संजय द्विवेदी को प्रज्ञारत्न सम्मान

बिलासपुर। पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी को प्रज्ञारत्न सम्मान से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया। पिछले दिनों बिलासपुर के राधवेंद्र राव सभा भवन में आयोजित समारोह में छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने प्रदान किया। कार्यक्रम का आयोजन छत्तीसगढ़ साहित्यकार परिषद, बिलासपुर ने किया था। इस मौके पर परिषद ने छत्तीसगढ़ के नवरत्न के तहत हास्य-व्यंग्य कवि सुरेंद्र दुबे, लेखक गिरीश पंकज, डा.दानेश्वर शर्मा, नवभारत के संपादक श्याम वेताल, कवि त्रिभुवन पाण्डेय, कथाकार डा. परदेशीराम वर्मा, नवभारत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आर.अजीत एवं डा. विजय सिन्हा को भी सम्मानित किया गया।

आयोजन को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि हमारे समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए साहित्यकारों और पत्रकारों को मार्गदर्शक की भूमिका निभानी होगी। इसके लिए एक वैचारिक क्रांति की जरूरत है। कार्यक्रम के मुख्यवक्ता के पत्रकार एवं मीडिया प्राध्यापक संजय द्विवेदी ने कहा कि संवेदना के बिना न तो साहित्य रचा जा सकता है न ही पत्रकारिता की जा सकती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के सामने सबसे बड़ी चुनौती नक्सलवाद की है। यह एक वैचारिक संघर्ष भी है। क्योंकि हमारे जनतंत्र को यह हिंसक विचारधारा की चुनौती है। उन्होंने कहा माओवादी राज में पहला हमला कलम पर ही होता है और लेखक निर्वासन भुगतते हैं या मार दिए जाते हैं। इसलिए हमें अपने जनतंत्र को असली लोकतंत्र में बदलने के लिए सचेतन प्रयास करने होंगें ताकि जो लोग हिंसा के माध्यम से भारत की राजसत्ता पर 2050 तक कब्जे का स्वप्न देख रहे हैं वे सफल न हों। आरंभ में अतिथियों का स्वागत संस्था के अध्यक्ष डा. गिरधर शर्मा ने किया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ राज्य के अनेक प्रमुख साहित्यकार एवं पत्रकार मौजूद रहे।

संजय जी प्रवक्‍ता के रेगुलर कंट्रीब्‍यूटर हैं।  प्रवक्‍ता की ओर से उन्‍हें हार्दिक शुभकामनाएं।

फोटो के कैप्शनः

संजय द्विवेदी का सम्मान करते विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ,साथ में हैं डा. गिरधर शर्मा।

9 COMMENTS

  1. बड़े भैया एवं सर जी को अवार्ड पाने हेतु हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां

    from
    santosh

  2. “माओवादी राज में पहला हमला कलम पर ही होता है और लेखक निर्वासन भुगतते हैं या मार दिए जाते हैं। इसलिए हमें अपने जनतंत्र को असली लोकतंत्र में बदलने के लिए सचेतन प्रयास करने होंगें ताकि जो लोग हिंसा के माध्यम से भारत की राजसत्ता पर 2050 तक कब्जे का स्वप्न देख रहे हैं वे सफल न हों।” : प्रज्ञारत्न संजय द्विवेदी
    सही कहा आपने।
    कुछ पत्रकार और कुछ लेखक “आपात्काल” का इतिहास भूल चुके हैं। देश स्वतंत्र होते हुए भी वास्तविक रीतिसे गुलाम क्यों है? सोचें।
    संजयजी अनेकानेक बधाइयां, और शुभेच्छाएं।

  3. संजय जी को कोटि कोटि बधाई .अशोक बजाज रायपुर

  4. बडे भैया और आर अजीत साहब दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां

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