समाजवादी पार्टी – सरकार और जनाकांक्षा

mulayam and amar singhअरविन्द विद्रोही
राजनीति के खेल निराले होते हैं । सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों का अपना-अपना चरित्र और कार्य योजना होता है । उत्तर-प्रदेश में  समाजवादी पार्टी की सरकार है ,जनता ने विधानसभा चुनाव २०१२ में पूर्ण बहुमत दिया था । सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के दशकों के संघर्ष ,संगठन छमता को दृष्टि में रखते हुए बसपा के कुशासन से त्रस्त आम जनमानस ने अपना मत-समर्थन दिया था । सपा मुखिया ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी — सपाई और समाजवादी खुश हुए ,,लेकिन समाजवादी पार्टी के चंद नेता दुखी -हताश हुए । राजनीति की चौसर पर चालें चली गईं ,राजनैतिक षड़यंत्र भी रचे गये ,उम्मीदों की साइकिल पर सवार युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दुष्चक्र में फँसते गये और वही चंद दुःखी -हताश सपा नेता मन ही मन खुश होते गये । शायद अखिलेश यादव और सरकार की धूमिल होती छवि से इन सपा नेताओं को अपनी राजनैतिक ताकत -कद मे इज़ाफा होगा यह भ्रम हो चुका है । और एक तथ्य है जो किसी भी राजनेता को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाता है वो है मिज़ाज़पुर्सी । मिज़ाज़पुर्सी भी कोई चीज होती है जी ,चीज नहीं बड़ी जबरदस्त चीज होती है । ऐसी चीज कि जो मिज़ाज़पुर्सी करता है उसका शर्तिया तात्कालिक भला होता ही है भले ही जिसकी मिज़ाज़पुर्सी हो रही हो — जो मिज़ाज़पुर्सी का लुत्फ़ उठा रहा हो उस व्यक्ति का भविष्य चौपट ही हो जाये । ऐसे ही मिज़ाज़पुर्सी करने वाले तमाम अद्भुत योग्यता वाले कलाकार समाजवादी पार्टी के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के राजनैतिक बगीचे के पौध बने हुए हैं । ध्यान रहे ये वे अद्भुत पौधे हैं जो जिसके राजनैतिक बगीचे में रहे अपने द्वारा उत्सर्जित कॉर्बन डाई ऑक्साईड से उसी को उजाड़ दिए ,जीना मुश्किल कर दिए पुराने पौधों का जिनकी छाँव में संघर्ष की बेला कटी । मार्च २०१२ के पश्चात सपा में शामिल कई कलाकारों ने गा बजाकर यह माहौल बना रखा है कि मानों उन्होंने ही बसपा के खिलाफ सबसे बड़ा तीर मारा था ।इन कलाकारों की अपने अपने गृह जनपद और विधानसभा सीट पर पकड़ लेशमात्र भी नहीं है परन्तु मुख्यमंत्री के खास होने के दावे और उनसे भेंट-मुलाकात के चित्रों की बदौलत ,मुख्यमंत्री निवास में गाहे-बगाहे मौजूदगी से इनका भौकाल बिलकुल दुरुस्त है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (प्रदेश अध्यक्ष -सपा ) की सबसे बड़ी ताकत उनके पिता श्री मुलायम सिंह यादव ( प्रमुख -सपा )और तमाम पुराने समाजवादी हैं और सबसे बड़ी कमजोरी उनके द्वारा चयनित जनाधारविहीन ,समाजवादी विचारविहीन चापलूस प्रवृत्ति के युवा जो उनको वस्तुस्थिति तक नहीं बताते और अपनी विधानसभा/जनपद में आम जन से /पार्टी के लोगों से संवाद नहीं रखते । सिर्फ मिज़ाज़पुर्सी करते हैं ,संघर्ष के राही युवा समाजवादीयों के साथ-साथ जनाधार वाले निष्ठावान तमाम वरिष्ठ समाजवादी अभी भी उपेक्षित-नेपथ्य मे हैं ।

दरअसल सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव अब जमीनी हक़ीक़त से बखूबी वाकिफ हैं ,एक-एक पुराने जमीनी समाजवादी को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं । मात्र २ वर्षों के अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में सरकार-संगठन दोनों पर से आम जन का विश्वास कम हुआ । सरकार के कार्यों का विधिवत प्रचार मीडिया के माध्यम से ना होने से सपा को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा । सपा प्रमुख ने सभी पुराने समाजवादियों से वार्ता के तार जोड़ लिए हैं ,जनेश्वर जी के जन्मदिन पर अमर सिंह की उपस्थिति की खूब चर्चा हुई परन्तु मीडिया के साथियों ने डॉ लोहिया के प्रिय और स्व रामसेवक यादव के बाल सखा अनंत राम जायसवाल (पूर्व सांसद -पूर्व मंत्री ) की प्रथम कतार में उपस्थिति और खुद अखिलेश यादव (मुख्यमंत्री ) द्वारा उनका स्वागत करना अपने संज्ञान में नहीं लिया । खैर अमर सिंह तो मीडिया के अधिकतर लोगो को अपनी तरफ आकर्षित कर ही लेते हैं लेकिन ध्यान रहना चाहिए कि अनंतराम जायसवाल जैसे वयोवृद्ध समाजवादी जब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ रहते हैं तो मुलायम सिंह यादव को नैतिक बल प्राप्त होता है और बिखरे-निराश समाजवादियों को पुनः एक साथ जुटाने की मुहिम सार्थक होती है ।

ग्रामीण हितों के हितैषी ग्रामीण पृश्ठभूमि के राजनेता ,दलित-पिछड़ी जाति के राजनेता जब तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं ,जब उनका राजनैतिक वर्चस्व स्थापित हो जाता है या होने की कगार पर होता है तब तब सामंतवादी-पूंजीवादी ताकतें इन राजनेताओं के खिलाफ षड़यंत्र रचती हैं ,इन्हे आपस में लड़ाती हैं और अपना उल्लू सीधा करने का दुष्चक्र रचती हैं । सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को यह दुःख कचोटता है कि जिनके साथ मिलकर उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया था उनमे से तमाम लोग अब रहे ही नहीं और तमाम लोग राजनैतिक रूप से उनके साथ नहीं रहे । खेती-किसानी ,आम जनमानस के हित के मुद्दे-संघर्ष अब नेपथ्य में ढकेले जा चुके हैं । कृषि भूमि पर जमीन के कारोबारियों की गिद्ध दृष्टि बनी हुई है और सरकारें इन कारोबारियों के हित की योजनायें बनाकर किसानों को तथाकथित विकास के रथ तले रौंदने में तनिक संकोच नहीं कर रही । राहत और बख्शीश के बूते आम जनमानस के नागरिक अधिकारों का अनवरत हनन सत्ताधीशों का स्वाभाविक स्वाभाव-चरित्र बन चुका है । लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता उम्मीद के साथ अपना प्रतिनिधि -अपनी सरकार चुनती है परन्तु विजय के पश्चात अधिकतर चयनित प्रतिनिधियों /सरकार का रुख आम जन हित से हटकर स्वहित-पूंजीपतियों के हित के पक्ष में हो जाता है ।

उत्तर-प्रदेश का आम जन विकास ,अमन चैन चाहता है ,चुनावों में चाहे वो २०१२ का विधानसभा चुनाव रहा हो या अभी २ माह पूर्व संपन्न हुए लोकसभा चुनाव हों ,उत्तर-प्रदेश के आम जन ने स्पष्ट और पूर्ण विश्वास के साथ अपना योगदान दिया था । चुनाव बाद जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना सरकार और जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी होती है । आम जन की दृष्टि कितनी सतर्क-पैनी है यह उत्तर-प्रदेश के पिछले कई चुनावी परिणामों से साबित हो चुका है ,कोई भी राजनैतिक दल या राजनेता यहाँ भ्रम में रहकर-रखकर  दुबारा सत्ता में नहीं आ सकता है ।उत्तर-प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की सरकार को कानून व्यवस्था के मुद्दे को बयानों से हल्का और नियंत्रण में लेने की अपेक्षा कड़ाई से बिना संकोच ,बिना दबाव के अपराधियों पर त्वरित-प्रभावी कार्यवाही के जरिये नियंत्रण में लेना चाहिए । सौम्यता-मिलनसारिता,बड़ों का सम्मान करना किसी भी व्यक्ति की निजी खूबी होती है यह खूबी कभी भी प्रशासनिक निर्णय लेने ,कानून व्यवस्था कायम रखने और आम जन विश्वास के खात्मे का कारण नहीं होना चाहिए ।

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अरविन्‍द विद्रोही
एक सामाजिक कार्यकर्ता--अरविंद विद्रोही गोरखपुर में जन्म, वर्तमान में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में निवास है। छात्र जीवन में छात्र नेता रहे हैं। वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं। डेलीन्यूज एक्टिविस्ट समेत इंटरनेट पर लेखन कार्य किया है तथा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा लगाया है। अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 1, अतीत की स्मृति से वर्तमान का भविष्य 2 तथा आह शहीदों के नाम से तीन पुस्तकें प्रकाशित। ये तीनों पुस्तकें बाराबंकी के सभी विद्यालयों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ्त वितरित की गई हैं।

1 COMMENT

  1. इसी दल की समाजवादी सरकार के अनुभव से जनता पहले भी शासित हो चुकी थी, व उसका अनुभव कटु ही रहा था , ऐसे में दुबारा उसे चुनना जनता की ही गलती थी अब पछताने से क्या लाभ? मुलायम कभी भी अच्छे शासक नहीं रहे ,अखिलेश से तो उम्मीद करना ही व्यर्थ होगा , अभी लगभग तीन साल का समय बाकी है ,यही हाल रहा तो उत्तर प्रदेश जंगल प्रदेश बन जायेगा

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