– सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र”-
सरफरोशी की तमन्ना को बिस्मिल जी ने किस मनोभाव में लिखा होगा… कभी गौर से पढ़िये तो एक एक शब्द एक शहादत की कहानी कहता मिलेगा, लेकिन आज कहां लुप्त है हमारा सरफरोशी का ये भाव… एक बार सोचिये… आज हालात कुछ यूं है-
सरफरोशी की तमन्ना अब बड़़ी मुश्किल में है,
स्वार्थ और पद की पिपासा हर किसी के दिल में है,
खींच कर लाई सबको लूट करने की उम्मीद,
घटिया लोगों की ही बस्ती हिंद तेरे दिल में है,
व्यर्थ कर डाली शहादत शोहदों की भीड़ ने,
ड्यूड कल्चर आज दिखता हर गली महफिल में है,
इंकलाबी कौन होगा इन गधों की नस्ल में,
जिसको देखो वो ही सिमटा अपनी-२ बिल में है,
क्यों गंवाई जान बिस्मिल इन निकम्मों के लिये,
सोचता हूं अब “स्वतंत्र” मैं राष्ट्र ये मुश्किल में है,