दरअसल सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव अब जमीनी हक़ीक़त से बखूबी वाकिफ हैं ,एक-एक पुराने जमीनी समाजवादी को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं । मात्र २ वर्षों के अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में सरकार-संगठन दोनों पर से आम जन का विश्वास कम हुआ । सरकार के कार्यों का विधिवत प्रचार मीडिया के माध्यम से ना होने से सपा को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा । सपा प्रमुख ने सभी पुराने समाजवादियों से वार्ता के तार जोड़ लिए हैं ,जनेश्वर जी के जन्मदिन पर अमर सिंह की उपस्थिति की खूब चर्चा हुई परन्तु मीडिया के साथियों ने डॉ लोहिया के प्रिय और स्व रामसेवक यादव के बाल सखा अनंत राम जायसवाल (पूर्व सांसद -पूर्व मंत्री ) की प्रथम कतार में उपस्थिति और खुद अखिलेश यादव (मुख्यमंत्री ) द्वारा उनका स्वागत करना अपने संज्ञान में नहीं लिया । खैर अमर सिंह तो मीडिया के अधिकतर लोगो को अपनी तरफ आकर्षित कर ही लेते हैं लेकिन ध्यान रहना चाहिए कि अनंतराम जायसवाल जैसे वयोवृद्ध समाजवादी जब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ रहते हैं तो मुलायम सिंह यादव को नैतिक बल प्राप्त होता है और बिखरे-निराश समाजवादियों को पुनः एक साथ जुटाने की मुहिम सार्थक होती है ।
ग्रामीण हितों के हितैषी ग्रामीण पृश्ठभूमि के राजनेता ,दलित-पिछड़ी जाति के राजनेता जब तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं ,जब उनका राजनैतिक वर्चस्व स्थापित हो जाता है या होने की कगार पर होता है तब तब सामंतवादी-पूंजीवादी ताकतें इन राजनेताओं के खिलाफ षड़यंत्र रचती हैं ,इन्हे आपस में लड़ाती हैं और अपना उल्लू सीधा करने का दुष्चक्र रचती हैं । सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को यह दुःख कचोटता है कि जिनके साथ मिलकर उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया था उनमे से तमाम लोग अब रहे ही नहीं और तमाम लोग राजनैतिक रूप से उनके साथ नहीं रहे । खेती-किसानी ,आम जनमानस के हित के मुद्दे-संघर्ष अब नेपथ्य में ढकेले जा चुके हैं । कृषि भूमि पर जमीन के कारोबारियों की गिद्ध दृष्टि बनी हुई है और सरकारें इन कारोबारियों के हित की योजनायें बनाकर किसानों को तथाकथित विकास के रथ तले रौंदने में तनिक संकोच नहीं कर रही । राहत और बख्शीश के बूते आम जनमानस के नागरिक अधिकारों का अनवरत हनन सत्ताधीशों का स्वाभाविक स्वाभाव-चरित्र बन चुका है । लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता उम्मीद के साथ अपना प्रतिनिधि -अपनी सरकार चुनती है परन्तु विजय के पश्चात अधिकतर चयनित प्रतिनिधियों /सरकार का रुख आम जन हित से हटकर स्वहित-पूंजीपतियों के हित के पक्ष में हो जाता है ।
उत्तर-प्रदेश का आम जन विकास ,अमन चैन चाहता है ,चुनावों में चाहे वो २०१२ का विधानसभा चुनाव रहा हो या अभी २ माह पूर्व संपन्न हुए लोकसभा चुनाव हों ,उत्तर-प्रदेश के आम जन ने स्पष्ट और पूर्ण विश्वास के साथ अपना योगदान दिया था । चुनाव बाद जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना सरकार और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी होती है । आम जन की दृष्टि कितनी सतर्क-पैनी है यह उत्तर-प्रदेश के पिछले कई चुनावी परिणामों से साबित हो चुका है ,कोई भी राजनैतिक दल या राजनेता यहाँ भ्रम में रहकर-रखकर दुबारा सत्ता में नहीं आ सकता है ।उत्तर-प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की सरकार को कानून व्यवस्था के मुद्दे को बयानों से हल्का और नियंत्रण में लेने की अपेक्षा कड़ाई से बिना संकोच ,बिना दबाव के अपराधियों पर त्वरित-प्रभावी कार्यवाही के जरिये नियंत्रण में लेना चाहिए । सौम्यता-मिलनसारिता,बड़ों का सम्मान करना किसी भी व्यक्ति की निजी खूबी होती है यह खूबी कभी भी प्रशासनिक निर्णय लेने ,कानून व्यवस्था कायम रखने और आम जन विश्वास के खात्मे का कारण नहीं होना चाहिए ।
इसी दल की समाजवादी सरकार के अनुभव से जनता पहले भी शासित हो चुकी थी, व उसका अनुभव कटु ही रहा था , ऐसे में दुबारा उसे चुनना जनता की ही गलती थी अब पछताने से क्या लाभ? मुलायम कभी भी अच्छे शासक नहीं रहे ,अखिलेश से तो उम्मीद करना ही व्यर्थ होगा , अभी लगभग तीन साल का समय बाकी है ,यही हाल रहा तो उत्तर प्रदेश जंगल प्रदेश बन जायेगा