पत्रकारिता के विविध आयामों पर लखनऊ में व्यापक विमर्श

Shri-Jagdish-Upasaneलखनऊ. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय भोपाल के नोएडा परिसर के निदेशक और इण्डिया टुडे के पूर्व सम्पादक श्री जगदीश उपासने का कहना है कि मीडिया आज अपने व्यावसायिक धर्म और उसके संकट के बीच समन्वय और सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. एक ओर जहां उसने अपने लिये खुद ही लक्षमण रेखा भी खींचनी है तो दूसरी ओर सामाजिक सरोकार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी तय करनी है.

विश्व संवाद केन्द्र ट्रस्ट लखनऊ द्वारा संचालित “लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान” द्वारा “जनसंचार के विविध आयाम” विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ रविवार, 6 अक्टूबरको संस्थान के अधीश सभागार में किया गया. संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में “मीडिया का धर्म और संकट” विषय पर विशेषज्ञ व्याख्यान के लिये मुख्य वक्ता के रूप में श्री उपासने जी ने कहा कि मीडिया का काम सत्य का आग्रह है. निडर होकर, स्वतंत्र होकर, पक्षपातरहित विश्लेषण प्रस्तुत करना ही मीडिया का धर्म है. आज इस पर भी सवाल उठ रहे हैं.

मुख्य धारा के मीडिया के सम्मुख आज वेब पत्रकारिता ने चुनौती पेश की है. आने वाले समय में मीडिया का कौन सा संस्करण रहेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता पर मीडिया जरूर रहेगा क्योंकि उसे सत्ता और शक्ति की जवाबदेही तय करनी है. प्रथम सत्र में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ सम्पादक और पूर्व राज्यसभा सांसद श्री राजनाथ सिंह ‘सूर्य’ ने कहा कि पत्रकारिता ने हमेशा ही अपनी मर्यादा में रहते हुये भारतीय जन आकांक्षाओं और सरोकारों को ही अपनी प्राथमिकता बनाया.

rp_Shree-Sanjiv-Sinha-ji-300x225.jpgसेमीनार के ‘सोशल मीडिया: वैकल्पिक पत्रकारिता” विषयक द्वितीय सत्र में वेब पत्रकारिता पर जनयुग डाट काम के सम्पादक डॉ. आशीष वशिष्ठ ने विषय प्रवेश करते हुए इसकी वर्तमान उपादेयता को रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि समाचार के यह जनमाध्यम जहां एक ओर सार्वभौमिक हैं वहीं दूसरी ओर वह इको फ्रेंडली माध्यम भी हैं. वेब पत्रकारिता का भविष्य निश्चित ही सुनहरा है क्योंकि भारत में इस माध्यम को अभी एक दशक ही हुआ है. इस सत्र के मुख्य वक्ता और प्रवक्ता डाट काम के सम्पादक श्री संजीव सिन्हा, ने बताया कि हिन्दी ब्लॉगिंग ने जनसंचार और पत्रकारिता के लिये नये क्षितिज खोलने का कार्य किया है. उन्होंने आगे बताया कि हिन्दी ब्लॉगिंग ने लोगों की अभिव्यक्ति को मंच दिया है. इसने विचारों का लोकतंत्रीकरण किया है. हिन्दी ब्लॉगिंग आज रचनात्मकता को अभिव्यक्ति दे रहा है. हिन्दी ब्लॉगिंग ने सम्पादकीय कैंची से लेखन को मुक्त कर दिया है. यहाँ लेखक ही सम्पादक और प्रकाशक की भूमिका में है. हिन्दी ब्लॉगिंग ने मुख्यधारा के मीडिया को चुनौती दी है. यहाँ अनेक क्षेत्रों में विपुल लेखन हो रहा है. इसकी विश्वसनीयता भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. यह वैकल्पिक पत्रकारिता का सशक्त मंच बन गया है. ऐसा भी कह सकते हैं कि अब वेब मीडिया ही मुख्यधारा का मीडिया बन गया है. अब आने वाले समय की पत्रकारिता का भविष्य वेब मीडिया ही है.

???????????????????????????????अध्यक्षता कर रहीं सोशल मीडिया विशेषज्ञ और पब्लिक फोरम की सम्पादक डॉ. नूतन ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा कि सोशल मीडिया ने जनसंचार की सीमारेखाओं का अतिलंघन तो किया है पर उसने स्कैनिंग न्यूज की परम्परा को भी धक्का पहुंचाया है. इस माध्यम ने समय और परिस्थिति के सारे गढ़े-गढ़ाये मानकों से बाहर जाकर अभिव्यक्ति के नये क्षितिज तलाशने का काम किया है. सोशल मीडिया आज क्रांतिकारी अभिव्यक्ति का माध्यम लेकर आया है. ये दीगर बात है कि आप हिन्दुस्थान के सत्ता और सामाजिक परिवर्तन के पीछे इसकी अहमियत को जिम्मेदार मत मानिये पर सोशल मीडिया ने दुनिया के आधा दर्जन देशों की तानाशाही को उखाड़ फेंकने का काम किया है. सामाजिक कार्यकर्ता श्री राजेन्द्र सक्सेना जी ने विषय प्रवेश किया. अतिथियों का स्वागत संस्थान के अध्यक्ष श्री रामनिवास जैन और ‘लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान’ का परिचय निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा तथा विश्वविद्यालय परिचय राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन विश्विद्यालय की क्षेत्रीय समन्वयक डॉ. नीरांजलि सिन्हा द्वारा प्रस्तुत किया गया.

‘दूरदर्शन का दायित्व विज्ञापन का दास बनाना नहीं’

“जनसंचार के विविध आयाम” विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठीके दूसरे दिन दूरदर्शन के सामाजिक उत्तरदायित्व’विषयक सत्र दूसरे सत्र में विषय प्रवेश करते हुये विश्व संवाद केन्द्र, लखनऊ के सामजिक कार्यकर्ता, श्री राजेन्द्र जी ने अपने संबोधन में कहा कि, “दूरदर्शन ने सामाजिक उत्तरदायित्व की अपनी महती भूमिका को अब तक काफी हद तक समर्पण भाव से पूरा करने का हर संभव प्रयास किया है. समय और देशकाल की बदलती परिस्थितियों ने भले ही कुछ बनावटी चुनौतियां खड़ी करने की कोशिश की हों पर उनसे पार पाने के लिये भी दूरदर्शन अपने आपको काफी हद तक तैयार कर रहा है. वह अपने सर्वजन हिताय के उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है.” मानवाधिकार कार्यकर्ता व समाजशास्त्री डॉ. आलोक चांटिया जी ने विषय प्रवेश करते हुये विज्ञापन के माध्यम से दूरदर्शन के सामाजिक उत्तरदायित्व और समाज पर उसके पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के विषय में विस्तार से बताया. उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि “विज्ञापन ने दूरदर्शन को कैसे अनायास ही अपनी जकड़न में ले लिया है. हम आज धीरे-धीरे विज्ञापन जगत के वश में शामिल होते जा रहे हैं. सुबह गुड मार्निंग चाय के विज्ञापन से लेकर हम गुड नाइट के विज्ञापन के साथ ही सोते हैं, लिहाजा विज्ञापन ने हमको एक तरह से अपना गुलाम बना लिया है.

दूरदर्शन का सामाजिक दायित्व भी बेहद महत्वपूर्ण है. उसके इसी प्रयास के तहत ही पोलियो, कुष्ठ रोग और क्षय रोग जैसी बीमारियों की रोकथाम की जा सकीं. दूरदर्शन की कथनी और करनी के बीच में व्दंव्द चल रहा है. जब हम विपणन पर ज्यादा जोर देते हैं तो भारतीय संस्कृति टूटकर बिखरती है. दूरदर्शन के स्वच्छता, शौचालय अभियान जैसे कार्यक्रमों से दायित्व निर्वहन का वास्तविक स्वरूप निखरकर सामने आ रहा है.”

सत्र के विशिष्ट वक्ता और शैक्षिक दूरदर्शन केंद्र लखनऊ में प्रवक्ता डॉ. हेमंत श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में बताया कि,“दूरदर्शन ने अपनी स्थापना काल से लेकर आज तक अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व को न सिर्फ सफलतापूर्वक संपादित किया है. हमें निराश होने की आवश्यकता बिलकुल नहीं है दूरदर्शन इसका निरंतर प्रयास कर रहा है.” मुख्य वक्ताके तौर पर पूर्व उपमहानिदेशक, दूरदर्शन केन्द्र लखनऊ श्री आर. के. सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि, “दूरदर्शन अपने 700 चैनलों की विशाल श्रंखला के साथ पूरे देश में सामाजिक हितचिंतन में शामिल है. कृषि क्षेत्र में इसके सरोकार बढ़े हैं. काफी प्रगति हुई है. महिला विषयक कार्यक्रम दूरदर्शन के लिये बेहद गंभीर और संवेदनशील विषय हैं. हमें दूरदर्शन के आईने में भी पुरातन पर विश्वास करना होगा. संस्कृति को महत्व देना सीखना पड़ेगा. प्रसार भारती ने अपनी कोई सकारात्मक भूमिका का निर्वहन नहीं किया है. डीडी हमारी संस्कृति को सम्मुख रखती है.”अध्यक्षता कर रहे ल.वि.वि. में पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने अपने संबोधन में बताया कि, “बदलती परिस्थितियों में आज दूरदर्शन भी बदल रहा है. इसे सामाजिक सरोकार की याद दिलाते रहने होगी. संवेदनशीलता का अभाव, मानवीयता का अभाव जैसे मुद्दों को भी सूचना की महत्वपूर्ण भूमिका में शामिल करना होगा.”इस सत्र के उपरान्त पावर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण वनस्थली महिला विश्वविद्यालय में शोध छात्रा सुश्री प्रभात दीक्षित और राष्ट्रीय सहारा लखनऊ में पत्रकार श्री हेमंत पाण्डेय द्वारा ‘मीडिया ट्रायल इन पब्लिक ओपीनियन’ विषय को बेहद संजीदा और तथ्यों के साथ लोगों के मध्य किये गये अपने सर्वेक्षण और उस पर प्राप्त की गई प्रतिक्रया के विश्लेषण को प्रस्तुत किया गया.

‘रेडियो कार्यक्रमों की कलात्मकता’ द्वितीय सत्र में विषय प्रवेश करते हुये लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के निदेशक श्री अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि रेडियो कार्यक्रम हिन्दुस्थान की बहुसंख्यक जनता के लिये जनसंचार के लिये बेहद लोकप्रिय और प्रभावी माध्यम माना गया है. इसलिये ग्रामीण भारत में रेडियो को जीवन्तता प्रदान करने की कोशिश निरंतर जारी रखनी चाहिये. बतौर मुख्य वक्ता, जाने माने कथाकार व पूर्व समाचार वाचक श्री नवनीत मिश्र ने रेडियो पर संगृहीत अपने अनुभवों को साझा करते हुये कहा कि, “भारतीय ग्रंथों में कुशल और प्रभावी वक्ता के छः गुण बताये गये हैं. मधुरता, स्पष्टवक्ता, अच्छा स्क्रिप्ट लेखन, सुस्वर वाचक, धैर्य, लैसमत्वं, को आज भी अपनाने की जरूरत है. वक्ता को सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिये कि उसे क्या नहीं बोलना है. लिखने वाले को यह सोचना चाहिये कि क्या नहीं लिखना है. श्रोता, दर्शक और पाठक को यह भी ध्यान रखना चाहिये कि क्या नहीं सुनना, देखना और पढना है. चित्र से शब्द नहीं गढ़े जा सकते पर शब्दों से चित्र का निर्माण किया जा सकता है. वक्ता को सामान्य ज्ञान से पूरी तरह से परिपक्व भी होना चाहिये. वाणी सजीव जैसी ही प्रतीत होनी चाहिये. यह जरूरी नहीं की रेडियो के क्षेत्र के व्यक्तियों को ही अच्छा वक्ता होना आवश्यक है बल्कि सामान्य वक्ता के लिये भी यह गुण होना नितांत आवश्यक है.”अध्यक्षता कर रहे प्रांत प्रचारक श्री संजय जी, ने कहा कि लोगों के मध्य रहकर कार्य करने वाले संघ कार्यकर्ताओं को वक्तृत्व का गुण होना भी नितांत आवश्यक है. यहां आकर मैंने इस तथ्य को भली-भांति सीखने का कार्य किया है.

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