संजय दत्त की ’अमर’ सियासत – सरिता अरगरे

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sanjay-duttबाज़ारवाद और भ्रष्टाचार के कारण अब नेता और अभिनेता के बीच का फ़र्क धीरे – धीरे खत्म होता जा रहा है। रुपहले पर्दे पर ग्लैमर का जलवा बिखेरने वाले अभिनेताओं को अब सियासी गलियारों की चमक-दमक लुभाने लगी है। गठबंधन की राजनीतिक मजबूरियों में अमरसिंह जैसे सत्ता के दलालों की सक्रियता बढ़ा दी है। हीरो-हिरोइनों से घिरे रहने के शौकीन अमर सिंह कब राजनीति करते हैं और कब सधी हुई अदाकारी,समझ पाना बेहद मुश्किल है। “राजनीतिक अड़ीबाज़” के तौर पर ख्याति पाने वाले अमर सिंह के कारण सियासत और फ़िल्मी दुनिया का घालमेल हो गया है।

जनसभाओं में लोग देश के हालात और आम जनता से जुड़े मुद्दों पर धारदार तकरीर सुनने के लिये जमा होते हैं, मगर अब चुनावी सभाओं में नेताओं के नारे और वायदों की बजाय बसंती और मुन्ना भाई के डायलॉग की गूँज तेज हो चली है। रोड शो में नेता को फ़ूलमाला पहनाने के लिये बढ़ने वाले हाथों की तादाद कम और अपने मनपसंद अदाकार की एक झलक पाने,उन्हें छू कर देखने की बेताबी बढ़ती जा रही है। युवाओं की भीड़ जुटाने के लिये सियासी पार्टियाँ फ़िल्मी कलाकारों का साथ पाने की होड़ में लगी रहती हैं।

समाजवादी पार्टी संजय दत्त की “मुन्ना भाई” वाली छबि को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। सुप्रीम कोर्ट से चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं मिलने पर संजय दत्त को पार्टी का महासचिव बना दिया गया है। पर्दे पर दूसरे के लिखे डायलॉग की बेहतर अंदाज़ में अदायगी करके वाहवाही बटोरने वाले “मुन्ना भाई” के टीवी इंटरव्यू तो खूब हो रहे हैं।मज़े की बात ये है कि हर साक्षात्कार में अमर सिंह साये के तरह साथ ही चिपके रहते हैं और तो और संजय को मुँह भी नहीं खोलने देते। उनसे पूछे गये हर सवाल का उत्तर “अमरवाणी” के ज़रिये ही आता है। शायद कठपुतली की हैसियत भी इससे बेहतर ही होती है, कम से कम वो अपने ओंठ तो हिला सकती है। लगता है यहाँ भी मुन्ना भाई के पर्चे अमरसिंह ही हल कर रहे हैं,बिल्कुल “मुन्ना भाई एमबीबीएस” फ़िल्म की तरह ही।

सुनील दत्त ने राजनीति में रहकर समाज सेवा का रास्ता चुना। नर्गिस दत्त ने भी राज्यसभा सदस्य रहते हुए राजनीति की गरिमा बढ़ाई। प्रिया ने भी अपने माता-पिता की सामाजिक और राजनीतिक हैसियत की प्रतिष्ठा कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

संजय दत्त के मामले में यह कहानी उलट जाती है। बचपन से ले कर अब तक का उनका जीवन सफ़र बताता है कि वे आसानी से किसी के भी बहकावे में उलझ जाते हैं। इसी उलझाव ने इस “सितारा संतान” की आसान ज़िन्दगी को काँटो भरी राह में बदल दिया। मान्यता से विवाह के फ़ैसले की जल्दबाज़ी के बाद अमर सिंह जैसे दोस्तों का साथ उनका एक और आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।

संजय दत्त कानून मंत्री हँसराज भारद्वाज का स्टिंग ऑपरेशन करने वाले होते ही कौन हैं। पत्रकारों द्वारा किये गये स्टिंग ऑपरेशन भी जब कानून के नज़्रिये से सही नहीं माना जा सकता। ऎसे में एक सज़ायाफ़्ता मुजरिम को ये हक किसने दिया ? क्या यह राजनीतिक ब्लैक मेलिंग के दर्ज़े में नहीं आता ?

संजय दत्त इसी तरह दूसरों की ज़बान बोलते रहे,तो जल्दी ही किसी बड़ी मुसीबत को घर बैठे निमंत्रण दे देंगे। अमर सिंह की मेहरबानी से दोनों बहनों के साथ उनके रिश्तों में इतनी खटास आ चुकी है कि अब की बार उनकी ढ़ाल बनने के लिये शायद ही कोई रिश्ता मौजूद रहे। मुसीबत के समय साया भी साथ छोड़ देता है, देखना होगा क्या तब भी मान्यता और अमर सिंह साये की तरह साथ रहेंगे …..?

2 COMMENTS

  1. नेता और अभिनेता के बीच का फर्क अब खत्म होने से अब आने वाले समय में हमे क्या क्या रंग देखने को मिलते है ये देखने की बात होगी…. शायद राजनीतिक मंचो पर हमे अभिनय देखने को मिल जाये……

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