मभूमि है’’। इस प्रामाणिक यथार्थ सनातन सत्य को स्वीकार कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने कोटि-कोटि सत्य एवं न्यायप्रेमी समाज के हृदय में प्रसन्नता का संचार किया है। सन्त उच्चाधिकार समिति न्यायालय के इस निर्णय का हृदय से स्वागत करती है।

• श्री रामलला विराजमान एवं उनका जन्मस्थान दोनों ही स्वयं में देवता है। ऐसी शास्त्रीय एवं सांस्कृतिक मान्यता हिन्दू समाज की सनातन काल से चली आ रही है तथा इसी रूप में हिन्दू समाज इस स्थान को पूजता रहा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ ने हिन्दू समाज की इस आस्था को एकमत से स्वीकार करते हुये भी देवता स्वरूप जन्म स्थान को विभाजित करने का निर्णय दिया है। यह संतों एवं हिन्दू समाज को कदापि स्वीकार नहीं है। 135 फिट लम्बे तथा 90 फिट चौड़े इस स्थान की परिक्रमा हिन्दू समाज सदैव से करता रहा है। इस विवादित स्थल के चारों ओर वास्तु के अनुसार बना परिक्रमा स्थान देवता के दिव्यता का सूचक तथा जन्मस्थान रूपी देवता की परिसीमा को युगों-युगों से निर्धारित करता रहा है।

•सन्त उच्चाधिकार समिति की ऐसी मान्यता है कि अयोध्या में श्रीरामजन्मस्थान पर भव्य मन्दिर बनाना न केवल हिन्दू समाज अपितु भारतीय मुस्लिम समाज के सम्मान का विषय भी है। महात्मा गांधी जी ने भी कहा है कि ‘जिस देश में श्री रामचन्द्र जी जैसे पुरुष हो गये उस देश पर हिन्दुओं, मुसलमानों, पारसियों को भी गर्व होना चाहिये। हम प्रभु श्रीरामलला से प्रार्थना करते है कि देशभक्त भारतीय मुस्लिमों के हृदय में ऐसी अंतर्चेतना जागृत हो कि वे भी मंदिर निर्माण के इस पवित्र संकल्प व अनुष्ठान में अपना सहयोग करें।

•उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल की एक तिहाई भूमि मुस्लिम समुदाय को देने का निर्णय दिया है। यह एक स्वर्णिम अवसर मुस्लिम समाज के सामने है जब वह स्वेच्छा से इस एक तिहाई भाग को भी विराजमान रामलला को समर्पित कर अनेक वर्षों से चले आ रहे साम्प्रदायिक मन-मुटाव को दूर कर हिन्दू समाज से अत्यन्त मधुर सम्बन्ध बनाने का मार्ग प्रशस्त करे।

•सन्त उच्चाधिकार समिति सर्व सम्मति से यह स्पष्ट करती है कि हिन्दू शास्त्र और परम्परा के अनुसार स्थान का स्वामित्व (मालिकाना हक) मात्र विराजमान रामलला का है।

•समिति दो टूक शब्दों में इस बात को पुनः दोहराना अपना कर्तव्य समझती है कि भारत सरकार द्वारा अधिग्रहीत 67एकड़ भूमि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की क्रीड़ा भूमि, लीला भूमि और संस्कार भूमि है। जन्मस्थान सहित अधिग्रहीत पूरे परिसर पर ही भगवान श्रीराम का उनके गौरव के अनुरूप भव्य मन्दिर तथा उनकी कथा स्मृति एवं मानव मर्यादाओं को जगत में स्थापित करने वाला केन्द्र, तराशी हुई शिलाओं द्वारा जो अयोध्या कार्यशाला में विद्यमान हैं, उन्हीं से बनेगा।

•सम्पूर्ण अयोध्या हिन्दुओं का पवित्रतम तीर्थ क्षेत्र है, उसके विद्यमान स्वरूप की रक्षा करना हम सभी सन्तों व सम्पूर्ण हिन्दू समाज का प्रथम राष्ट्रीय कर्तव्य है। ऐसी परिस्थिति में अयोध्या तीर्थ की सांस्कृतिक सीमा में किसी नई मस्जिद का निर्माण नहीं होगा।

•आदि कवि वाल्मीकि ने इस अयोध्या नगरी के सौन्दर्य, महात्म्य, भौगोलिकता एवं राम-राज्य का वृहद वर्णन रामायण में किया है यह अयोध्या नगरी प्राचीनकाल से हिन्दुओं की पवित्रतम तीर्थस्थान रही है। कोटि-कोटि हिन्दू और विश्व का मानव समाज महान सांस्कृतिक आदर्श और मर्यादाओं की प्रेरणा प्राप्त करने युगों-युगों से यहाँ आता रहा है और भविष्य में भी यहाँ आने वाला है। अतः सन्त उच्चाधिकार समिति यह मांग करती है कि राज्य सरकार अयोध्या विकास प्राधिकरण को अयोध्या तीर्थ प्राधिकरण के रूप में पुनर्गठित करे।

•सन्त उच्चाधिकार समिति ने आपसी सहमति के लिए बातचीत का मार्ग सदा खुला रखा है। इस दृष्टि से आगे जो भी प्रयत्न होते हैं, उनको हम अपनी संस्कृति, जीवन मूल्यों, परम्पराओं और कोटि-कोटि हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करते हुए सकारात्मक सहयोग करेंगे।

•यह तथ्य सर्व विदित है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधान मंत्रित्व काल में सोमनाथ मन्दिर के पुनर्निर्माण का निर्णय केन्द्रीय मंत्रिमण्डल द्वारा लिया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सहमति से निर्मित भव्य सोमनाथ मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ 0 राजेन्द्र प्रसाद जी द्वारा सम्पन्न हुई थी। समिति भारत सरकार से आग्रह करती है कि अब वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दिए गए शपथपत्र के अनुसार अपने संकल्प को पूरा करे और सोमनाथ मन्दिर की तरह श्रीराम जन्मभूमि के सम्बन्ध में भी स्थायी समाधान हेतु कानून बनाकर सम्पूर्ण अधिग्रहीत भूमि हिन्दू समाज को सौंप कर भव्य मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।

•सन्त उच्चाधिकार समिति ऐसा मानती है कि हनुमत् शक्ति जागरण के धार्मिक अनुष्ठानों के परिणामस्वरूप ही हमें आंशिक सफलता मिली है और भविष्य में भी पूर्ण सफलता हेतु पूर्व निर्धारित हनुमत शक्ति जागरण महायज्ञ अनुष्ठान और सन्त सम्मेलन सभी सहयोगी बन्धु-बान्धवों को साथ लेकर पूर्ण मनोयोग से सम्पन्न किए जाएं।

• संतों की इस उच्चाधिकार समिति की बैठक की अध्यक्षता गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने की। बैठक में जो निर्णय लिया गया उसका प्रस्ताव ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद गुरू शंकराचार्य पू0 स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज ने रखा तथा उसका अनुमोदन जगद गुरू मध्वाचार्य पू. स्वामीविश्वेशतीर्थ जी महाराज तथा पू. महंत नृत्यगोपालदास जी महाराज-अयोध्या ने किया।

आवश्यकता इस बात की है कि जिस प्रकार न्यायालय के निर्णय के समय सभी राजनेताओं की जुबान पर ताला लग गया था उसी प्रकार अब भी इस संबंध में किसी राजनेता को अपनी राजनैतिक रोटी सेकने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। जैसा कि पूज्य संतों ने कहा है कि “भव्य मन्दिर बनाना न केवल हिन्दू समाज अपितु भारतीय मुस्लिम समाज के भी सम्मान का विषय है”, अब सरकार सहित प्रत्येक देशवासी को राष्ट्र के गौरव के प्रतीक इस मंदिर के निर्माण में अपना तन-मन-धन समर्पित कर भारत में एक बार पुन: राम राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। आइए, संवत् 2067 की इस पतित पावन दीपावली पर हम सभी भरत वंशी मां भगवती लक्ष्मी व प्रथम पूज्य गणपति के पूजन के समय इस शुद्ध संकल्प को धारण कर अपनी और अपने राष्ट्र की उन्नति में सहभागी बनें।

जय हिंद। जय श्री राम।

2 COMMENTS

  1. ==> राष्ट्र पुरूष राम<==
    मुस्लिमोंके लिए एक रास्ता निम्न है।
    मुस्लिम समाज "राम" को भारतका एक राष्ट्र पुरूष मान ले, जैसे कोई अमरिकी मुस्लिम अमरिकामें लिंकन और वॉशिंगटन को, राष्ट्र पुरूष स्वीकार करता है, जब वहांकी नागरिकता (सीटीज़नशिप) प्राप्त करता है।वह नहीं कह सकता, कि, लिंकन वॉशिंगटन मान्य नहीं क्यों कि वे मुस्लिम नहीं थे।
    राम भारत में जन्मे थे।मिट्टीमें खेले कूदे थे। उन्हे, भारत के राष्ट्र पुरूष के रूपमें स्वीकार करें, भगवान नहीं।पर्याप्त हिंदू भी, जो नास्तिक है, कम्युनिस्ट हैं, वे भी राम को राष्ट्र पुरूष ही स्वीकार करें। भगवान ना माने।राम सभी के पूर्वज तो है ही।उनका जीवन इस पृथ्वीपर व्यवहारतः उच्चतम आदर्श प्रस्थापित कर गया।

  2. अयोध्या पर संतों का निर्णय और हमारा उत्तरदायित्व – by – विनोद बंसल

    विनोद बंसल जी ने लिखा है :

    बीस अक्टूबर २०१० को अयोध्या के जानकी घाट, परिक्रमा मार्ग स्थित कारसेवक पुरम में जो फ़ैसला सुनाया वह निम्नानुसार है:

    (१) ‘‘आज जिस स्थान पर श्रीरामलला विराजमान है वही स्थान श्रीराम की जन्मभूमि है’’ इस निर्णय का हृदय से स्वागत.

    (बैठक की अध्यक्षता गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज;प्रस्ताव ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद गुरू शंकराचार्य पू0 स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज ने रखा तथा अनुमोदन जगद गुरू मध्वाचार्य पू. स्वामीविश्वेशतीर्थ जी महाराज तथा पू. महंत नृत्यगोपालदास जी महाराज-अयोध्या ने किया)

    (२) जन्म स्थान को विभाजित करने का निर्णय स्वीकार नहीं.

    (३) भारतीय मुस्लिम भी मंदिर निर्माण में अपना सहयोग करें.

    (४) मुस्लिम समाज स्वेच्छा से एक तिहाई भाग को भी विराजमान रामलला को समर्पित कर हिन्दू समाज से मधुर सम्बन्ध बनाने का मार्ग प्रशस्त करे.

    (५) स्थान का स्वामित्व (मालिकाना हक) मात्र विराजमान रामलला का है

    (६) भारत सरकार द्वारा अधिग्रहीत ६७ एकड़ भूमि पर भव्य मन्दिर तराशी हुई शिलाओं द्वारा जो अयोध्या कार्यशाला में विद्यमान हैं, उन्हीं से बनेगा

    (७) अयोध्या तीर्थ की सांस्कृतिक सीमा में किसी नई मस्जिद का निर्माण नहीं होगा

    (८) राज्य सरकार अयोध्या विकास प्राधिकरण को अयोध्या तीर्थ प्राधिकरण के रूप में पुनर्गठित करे

    (९) आपसी सहमति के लिए बातचीत का मार्ग सदा खुला रखा है

    (१०) सोमनाथ मन्दिर की तरह श्रीराम जन्मभूमि हेतु कानून से मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त

    (११) भविष्य में भी पूर्ण सफलता हेतु पूर्व निर्धारित हनुमत शक्ति जागरण महायज्ञ

    सफलता मिले – जय हनुमान.

    – अनिल सहगल –

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